बराक ओबामा जी, स्वागत बा राउर !

by | Nov 4, 2010 | 1 comment

– पाण्डेय हरिराम

प्रकाश पर्व के एह अवसर पर राउर स्वागत बा, ओबामा साहब !

भारत अमेरिका के आपसी संबंधन का ताना बाना में कईएक कमजोर रेशन आ करिया दागन का बावजूद भारत रउरा स्वागत में बिछावल लाल कालीन का दुनु तरफ सोनहुला दिया जरावे में कवनो कोर कसर ना राखी. बहुते अंतर्राष्ट्रीय मसलन पर भारत आ अमेरिका का बीच बड़हन मतभेद होखला में कवनो शक सुबहा नइखे, खास कर के हमनी का सबले नजदीकि पड़ोसी का मामिला में. जइसन अमेरिका के विदेश विभाग अकसरहाँ कहेला ओकरा बावजूद ई कहल सही नइखे कि हम दुनु एकही नाव पर सवार बानी जा. एकरा उलट हमनी का इतिहास आ अपना समय का धारा में एके दिशा में बहत जरुर बानी जा. हमनीका स्थायी राष्ट्र हईं जा आ लोकतंत्र पर खाली भरोसे ना करीं जा, बलुक ओह राह पर मजबूती से चलतो बानी जा. भारत के आजादी दिलावे में अमेरिका के भूमिका हमनी का भुलाइल नइखीं जा. जाहिर बा कि आतंकवाद, भारत आ पाकिस्तान में जिहादी सक्रियता, आ दु्निया में पसरल इस्लामी कट्टरपंथ पर दुनु देशन में बातचीत होखी. दुनिया में अमन के सबले बड़ पैरोकार का रूप में एह कट्टरपंथ से लोहा लिहल अमेरिका के जिम्मेदारी बा आ भारत एह जंग में अमेरिका के समर्थन करत बा.

शीतयुद्ध का खतम भइला आ अमरीका का ओरि साफे लउकत झुकाव का बावजूद वाशिंगटन कबहियो निर्गुट आंदोलन के समर्थन ना कइलस, उलटे एकरा के तीसरी दुनिया के कम्युनिष्ट मोर्चा कहत आइलबा. इहो अबहीं सभे नइखे जानत कि अमेरिकी नीति में भारत के वैश्विक सामरिक विचार अमेरिका खातिर फायदेमंद ना मानल जाला. एहसे लागत बा कि अमेरिका में दुसरका विश्वयुद्ध के बाद के चौधराहट के दंभ अबहियो कायम बा. ओबामा साहब, तनि मेहरबानी करि के अमेरिका के एह मनोस्थिति से निकाले में मदद करीं.

१९८० का दशक में अमेरिका आतंकवाद से मुकाबिला करे खातिर भारत के आपन ताकत बढ़ावे में सहायता करे के शुरुआत कइलसि. ओह घरी बंधक समस्या से निपटे में दक्ष बनावे खातिर भारत के खुफिया सुरक्षा एजेन्सियन के अमेरिका बोलावल गइल रहे. ओकरा बाद साल २००१ में साइबर सुरक्षा आ महाविनाश के हथियारन से लैस आतंकवादियन से निपटे के खास ट्रेनिंग दिहल गइल. कहे त कह दिहल गइल कि आतंकवाद से मुकाबिला खातिर भारत आ अमेरिका का बीच खुफिया सूचना के लेन देन शुरु हो गइल बा, बाकिर ई सहयोग कहले भर के बा. २६ नवम्बर का पहिले शायदे अमेरिका कवनो काम के सूचना भारत के दिहले होखे. मुंबई हमला के खबर त ओकरा पाले पहिलही से रहुवे बाकिर ऊ चुप रहल आ हमनी के देश में सैकड़न लोग के जान चलि गइल. अमेरिका पाकिस्तान जइसन दानव के पालत बा आ कहत बा कि आतंकवाद से जंग में ऊ ओकर साथी बा. अमेरिका का एह बाति पर हँसी आवेला.

एकरा के छोट मुँह बड़ बाति मत समुझीं बाकिर बराक ओबामा के भारत यात्रा खाली भारते ना, बलुक दुनिया भर के राजनीति आ शक्ति समीकरण खातिर बहुते खास बा. चीन से आर्थिक युद्ध लड़त ओबामा आखिर भारत से चाहत का बाड़न ? आखिर अमेरिका खातिर भारत के जरुरत का बा ?

बराक ओबामा के भारत यात्रा का ठीक पहिले ई सोचल जरुरी बा कि आखिर ऊ कवन चीज बा जवन हमनी का उनका एह यात्रा से हासिल कइल चाहत बानी जा ? हमनी का ई लगातार देखत बानी जा कि दुनिया में शक्ति के समीकरणन में बहुते तेजी से बदलाव आ रहल बा. अगर हमनी का चाहत बानी जा कि एह बदलावमें हमनिओके हिस्सेदारी होखे त हमनी के ड्राइबिंग सीट पर बइठल होखे के चाहीं. बाकिर हमनी हिन्दुस्तानियन के ड्राइविंग के आदते नइखे.

