दू गो डाक्टरी कविता
– डा. कमल किशोर सिंह हम रटीला रोजे ‘हिपोक्रेटिस’ हृदय में, धरि ‘धनवंतरी’ ध्यान, हम रटी ला रोजे रोगान शेषान, रोगान शेषान. छछनावे, तडपावे, फेर दुहि लेला प्राण, बचल ना…
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– डा. कमल किशोर सिंह हम रटीला रोजे ‘हिपोक्रेटिस’ हृदय में, धरि ‘धनवंतरी’ ध्यान, हम रटी ला रोजे रोगान शेषान, रोगान शेषान. छछनावे, तडपावे, फेर दुहि लेला प्राण, बचल ना…
– ओेमप्रकाश अमृतांशु शंख नाद गरजन सुनावऽ, मिलके जोर लगावऽ आवऽ दियावा जरावऽ, भोजपुरी के भईया . ओका-बोका तिन तड़ोका, घुघुआ के हई माना तार काटो-तरकुल काटो, ढ़ेरन खेल-खजाना, चुट्टा-चुट्टी,…
-आसिफ रोहतासवी अब ना बाँची जान बुझाता बाबूजी लोग भइल हैवान बुझाता बाबूजी पढ़ल लिखल हमनी के सब गुरमाटी बा उनका वेद कुरान बुझाता बाबूजी आपुस में टंसन बा फिर…
(1) छलकत तलफत नजर, त बरबस गजल भइल. लहसल लहकत दहर, त बरबस गजल भइल. अद बद पनघट पर जब परबत पसर गइल, सइ-सइ लहरल लहर, त बरबस गजल भइल.…
-(स्व॰) हीरा डोम हमनी के राति दिन दुखवा भोगत बानी हमनी के सहेबे से मिनती सुनाइबि हमनी के दुख भगवनवो न देखता जे हमनी के कब से कलेसवा उठाइबि पदरी…
– ओेमप्रकाश अमृतांशु कविता अइसन विद्या ह जेकर उमिर दस-बीस साल ना सैकड़ो-हजारो साल होखेेेेला. जेकरा के अनपढ़ो सुन सकेला, गुनगुना सकेला. कवि के कविता के भाव में दरद, आक्रोश,…
– संतोष कुमार गाँव के गाँव लील रहल बा नीमिया के छाँव पानी के पाँव कुल्ही लील गइल अजगर. भले ओकर नाम शहर बा बाकिर ओकरा मे बड़ा जहर बा…
– डॉ० हरीन्द्र ‘हिमकर’ पेट आ पाटी का बीच खाई ना भर सकला से रूसल रहि गइली सुरसती हमरा बंश से आ हमरा अंश से जामल कवनो बिरवा पनिगर ना…
– ओमप्रकाश अमृतांशु अखड़ेड़े लिहबू का जनवा हो ? ऊसिनाइल परानवा. लूकवा लूकारी लेई धावे अंगार के, झउंसाइल मुहंवा कुदरती सिंगार के, पपड़िया गइल तालवा-पोखरवा हो, ऊसिनाइल परानवा. हिरणा पियासा…
– डॉ० हरीन्द्र ‘हिमकर’ पहिल गीत कवन गाईं एह गीतन का गाँव में पाहुन-सन मन रहल लजाइल. धनखेती में फूटल सोना रुपनी बइठल बीनत मोना जाँता से जिनिगी लपटाइल छंद…
– ओमप्रकाश अमृतांशु (माई के दिन प खास क के) माई से बढ़के ना गुरू, भगवान , माई देवी, माई दुर्गा सबसे महान. आँचरा के छईयां में दुधवा पिआइके, मुखवा…