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‘हम’ पूजक भोजपुरियन के सेवा भाव

by | Apr 11, 2016 | 0 comments

Pramod-kr-tiwari

– प्रमोद कुमार तिवारी

हमनी के ई बतावत कबो ना थाकेलीं कि भोजपुरी एगो अइसन भाषा हऽ जवना में ‘मैं’ हइए ना हऽ, एहमें खाली ‘हम’ होला. मैं आ हम में सबसे बड़ अंतर तऽ इहे होला नू कि ‘मैं’ खाली अपना बारे में सोचेला, जबकि ‘हम’ सबकर चिन्ता करेला. अगर एह बात के आज के भोजपुरिया समाज पर लागू कइल जाव आ अपना आप से ई सवाल पूछल जाव कि एह समाज के लोग के‘हम’ के केतना फिकिर बा? कवनो समाज में ‘हम’ के केतना भाव आ मात्रा बा एकरा के जाने के कुछ आसान उपाय बा.

1. समाज में केतना भेद भाव आ एक दूसरा के लेके पूर्वग्रह के मात्रा केतना बा?
2. समाज में सार्वजनिक सुविधा स्कूल, पुस्तकालय, दवाखाना, कुँआ, पोखर, चौपाल, खेल के मैदान, सार्वजनिक भवन आदि के कइसन व्यवस्था बा?
3. धार्मिक स्थल में कतना खुलापन, साफ सफाई आ दूसर व्यवस्था बा? यानी अमीर, गरीब, छोट बड़ हर जाति के मरद-मेहरारू के पूजा करे, खाए पीए, उठे, बइठे, रहे आदि के कइसन सुविधा बा?
4. समुदाय के कमजोर वर्ग यानी बच्चा, बुजुर्ग, स्त्री खातिर समाज का खास व्यवस्था कइले बा?
5. जिनगी के प्रमुख संस्कार जनम, बियाह, मरनी आदि में केतना एकजुटता, केतना सरलता (रूपिया-पइसा से ले के व्यवस्था तक में) भा केतना जटिलता बा?
6. आ सब बात के एक बात, समाज के ताकतवर आ सफल लोग के अपना गांव-घर आ समाज खातिर केतना योगदान बा?

अब आईं तनी तुलना क लीहल जाव!

एही भारत में एगो सिक्ख समाज बा, पंजाब के. एकर बात हम एहसे कर रहल बानीं कि सिक्ख लोग के मूल ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भोजपुरिया कबीर से लेके रैदास तक के बात भरल बा आ सिक्ख लोग एह संतन के बानी से सीख लेबेला. एह समाज के लोग रउआ के भीख मांगत ना लउकी, खाली अपने ना कवनो समाज के लोग उनुका भीरी भा उनुका क्षेत्र में चल जाई त ओकरा के खाए, पीए सूते के व्यवस्था गुरुद्वारा में हो जाई. ईहे ना कई बार अइसन मौका आइल बा जब देस-विदेस में बसल लोग अपना समाज के बेहतरी खातिर खाली रूपिये पइसा से ना बलुक मेहनत क के भरपूर योगदान देले बा. बहुत दिन नइखे भइल जब उनुका पवित्र सरोवर में गंदगी हो गइल रहे त अमेरिका कनाडा तक ले सिक्ख लोग जुट गइल आ कीच तक काछ के दू दिन में ओकरा के चमका दिहलस.आज पू रा दुनिया में सरदारजी लोग लउकत बाड़े त ओकर सबसे बड़ कारण ईहे बा कि सब लोग एक दूसरा के ‘हम’ मानेले आ ऊपर पहुंचल लोग समाज के नीचेवालाअपनालोग के बाँह थाम लेबेला. ऊ चाहे टैक्सी चलावे भा चाय बेचे, बाकिर कुछ न कुछ व्यवस्था कर लेबेले.