हमनी का अकसरहाँ सहमतिये के तलाश करत रहीलें, मुकाबिका कइल ना चाहीं. हमनी का “ना” ना कह पाईं, ओकरा जगहा “शायद” कहल हमनी के आदत बनि गइल बा. हमनी का आगा बढ़ि के ताकत के हासिल करे का जगहा ताकत के याचना करे में बेसी यकीन राखीलें. सौभाग्य भा दुर्भाग्य से हमनी का एह समय दुसरका विश्वयुद्ध का बादके सबले बड़का शक्ति संघर्ष का बीचोबीच खाड़ बानी जा. अमेरिका आ चीन का बीचे एगो आर्थिक युद्ध चल रहल बा आ ई युद्ध एके साथ कई गो मोर्चा पर लड़ल जा रहल बा करेंी, जी २०, आयात निर्यात, इहाँ तकले कि सांस्कृतिको मोर्चा पर.

एह घरी के ग्लोबल लड़ाई पहिले का मुकाबिले बेसी महीन, जटिल, आ परिष्कृत हो चुकल बा. पहिले के लड़ाईयन के मकसद रहत रहुवे हमला करऽ आ केहू के जमीन हथिया ल. अब अइसन ना होला. जबले कि रउरा जमीन पर तेल भा आतकियन के मत खोजत होखीं, तब के कवनो भौगोलिक इलाका जीतला के, अपना आधीन कइला के कवनो मतलबे नइखे.

हँ, रउरा अगर कवनो देश के अर्थव्यवस्था जीत के अपना काबू में कर लीं त ऊ बहुते फायदेमंद हो सकेला. जइसन चीन अमेरिका का साथे कइले बा. आजु चीन अमेरिका के चालीस फीसदी ट्रेजरी मार्केट नियन्तरित कर रहल बा. एकर मतलब कि अमेरिका सरकार जवनो कर्ज दे रहल बा, ओकर फंडिंग चीन कर रहल बा. जइसन कि हमनी के मालूम बा अमेरिका सरकार अपना देश के कार्पोरेट्स के फेर से जमावे खातिर अरबो डालर के करजा दे रहल बिया. एही तरह ओहिजा के अर्थव्यवस्था के फेर से जियतार बनावे खातिर जवनो आर्थिक कोशिश कर रहल बा ओकर फंडिग चीन से हो रहल बा. त आखिर का बाति बा कि चीन अमेरिका में अतना बड़हन निवेश कर रहल बा ? एकर दू गो कारण बा. पहिला ई कि चीनी माल के खपत खातिर अमेरिका सबले बड़हन एकलौता उपभोक्ता देश हऽ आ दोसर ई कि अगर चीन अमेरिका के फंडिंग कर रहल बा त ओकरा ओहिजा के उपभोक्ता पर एगो बड़हन आर्थिक वर्चस्व हासिल हो रहल बा.

ई पूरा मामिला कवनो क्रेडिट कार्ड कंपनी का तरह बा जे बहुते तरह के लुभावन चीज बनावेले, जेकरा के देख के राउर मन अउरी खरचा करे के भा अधिका उपभोग करे के होला. माने कि जवन चीजन के रउरा उपभोग कर रहल बानी ओकरा के उहे कंपनी बनवले बा जवना के क्रेडिट कार्ड रउरा इस्तेमाल कर रहल बानी. एह तरह रउरा ओह कंपनी के अउरी कर्जदार होत जात बानी. अइसनका हालात कवनो आदमी खातिर निमन ना कहल जा सके, आ अगर ई हालात कवनो देश का साथे आ रहल बा त एहसे शक्ति के पूरा ग्लोबल समीकरणे बदल जाता.

अइसने हालात में ओबामा आपन एगो लमहर फेहरिस्त ले के, जवन ऊ भारत से चाहत बाड़े, आ रहल बाड़न, एह फेहरिस्त में खुदरा ब्यापार में विदेशी निवेश से शुरु होके भारत के लड़ाकू जहाज बेचल तक, भारत में अमेरिकी कंपनियन के प्रवेश के सुविधा सुनिश्चित कइल, न्यूक्लियर डील करे के, वगैरह मसला शामिल हो सकेला. ऊ चीन का साथे चल रहल आर्थिक लड़ाइयो में भारत के सहयोग चाहत होखिहें.

भारत चीन आ अर्थव्यवस्था के ई कार्ड कइसे चली ? का हमनी के कद अतना बड़ हो चुकल बा कि हमनी का ग्लोबल मंच पर अपना अधिकार के पुरजोर माँग कर सकीलें ? आ की ओबामा का यात्रा से पहिलही हमनी का सब कुछ से पल्ला झाड़ लेहब ? जब अमेरिका आ चीन जइसन दू गो विशालकाय हाथी लड़त होखऽ सँ त हमनी के हालत का होखी ? का हमनी का ओकनी का बीच रौंदाये वाली घास होखब जा आ की एकरा बीच से एगो बिचौलिया मध्यस्थ का तरह खड़ा होखब जा ? मनमोहन सिंह का सोझा ईहे सबले बड़हन सवाल बा. जहाँ तक उम्मीद बा मनमोहन सिंह एही सवालन के जवाब खोजे खातिर हाल के विदेश यात्रा पर निकलल रहलें.


पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ ई लेख उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखले बानी. अँजोरिया के नीति हमेशा से रहल बा कि दोसरा भाषा में लिखल सामग्री के भोजपुरी अनुवाद समय समय पर पाठकन के परोसल जाव आ ओहि नीति का तहत इहो लेख दिहल जा रहल बा. अनुवाद के अशुद्धि खातिर अँजोरिये जिम्मेवार होखी.

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(1)


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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

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रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


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एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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