केकरा पर करीं हम गुमान रामप्यारे !

by | Mar 9, 2016 | 0 comments

– शिलीमुख

shilimukh

उनइस बरिस पहिले हम प्रसिद्ध कवि चन्द्रदेव सिंह क एगो रचना पढ़ले रहलीं. साइत 1997 में “पाती” अंक -२३ में छपल रहे. बरबस आज ओकर इयाद आ गइल बा त रउवो सभे के पढ़ा देत बानी –

केकरा प’ करब s गुमान रामप्यारे
केकरा से रही तोहर मान रामप्यारे ?

अइसन बा जमाना पाँड़े कहत बाड़े ‘कथा होई’
भइँस धोवे गइलें जजमान रामप्यारे.

जेकरा के दिहल बाटे, तलिया तिजोरिया क
ऊ बा डकुवन क परधान रामप्यारे.

गोखले, तिलक, गान्ही सभे इतिहास भइल
फूलन, मुलायम वर्तमान रामप्यारे.

अब त हवइये जहाज क सवारी होता
साइकिलो क रहे ना ठेकान रामप्यारे.

लोग चाहे काश्मीर, झारखंड, पंजाब
केहू नाहीं पूछे हिन्दुस्तान रामप्यारे !!

स्वर्गीय कवि चन्द्रदेव जी के ई आपन पीर रहे, जवन उनका मातृभाषा में निकलल रहे. एहीतरे ‘सुराज’ का प्रसंग में, अइसने खोइयाओदार पीर पसावत, मातृभाषा क न जाने कतना कवि स्वर्ग सिधार गइले, बाकि ना त “भोजपुरी लोक” बदलल ना भोजपुरी क भाग जागल.

एघरी हमनी क देश में ‘आजादी’ क ‘डिमान्ड’ ढेर बढ़ल लउकत बा. बेक्ती बेक्ती के आजादी चाही, लड़ के चाही, लड़ा के चाही, बाकि आपन मनपसन बोले आ करे क आजादी चाहीं. अंगरेजी के जूठ-काँट खाये आ मेमिन के जूती ढोवे में लागल हिन्दी, ढेर ‘ग्लोबल’ बनला का चक्कर में, कुछ सनकी प्रोफेसर आ बुद्धिभकोस पगलेटन का हाथ क खेलवना बन गइल बिया. ओमे मातृभाषा वाला ऊ भाव सुभाव नइखे. अब हाल ई बा कि सबके आपन आपन अलगा हाँड़ी आ डलिया चाही, चाहे घर गिरस्थी आ देश क टूकी टुकी करे के परो; बाकि आजादी चाही त चाही.

अकबकाइल-भकुवाइल ‘भोजपुरी’ वाला भोजपुरिहा के अबले आपन सझुरावे-सइहारे के राहे ना भेंटल, काहें कि ऊ हर घड़ी, घरे-गिरस्थी, गाँव, देश बचावे-बनावे में बाझल रहि गइल. अंगरेजी आ अँगरेजियत का गुलामी आ चाकरी मे लागल तिकड़मी बड़बोलुवन के लोक आ लोकभाषा से ओसही पिछड़ापन महकेला, ऊ आजो भोजपुरी के आन-बान-शान, स्वाभिमान दरकचला में लागल बाड़े सs. हमनियो का डरे लेहाजे, बुड़बक बनल तिकवते बानी जा. भोजपुरी के मान-जान आ ईजत जब घरवे में नइखे, त बहरा कइसे मिली ? यू.पी., बिहार एकर मातृप्रदेश हवे. एइजे कवन मान, सम्मान आ पूछ-पैरबी बा भोजपुरी के ? ई त एही जा अंग्रेजी, हिन्दी का दाई लउँड़ी लेखा उपेक्षा क मारल बिया. जब आजादी के डिमांड होते बा, त काहे ना भोजपुरियो अपना प्रदेश में आजादी के डिमांड लगावो ?

सोचीं सभे …बाकि सोचते मत रहि जाईं, अब कुछ न कुछ करहूँ के परी.

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(4)

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(7)
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