बतकुच्चन ‍ – ७८

by | Sep 26, 2012 | 0 comments


ठाँवे-ठाँवे ठठ के ठठ लोग दोसरा के ठोकत-ठेठावत ठाँय-ठाँय करत ठाँव नइखे लेबे देत. संजोग बा दुर्योग से ओहू ठठ के नेता ठए धातु के हउवन स. अब ठए से ठठेरो होला, ठए से ठाकरे आ ठाकुरो होला. ठाकुर के कवनो खास जात ना होखे. बाभनो ठाकुर होला, क्षत्रिओ आ हज्जामो. कहे खातिर कहेला लोग कि नाम से पहिले ठाकुर ह त क्षत्रिय भा ब्राह्मन, नाम क बाद ठाकुर बा त भूमिहार भा हज्जाम. अब ई बात कतना साँच ह कतना झूठ हमरा नइखे मालूम. हमरा त आजु बस ठए से ठेठाए के बा. सामने वाला ठठाए लागे भा ठठाए. ठठाइल माने जोर से हँसल होला आ ठठावल माने दोसरा के पीटल-ठेठावल. एहीला हम दू बेर ठठाए के बात कहनी ह. अब रउरा ठठाए का जगहा ठठावल महसूस करीं त हमार कवन दोस? आदमी भा कवनो चीझु के समूह के ठठ कहल जाला. शान से रहला के ठाठ कहल जाला बाकिर बाँस-फूस से बनल देवालो के ठाठे कहल जाला. ठाँ, ठाँई, ठाँव के मतलब होला जगह. ठोकल-ठेठावल के मतलब साफे बा. जब केहू पर ठोकर मारल जाव त ओकरे के ठोकल कहल जाला. काँटी ठोकल जाला बाकिर बरतन के ठेठावल जाला. एह ठेठावे में ओकरा के एगो मनचाहा रूप देबे के कोशिश होला. एही से बनल बरतन बनावे वाला के ठठेरा कहल. जे ठोक-पीट के बरतन के सही रूप देला. आ आदमीओ के ठोके वाला इहे चाहेला कि ओकरा के अपना हिसाब से बना देव. इहे सोच के बापो महतारी अपना बचवन के ठोके-ठेठावेले. बाकिर दिक्कत तब होला जब एह ला ठाँव-कुठाँव ना देखे लोग. बिना ठठकल लोग ठनका जस गिरे लागेला. आसमान से गिरे वाला बिजली के ठनका कहल जाला. बाकिर जब आदमी कुछ सोच के ठनक जाव त ओह ठनकल के सावधान होखल कहल जाला. अइसहीं जब कुछ अनचाहा-अनायास हो जाव त आदमी ठिठक जाला, आ तब एकरा के ठठकल कहल जाला. खाली बरतन में जब कुछ डाल के आवाज निकालल जाव त कहल जाला कि ठनठनात बा. आ शायद एही चलते ठन-ठन गोपाल बनल, जे खाली-हाथ खाली-जेब होखे. अब देखीं कि आजु अतने कम जगहा में कतना कुछ ठाँस-ठूस दिहनी. ठाँसल-ठूँसल तब कहल जाला कि जब कम जगहा में बेसी कुछ घुसावल-अँटावल जाला. एही ठाँसल-ठूँसल का चलते नगर महानगर बन जाले सँ आ महानगरन में मुंबई के कवनो जबाब ना ह. मुंबई सही मामिला में मायानगरी हवे. अब ई माया धन के होखे भा पहचान के, सिनेमा के भा रोजगार के. एही माया से खिंचाइल लोग बिहारे-यूपी ना पूरा देश से महानगरन के रुख करेलें आ ई तब से चलत बा जबसे आदमी होश सम्हरले बा. आ आदमिए काहे, जीव-जनावर सगरी ओह दिसाईं रुख कर लेलें जहाँ कुछ भेंटाए के आस होखे. भेंटाइल जरूरी ना होला, आस जरूरी होला. केहु जा के ओहिजे रच बस गइल त दू-चार पुस्त का बाद ओहिजे के हो गइल. आ तब ओकरो बाद में आवे वाला मनई बाहरी बुझाए लागेला. ठीक ओही तरह जइसे रेल का डिब्बा में पहिले घुसल आदमी बाद में घुसे वाला के समुझावेला-धिरावेला कि पहिलहीं से साँसत में जान पड़ल बा तू कहाँ ठूकल आवत बाड़? मुंबईओ वइसने रेल के डब्बा ह. जहाँ “बाप के नाम साग पात बेटा के नाम परोरा” वाला बा. तीन पुस्त पहिले अइनी त हम मुंबईकर हो गइनी तूं काहे आवऽतार?

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अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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