पेट से जुड़ले बिना भोजपुरी के विकास नइखे होखे वाला

by | Dec 10, 2010 | 1 comment

भोजपुरी के विकास खातिर हमनी के अपना के अपटूडेट करे के पड़ी. अंगरेजी आ हिन्दी के फेरवट वाला भोजपुरी अपनावे के पड़ी. पुरनका परम्परा, लोक गीत, लोक साहित्य के बचवले राखत हमनी के नयका जमाना के जरुरत अनुसार बदले के पड़ी, ना त हमनी का बहुते पाछा छूट जायब. हमनी के बीच के रास्ता अख्तियार करे के पड़ी.

पिछला सात दिसम्बर का दिने आरा के हर प्रसाद दास धर्मशाला का सभागार में “भोजपुरी दशा अउर दिशा” नाम के विचार गोष्ठी के संबोधित करत ई बाति भोजपुरी के आधुनिका आ चर्चित साहित्यकार मनोज भावुक कहलें. उनकर कहना रहे कि पेट से जुड़ले बिना भोजपुरी के विकास नइखे होखे वाला. जबले भोजपुरी इलाका के आर्थिक विकास नइखे होखत तबले भोजपुरी भाषा आ समाज के असली विकास ना हो पाई.

भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करवला का बाति पर उनकर कहना रहे कि जबले भोजपुरी से जुड़ल भारत के सगरी संस्था एके दिन एके सुर में आंदोलन ना चलइहें तबले सरकार ना जागी. आ सरकार जहिया जागी तहिया भोजपुरी के ओकर वाजिब हक मिल के रही. टुकड़ा टुकड़ा में आन्दोलन कइला से कवनो फायदा नइखे होखे वाला.

ओही गोष्ठी में बोलत डा॰ रणविजय कुमार भोजपुरी के मान सम्मान खातिर चट्टानी एकता बनावे के बात कहलन त सुधीर कुमार भोजपुरी में बढ़ल जा रहल फूहड़पन चिन्ता जतवलें.

गोष्ठी के आयोजन अखिल विश्व भोजपुरी समाज मंच का बैनर में भइल रहे आ कार्यक्रम में मंच के जिलाध्यक्ष प्रो॰ के॰के॰ सिंह, आ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ब्रजेश सिंह मौजूद रहलें.


(स्रोत – प्रेस विज्ञप्ति)


A comment received in email sent by A.K.Upadhyay :
sir,
I read with interest your report
that in order for bhojpuri to survive,
a recourse to English is necssary.

I do not agree.To make a language rich what is important is the contribution the writers make, the patronage we give.

Take the French or the Russians, they abhor anything english. They believe that their own literature is sufficient to hold the reader’s interst. The same is the case with Tamil or Bengali literature.

What is needed is that more and more Bhojpuri artistic talents stage shows throughout the length and breadth of the country including the film world.
Of course, government’s participation is a must. If programmes like Pardesia can be organised at the Government level, Bhojpuri cannot be left far behind.
Artistic talent can be either writing, singing, drama and so on.

My own experience is sad in this context. I approached several publishers for my bhojpuria novel.
No one came forward to publish it.

I am sorry that I have to write my comments in English. I am hampered by some computer technicality.

ak upadhyay.

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1 Comment

  1. omprakash amritanshu

    भोजपुरी के जानल -मानल पंडित लोग ,भोजपुरी बोलल ना चाहेला .गाँव छोडला के बाद भोजपुरी से लोग अईसे पीछा छोड़ावेला जईसे कि देह से जोंक .अईसे में कहाँ से भोजपुरी के विकास संभव बा . हम जईसन लिखे वाला लोगन के भोजपुरी खाली कागज के टुकड़ा पे हीं देखे के मिलेला .
    अंगरेजी में सोंचे वाला लोगन के जेहन में भोजपुरी के गड़ल शब्द कहाँ से उपर आई . बाहर में रहे वाला लोग त आपन बाल -बच्चा के भी आपन भाषा सिखावल नईखे चाहत .भोजपुरी के साथे अईसन भेद – भाव कईला से भोजपुरी आगे कईसे बढ़ी .आज भोजपुरी के जवान भी पहचान बनल बा ओहमें संगीत , सिनेमा अउरी भोजपुरी चैनल के बड़ी बड़हन भूमिका बा . गलती – सही माफी चाहत बानी .

    गीतकार
    ओ.पी . अमृतांशु
    गाँव – धमार
    आरा, भोजपुर
    अभी दिल्ली में बसेरा बा !

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