pub-4188398704664586

जबसे आइल बा मनरेगा, खेतिहर मजदूर मिलल दुश्वार हो ग‎इल

by | Apr 3, 2015 | 2 comments

– नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती

N_Pandey_Dehati

मनबोध मास्टर बहुत परेशान भइलें. खेत में खाड़ पाकल-फूटल फसल खड़ा रहल, कटिया खातिर मजदूर ना मिले.
अरे भया! मजूर कहां से मिली? सब हजूर हो गइलन. दिल्ली-मुंबई जाके खटिहें लेकिन गांव में खटला में शरम लागी. जबसे मनरेगा आइल बा खेतिहर मजदूर मिलल मुश्किल हो गइल. जब घर बइठले प्रधान जी की मेहरबानी से मजूरी मिल जायेके बा त खेते-खेते देहिं के दुर्दशा करावला के कवन जरूरत बा. एगो जमाना रहल जब चइत आवते खेते में भिनसारे से ही चूड़िन की खनक से सिवाना गुलजार हो जात रहल. लोग गावत रहलें- “पाकि गइले गेहुंआ, लटक गइली बलिया , खनक रे गइली ना, गोरी के खेते-खेते चुड़िया खनक रे गइली ना.”

कटिया की बाद महिना भर खलिहान गुलजार रहत रहे. मेंह में बुढ़वा बैल आ बछरु के दहिनवारी नाधि के दवंरी होत रहल. अंखइन से पैर कोड़त में ढोढ़ी गरम हो जात रहे. पुरुवा-पछुआ, उतरही-दखिनहीं की सहारे ओसवनी होत रहल. धरिया के रखल अनाज की ढेर पर बढ़ावन बाबा के पूजा के जमानो लद गइल. गांवन से बैल गायब हो गइलें. बैल ना रहलन त गोबर कहां मिली? गोबर ना त बढ़ावन कइसन? जांगर पेर के अनाज उगावल जात रहल तबो “कट्ठा अवांसी, मंडा बोझ” के ऊपज होत रहल. देश तरक्की कइलसि. तकनिक के खेती आइल. खेती-बारी के काम आसान भइल. एही बीच मनरेगा आइल. गांवन से खेतिहर मजदूर गायब हो गइलन. कटिया की सीजन में खेतन में हसुंआ हड़ताल.

भला होखे कंबाइन आइल. पहिले त लोग एके यमराज कहत रहल, लेकिन अब बुझात बा इ धर्मराज बा. कंबाइन ना रहित त अन्न के दाना घरे ना आइत. देश बहुत तरक्की कइलसि, लेकिन अबहीन जरूरत बा कि जइसे कम दाम के कार आइल ओइसे कम दाम के ट्रैक्टर आ कंबाइनो के जरूरत बा. कहे खातिर सब किसान के समर्थित सरकार बा लेकिन किसान हित के बात सोचे वाला के बा? डीजल पर सब्सिडी ना मिली. सीजन में थ्रेसरिंग खातिर बिजली भले ना मिली, खेते में आग लगावे खातिर जरूर आ जाई. उत्पादन का मामला में देश प्रगति कइलसि त उत्पादकता के कीमतो लगे के चाहीं. उत्पादन त एतना बा की सरकार का गेहूं खरीदला में पूरा तंत्र के शक्ति लगावे के परत बा. गेंहूं के कटाई पर इ कविता –

जबसे आइल बा मनरेगा, खेतिहर मजदूर मिलल दुश्वार.
कटिया दवंरी अउर ओसवनी, किसानी के बंटाढार..
भला भइल कि गांव-गांव में, कंवाइन बा आइल.
घंटा दु घंटा ही लागल, कोठिला में अन्न भराइल..

Loading

2 Comments

  1. deepak

    आज बस कटिया की चिन्ता।चला कम्बाईन लाने

  2. Rajdeep

    Sunadr rachana ba . hamro gehu abhin le naikhe katail kahe hi janaha naikhe milat ab cambaine ke sahara ba

Leave a Reply to deepak

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Scroll Up pub-4188398704664586