वीर विशाल
– डॉ॰ उमेशजी ओझा एगो छोटहन गांव में दीपक अपना धर्मपत्नी सुरभी आ एगो 14 बरीस के बेटा विशाल के साथे रहत रहले. दीपक के कतही नोकरी ना लागल रहे.…
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– डॉ॰ उमेशजी ओझा एगो छोटहन गांव में दीपक अपना धर्मपत्नी सुरभी आ एगो 14 बरीस के बेटा विशाल के साथे रहत रहले. दीपक के कतही नोकरी ना लागल रहे.…
– डॉ॰ उमेशजी ओझा नीलम के गोड़ धरती प ना पड़त रहे. खुशी के मारे एने से ओने उछलत कुदत चलत रही. एह घरी के सभ लइकी आ लइका के…
– डॉ॰ उमेशजी ओझा सरोज एगो कम्पनी मे काम करत रहले. अपना पत्नी आ दूगो बेटा, सबीर आ शेखर, का साथे आपन चारिगो आदमी के छोट परिवार में मस्त आ…
– डॉ॰ उमेशजी ओझा प्रशांत एगो ट्रेवल्स एजेन्सी के मालिक रहले. शहर में आवे वाला यात्रियन के शहर के देखे वाला जगहन प घुमावे खातिर अपना एजेन्सी से छोट गाडी…
– संतोष कुमार ‘इहाँ हमरा से बड़का हीरो कवनो बा का ? हम अभिए चाहीं त निमन निमन जाने के ठीक कर दीं’ – किसुन दारु पी के अपना घर…
– डा॰ गोरख प्रसाद मस्ताना लोर से भरल आँख अउरी मुँह पर पसरल उदासी साफ साफ झलका देला कि कवनो परानी दुख में केतना गोताइल बा. बेयाकुल चिरई के बोली…
– केशव मोहन पाण्डेय हमरा गाँव के बरम बाबा खाली पीपर के पेड़े ना रहले, आस्था के ठाँव रहले, श्रद्धा के भाव रहले. सामाजिक, पारिवारिक आ ग्रामीण जीवन-शैली के मिलन…
– नीमन सिंह बात १९८० के बरसात के समय के ह. हमरा खेत में धान रोपे खातिर बेड़ार में बिया उखाड़े लागल मजदूर बिया उखाड़त रहले सन. बगल में भिंडा…
– संतोष कुमार माई रे, इ नान्ह जात का होला? सुरुज आपना माई से पुछलें. जाड़ा के रात खानी खाना खाये के बेरा सूरज चूल्हे भीरी बइठ के पलथी मार…
– नीमन सिंह जब से हम होस सम्हरनी हमरा मन में इ उमंग उठल करे कि हम एह गाँवही में रहब आ एकरा बिकास खातिर कुछ करब. समय बीतत…
– ओमप्रकाश अमृतांशु कला-साहित्य कवनो भाषा में होखे ओकर महत्व सबसे उपर होखेला. साहित्य समाज के रास्ता देखावेला, अपना साथे लेके चलेला आ अपना संस्कृति के पहिचान करावेला. साहित्य के…