– प्रभाकर पाण्डेय “गोपालपुरिया”
आजकल लोग पर एगो नया भूत सवार हो गइल बा. जे जहें बा उ उहें बिना सही-गलत के बिचार कइले गोलियावल सुरु क देता, अउर एतने ना, लोग गोलियाइलो सुरु हो जाता. कबो-कबो त लोग बिना बात के बात में बात बनाके चाहें बिना बात के बात बढ़ा के गोलियात चलि जाता. ऐसे एक्को गो फायदा मिलता अउर ऊ ई कि लोग के बिना बात के बतकही रावन महराज की लघुसंका की तरे कबो खतम होखे के नाम नइखे लेत अउर लोग मजा ले-ले के भेड़ियात चलि जाता अउर बीच-बीच में आगि में घी डाल देता ताकि इ बेकार के बतरस बनल रहो अउर लोग साकारात्मक सोंच से भटकल रहो.
कुछ दिन पहिले फेसबुक पर एक जाने मनीषी गुरुदेव द्वारा एगो फिल्मी गुरुदेव के बतरस के चर्चा सुरु भइल. बहुत सारा कमेंटो आइल, कुछ लोग आपन भड़ासो निकालल. हमहुँ हुँसीयार बनि के आपन कमेंट देहनी. हमरी कहले के मतलब ई रहे की कवनो आदमी कवने परिपेक्ष्य में बोलऽता ओकर धेयान रखि के आपन बात राखीं. बिना संदर्भ के समझले रउआँ खाली बिना निसाना देखले त आपन तीर छोड़ सकेनी पर हो सकेला कि ओके जहाँ लागे के बा उहाँ ना लागि के कहीं अउर लागि जा.
खैर इ बात इहें खतम हो गइल, एइसन लागल. एकर कारन ई रहे की लोग तनि कम भटकल अउर कुछ असझदार लोग जे हम जइसन चतुर बुरबकवा की नजर में मूर्खे बा ऊ ए प्रकरण पर आपन विचार ना राखल. काहें कि ओ लोग के लागल होई कि ऊ ओतना महत्वपूर्ण विषय नइखे, एहू से बड़हन-बड़हन मुद्दा पड़ल बा त पहिले ओपर साकारात्मक विचार होखे के चाहीं. पता ना हमरो लागल कि हो सकेला कि एइसन मुद्दन से हमनी जान असली मुद्दन से अलग हो जाईं जा. काहें कि ई विचार मुद्दा पर ना रहि के मुद्दा पर आइल विचार पर रहे.
एकरी बात भोजपुरी पंचायत के नवंबर के अंक, ई-अंक की रूप में इंटरनेट पर पढ़े के मिलल. अरे ई का, इहवों देखतानी कि एक पन्ना के एही प्रकरण से सजावल बा. हमार ई कहनाम बा की मुद्दन पर चर्चा होखे के चाहीं न की मुद्दन पर आइल लोगन क विचार पर. अगर मुद्दा सही बा त ओकर समर्थन होखही के चाहीं पर अगर ओ मुद्दा पर केहू के विचार विपछ में आवऽता, एकर मतलब ई ना की असली मुद्दा भुला के अब ओकरिए पीछे पड़ि जाइल जाव कि ऊ काहें एइसन कहलसि ह. अरे भाई, ओकरो के विचार करे क हक बा. ओकरो सुन लीं पर ओ के साकारात्मक रूप में बताईं कि अगर एइसन होई त ई नाफा अउर नोकसान बा.
जब मुद्दन से हटि के मुद्दन पर आइल लोगन के विचार चर्चा के बिषय बनि जाई त एसे खालि भटकाव होई अउर कुछ ना. साकारात्मक सोंची, साकारात्मक करीं, लोग का कहऽता ओहू पर धेयान दीं पर ओके मुद्दा मत बनाईं. भोजपुरी केहू एक के ना ह…ई सबके ह..सब केहू ए से संबंधी बातन, मुद्दन पर आपन विचार दे सकेला इहाँ तक कि भोजपुरी के क, ख, ग तक ना जाने वलहू. भाषा कबो केहू एक के ना रहल अउर अगर रऊआँ ए के सीमा में बाँधि के राखल चाहब त एकर विकास ना, पतने होई. खैर वइसे भाषा के सीमा में बाँधिए ना सकल जाला.
अंत में हम ई कहबि कि ई हमार आपन विचार बा, ई गोल में गोलिया के नइखे आइल. एगो रचनाकार के, विचारक के केहू गोल में बाँधिए ना सकेला…हँ समाज भले एइसन मनई के एगो खूँटा से न बँधि के रहे वाला कहि सकेला…काहें कि एइसन मनई, गोल के ना विचार के धनी होला…ओकरा जवन अच्छा लागी उहे कही….गरियावे वाला गरियावत रहो.
जिए भोजपुरी !
-प्रभाकर पाण्डेय, हिंदी अधिकारी, सी-डैक, पुणे
bahut khoob prabhakar sir… lekh to badi niman ba
Bhojpuri Samaj ke sabse bad vidabnana yehi baa ki ehij
भोजपुरी समाज की सबसे बड़ी विडंबना यही है की यहाँ लोगो में हम की भावना नहीं है .. जो भी मुद्दा फेसबुक पर उछाला गया और तूल दिया गया वो तो कोई मुद्दा ही नहीं था .. एक विद्वान् महोदय ने अपनी विद्वता का गलत प्रदर्शन किया सिर्फ और सिर्फ पब्लिसिटी पाने के लिए . मैंने यही कहा था महाराज आप अपनी मांग रखिये पर किसी का चरित्र हनन कर नहीं … आप एक सम्मानित संस्था के सम्मानित अध्यक्ष है और आपको इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए ..पर नहीं उनको तो अखबारों की सुर्खियाँ चाहिए .. अब और सुर्खियाँ मिलेंगी क्योंकि चरित्र हनन की लिखित शिकायत कर दी गयी है .. और शिकायत पत्र के साथ उनके एक दर्जन कारनामे को भी संलग्न किया गया है साथ में।।। जय भोजपुरी ..a log khali aapan aapan laa