ऊहचुह में फँसल संप्रग सरकार

by | Sep 10, 2010 | 0 comments

– पाण्डेय हरिराम

कवनो सरकार के कूवत के इम्तिहान संकट का घरी में ओह संकट में जूझे के ओकरा कोशिश से झलकेला. बाकिर यूपीए सरकार का कोशिश में आत्मविश्वास कम देखात बा असमंजस बेसी. सोमार का दिने प्रधानमंत्री कह दिहले कि देश में 37 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे बा ओह लोग के फोकट में अनाज ना दिहल जा सके.

मंगलवार को मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल बड़का स्कूलन से कहले कि ऊ गरीब बच्चवन के मुफ्त में पढ़ावसु. यदि ऊ स्कूल अपना कुल दाखिला के 25 फीसदी गरीब बचवन के नइखे राखत तो ओकरा के बंद कर दिहल जाई. अपना पहिला कार्यकाल में ई अपना कई गो महत्वाकांक्षी योजना से जनता के विश्वास जीतले रहुवे. जनता ओकरा के एही भरोसे दूसरका बेर सत्ता सँउपलसि कि ऊ एह योजनन के अमल में ले आई. बाकिर जल्दिये साफ हो गइल कि ऊपर से मजबूत लउके वाली सरकार भीतर से बिखरल आ बँटल बिया.

कांग्रेस आ सरकार में, कांग्रेस आ घटक दलन में आ खुद मंत्रियन का बिचे आपसी संवाद भा तालमेल खोजलो पर नइखे लउकत. मलिकार नेतृत्व के लाचारीओ साफे झलकति रहत बा. अपना पहिला कार्यकाल में न्यूक्लियर बिल के पक्ष में डटके खाड़ रहे वाला प्रधानमंत्री महंगाई भा दोसरा सवालन पर अपना ओर से कवनो पहल करत नइखन लउकत. चुप्पिये साधन उनका बेहतर बुझात बा आ जब बोलतो बाड़न त बोली मे बेरुखीए रहत बा. कई हालि मीठ बोलीए से काम बनि जाला आ कुछ देखावटीओ कदम से जनता के खीस शान्त हो जाला. बाकिर ई सरकार एकरो खातिर तइयार नइखे लउकत.

संसद में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी आ योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया महंगाई की सप्रसंग व्याख्या जरूरे कर दिहले बाकिर ई ना बतवले कि सरकार का लगे एकरा जकड़न से निकले के कवनो राहो बा कि ना. जनता अर्थशास्त्र के सूत्र ना समुझल चाहस. ओकरा के कारणे गिना के शांत ना कइल जा सके. ओकरा त ठोस उपाय के दरकार बा. ए सूरदास घीव पड़ल कि ना ? कड़कड़ाव तब नू जानी.

अपना दोसरा कार्यकाल के शुरुआत में जब कांग्रेस अपना मंत्रियन के सादगी से रहे के हिदायत दिहलसि त लागल रहुवे कि पार्टी एगो नया राजनीतिक संस्कृति के शुरुआत कइल चाहत बिया जवना के झलक सरकार का नीतियो में मिली.बाकिर सब ढाक के तीन पात निकलल. पहिले त बिच बीच में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सामने आके कुछ ना कुछ आश्वासन दे देत रहली. लागत रहुवे कि सरकार को मॉनिटर करे वाली एगो सत्ता बा जहवाँ जनता के शिकायत के सुनवाई संभव होखी. बाकिर पिछला कुछ महीना से उहो सुस्त पड़ गइल बुझात बाड़ी. सरकार अपना भाषा आ कामकाज के तौर-तरीका से नौकरशाहे लउकत बिया. समस्यन के सझुरावे खातिर ओकर ठंडापन कवनो एनजीओ जइसन बा. अगर ई अपना चरित्र में राजनीतिक रहित आ राजनीतिक हल पर भरोसा करित त आजु कश्मीर के ई हाल ना भइल रहित. केंद्र सरकार शुरू में बस अतने जरुरी समुझलसि कि कुछ अउरि सुरक्षा बल भेज दिहलसि. ओकरा अलावे ऊ सब कुछ उमर अब्दुल्ला का हवाले छोड़ के निश्चिंत बइठल रह गइल. जबकि कश्मीर के जानकार राजनीतिक विश्लेषक आ बुद्धिजीवियन का राय में सगरी समस्या मुख्यमंत्री के लड़िकबुद्धि का चलते अतना गम्हिराह हो गइल बा.

अब जाके गृह मंत्री चिदंबरम राज्य के जनता के दिल जीते आ राजनीतिक वार्ता के बाति कर रहल बाड़न. ई तत्परता शुरूवे में काहे ना देखावल गइल ? नक्सलवाद से निपटल लेइयो के कमोबेश चिदंबरम शुरू में त जोश देकवले आ ई मान के चललन कि सक्तिये से एह संकट के समाधान हो सकेला. सुरक्षा बल के कार्रवाई तेज कइला के असर ई भइल कि माओवादी पहिलहू से बेसी आक्रामक हो गइले. चिदंबरम अपना तरीका के लेके कुछ अधिके आश्वस्त रहले. ऊ एह संबंध में राज्य सरकारन के बातो सुने के तईयार ना रहले. उनका तौर-तरीकन पर उनही के पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह सवाल उठवलन. एहसे साफ हो गइल कि कांग्रेसो में एह मसला पर मतभेद बा. पहिले त दिग्विजय के चुप करावल गइल बाकिर बाद में पार्टी घुमा-फिराके उनही के भाषा बोले लागल आ चिदम्बरम शांत हो गइलन.

अबही समुझ में नइखे आवत कि संप्रग सरकार के माओवाद के खिलाफ असली स्टैंड का बा ? जवना तरह अइले दिने सुरक्षाकर्मी मरात जात बाड़न ओहसे सरकार के अभियाने पर सवाल उठ जात बा आ सरकार के भारी किरकिरी हो रहल बा. पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश चीन में जाके गृह मंत्रालय के खिंचाई कर दिहलन त भूतल परिवहन मंत्री कमलनाथ जयराम रमेशे के कठघरा में खड़ा कर दिहलन. कमलनाथ योजना आयोगो पर हमला कइलन जवना के कड़ा प्रतिवाद उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया कर दिहलन. रहल सहल कसर पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर पूरा कर दिहलन. ऊ कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजने का औचित्य पर सवाल उठा दिहलन. कांग्रेस आलाकमान का सामने निश्चये एगो बड़हन चुनौती बा. ओकरा सरकार के एह मौजूदा गतिरोध से बाहर निकाले के पड़ी.

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