एगो दुसरका समाज के उदाहरण लीं, एह घरी हम गुजरात में रह रहल बानीं. इहाँ रोजे हमरा के पटेल समाज, जोशी समाज आदि के बारे में सुने के मिलत रहेला. पटेल समाज के मतलब पूरा गुजरात के पटेल समाज ना. अलग-अलग जवार के सैकड़न गो अइसन समाज बा! गुजरात के प्रमुख त्योहार गरबा के समय, बहुत बड़ स्तर पऽ गरबा नाच के आयोजन होला! दूर दूर से गायक-वादक लोग आवेले. खूब बड़का बड़का स्पीकर लागेला, एकदम दिन कऽ देबेवाला लाइट से ले के 9 दिन तक खाए-पीए के आ नाचेवाला-वाली लोग के पुरस्कार तक के व्यवस्था कइल जाला. टिकट लगा के भा पास के जोगाड़ कऽ के लोग अइसन नामी गरबा नाच आयोजन के देखे जाले बाकिर हमार पड़ोसी एकाध दिन छोड़ के कबो अइसन आयोजन में ना जाले! एक दिन हमरा से कहले कि एक बेर हमनी के समाज के जलसा में चलीं! ऊ हमरा के लेके एगो लइकिन के हास्टल में पहुंचले, हॉस्टल के छत प बहुते साधारण ढंग से एगो टेप बजा के लइकी लोग गरबा करत रहे! एह हॉस्टल में उनुका गांव आ आसपास के गाँव के लइकी लोग रह के पढ़ाई करेली. गांव से सैकड़न किलोमीटर दूर, पइसा रूपिया के चिंता से मुक्त रह के लइकी लोग के काम खाली पढ़ाई करे के बा. उनुका बाबू माई के जेतना जुरेला, दे देला ना त ओह समाज के समर्थ लोग बाकी खरचा उठावेले. ई अउर कुछ ना ह एह समाज के ‘हम’ के भावना ह. ‘अमूल, जइसन सहकारिता के अद्भुत आंदोलन अइसहीं ना बन जाला, पहिलहीं से ओकरा खातिर एगो ‘हम’ के जमीन तइयार रहेला.

एह सब के तुलना तनी भोजपुरिया समाज से कइल जाव! अपवाद हर जगह होले बाकिर कतना जिला मुख्यालय, ब्लॉक में, कतना गांव में रउआ अइसन पुस्तकालय, स्कूल, हॉस्टल भा दवाखाना देखले बानीं, जवना के लोग अपना खरचा से चलावेले. कतना अइसन लोग से मिलल बानीं जे कहत होखे कि छोड़ीं सरकार के, कब ले ओकर मुंह जोहल जाई? चलीं हमनिए के मिल के ई काम निबटा देत बानीं जा.

भोजपुरिया इलाका आई.ए.एस, डॉक्टर, इंजीनियर से ले के नेता लोग खातिर विख्यात रहल बा. गुजरात के आधा ले बेसी बड़का अधिकारी लोग यूपी बिहार के बा. देश विदेश में भोजपुरिया डॉक्टर, इंजीनियर भरल बाड़े. राजेन्द्र बाबू, लाल बहादुर शास्त्री से ले के जयप्रकाश नारायण तक तमाम लोग राष्ट्रीय स्तर पऽ अपना समाज-सेवा भाव के स्थापित कइले बाकिर ई समाज ओह आदर्श के केतना पकड़लस?

समुदायिक सेवा के कऽ गो आंदोलन एह इलाका में चलल? छत्तीसगढ़ आ राजस्थान में सफल अधिकारी लोग अपना समुदाय के लइकन खातिर गांव में कोचिंग चलावेले, समय निकाल के ट्रेनिंग देबेले, नीमन किताब खरीद के देबेले जवना के सुंदर परिणाम मिलेला. पूरा भारत में एसटी प्रोफेसर आ आइएएस खोजब तऽ अधवा से जादा मीणा लोग भेंटाई. एगो गांव में 30-40 गो अधिकारी मिल जाले. एतना गरीबी, बेरोजगारी, लाचारी भोजपुरिया इलाका में भरल बा, इहां कऽ गो गांव में अइसन सर्वहितकारी सेंटर चल रहल बा?

