अपने देश में सौतेलापन के दंश झेलत भोजपुरी

by | Jan 5, 2012 | 2 comments

भारत के एक हजार साल पुरान देशज भाषा भोजपुरी अपने देश में आजु सौतेलापन के शिकार बिया. राजनेतवन आ केंद्र सरकार के अनदेखी का चलते भोजपुरी दसियन बरीस से संवैधानिक मान्यता खातिर तरसत बिया. खास त ई बा कि दुनिया के सोलह देश के 20 करोड़ से बेसी लोग के भाषा भोजपुरी के मॉरिशस में संवैधानिक मान्यता मिल चुकल बा बाकिर अपने देश में अपना जायज हक से वंचित राखल जात बा भोजपुरी के. भोजपुरी समाज दिल्ली के अध्यक्ष अजीत दुबे के कहना बा कि समृद्ध सांस्कृतिक विरासत अउर प्रचुर साहित्य वाली भोजपुरी भाषा देश में सरकारी अनदेखी के शिकार बिया. आपन निराशा जाहिर करत अजीत दूबे के कहना बा कि, संविधान के आठवीं अनुसूची में शुरूआत में 14 गो भाषा रहली स बाकिर बाद में समय-समय पर एह सूची में संशोधनों करि के सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, बोडो, डोंगरी, मैथिली आ संथाली के संवैधानिक मान्यता दे दिहल गइल बाकिर भोजपुरी के ई दर्हा देबे में आनाकानी कइल जात बा. जबकि भोजपुरी एह भाषवन से कवनो मामिला में उनइस नइखे.

अजीत दुबे कहले कि इहो अजब विडंबना बा कि संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षा तक में अभ्यर्थियन के हिंदी-अंग्रेजी वगैरह का अलावा नेपाली आ सिंधीओ में परीक्षा आ साक्षात्कार देबे के छूट बा बाकिर भोजपुरी के ना. कहलन कि ई भोजपुरी भाषी लाखों उम्मीदवारन का साथे होखे वाला अन्याय बा. भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुसूची में शामिल करे के लेके संसद में पन्द्रहियन बेर निजी विधेयक पेश भइल बा. विशेष ध्यानाकर्षण प्रस्तावो का जरिये एह मुद्दा के उठावल गइल बा. बाकिर सब बेनतीजा. केन्द्र सरकार से हर बेर बस आश्वासने मिल के रहि गइल बा.

आठवीं अनुसूची में अउरियो भाषा शामिल करे खातिर बनल सीताकांत महापात्र समिति जून 2004 में दिहल अपना रिपोर्ट में भोजपुरी के अनुसूची में शामिल करे के पैरवी कइले रहे. जवना का बाद केंद्रीय मंत्री शिवराज पाटिल संसद में घोषणा कइले रहले कि जल्दिये एह भाषा के संवैधानिक मान्यता दे दिहल जाई. 2006 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवालो अइसने कहले रहले बाकिर सब बेमतलब निकलल. मौजूदा 15वीं लोकसभा में 30 अगस्त 2010 के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का जरिये अनेके पार्टियन के सांसद एह मामला में एकजुटता देखवले रहले बाकिर तबहियो सरकार से बस आश्वासने मिल के रहि गइल.

अजीत दुबे एह सरकारी रवैया के भोजपुरी भाषा खातिर ओकर तिरस्कार बतवले.


(पिछला दिने बलिया में भइल साक्षात्कार का आधार पर)

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2 Comments

  1. प्रभाकर पाण्डेय

    सादर नमस्कार,
    भोजपुरी के ओकर हक मिलि के रहे के चाहीं। भाषा में जेतना गुन होखे के चाहीं उ सब भोजपुरी में बा…बिना देर के एके एकर मान-सम्मान (संवैधानिक मान्यता) मिलहीं के चाहीं…अउर हमरा लागता की अगर भोजपुरी क्षेत्र से जुड़ल नेता, अधिकारी अगर मन से जोड़ लगा देव लोग त इ मिनटो में संभव हो जाई पर का कहल जाव भोजपुरी अपनिए लोग से उपेक्षित बिया।

    खैर एक ना एक दिन भोजपुरी के ओकर अधिकार मिलबे करी…पर इ जेतना जल्दी मिल जाव ओतने अच्छा रही। जय भोजपुरी।

  2. चंदन कुमार मिश्र

    भारतीयता के महान सेवक भाजपा आला लोग कहाँ रहे 1998 से 2004 तक ?

    एगो बात आउरो कि संघ लोक सेवा आयोग में परिक्छा देवे खातिर भोजपुरी माध्यम काहे के बनावल जाई ? ना एगो किताब भोजपुरी में, ना कुछ आ माध्यम के बात होता। सबसे बड़ बात त ई बा कि केतना भोजपुरिया लोग बा जे तइयार बा परिक्छा देवे के भोजपुरी में ? बिहार के विस्वबिद्यालय में गिनला पर मिली लोग आ बात इहाँ तक ?

    फेर 20 करोर ? अब हँसी कि रोईं एह आँकरा पर?

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