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भोजपुरी के मानकीकरण के सवाल प…

by | Jul 25, 2010 | 3 comments

Ashutosh Kumar Singh

– आशुतोष कुमार सिंह

भोजपुरी के रफ्तार में धीरे-धीरे तेजी आ रहल बा. भोजपुरी के लेके लोग अब संजीदा लउक रहल बाड़न. एह जागरूकता अभियान में इंटरनेट बहुत बड़ योगदान दे रहल बा. पिछला दिन हम भोजपुरी एक्सप्रेस डॉट कॉम के डिस्कसन फोरम में एगो मसला के उठवले रहीं कि भोजपुरी कइसे लिखल जाव. काहे कि भोजपुरी के जेतना पत्र-पत्रिका छप रहल बाड़ी जा चाहे जवन टीवी चैनल चलत बाड़ी जा, ओह सब में भाषा के कसौटी में एकरूपता के अभाव लउक रहल बा. एह से भोजपुरी सीखे वाला लोगन के बहुते दिक्कत के सामना करे पड़त बा. लोग ई नइखे समुझ पावत कि अंजोरिया डॉट कॉम प जवन भाषा में लिखल जा रहल बा ऊ सही बा कि द संडे इंडियन भोजपुरी पत्रिका में जवन भोजपुरी पड़ोसल जा रहल बा ऊ सही बा. महुआ टीवी आ महुआ न्यूज प जवन भोजपुरी बोलल जा रहल बा ऊ सही बा कि हमार टीवी जवन भोजपुरी के प्रयोग क रहल बा ऊ सही बा. एही सब सवालन के जवाब ढुढ़े खातिर हम भोजपुरी के मानकीकरण के सवाल उठवले रहीं.

हमरा खुशी भइल कि एह सवाल प कई गो इन्टरनेटी साथी लोग आपन सुझाव देलस आ गंभीर बहस छेड़ले बा लोग. दिवाकर मणि जी एह मसला प आपन विचार देत कहनी कि, ‘आशुतोष जी, राउर ई चिन्ता बहुते जायज बा, बाकिर भोजपुरी-लेखन में लउक रहल एह वैविध्य के मुख्य कारण ई कहावत बा कि “घाट-घाट प पानी बदले, तीन कोस प बानी”. देवरिया में जवन भोजपुरी बोलल जाला, ओहिजा से तनी-मनी अलग गोपालगंज-सीवान-छपरा के भोजपुरी बा. अलग-अलग क्षेत्र के पृष्ठभूमि से आइल लोगन के लिखे के स्टाइलो में तनी अन्तर मिलेला. अब देखीं ना..भोजपुरिया सिनेमा आ महुआ प प्रचलित भोजपुरी हमरा इहां बोले जाए वाला भोजपुरी से तनी अलगे बुझाला. चूंकि, अबहीं ले भोजपुरी-लेखन ओतना चरम पर ना रहल ह… बाकिर अब जरुरत बा कि एकरा में तनी सा मानकीकरण कइल जाव. ई काम भोजपुरी जगत के साहित्यकार, भोजपुरी भाषाविद्‌ आ भाषावैज्ञानिक लोगन के माध्यमे से संभव बा.’

दिवाकर भाई के एह सुझाव में हं में हं मिलावत प्रभाकर पांडेय ‘गोपालपुरिया’ जी कहनी कि, ‘बहुते बढ़िया विचार बा. अगर कवनो नियम होखे त बताईं. ओकरा प अमल कइल जाई. अगर कुछ मानक निर्धारित हो जाई त बहुते नीमन रही. अउर हमरा पूरा विश्वास बा की रउरा मार्गदर्शन अउर पहल से जरूर कवनो रास्ता निकली.’

एही चरचा में भाग लेत नीलम उपाध्याय जी प्रभाकर जी के सुर में सुर मिलावत कहनी कि, प्रभाकर जी के विचार से हम पूरा सहमत बानी. दुर्भाग्य से 35 बरिस से दिल्ली में प्रवास के दौरान हम भोजपुरी भाषा-भाषी आ संस्कृति से एकदम कट गइल रहनी हऽ जवना के वजह से हम जवन कुछो भोजपुरी में लिखे के कोशिश करीले ओह में एकर असर साफ लउकेला. रउआ लोगन से निहोरा बा कि हमरा भोजपुरी में सुधार खातिर हमार मार्गदर्शन करी लोग.

