बाबूजी सिखवले
– गनेश जी “बागी” बाबूजी सिखवले दुःख सहीहs अपार, कबो ना करीहs बबुआ, केकरो प वार, गलती ना करीहऽ अइसन, पिटे पड़े कपार, दुनिया में कुछु ना रही, रह जाई…
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– गनेश जी “बागी” बाबूजी सिखवले दुःख सहीहs अपार, कबो ना करीहs बबुआ, केकरो प वार, गलती ना करीहऽ अइसन, पिटे पड़े कपार, दुनिया में कुछु ना रही, रह जाई…
– संतोष कुमार पटेल जब आदमी काठ-पत्थर हो जाला भाव से विचार से हियाव से त ओकरा मुंह के पानी उतर जाला जइसे मुरझा जाला फूल सेरा जाला सूरज दगिया…
– अभयकृष्ण त्रिपाठी बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत करिया चेहरा दुनिया से दरकिनार रहीत. याद आवेला जब सारा जग उजियार रहे, सोन चिरईया के नाम जग में बरियार…
– मुफलिस देई दोहाई देश के, ले के हरि के नाम. बनि सदस्य सरकार के, लोग कमाता दाम. लूटे में सब तेज बा, कहाँ देश के ज्ञान नारा लागत बा…
– डा॰ सुभाष राय ई त सभे जानेला कि सूरुज उग्गी त सबेर होई इहो मालूम बा सबके कि चान राति क उगेला बहुते नीक लागेला फूल फुलाला त महकेला…
– संतोष कुमार पटेल बाढ़, सुखाढ़ आ रोटी अजीब रिश्ता बा इनके जवन खरका देलख खरई खरई जिये के विश्वास साथे रहे के आस धकेल देलस दउरत रेल के डिब्बा…
– प्रभाकर पाण्डेय ‘गोपालपुरिया’ नून-तेल-भात कबो, कबो दलिपिठवा, कबो-कबो खाईं हम भुँजा अउरी मिठवा, कबो लिट्टी-चोखा त कबो रोटी-चटनी, कई-कई राति हम बिना खइले कटनी. कबो मिलि जाव एक मुठी…
– संतोष कुमार पटेल शब्द्कोश के नया शब्द समाज के स्वस्थ/शिक्षित/परिष्कृत बनावे के साधन/प्रसाधन जे कह ल जवन कह ल बड़ा व्यापक बा ई शब्द जेकर अर्थ भले समझ गइल…
– संतोष कुमार पटेल अब सीता सावित्री लक्ष्मी पार्वती जइसन नाम आउटडेटेड हो रहल बा काहे की अब लोग अपना आंख के पानी अपने धो रहल बा. लाज ओइसही बिलाइल…
– नूरैन अंसारी आज जवन नया बा ऊ काल्हुवे पुरान हो जाई. ढेर चुप रहबऽ त आपनो अनजान हो जाई. जले एक में चलत बा घर, चलावत रहऽ, पता ना…
– संतोष कुमार पटेल जरल रोटी गरहन लागल चान बाकिर आस मरल ना कहियो त होई बिहान. राहू लागले ना रही हटबे करी आ भूख के रात कटबे करी. एही…