बूंट के पेड़ (बतकुच्चन – १२१)
रउरा में से केहू बूंट के पेड़ देखले बा? हम त नइखीं देखले काहे कि बूंट के पेड़ होखबे ना करे पौधा होला. बूंट के पेड़ वाला किस्सा पिछला दिने…
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रउरा में से केहू बूंट के पेड़ देखले बा? हम त नइखीं देखले काहे कि बूंट के पेड़ होखबे ना करे पौधा होला. बूंट के पेड़ वाला किस्सा पिछला दिने…
उर्दू के जानकार जानेलें कि कइसे नुक्ता का हेर फेर से खुदा जुदा हो सकेलें. उर्दू के एगो खासियत ह कि बहुते मात्रा लिखल ना जाव बूझ लिहल जाला. जे…
भईया बूझलन पियाज भउजाई बूझली अदरख. ना, ना. ई बतवला के कवनो जरूरत नइखे कि ई कहाउत सही ना ह. असल कहाउत दोसर ह, मियाँ बूझलें पियाज, मिंयाइन बूझली अदरख.…
बरखा के मौसम बा. झटास झटहा जस लागे लागत बा. बरखा के पानी के बौझार जब हवा के झोंका से उड़ के एने ओने आवेला त ओकरा के झटास कहल…
– संतोष कुमार नवीन जागरण युग के अग्रदूत के रूप में हिंदी साहित्य में स्थापित “कबीर” आजु जनता के हृदय में व्यक्ति के रूप ना बलुक प्रतीक के रूप में…
– प्रभाकर पाण्डेय “गोपालपुरिया” भोजपुरी के बहुत जल्दी मिल जाई भाखा के दरजा….बहुते जानल-मानल भोजपुरिया लोग तन-मन-धन से भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता दिउवावे खातिर कमर कसि लेले बाटे लोग….सराहनीय कदम…
पिछला दस दिन से बस एकही चरचा चलत बा देश भर में आ उ चरचा बा आफत बिपत के. आपदा बिपदा से निकलल शब्द आफत बिपत कुछ लोग संगे विशेषणो…
हालही मे एगो विद्वान लेखक के पढ़त रहनी. उनुका लेख में सोगहग के चरचा आइल त उहाँ के लिखले बानी कि शायद सोगहग के जनम संस्कृत के सयुगभाग से भइल…
भोजपुरी पंचायत के जुलाई २०१३ के अंक सामने बा आ ओकरा के पढ़त घरी प्रभाकर पाण्डेय के लिखल व्यंग्य रचना के एगो लाइन पर आँख अटक के रहि गइल कि…
पिछला कई दिन से अलग अलग गोल आपन आपन गोलबन्दी करावे में लागल बाड़ी सँ. कहीं कवनो गोल के गुल्ला छटक जात बा त कहीं बरिसन से राजनीति का गुल्लक…
आ दुर्रऽऽऽ, हमरा कवन काम बा केहु से कहला के? हर गाँव में अइसनका एगो फुआ भा काकी जरूर मिल जइहें जिनकर कामे होला एने के बात ओने चहुँपावल आ…