बतकुच्चन २२

by | Aug 9, 2011 | 3 comments

हिन्दी में “कल” के जवन मतलब होखे भोजपुरी में त एकर मतलब बिल्कुले अलग होला. कहल जाले कवनो करवट कल नइखे मिलत. अतना बेकल हो गइल बानी एह कलकानी से कि बुझात नइखे कि का करी. कल मतलब कलपूर्जा वाला कल, कल कारखाना वाला कल, आ साथ ही साथ एकर सबले खास मतलब होला चैन भा शान्ति वाला कल. कलकानी मतलब कोलाहल, बेचैन करे वाला शोरगुल, बेकल करे वाली घटना. आ जब कल के बाति निकलल त सोचे लगनी कि कल कतना शब्दन का साथ जुड़ के अलग अलग मतलब वाला शब्द बना देला. जइसे कि जमकल, सहकल, बहकल, गमकल, धीकल, महकल, चहकल वगैरह वगैरह. आ एही शब्दन में से दू गो जोड़ी कुछ अउरी बतकुच्चन करे लायक सामने आ गइल, सहकल आ बहकल, अउर गमकल आ महकल. कुछ लोग सहक के बहकेला त कुछ लोग बहक के सहकेला. आ सहकल के अधिकता से परीकल हो जाला. आ एही पर एगो कहाउत बनल बा कि परीकऽ ए बिलार, कहियो खइबऽ मूसर के मार. एगो अउरी कहाउत ह जम्हुआ के छूवला के डर ना परीकला के डर होला. सहकलो लोग का साथे इहे होला. सहकावे वाला का बहकावा में आके कुछ लोग दोसरा के तंग करे लागेला. विरोध ना भेंटाव त अउरी हिम्मत बढ़े लागेला आ सहकला के आदत अउरी बिगड़े लागेला. एही सहकला के परीकल कहाला. आ जब केहू परीक जाव त एक ना एक दिन मूसर के मार भेंटाहीं के बा. ई त बाति भइल सहकला आ बहकला के जवना में परीकलो के चरचा आ गइल. बाकिर माथा त तब घूम गइल जब गमकल आ महकल का बारे में सोचे लगनी. गमक आ महक गंध त होला बाकिर ऊ सुगंधे होखे ई जरूरी नइखे. बसाइलो चीझु बतु्स महकेला बाकिर ओह महक के गमक ना कहाव. बसिया के बास सुवास ना लागे. जब केहू के गंध नीमन लागेला त कहल जाला कि का हो आजु बड़ा गमकत बाड़ऽ. बाकिर कहीं कुछ बसात होखे त मुँह से बेबस निकल जाला कि का हो का महकत बा ? एह वाक्यन में तनी गमकल आ महकल के जगहा बदलि के देखीं. रहल बाति चहकल के त चहकल सभका नीमन लागेला, चाहे ऊ चिरई के चहकल होखे भा लड़िकन के. अब चलत बानी. ना त धीकल चाय सेराये चाहत बा.

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3 Comments

  1. dadag

    “kal” parte hi “akal” aa gayel bahut hi achha prasang uThauli hai rauaa

  2. राहुल सिंह

    हमको तो कल पढ़ते ही चांपाकल याद आया सबसे पहले. म्‍युनिस्‍पल की जल आपूर्ति के लिए भी कल आ गइल, कल चल गइल, सुनना मजेदार लगता था. मैं सोचता नल को कल क्‍यों कहा जा रहा है और नल तो वहीं का वहीं है, आ जा कहां रहा है. हम छत्‍तीसगढ़ी में भी कहते हैं- बिकल हो गे, कल नइ परत हे. कलकुत हो जात हे.

  3. चंदन कुमार मिश्र

    बाह! पहिला बेर ध्यान दे के पढ़नी आ लागल कि ई त बड़ा बन्हिया चीज बा। बतकुच्चन के सब अंक देखे के पड़ी अब त। हिन्दी में शब्दों का सफर जेंग बा ओइअसहीं एकरो के बनावल जा सकेला। बाद में किताब का रूप में आ सकेला।

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