साँच उघारल जरूरी बा !

by | Sep 26, 2017 | 0 comments

– डॉ अशोक द्विवेदी

हम भोजपुरी धरती क सन्तान, ओकरे धूरि-माटी, हवा-बतास में अँखफोर भइनी। हमार बचपन आ किशोर वय ओकरे सानी-पानी आ सरेहि में गुजरल । भोजपुरी बोली-बानी से हमरा भाषा के संस्कार मिलल, हँसल-बोलल आ रोवल-गावल आइल। ऊ समझ आ दीठि मिलल, जवना से हम अपना गँवई लोक का साथे, देशो के इतिहास भूगोल समझनी, आनो के आपन मननी । संग-साथ का सामूहिक उतजोग से पारस्परिकता के भाव जगल। जीवन-संस्कृति के लूर-सहूर सिखनी हमरा एह व्यक्तित्व का निर्मान में पहिल भूमिका भलहीं हमरा माई-बाप, सगा-सम्बन्धी चाचा-चाची, मामा-मामी, फुआ, ईया-बाबा क रहे, बाकिर ओहू अनगिनत लोगन के रहे जे समय समय पर भाई, गुरु, सँधतिया, हीत-मुदई बनि के मिलल । आपन धरती, हवा-पानी, डँड़ार-सिवान, नदी-ताल, बाग-बन आ बोली-बानी केकरा ना रास आवे, केकरा ना रुचे ! हमरो अपना ओह सगरे क गरब-गुमान बा, जवन हमरा के रचलस-ओरिचलस !

इस्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय में पढ़ला-लिखला-सिखला के जेवन मोका मिलल, ओहू क क्षेत्र, भोजपुरिये रहे – याने गाजीपुर, बलिया, बनारस। हमार माई सिवान (बिहार) जिला के रहे, जवना कारन हमरा में भोजपुरी लोक के ऊ सोगहग संस्कार आइल, जवना में लोक-संस्कृति के जियतार विस्तार आ गहिराई के अनुभूति-प्रतीति भइल। पोथी ज्ञान खातिर हिन्दी, अंगरेजी, संस्कृत जइसन प्रचलित भाषा हमरा शिक्षा क माध्यम जरूर रहे, बाकि ओह सबसे सटल आ ब्यौहारिक रूप से जुड़ल उर्दुओ के शब्द ज्ञान कामे आइल। हमरा उच्च शिक्षा में निजी रुचि का कारन साहित्य पढ़े के रहे, एहसे अवधी, ब्रजी, मैथिली, राजस्थानी आदि भाषा- सब के जाने-समझे के अवसर मिलल। ओइसे गोसाईं तुलसीदास के रामचरित मानस त हमरा भाषा-समाज के ब्योहारे में रहे बाकि हिन्दी साहित्य पढ़े में, एह सब लोक-भाषा के विस्तार आ गहिराई के थोर-बहुत थाहे आ ओमे पँवरे के संजोग भेंटाइल । बड़ जेठ क नेह-प्रीति, असीस-प्रोत्साहन मिलल त दीठि आ समझ के फइलाव भइल।

ओह समय भोजपुरी, अवधी, ब्रजी, बुन्देली, राजस्थानी, पंजाबी वगैरह के हिन्दी से कवनो भेद दुराव ना रहे, बुझाव जइसे सब हिन्दिये के हऽ आ हिन्दिया सिखावे-पढ़ावे वाला लोगवा एह सबके हिन्दिये क माने । थोर-बहुत संस्कृत, पालि, अपभ्रंश, अवहठ्ठ आदि पुरनकी भाषा सब के शब्दवा अटपट आ दुरूह जरूर लागे, बाकि ई खूब नीक से बुझाय कि एकरा जनला बिना हिन्दियो क जानकारी ना पूर होई । अभी हे दे ले हमनी के, अपना माई-भाषा में लिखत पढ़त, कुछ हिन्दियाइन लोग का उपेक्षा-तिरस्कार का बावजूद ईहे बूझत रहनी कि सब मिला के एक्के हवे । थोर-ढेर अन्तर का बादो, एह देश का लोकतंत्र में सब भाषा के बिकसे बढ़े क समान अधिकार आ अवसर बा । भोजपुरी भा राजस्थानी वाला लोग, अपना साहित्य आ बोलनिहार-संख्या का दिसाईं सबल भइला का बावजूद अपना के, एह समानता के अवसर से वंचित बूझत बा । एकर कारन, ऊ भेदभाव आ बरकाव बा, जवना में कवनो बड़-बरियार भाई अपना छोटका पर, आपन बर्चस देखावेला आ रोब झाड़ेला।