एह चरचा में दिवाकर मणि जी के एह बात के आगे बढ़ावत हमहूं इहे कहे के चाहत बानी कि मानकीकरण के सवाल प भोजपुरिया साहित्यकार आ भाषा वैज्ञानिक लोगन के आगे आवे के चाहीं. एह मसला प अउर मंथन के जरूरत बा. हम आशा करत बानी कि भोजपुरी के चाहे वाला लोग भोजपुरी कइसे लिखल जाव एह मुद्दा प खुल के बहस करीहें.

राउर
आशुतोष कुमार सिंह

संपर्क
bhojpuriamashal@gmail.com
‌+919891798609

आशुतोष जी के पिछलका आलेख

आशुतोष जी राउर मुद्दा सही बा, सामयिक बा. भोजपुरी में विविधता कवनो खास अजूबा ना ह. अंगरेजियो एह दौर से गुजर चुकल बा. अब तक भोजपुरी में अधिकतर काम प्रिन्ट मीडिया में होत आइल बा आ करीब करीब सगरी पत्र पत्रिकन के वितरण एगो सीमित इलाका में होत रहे जवना से विविधता मुद्दा ना बनत रहे. आजु बनत बा त एह कारण से कि भोजपुरी के कई गो वेबसाइट, कई गो टीवी चैनल हो गइल बाड़ी स. संडे इण्डियन जइसन पत्रिका हो गइल बा. अलग बाति बा कि संडे इण्डियन बलिया में खोजलो ना भेंटाव. अब जब एक जगहा के लिखल भा बोलल भोजपुरी के पूरा दुनिया में पढ़ल सुनल जाई त विविधता के सवाल उठबे करी.

अँजोरिया के प्रकाशन शुरु कइनी त पहिलका कोशिश इहे रहल कि आपन एगो अइसन शैली राखल जाव जवना के अधिकतर लोग सहज भाव से ग्रहण करे. एही चलते अपना लेखक साहित्यकार लोग के तकलीफ देतो हम कुछ ना कुछ फेर बदल करिये दीहिले. सबसे खास बात पूर्ण विराम का चिह्न का बारे में बा. जब हमनी का सगरी विराम चिह्न अंगरेजी के इस्तेमाल करीला जा त एगो फुल स्टापे में कवन खराबी बा? कम से कम आकार के बोध त ना होला गलती से. देखे में बढ़िया लागेला से उपर से. दुनु तरफ जगह ना छोड़े के पड़ेला. देवनागरी का पूर्ण विराम का दुनु तरफ जगह छोड़ल जरुरी होला.

फेर बात करी बावे, बाटे, बाड़े, बारे, बड़ुवे, बाने के. सगरी के मतलब एके होला. एह मामिला में अँजोरिया कवनो जिद्द ना बान्हे. अलगा अलगा जगहा के भोजपुरी के झलक देखावहू में कवनो विरोध नइखे. जवन सबसे बड़ विरोध बा ऊ एह बात खातिर कि हमनी का गलत हिन्दी लिख के ओकरा के भोजपुरिया दीहिले जा आ कहीलें कि भोजपुरी में लिखल बा. तत्सम शब्दन के प्रयोग करत घरी ई दुविधा अउरी बढ़ जाला. ओहिजा ई देखल जरुरी होखे के चाहीं कि जवन पात्र ऊ बात कहत बा ओकर पृष्ठभूमि का बा. अगर कवनो अधपढ़ गँवार आदमी के बात हो रहल बा त ओकर हिज्जा दोसर होखी आ अगर कवनो शिक्षित आदमी कह रहल बा त शुद्ध रहे के चाहीं सुद्ध ना! बंसी आ वंशी के अंतर हमेशा साफ रहे के चाहीं.

बाकिर साथही इहो कहल चाहब कि मानकीकरण खातिर कवनो तानाशाही चलवला के जरुरत नइखे. हर प्रकाशन, हर माध्यम आपन शैली विकसित करो. समय का प्रवाह में बहत सबमें धीरे धीरे एकरुपता आवही लागी. सिनेमा के भोजपुरी के स्तर चिन्ता वाली बा बाकिर ओकरा के सुधारल आसान नइखे. कवन कथा पटकथा लेखक भा गीतकार मोती बी॰ए॰ जइसना श्रेणी के बाड़े जिनकर गिनती साहित्यकारन में हो सके? अधिकतर भोजपुरी फिल्म चवन्निया दर्शकन खातिर बनेले, अधिकतर गीत ड्राइवर खलासियन खातिर लिखाले ओकरा के बदले के झंझट लिहला के जरुरत नइखे. उहो लोग समय का साथ धीरे धीरे सुधरी.लाठी लेके ओह लोग का पाछा पड़ला के जरुरत नइखे. हँ टीवी पर अगर अइसन होखे त ओकरा खिलाफ आवाज उठावल जरुरी बा. काहे कि टीवी आजु हर घर का ड्राइंग रूम में मौजूद बा. एही चलते जब सुर संग्राम में जनमत के चिन्ता करत गजेन्द्र बाबू गुड्डू रंगीला के बोलवले रहले त हम विरोध कइले रही, कलुआ के फिलिमन के खबर जरुर छापीले बाकिर ओकरा के महिमामण्डित करे से बाची ले. महुआ टीवी पर मटुकनाथ जइसन चरित्र मंच पर आसीन होखस एकर मजगर विरोध होखे के चाहीं. महुआ टीवी के एगो सामाजिको दायित्व बा आ ओकरा एकरा के निभावे के कोशिश जरुर करे के चाहीं.

