अलबल करे खातिर अलबलाह होखल जरूरी ना होला ( बतकुच्चन – ११३)

by | Jun 13, 2013 | 0 comments


सट्टा से अबहींओ टीवी चैनल वइसहीं सटल बाड़ें बाकिर हमरा एक बात समुझ में नइखे आवत कि खेत खइलसि गदहा आ मार खइलसि जोलहा वाला कहाउत एह बात पर काहे सटीक बइठत बा. कइल केहु आ भरी केहु दोसर, से काहे? होखे के त चाहत रहुवे कि आईपीएल के गड़बड़ी ला आईपीएल के जिम्मेदारन से इस्तीफा माँगल जाइत बाकिर उनकर केहु नामे नइखे लेत. आ लोग लट्ठ ले के पड़ल बा बेचारा ससुर का पीछे. कहत बा लोग कि दामाद दोषी बाड़ें त ससुर इस्तीफा देसु. हो सकेला कि जबले ई बतकुच्चन रउरा ले चहुँपी तबले ऊ मन से भा बेमन से देइयो दिहले होखसु. अब आपन त आदत हो गइल बा हर बाति के अरथियावे के से एहु बात पर अरथियावल जारी राखब.

अरथ माने कवनो बात के माने आ अरथियावल माने ओकर बाल के खाल नोचल, व्याख्या कइल. कहे के त इहो कहल जा सकेला कि बात अइसन बात ना बाकिर ओकरो के अरथियावे लगलऽ. जवना के कवनो अरथ ना निकलत होखे ओकरो में अरथ खोजे के काम फुरसताहे आदमी कर सकेला भा ऊ जेकरा चौबीसो घंटे ब्रेकिंग न्यूज देबे के मजबूरी होखे. हमरा त बस हफ्ता में एक हाली बतकुच्चन करे के रहेला त ओकरा ला सातो दिन परेशान रहीलें. खोजत रहीलें कि अबकी कवना बात पर कागज करिया करीं. एही खोजे का फेर में कबो टीवी न्यूज के सहारा लिहिलें त कबो कवनो शब्दकोष के अलम. सहारा आ अलम एके बात भइल. अरथियाईं त कह सकीलें कि सहारा में सहारा देबे वाला मरजी से सहारा देला त अलम में अइसन कवनो मरजी होखल जरुरी ना होखे.

वइसहीं अलबल करे खातिर अलबलाह होखल जरूरी ना होला. कई बेर समुझदार लोगो अलबल बक देलें आ सुने वाला सोचे लागेलें कि जब फलनवाँ अइसन कहलें त एहमें जरूर कवनो खास बात होखी. ऊ भला अलबल काहें बकीहें? बूझ गइनू नू कि अलबल माने बेकार बेमतलब होला. अब एह अलबल से धेयान में आ गइल एगो दोसर शब्द, अलबेला. लगन के मौसम बा आ बिआह के एगो गीत होता कि, छोड़ू छोड़ू मखिया रे आजु के रतिया, हिया भरी देखूं दामाद अलबेलवा रे. अब सासु के अँखिया लागल मधुमखिया उनुका के आपन अलबेला दामाद देखहीं नइखे देत त ई बड़हन समस्या बा. अकसर लोग का आँखि पर अइसने मधुमाखि छपले रहेली सँ आ ऊ लोग देख ना पावे जवना के देखल चाहेला. देखीत त देखे के मिलीत कि, चलनी के चालल दुलहा, सूप के फटकारल हे, बढ़नी के मारल दुलहा, करछूल के दागल रे. बाकिर तबो अइसन अलबेला के दामाद बनावे खातिर बेचैन हो जाला लोग. जनप्रतिनिधि समाज के दामादे जइसन नू होलें.

खैर, ओहसे हमरा का ? हम त ई सोचत बानी कि अलबेला बाँका होला, बनल ठनल होला, अनोखा होला, मनमौजी होला, बेफिकिर होला. आ बेफिकिर अलगरजीओ होला बाकिर अलगरजी आ अलबेला सुने में कतना अलग हो जाला. अलगरजी से निगेटिव शेड झलकेला जबकि अलबेला से पाजिटिव. होलें दुनु बेफिकिर, बेपरवाह. दोसरा के गरज से कवनो गरज ना होखे ओह लोग के.

अब गरज के अरजा फेर कबो पसारब, आजु के त काम हो गइल. अब चलें दी सभें, प्रणाम,

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(1)


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(3)


24 जून 2023
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सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

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