पूरा दुनिया पहिले से जादे संपन्न आ तमाम तकनीकी सुविधा के मामला में बेहतर भइल बिया. तमाम देश के लोग अपना करीबी समाज के बेहतरी खातिर सामुदायिक स्तर पऽ काम करे में लागल बा. लोगबाग समूह-समाज-समुदाय-क्लब-दल आदि बना के कुछ अइसन कर रहल बा कि केहू अतना न पछुआ जाव कि ओकरा से मिले बतियावे में संकोच होखे लागे. खास तौर से दू गो चीज बहुते महत्व के हऽ जवना पऽ पूरा दुनिया के लोग ध्यान देला. स्कूल आ अस्पताल. स्कूल नयका पीढ़ी के पूरा भविष्य के नेंव राखेला आ अस्पताल के चक्कर में तऽलखपतियो के खाकपति बनत देरी ना लागे. पहिले ई दूनो पहुंच में रहे. आधा स्कूल के काम घर-गांव के बड़ बुजुर्ग सम्हार लेत रहले आ जड़ी बूटी से ले के वैद्य जी के दवाइयो आधा ले बेसी रोग के सम्हार लेत रहे, बाकिर नया जमाना में बहुत कुछ बदल गइल बा. शिक्षा के अइसन गलाकाट दुकानदारी बा कि बिना पइसा के कुछुओ भेंटाइल दुलुम बा आ जब खेत खरीहान खातिर जगह मुश्किल हो गइल बा आ एक एक इंची जमीन खातिर मार हो रहल बा तऽ ‘सेंहुड़ आ बिसकनरा’ कहां भेंटाए वाला बा. अइसन में समाज आ गांव के पिछड़ल वंचित लोग (खाली जाति के आधार पऽ ना) खातिर कवन राह बचत बा? असल में एगो नया समाज के अब जरूरत बा.

जब जीए के पूरा ढंगे बदल गइल, समूह आ गांव के पूरा रंगे बदल गइल तऽ अब सामाजिक कामों के कुछ नया रूप देबे के पड़ी. हमनी के जीवन में जइसन नया बदलाव आइल बा, ओकरा में कुछ अउर बदलाव करे के जरूरत बा. कवि अरुण कमल के शब्द में कहीं तऽ ‘खतम हो चुकल बा पुरान, आ नाया आइल अबहीं बाकी बा.’ पहिले गांव अपना आप में स्वतंत्र इकाई होत रहे आ लोग घर, परिवार के साथे साथे अपना समाजो के चिंता करत रहे. चार गो आश्रम में से दू गो 40-50 साल ले खतम हो जात रहे. वानप्रस्थ आ संन्यास आश्रम तऽ घर के माया से दूर हो के समाज कल्याण के बात करे खातिर बनल रहे. आज तऽ हालत ई बा कि गोड़ कब्र में लटकल बा बाकिर मन माया में अझुराइल बा. कबीर से ले के तमाम संत लोग रोज एक बार इयाद दिला देत रहे कि ‘चोला माटी के राम, एकर का भरोसा, चोला माटी के’ बाकिर आज हर घंटा रउआ के बिजी राखेवाला एगो नया मशीन आ जात बिया. कबो खतम ना होखेवाला एगो नया सिरियल शुरू हो जात बा. समाज के का कहल जाव दुआरो पऽ बइठे के फुर्सत नइखे बाँचत. पहिले समाज के एगो व्यवस्था रहे, तमाम तरह के अतिवाद के बादो एगो खास तरह के समरसता रहे. गांव में केहू के बियाह होखे तऽ खाना बनावे के काम से ले के खटिया, बिछावन तक के व्यवस्था बिना हर्रा फिटकरी लगले हो जात रहे. रिश्तेदारी के लोग पइसा भले न दे बाकी चाउर दाल से ले के दही तक के व्यवस्था सम्हार लेत रहे. अब सबकुछ आर्डर देला से हो जाला, हो सकेला कि कुछ लोग रूपिया पइसा भी दे दे बाकिर जवन समूह भावना घरे घरे से बर्तन जुटावे में काम करत रहे ओकर भरपाई ना भइल. तनी सा मुस्किया के नीमन बेडसीट देबेवाली भउजी से ले के टुटही खटिया देबेवाला देखजरन काका तक के बात के रस के कवन विकल्प तइयार भइल बा? तरकारी काटत, खाना बनावत घरी जवन गवनई आ दुखम सुखम होत रहे ओकरा बदला में आज का मिलल बा?