आशा बा कि एह मुद्दा पर हर जगहा, भोजपुरी के हर माध्यम पर चरचा चली. भोजपुरी के गुटबन्दी से निकालल सबसे बड़ जरुरत बा. हमार-उनकर, हमनी के-ओह लोग के बहस निरर्थक बा अगर ओकर फायदा जमीनी स्तर तक नइखे चहुँपत. बतिया पंचे के रही बाकिर खूंटवा रहिये पर रही वाला मनोवृति वदलल जरुरी बा. जवन सभा रउरा जोग नइखे ओहिजा आपन बाति कहला से का फायदा? हर समझदार आदमी के असहमत होखे पर सहमत रहे के चाहीं!

राउर,
संपादक, अँजोरिया

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3 Comments

  1. रामरक्षा मिश्र विमल

    संपादक जी,
    आशुतोष जी के चिंता जायज बा आ हमनी खातिर बहुत खुशी के भी विषय बा. भोजपुरी के मानकीकरण के सवाल बहुत पहिले से चलल आ रहल बा,चिंतन-मनन कम ना भइल आ आजो जारी बा. चिंता हमरा नजर में सबसे महत्त्वपूर्ण बा , ई ना खतम होखे के चाहीं.
    राउर टिप्पणी पूरी तरह सारगर्भित लागल. ओकर निर्णायक अंदाज जइसे मए चिंता खतम क दिहलसि. भाषा के प्रवाह ओकर जिंदगी ह,एमें शब्दन के विकास स्वाभाविक रूप से होला. देखल जाउ कवना दिशा में जा रहल बिया. बलजोरी से खास लाभ ना होई. अभी सबसे ज्यादा जरूरी बा लिखल आ खूब लिखल. अभी मुड़िया के काम कइला के जरूरत बा, संकोच छोड़िके खूब बोलला के जरूरत बा. बाकी सभ ठीक हो जाई,चिंता के जरूरत नइखे. समय खुदे रास्ता देखा दी.
    -रामरक्षा मिश्र विमल

  2. डा. सुभाष राय

    ई बहस अउर आगे बढे त हमरा भोजपुरी खातिन नीक लछ्न बा. ओपी भाई क बात हमके जंचति बा. देखीं तमाम मानकीकरण के बावजूद हिन्दी बोले वालन की बोली में कहवां एकरूपता आइल बा. प्रयोग क विविधता त भोजपुरी क समृद्धि बा. बोली क कवनो मानक ना बनि सकेला काहे की ऊ सबकर आपन-आपन परम्परा आ इलाका के प्रभाव से उपजल बा. एहि लिये सिनेमा, चैनल अउर ए तरह के माध्यमन प एकरूपता ले आइल लोहा क चना चबाइल जइसन काम बा. हां, साहित्य के स्तर प जरूर ई कोशिश होखे के चाही कि एगो मानक बनि जाव. जवन लिखाय, तवन एक जइसन भासा में लउके त नीक लागी. बाकी विद्वानन के ए पर बहस करें के चाही. आशुतोश के ई मसला उठवले खातिन बधाई.

  3. दिवाकर मणि

    ओपी जी खाली एगो वेबसाइट के कर्ता-धर्ता हीं नईखीं बलुक भोजपुरिया बोली आ भाषा के सही नब्ज पहचाने में इहां के पारंगत भी बानीं. इहां के द्वारा कहल गईल बातन के साथे पूरा-पूरी सहमति राखत बस हम इहे कहे के चाहत बानीं कि जब एगो बोली लेखन के स्तर पर चहुंप जाला त ओकर व्याकरण भी बनिए जाला या बनावहीं के पड़ेला. आ इहे व्याकरण ओह बोली के मानकीकृत करिके भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करावेला.

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