राजनीति में ई भेदभाव आ बरकाव साफे चिन्हा जाला। तब झुठिया के रेवड़ी बाँटल आ लेमनचूस देके फुसिलावल कामे ना आवे। ओइसे हमन जइसन लोगन में, ई भेदभाव आ भाषा-दुराव ना कबो पहिले रहे, ना आज बा, हँ …कुछ स्वनामधन्य ‘हिन्दी बचाओ’ अभियान वाला कथित हिन्दी-प्रेमी लोग के ‘भोजपुरी’ ‘राजस्थानी’ बिरोध देखि के अचरज आ दुख जरूर भइल । ओइसे अनुज डा0 प्रकाश उदय हमरा नाँवें लिखल अपना चिट्ठी में एह महान हिन्दीप्रेमी लोगन के ‘‘हिन्दी के ‘खाता’ आ ‘त्राता’ नाँव देले बाड़न, सहिये लागल । अपना कुतरक-प्रोपेगेन्डा से एह लोग क बिसूरल देखि हँसियो आवऽता आ रोवाइयो ! पता ना ऊ लोग आ ओह लोगन के पोंछिटा सँभारे वाला लोग हिन्दी के अजान-अनचीन्ह भुतभाँवर से बँचावल चाहत बा कि ओकरे पाछा से लुत्ती लेसि के आगि लगावल चाहत बा । अइसे भाषिक दुराव आ हिन्दी के खण्डित- राष्ट्रवाद का आड़ा, छिपल एह ‘खाऊ’ बर्चस्व देखावे वाला लोगन के काहें हिन्दी के हितकारी मानल जाव? हिन्दी पूरा देश के जोड़े वाली सम्पर्क भाषा आ राजभाषा हउवे, कवनो एगो खोंढ़िला के भाषा थोरे हवे ! कवनो एगो क्षेत्रविशेष के भाषा थोड़े हवे, ऊ त सबसे मिलके, सबसे लेके, सबसे जुड़के आपन बल-बउसाय आ सामरथ बढ़वले बिया । ए भइया लोग, काहें ओके कुतरक का गँड़ासी से टुकी टुकी करे पर लागल बाड़ऽ जा !

संबिधान के अठवीं अनुसूची देश आ देश के भाषा-समाज के सँवारे-सँभारे खातिर हऽ। ओमें राजस्थानी, भोजपुरी के शामिल करे क माँग कइला पर काहें दूनी ए ‘हिन्दी बचाओ’ मंच वालन का पेटे बत्था आ मरोड़ उठऽता। कहीं कि हिन्दी के खइलका एह लोगन के अपच आ बेगँव कइले बा। ए भाई, हमहन का ‘जीये आ जिये दऽ’ वाला भोजपुरी-लोक के हईं जा, खाली ‘अपने’ ना, ‘लोको’ के कल्यान खातिर रोवे-गावे वाला, सभका जोग-क्षेम क मंगलकामना करे वाला, देश खातिर जीये-मुवे वाला, बुडबक-बकलोले सही, ठोक-बजाइ के निठोठ बोले वाला भोजपुरिया हईं जा ! भला के अपना भाषा संस्कृति आ लोकपरम्परा के हेठी करे आ ओकरा राही काँट बिछावे वाला के आसनी बिछाई ? भोजपुरिया त असहीं बे बेजाँय कइले, अपना सोझ साफ कड़ेर बोली-बानी बदे बदनाम बाड़े सन।

भोजपुरी जनपदन का लोक के लोहा देश के गुलाम बना के राखे वाला अंगरेजवो मनले बाड़े सऽ! ओकरा प्रतिभा, बल-पौरुख आ पराक्रम के पताका बिदेस ले फहरल, ओकरा कुशलता आ मेहनत -मजूरी से देश क बड़-बड़ महानगर दमकले सऽ । एही भोजपुरिया लोक से राष्ट्रपति निकलले, महामना निकलले, बड़ -बड़ साहित्यकार, रणनीतिकार आ सिद्ध महतमा निकलले। देश खातिर जूझे-मरे वाला बीर बलिदानी निकलले, जवना के गिनती गिनले ना गिनाई । करोड़ों का संख्या वाला ओ भोजपुरियन के एह जनतांत्रिक देश में अपना भाषा खातिर निहोरा-प्राथना करे के पड़त बा।

भइया-बाबू, बहिनी हो, एह भाषा में ‘मैं’ ना, ‘हम’ बोलल जाला । ‘हम’ सहभागी-समूह क बोध करावेला, ओह संस्कृति चेतना के अँजोर देखावेला कि सबका साथे मिल के करे, मिल के चले, मिल के खा-पीये, मिल के गावे-बजावे, उत्सव करे, परब -तिहवार मनावे ! हमहन जोरला में बिश्वास राखीले, तुरला में ना ! सोगहग के उपासना करीले, खण्ड-खण्ड के ना ! तूहूँ बनल रहऽ, हमहूँ बनल रहीं ! हिन्दियो बनल रहे, भोजपुरियो बनल रहे । ई बाँटे- अलगावे वाली राजनीति चाहे जे करे, ओकर मुखौटा उतरे के चाहीं । भाषा के आड़ लेके, भाषा के राजनीति आ मठाधीशी करे वालन क साँच उघारल जरूरी बा !


भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के सितम्बर 2017 अंक से साभार

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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