एह पूरा प्रक्रिया में जवन आंखी के लाज बनत रहे, जवन रिश्ता बिकसत रहे, जवना से कवनो खेत भा सड़क पऽ अकेल लइकी लउकला पऽ पहिला विचार मन में ई आवे कि फलनवा काका के रिश्तेदार हई, ओकरा जगह पऽ आज नया का आइल बा? हमनी के मोबाइल, टीवी से ले के कार जहाज तक के सुविधा पा लेनी जा, बाकिर ई सब पावे के चक्कर में जवन छूटत गइल ओकरा के संजोवे के कोशिश ना भइल. एकरा खातिर आज के समय आ पूरा समाज जिम्मेदार बा, हम मानत बानीं बाकिर लोग एकर विकल्प ढूंढ रहल बाड़े. एह हालात के सुधारे खातिर भोजपुरिया समाज का कर रहल बा, कुछ लोग के तऽ आगे आवहीं के पड़ी. हमनी अइसन लोग से उमेद ना राख सकेनी जे एक बेर के रोटी के जोगाड़ में परेशान बा भा दवाई के पइसा ना होखला के कारण ओझा सोखा के लगे जाए खातिर मजबूर बा.

इहाँ साधन संपन्न लोगन के आ ताकतवर लोग के आगे बढ़ के बीड़ा उठावे के पड़ी. पहिले गांव में रमलीला भा रसलीला आवत रहे तऽ ऊ लोग के खर्चा खातिर पूरा गांव बीड़ा ना उठावत रहे. कुछ गीनल चुनल लोग ओहू घरी जिम्मेदारी लेत रहे आ पूरा गांव ओकर रस लेत रहे. आज अइसन काहें ना हो सके? काँहे सब मिल के सहजोग ना कर सके? तब ई हम भाव कहाँ बा?

हम बहुते छोट आदमी हईं, भाषा आ साहित्य के छात्र हईं एह से एगो उदाहरण एही क्षेत्र से ले रहल बानीं. रोज सुनत रहेनीं कि भोजपुरिया लोग के संख्या 18 करोड़ भा 20 करोड़ बा. बाकिर भोजपुरी में एक्को अइसन प्रकाशन संस्थान नइखे जवन स्तरीय किताब के छापे आ वितरित करे के नीमन व्यवस्था कऽ सके. पांडेय कपिल जी कुछ शुरू कइनी बाकिर 100 किताब तक संख्या ना चहुंप पावल. भोजपुरी अकादेमी के करनी-धरनी, भगवाने मालिक बा. कई गो विश्वविद्यालय में भोजपुरी सिलेबस में बा, एकर एगो बाजार बा बाकिर ढंग के प्रकाशन नइखे. परिणाम ई होला कि या त अपना पइसा से कहीं से छपवावेले लोग भा भाषा बदल के हिन्दी के राह पकड़ेले. एही के दूसरा रूप पत्रिका सब में लउकेला. जादातर पत्रिका खरीददार के भरोसे ना, संपादक के जिद आ आपन जियान, के भरोसे चल रहल बाड़ी स. का 18 करोड़ वाली भाषा के लगे 5 हजार अइसन खरीददार ना मिल सकेले जे 25-50 खरच के एगो पत्रिका ले ले. मान लेहीं रउआ खुद नइखीं पढ़ल चाहत, खरीद के रख लीहीं. हो सकेला केहू अउर ओकरा के पढ़े.

