आजादी : केतना स्वाधीन जन आ मन?

by | Aug 14, 2014 | 1 comment

– अशोक शर्मा ‘अतुल’

AshokSharmaAtul
15 अगस्त. फिरंगिअन से मुक्ति के दिन. 66 साल हो गइल आजाद भइले. कबो सोन चिरईया’ से जानल जात रहे आपन देश भारत. 66 साल में कहां से कहां पहुंच गइल. धरती से चांद आ अब चांद से मंगल के यात्रा पर. सांचहूं आजाद भारत के जेतनो बखान कइल जाव, कम पड़ी. बाकिर एह 15 अगस्त का दिना एगो सवाल फेर कुलबुला ता. ओइसे हर साल एह दिना ई सवाल उठेला. का सांचहूं आजाद भारत में जन आ मन स्वाधीन बा?

एइमें कवनो दू राय नइखे कि आधुनिक संसार में भारत के एगो बड़हन नाम बा. बिना कवनो संकोच के कहल जा सकेला कि गुलाम भारत (प्राचीन भारत ना) के मुकाबले आजाद भारत बहुत आगे बढ़ गइल बा.

15 अगस्त माने झंडा फहरी लालकिला से लेके गांव-जवार मे. भाषण होई, लड्डू-पेड़ा बंटाई. स्वाधीनता के जश्न मनी. दिल्ली से लेके हर प्रदेशन के मुख्यालय से सुंदर, सोन्हर भारत बनावे के भरोसा दिहल जाई.

केतना अचरज के बात बा कि जेतना ई देश आगे बढ़त जात बा ओतने एह देश के असली लोग पीछे होत जात बा. भारत – जेकर आत्मा गांव में बसे ला. गांधीओ बाबा इहे कहले बानी. अमीर अउर अमीर आ गरीब अउर गरीबी के दलदल में धँसत जात बा. शेयर बाजार के बढ़त-घटत अंक त भारतीयन के समृद्धि के पैमाना नइखे हो सकत. जदि इहे रहित त हमनी के किसान हर साल आपन जिनिगी समय से पहिले खतम ना करीत. खेत-खलिहान में मॉल बनऽता, बड़िका-बड़िका भवन बनऽता. बाकिर जे सगरो देश के अन्न देता ऊ बेचारा खुदे अन्न बिना दम तूड़ रहल बा. एगो आकंड़ा पर धेयान दिहल जाव – देश में करोड़पतिअन के संख्या बढ़ल बा त समाज के सही तस्वीर बतावता कि करोड़पतिअन से कई गुना अधिका ‘रोडपतिअन’ के संख्या बढ़ल बा. कहीं ना कहीं एह अंतर का वजह से समाज में अपराधो बढ़ल बा.

राजनीति, समाज, शासन-सुशासन, धरम-करम. कहीं शांति नइखे. भ्रष्टाचार के अइसन बोलबाला कि सही आदमी के कवनो काम बिना घूस दिहले ना होई. सरकारी योजना ठीके बनेला, बाकिर फायदा मुट्ठी भर सरकारी बाबू लोग डकार जाला.

घोटाला, घूसखोरी से एह देश के रोम-रोम पेवस्त गइल बा. अनाज से लेके कफन ले, विधवा के पेंशन से मजूरा के मजूरी ले, 2जी से लेके नउकरी में भर्ती ले, सुरक्षा-टैक्स से चोरी ले! केतना नाम गिनावल जाव? जमीन से लेके आसमान ले बस घोटाला-घपलाबाजी.

सामाजिक समरसता के कहीं नाम नइखे. इंटरनेट भा कहीं विश्व ग्राम के एह दौरो में अपना देश में लोग जात-पात में आपन भाग्य खोजेला. शिक्षा के नाम पर सरकारी स्कूलन में भोजन-पोशाक दिआता, असली ज्ञान के अते-पते नइखे.

धरम के ठिकेदारन के कहले बेकार बा. फलाना संत, फलनवां बाबा…ले दे आमजन के विश्वास-आस्था के साथ धोखा.

कहल जाला मरद-मेहरारू गाड़ी के दूगो पहिया ह. एगो टूटी त दोसर कबो आगे ना बढ़ पाई. ई ठीक बा मरद-मेहरारू भेदभाव तनि कम भइल बा, बाकिर का ‘कम’ के काम चली. देश बूढ़ होता, तबो सोच उहे पुरातन – कहे के मतलब दकियानुसी. भारत के कवनो अइसन जगहा नइखे जहां रोज-रोज माई-बहिन-बेटी के साथ अत्याचार नइखे होत. कहे खातिर ढेर कानून बा एह देश में, बाकिर एकर लाभ? शून्य. निर्भया कांड से लेके बदायूं कांड ले देख लीं…समझ में आ जाई.

केंद्र होखो भा कवनो राज्य सरकार, बेकारी, बेमारी दूर करे खातिर खूब नारा दिहल जाला. विडंबना देखीं ई दूनो रोज बढ़ते जात बा. अरे भाई! कमाई ना होई त लोग खाई कहां से? खाई ना त बेमारी होखबे करी. पांच सितारा होटल में, एसी के ठंडई में टाई कोर्ट लगा के देश के सही तस्वीर के बखान कइल संभव नइखे. जमीन पर उतरे के पड़ी.

बड़-छोट, अमीर-गरीब के नतीजा ह कि जे ना से बंदूक उठा लेता. एक ओर सरकार दोसरी ओर बंदूकिया दीवार. आदमी जाई त कहां जाई. कहे के मतलब कि आजाद देश के बागडोर सम्हारे वाला कबो ई जाने के जतन ना कइल कि देश के माने खाली दिल्ली भा कवनो राज्य के राजधानी ना होला.

हर पांच साल पर लोग बड़ा उम्मेद में एगो सरकार बनावेला. बस वोट देहले भर काम रहेला. ओकरा बाद, जोहत रह! ईहां कहल जरूरी बा कि कहे खातिर सबकेहू भारतवासी ह, बाकिर देखीं जब ना तब कबो बिहारी भगाओ, कबो कश्मीरी भगाओ – माने अपने आदमी से आदमी नफरत के बीज बोए में कवनो कसर नइखे छोड़त.

आर्थिक, सांस्कृति आ सामाजिक रूप से आपन देश विरोधाभास का बीचे सांस ले रहल बा. नतीजा ई बा लोग कहऽता कि स्वाधीनता खातिर एगो अउर लड़ाई लड़े के पड़ी, जेसे जन-मन सही मायने में आजाद हो सको.

15 अगस्त मनो, बढ़िया से मनो – एह संकल्प के साथे कि भारत के जन-मन के वास्तविक स्वाधीनता मिलो. ना त हर बरिस खानी बेकारी, बेमारी, भुखमरी, ऊंच-नीच, जात-पात, घपला-घोटाला आ गरीबी के चक्की में पिसत आम भारतीय जन खातिर 15 अगस्त माने स्वाधीनता के कवनो मतलब नइखे.


अशोक शर्मा ‘अतुल’
उप-समाचार संपादक, दैनिक पूर्वादय
मोबाइल 98642-72890

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1 Comment

  1. jay

    bahut sundar alekh

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