बतकुच्चन ‍ – ९३

by | Jan 7, 2013 | 0 comments


पिछला पख बलात्कार का नामे रहल. जेनिए देखी तेनिए लोग बलात्कार का खिलाफ धरना प्रदर्शन में लागल रहुवे. सोचनी कि काहे ना हमहू एही पर कुछ बतकुच्चन कर ली. फेर पता ना कब मौका मिले ना मिले. आन समय में बलात्कार के चरचा फूहड़ मानल जा सकत रहे बाकिर आजुकाल्हु एकरा के सामयिक मान लिहल जाई. बाकि आदत मुताबिक हमरा बलात्कार से कम बतकुच्चन से ढेर मतलब बा. व्याकरण में एगो होला विलोम आ दोसरका होला समानार्थी शब्द. अब सोचत बानी कि पहिले विलोम के चरचा करीं कि समानार्थी के. बलात्कार का मतलब ओइसन काम जवन बलाते कइल जाव. माने ना सईंयाँ करे बरजोरी वाला काम. त बलात्कार, बलजोरी भा बरजोरी आ बरियारी एके जइसन मतलब वाला होखला का बावजूद एक जस ना होखे. बलात्कार में नाराजगी, खीसि घोराइल रहेला जबकि बलजोरी में एक तरह से प्यार भरल ओरहन जइसन भाव. आ बरियारी एहू से अलगा होला. बरियारी बाहुबलियन भा टोला जवार के दादा टाइप लोग के काम. बाकिर दिल्ली में होखत बलात्कार का खिलाफ प्रदर्शन पर सरकारो आपन बरियारी देखावे में लागल रहुवे. कबो मेट्रो बन्द कर देव त कबो धारा १४४ लगा देव. पुलिस परेशान रहुवे कि केकरा से बतियावल जाव. सभे अपना मर्जी से आवत बा आ सभे नेता जस बा, अब एह में के केकरा के नेता मानो. सरकारो के आदत नइखे बनल अबही ले कि ऊ जनविरोध के भावना समुझ सके, ओकरा से निबटे के तरीका खोज सके. ओकरा त विरोधी दल वालन के बोलावल रैली से निपटे के आदत बा आ ऊ तरीका एह जनविरोध से निपटे में सफल नइखे होखत. देर सबेर सरकारो के आपन बरियारी छोड़े के पड़ी.

ई त भइल बलात्कार, बरियारी, आ बलजोरी के बात. अब चलीं तनी विलोम शब्दनो के चरचा कर लिहल जाव. बलात्कार के विलोम का होखी? पहिला नजर में त कह दी लोग कि बलात्कार के विलोम का? कवनो जरूरी बा कि हर शब्द के विलोम होखबे करे. बाकिर हमरा मन में दू गो शब्द आवत बा सत्कार आ सहकार. अब सत्कार के विलोम त दुत्कार होला. आ बलाते करे वाला बलात्कारी के भलही दुत्कारल जाव, बलात्कार के दत्कार लिहल जाव बाकिर बलात्कार के दुत्कार त कहल ना जा सके. आ से बाचल सहकार. माने कि ऊ काम जवन सहमति से, सह में कइल जाव. हालांकि सहकार खास तरह के एगो आम के पेड़ आ सहकर्मीओ के कहल जाला. तबहियो सहकार के इस्तेमाल सहमति से, सहयोग देत करे वाला कामो के कहल जा सकेला, सह दू तरह के हो सकेला,. सहमति आ बढ़ावा. सहकार सामने वाला के सहमति से होखल काम भा दोसरका के सह में कइल काम हो सकेला. अलग बाति बा कि सह पा के लोग सहकिओ सकेला. सहकल में काम करत करत आदमी परिके लागेला. एकाध बेर त सहकल में काम होला बाद में ऊ परिके लागेला. ओकरा आदत पड़ जाला कवनो काम के भा नशा के. उपर झापर देखला पर सहकल आ परिकल में फरक ना होखे बाकि गहिराई से देखीं त दुनु अलग होले.. आ आजु एही परिकल पर कहल एगो कहाउत से आपन बतकुच्चन रोकत बानी कि परिकऽ ए बिलार, कहिओ खइबऽ मूसरी के मार. अब मूसरी आ मूसरी के फरक के चरचा फेर कबो.

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यूपीआई पहचान हवे -
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सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
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पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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