आजकाल इंटरनेट आ वेब पत्रिका के जमाना आ गइल बा. भेजे में पइसा ना लगे बाकिर स्तरीय सामग्री तइयार करे में, लिखवावे में, संपादित करे में तऽ मेहनत आ समय लागेला नू? एकरा बदला में लेखक संपादक के काहें ना कुछ मिले के चाहीं. रउआ नीमन लेख कहानी भा कविता लिखेवाला के मानदेय दे के देखीं, बढ़िया रचना के लाइन लाग जाई आ कूड़ा करकट अपने किनारे हो जाई. केतना बदनसीब बा भोजपुरिया समाज जवन ढंग के एगो पत्रिका के नियमित निकाले खातिर साधन ना मुहैया करा सके. केतना गरीब बा भोजपुरिया समाज जवना के लगे 10 गो अइसन दिलदार अमीर नइखे जे कह सके कि हम भोजपुरिया भाषा आ संस्कृति के बेहतरी खातिर काम करेवाली संस्था के खरचा उठाइब, रउआ बस स्तरीय काम करीं.

कतना कमजोर बा ई समुदाय कि मिलजुल के भी एगो ढंग के अइसन पुस्तकालय नइखे बना पावत जहां अब ले प्रकाशित भोजपुरी के हर रचना उपलब्ध हो जाए. समाज जवाबदेही तय कऽ के अइसन काम करा सकेला बाकिर ओकरा खातिर कुछ लोग के कमर कसे के पड़ी, आपन मैं छोड़े के पड़ी. खाली बड़का-बड़का बात में ना व्यवहार में. हमार एगो परिचित छोटी गो प्रयोग कइले. अपना गांव में अखबार, रोजगार समाचार आ प्रतियोगिता दर्पण आदि के व्यवस्था कऽ दिहले. ऊ दिल्ली में रहेले बाकिर पइसा दिहला के साथे इहो सुनिश्चित कइले कि रोज अखबार गाँवें चंहुपो. मात्र दू साल में ओह गांव के तीन गो लइकन के सरकारी नौकरी में चयन हो गइल. पहिले लोग के पते ना चलत रहे कि कब कहां के फारम भरे के बा. जबले सूचना पहुंचे डेट खतम हो जात रहे. इहे ना रोज समाचार पढ़ला से चेतना आइल, सरकारी सुविधा के बारे में पता चलल आ ब्लॉक के जवन अफसर बुड़बक बना देत रहे ओकरा के मजबूर हो के सुविधा देबे के पड़ल. जब एक आदमी के सकारात्मक सोच आ हजार पांच सौ खरच कइला से एतना बड़ बदलाव आ सकत बा तऽ पूरा समाज के लोग खड़ा हो जाई तऽ केतना बड़ बदलाव आई.

मराठी भाषी एगो हिन्दी के कवि रहले मुक्तिबोध. ऊ लिखले कि –
‘ज्यादा-ज्यादा लिया, दिया बहुत बहुत कम
मर गया देश, जीवित रह गए हम’

का हमनियो के अपना आप से ई सवाल कबो पूछेनी जा कि ‘हम’ के बात पऽ कॉपीराइट राखे वाला भोजपुरिया समाज के प्रतिनिधि के रूप में हमनी के केतना देले आ लवटवले बानीं जा? लेबे के काम तऽ खूब कइनीं जा बाकिर देहनीं जा केतना? आ अब ना तऽ कब?


भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के मार्च 2016 अंक से साभार


प्रमोद कुमार तिवारी (हिन्दी विभाग)
गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय,
सेक्टर-29, गांधीनगर, गुजरात-382030

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