गाँव त सरकार खातिर कुछऊ नइखे

by | Mar 9, 2011 | 0 comments

– पाण्डेय हरिराम

सरकार का नजर में लागत बा कि देशवासियन के, खास कर के गाँव देहात में रहे वालन के, कवनो वजूदे नइखे आ ओह लोग के स्वास्थ्य खातिर सरकात इचिको चिन्तित नइखे लागत. कहे खातिर जवन कहे सरकार बाकिर अबकी के बजट देख इहे बूझात बा. सरकार के बजट में महामारी आ छूतहा बीमारियन के रोकथाम के प्रावधान करे के जिक्र ले नइखे, गाँव में रहे वाला तड़पत बिलखत करोड़ो लोगन खातिर प्रारम्भिक चिकित्सा तक मयस्सर नइखे.

वइसे त देश स्वास्थ्य का क्षेत्र में बढ़िया प्रगति कइले बा बाकिर जनसंख्या में होखे वाला बढ़ोतरी का तुलना में सुविधा पिछड़ल जात बा. पिछला दस साल में जनसंख्या 16 फीसदी बढ़ल बा आ बीमार लोग के गिनिती में छियासठ फीसदी के बढ़ोतरी भइल बा. जबकि एही दौरान प्रति हजार जनसंख्या पर अस्पताल में बेड के संख्या में पाँच दशमलव एके फीसदी बढ़ल बा. देश में औसत बेड घनत्व (प्रति हजार जनसंख्या पर उपलब्ध बेड) 0.86 बा जवन कि दुनिया का औसत के एक तिहाईये बा. एहपर से डाक्टर आ कर्मचारियन का कमी अउर अस्पतलान के कुप्रबंधन से पता बा कतना बेड असही खाली पड़ल रहेला. एह चलते असली घनत्व अउरियो कम बा.

उपर दिहल औसत स्वास्थ्य सुविधा के राष्ट्रीय औसत ह. गाँव का लेवल पर देखल जाव त अउरियो कम आई. ग्रामीण इलाकन में, जहां देश के 72 फीसदी जनसंख्या रहेले, ओहिजा कुल बेड के 19वाँ हिस्सा आ चिकित्साकर्मियन के 14वें हिस्सा पावल जाला. ग्रामीण स्वास्थ्य उपकेंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अउर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रन पर चिकित्साकर्मियन के बहुते कमी बा. विशेषज्ञ चिकित्सक 62 फीसदी कम, प्रयोगशाला सहायक 49 फीसदी कम आ फार्मासिस्ट 20 फीसदी कम बाड़े. ई कमी दू कारण से बा. पहिलका जरुरत का तुलना में कम पद के स्वीकृति आ दोसरका काम करे का हालात के खराबी. सीमित अवसरन का चलते चिकित्साकर्मी ग्रामीण इलाकन में जाइल ना चाहसय. एह चलते गाँव के लोगन के गुणवत्तावाली चिकित्सा सेवा ना मिल पावे आ ऊ मजबूरी में निजी क्षेत्र के महँग सेवा लेबेले. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2004 के आँकड़ा देखावत बा कि 68 फीसदी देशवासी सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के उपयोग ना करसु. ओह लोग के लागेला कि ओहिजा ठीक से इलाज ना होखे. जबकि सरकारी स्वास्थ्य सेवा से कई गुना मँहग होखला का बावजूद लोग निजी चिकित्सालयन के सेवा लेबेले.

1983 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति चिकित्सा का क्षेत्र में निजी भागीदारी के बढ़ावा दिहलसि जवना का बाद निजी स्वास्थ्य सेवा के तेजी से बढ़न्ती मिलल. आजु देश में 15 लाख स्वास्थ्य प्रदाता बाड़े जवना में से 13 लाख निजी क्षेत्र में बाड़न. समुचित मानक आ नियम-कायदा का कमी से निजी स्वास्थ्य सेवा के आपन पसराव करे के अउरी मौका मिलल. अलग बाति बा कि निजी स्वास्थ्य सुविधाएं अधिकतर शहरीए इलाकन में बा जवना चलते ग्रामीण आ नगरीय स्वास्थ्य सुविधा के खाई अउरी फाँफर भइल बा. दोसरे निजी स्वास्थ्य सेवा अतना महँग बाड़ी सँ कि 70 फीसदी देशवासियन का बेंवत से बाहर बा ओकर इस्तेमाल. सरकार कई तरह के स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू कइले बिया बाकिर बारहे फीसदी देशवासी आपन स्वास्थ्य बीमा करावेले. एह योजनन में होखे वाला लूट खसोट अलगा बा.


पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ ई लेख उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखले बानी. अँजोरिया के नीति हमेशा से रहल बा कि दोसरा भाषा में लिखल सामग्री के भोजपुरी अनुवाद समय समय पर पाठकन के परोसल जाव आ ओहि नीति का तहत इहो लेख दिहल जा रहल बा.अनुवाद के अशुद्धि खातिर अँजोरिये जिम्मेवार होखी.

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