भोजपुरियत के प्रतिनिधि: डॉ0 कृष्ण बिहारी मिश्र

by | Jan 29, 2018 | 0 comments

– प्रमोद कुमार तिवारी

भोजपुरिया माटी में कुछ त अइसन बा, जवना से एह इलाका के साहित्यकारन में ललित भाव के रस छलके लागेला, कुछ तऽ अइसन बा कि जे भी आपन बचपन भोजपुरिया इलाका में बितवले बा, ऊ पूरा जिनगी भोजपुरी लोक के रस में भींजत रहेला। एह माटी में अइसन का बा, जवना से साहित्य के फुलवारी के अलगे तरह के संजीवनी भेंटाला अउर ऊ अलगे ढंग से लहलहा जाले। आखिर का कारण बा कि ज्यादातर भाषाविद् आ ललित निबंधकार एही माटी से निकललन। काहें ‘अज्ञेयजी’ से ले के शिवप्रसाद सिंह जब कृष्ण बिहारी मिश्र प लिखे चलले तऽ पूर्वांचल के जिक्र जरूर कइले। कुछ त कारण होखी कि जब रामदरस मिश्र उनका प लेख लिखले त शीर्षक दिहले – ‘डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र कोलकाता में गांव’। शिवप्रसाद जी जब कृष्ण बिहारी मिश्र के चर्चा करेले त एह माटी के चर्चा करत हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, विवेकी राय आदि के सूची गिनावे के साथे एह इलाका के विशेषता बतावे लागेले। हम अगर एक शब्दह में एकरा के समेट के कहीं त एह भाव के भोजपुरियत कहल चाहब।

आपन माई, आपन बोली सबका के मीठ लागेले बाकिर ई बात माने में संदेह ना होखे के चाही भोजपुरिया माटी में कुछ खास बा, इहां के विरहा, चइता, फाग से ले के तमाम प्रकार के लोक गीत, कथा इहां बचपन गुजारेवाला लोग के चेतन अवचेतन में भीतर तक ले पइसल रहेला आ जब ऊ लोग कुछ लिखे चलेले कवनो ना कवनो रूप में ऊ आपन असर देखावे लागेला। भाव आ संबंध के जीए वाला भोजपुरिया समाज गंभीर से गंभीर बौद्धिक गतिविधि में भी रस तत्व खोज लेबेला। आखिर का कारण बा कि निबंध जइसन ठेठ बौद्धिक विधा चुनेवाला कृष्ण बिहारी मिश्र ललित तत्व से दूरी ना बना पवलन। कलकत्ता जइसन बौद्धिक शहर में केहू सबसे जादा उहां के रुचल त ऊ भाव के सबसे जादे महत्व देबेवाला रामकृष्ण परमहंस रहले। भोजपुरी के बारे में अपना एगो लेख ‘भोजपुरी धरती और लोक राग’ में मिश्र जी लिखले बानीं, ‘भोजपुरी धरती, हवा, पानी ने मुझे चलना-बोलना सिखाया है, ‘अँखफोर’ बनाया है लोक चक्षु से चक्षु मिलाने की संवेदना और शक्ति दी है। इसलिए इसे जब कोई अन्यथा दृष्टि से निहारता है तो अनायास मेरा स्वारभिमान उत्तेजित हो जाता है।’

कहे के जरूरत नइखे कि संवेदनशीलता आ स्वाभिमान भोजपुरिया माटी के पहिचान ह आ एह दूनो के दुर्लभ संगम मिश्र जी में लउकेला। एक ओरी तरल भावबोध से भरल ‘कल्प तरु की उत्सव लीला’ जइसन पुस्तक लिखेवाला आ अपना आप के उलीच देबेवाला सरल हृदयी मन के प्रमाण मिलेला त दुसरका ओर भारतीय भाषा परिषद के मजदूरन के लड़ाई खातिर एकदम अड़ जाएवाला लाठीवाला जोर लउकेला। कृष्ण बिहारी मिश्र के विपुल साहित्य एह बात के गवाही दे रहल बा कि बहुत लगन आ समर्पण से उहां के आपन निर्माण खुद कइले बानीं आ लगातार अपना आप के निखारत गइल बानीं। बात चाहे गांव के स्कूल से ले के काशी हिन्दू विश्व विद्यालय आ कलकत्ता विश्वविद्यालय जइसन संस्था्न तक के यात्रा होखे चाहे आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी जइसन प्रकांड पंडित लोग के नेह के पात्र बने के योग्यता के होखे। कृष्ण बिहारी मिश्र जी आपन एगो अलग लकीर खिंचनी।

ई सही बा कि मिसिर जी के लेखन के भाषा हिन्दी रहल बिया बाकिर भाषा के भीतर प्राणतत्व के रूप में भोजपुरिया भावबोध के भरपूर प्रवाह के बहुत आसानी से देखल जा सकत बा। उहां के विपुल आ बहुरुपी साहित्य भोजपुरिया लोग खातिर गर्व के बात बा। विद्वत समाज मिश्र जी के लगन के भरपूर सम्मान देत रहल बा। ज्ञानपीठ के ‘मूर्तिदेवी पुरस्कासर’, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के‘ साहित्य भूषण’ सम्मान से लिहले डीलिट् आदि के मानद उपाधि तक उहां के विद्वता के रेखांकित करत रहल बाड़ी स। संस्था आदि के सम्मान अपना जगह प बा बाकिर जवना घरी उहां के मूर्तिदेवी सम्माान दीहल जात रहे तब भारी संख्या में उमड़ के कोलकाता के जनता, मिश्र जी के जवन सम्मान दिहलस ऊ बहुत कम साहित्यहकारन के नसीब हो पावेला।


भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के सितम्बर 2017 अंक से साभार


गुजरात केंद्रीय विश्विविद्यालय, गांधीनगर

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(4)

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(7)
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