एकता यात्रा के रोकल गलत भइल

by | Jan 26, 2011 | 2 comments

– पाण्डेय हरिराम

भारतीय जनता पार्टी के एकता यात्रा के श्रीनगर चहुँपे से पहिलही रोक दिहल गइल आ नेता लोग के गिरफ्तार कर लिहल गइल, भावनात्मक पहलू से एह बाति के कई गो कोण हो सकेला. एक पहलू त ऊ जइसे सुषमा स्वराज कहली कि, “तिरंगा फहरावे वालन के गिरफ्तार कइल जात बा आ ओकरा के जरावे वालन के सुरक्षा दिहल जा रहल बा.” बाकिर एकर एगो सियासीओ पहलू बा. ऊ ई कि उमर अब्दुल्ला एह देश के एगो राज्य के मुख्यमंत्री हउवन कि खाली जम्मू काश्मीर के.

एकता यात्रा के कवनो हश्र होखो बाकिर उमर अब्दुल्ला एगो मुख्यमंत्री का रुप में नाकारा साबित हो गइले. उमर अब्दुल्ला के राजनीतिक आ प्रशासनिक कदम भाजपा के ऊ करे के मौका आ विचार दे दिहलसि जवन ओकरा लउकतो ना रहे. एह तरह के आचरण उमर अब्दुल्ला के नुकसान चहुँपा रहल बा. बाकिर एहमें एगो अंतर्सबंधो बा. घाटी बड़हन फसाद झेल रहल बा एहसे इल्जाम लगा दिहल आसान हो सकेला कि ऊ आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेस आ इस्लामी चरमपंथियन का कब्जा में बा आ ओकरा के नियंत्रित करे वाला हाथ सरहद के सीमा के ओह पार बइठल बा. साथ ही ओह लोग पर दिल्ली में बइठल बुद्धिजीवियनो के असर बा. साँच त ई बा कि घाटी के आन्दोलन ओहिजा के मुख्यमंत्री के बदले खातिर हो रहल बा.

आजु ले घाटी के लोग, जे उमर के चुनले नइखे, उमर के आपन ना मानसु. भाजपा के एकता यात्रा एगो आबादी के विचार के प्रतिनिधित्व करत बा बाकिर अइसन नइखे कहल जा सकत कि इहे राष्ट्रीय विचारधारा हऽ. ओह मायने में एह यात्रा का प्रति राष्ट्रीय भावना साल १९९२ में मुरली मनोहर जोशी के एकता यात्रा से बिल्कुले अलग बा. ओह घरी ओहिजा राष्ट्रपति शासन रहुवे आ कुछ लोग के हवाई मार्ग से ले जा के सांकेतिक रुप से तिरंगा फहरावल गइल रहे. उमरो अइसन कर सकत रहले. चहतन त बड़हन पहरा में एह यात्रा के अनुमति दे सकत रहन जवन बहुते कठिन ना रहे. उनुका ओह काश्मीरियनो के सहानुभुति मिल जाइत जिनका हिंसा से कुछ लेबे देबे के नइखे आ तब सारा ठीकरा केन्द्र सरकार का मूड़ी पर फोड़ सकत रहले. साथ ही ऊ ओह बवालियनो के संदेश दे सकत रहले कि ओकनी के कवनो कोशिश के जोरदार मुकाबिला होई.

अबले उमर राष्ट्र से आ जनता से कहत आवत रहले कि ऊ काश्मीर में कुछ करल चाहत बाड़न. एह खातिर उनुका अमनपसन्द काश्मीरियन के सहानुभूतियो मिलल रहे. अब उमर अपना तरफ से बातचीत के दरवाजा बन्द कर दिहले बाड़न. श्रीनगर में बइठल मुख्यमंत्री खाली सुनत ना रह सके बलुक ओकरा एगो सेतुओ के भूमिका निबाहे के पड़ी. अब घाटी में भाजपा के आवे के अनुमति ना दे के उमर अब्दुल्ला फेरु से घाटी केन्द्रि नजरिया थाम लिहले बाड़न. उमर के मालूम होखे के चाहत रहे कि भाजपा के घाटी में कवनो पकड़ नइखे आ एह यात्रा से घाटी में कुछ अशुभ ना होखित. का कारण बा कि ओहिजा एगो सभा ना हो सकत रहे.


पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ ई लेख उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखले बानी. अँजोरिया के नीति हमेशा से रहल बा कि दोसरा भाषा में लिखल सामग्री के भोजपुरी अनुवाद समय समय पर पाठकन के परोसल जाव आ ओहि नीति का तहत इहो लेख दिहल जा रहल बा.अनुवाद के अशुद्धि खातिर अँजोरिये जिम्मेवार होखी.

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2 Comments

  1. मुकेश यादव

    शिवेन्द्र जी इसमे कोई दोराय नही है कि भाजपा की ये यात्रा राजनितीक लाभ उठाने के लिए हुई होगी ,पर आप कौन से संविधान की बात कर रहे हैँ क्या कश्मीर भारत से अलग राज्य है । झंडा फहराने का अधिकार सबको है , ये तो अलगाववादियोँ के सामने झुकने वाली बात है । मै किसी पार्टी विशेष से नही हूँ कल को कोई ये कहे की उमर को टेबल से झंडा निकाल देना चाहिये ,आप गणतंत्र दिवश मत मनाईये तो क्या हम मान लेँ ,नहीँ

    भारत के प्रत्येक व्यक्ती का हक है । जिसे कोई भी पार्टी या सरकार छिन नही सकती ।

  2. शिवेंद्र सिंह

    पाण्डेय हरिराम जी, आपको समझना चाहिए की जम्मू और कश्मीर का अपना अलग संबिधान,कानून और झंडा है. ये बात सच है और बहुत कड़वा है. अभी समय नहीं आया है की वह सब कुछ बदल दिया जाय. जब समय था तब लोग गाँधी विचारधारा में पगलाए हुआ थे. हर कीमत पर कश्मीर को हिंदुस्तान में मिला कर रखना है क्योकि उसका अपना विशिष्ट भौगोलिक महत्त्व है जो की भारत के हित में है.
    जब पाकिस्तान का झंडा फहराया गया था तब भाजपा क्या कर रही थी ? जब भाजपा सत्ता में थी तो शांति का राग अलाप रही थी और बाजपाई जी को लग रहा था की अब शांति का नोबल उनको ही मिलने वाला है. जब कुर्सी और पावर था तब टाय-टाय फिस्स और अब शेर बने घूम रहे हैं.
    भाजपा वाले राष्ट्रवादी विचारधारा तभी अपनाते हैं जब सत्ता में नहीं होते.
    लाल चौक पर C.R.P.F. द्वारा प्रत्येक वर्ष झंडा फहराया जाता है, भाजपा वाले उसमे शामिल हो जाते तो उनका सम्मान भी रह जाता क्योकि पाण्डेय जी इस रैली को भारतीय जन मानस का उतना समर्थन नहीं मिला जो अडवाणी जी के रथ यात्रा को मिला था, ये भी एक कड़वा सच है जिसको स्वीकार करना पड़ेगा.

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