भोजपुरिया समाज : कब बदली तेवर

by | Sep 28, 2017 | 0 comments

– भगवती प्रसाद द्विवेदी

भोजपुरिया समाज शुरूए से कबो ना थाकेवाली मेहनत, जीवटता, संघर्षशीलता, अपना दम-खम आउर बल-बेंवत का बदउलत मनमाफिक मुकाम हासिल करे खातिर जानल जाला। ‘कर बहियाँ-बल आपनो, छाड़ि बिरानी आस’ इहवाँ के मनई के मूल मंतर रहल बा। तबे नू, खाली देसे में ना, बलुक विदेसो में गिरमिटिया मजूर बनाके जवना लोगन के भेजल गइल, उहे लोग उहाँ के झाड़-झंखाड़, ऊसर-बंजर आ बिरानी के खून-पसेना के गमक से, लहलहात हरियाली-खुशहाली से लबालब भरि दिहल आउर तमाम तरह के साँसत सहत ना सिरिफ आपन पहिचान बरकरार राखल, बलुक उहाँ के सभसे बड़हन पद-पदवियो पावे में कामयाब भइल। किछु लोग इहो कहेला कि भोजपुरियन के लाठी आ लंठई मशहूर हऽ। बाकिर इहो सोरह आना साँच बा कि एकर इस्तेमाल ऊ दबदबा कायम करे में ना, देश समाज के हक में क्रान्ति के बिगुल बजावे बदे करत आइल बाड़न। राष्ट्र के आजादी में भोजपुरियन के तेयाग-बलिदान आ सभ किछु होम करें के दियानत के कइसे भुलाइल जा सकत बा ! कोई बड़-छोट कहत अपराधू ! हे ओजह रहे जे देस के आजाद होखे का पलिहीं आरा आ बलिया जिला आजादी के जसन मना चुकल रहें। जन-जन के जगावे आ देश-प्रेम के भाव भरे में रघुबीर नारायण के ’बटोहिया’ गीत-’सुन्दर सुभूमि भइया भारत के देसवा से, मोर प्रान बसे हिमखोह रे बटोहिया’ अगहर आ ऐतिहासिक भूमिका निभवले रहे। दोसरकी अजादी दिअवावे में अगुवाई करे वाला जयप्रकाश नारायण के लोकनायकत्व सऊँसे संसार में चरचा में रहे। सबसे पहिले दलित समाज के दयनीयता के तसबीर उकेरे में हीरा डोम के कविता ’एगो अछूत के शिकायत’ कबो बिसरावल ना जा सके।

बाकिर एकइसवीं सदी के भूमण्डलीकृत बाजारवादी दौर में भोजपुरिया समाज के तेवर तब्दील हो रहल बा, सोच के दिशा, विकास के नाप-जोख के पैमाना बदल रहल बा। ’हम कौन थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी’ वाला सवाल आजु आत्ममंथन खातिर अलचार करल बा। प्रश्न इहो बा, वर्तमान बदलाव कतना सकारात्मक बा आ कतना नकारात्मक? पहिले एक तथ के पड़ताल जरूरी बुझात बा कि पिछिलका बीसवीं सदी में भोजपुरिया समाज के दशा आ दिशा का रहे ?

बाबा साहेब डॉ0 भीमराव आंबेडकर के कहनाम रहे कि ’हम कवनो समाज के तरक्की ओह समुदाय के औरतन के तरक्की से नापेलीं।’’ आई देखल जाउ जे ओह घरी भोजपुरिया समाज में मेहरारून के का हाल रहे। सैतालीस ले, ओने देस गुलामी के बेड़ी में जकड़न रहे, एने मेहरारू पुरूष प्रधान समाज में त्रासद आ दयनीय जिनिगी जीए खातिर मजबूर रहली। ताजिनिगी नारी के हैसियत बाजार के माल आ बेजान चीजु-बतुस से अधिका किछु ना रहे। जनमे से ओह लोग का संगे सौतेला बेवहार कइल जात रहे। होश सम्हारते लइकी के चूल्हा-चउका का घरेलू काम-काज में अझुरा दिहल जात रहे। बाल विवाह के रिवाज रहे आ अक्सरहाँ मजबूरी में, कमसिन किशोरी के कवनो बूढ़ मरद के हाथ में सउँपि के महतारी-बाप चैन के साँस लेत रहलन। बेटी बेचिके धन कमाए के चलनो रहे आ धन के बदउलत बूढ़-अपाहिज पुरूषो कवनो सुकवार कनिया के अर्धागिनी बना के खुद के गौरवान्वित महसूसत रहलन। नतीजतन, बूढ़ मरद त किछुए दिन में परलोक सिधारि जात रहलन, बाकिर ताजिनिगी रोवल-कलपल बेचारी बेवा के नियति बनि जात रहे। अगर विधुर के मरजी होखे, त ऊ कई बेर बियाह करि सकत रहे, बाकिर विधवा-बियाह पर सख्त पाबन्दी रहे। त्रिशंकु-अस बेवा के जिनिगी ओह कुकुर नियर होत रहे, वन ना घर के होला, ना घाट के। ना ससुरा में जगह, ना नैहरें में। बियाह-गवना कराके नवकी दुलहिन के गाँवें में छोड़ि के पति रोजी-रोटी के फिकिर में नगर-महानगर में निकल जात रहें आ कबों-कबों उहँवें दोसर बियाहों रचा लेत रहें। एह तरी जायज आ जारज दूगो बियाहता नारकीय जिनिगी जीए खातिर बेबस हो जात रहली। ओने गाँव में मरद के इंतजार करत मेहरारू बड़मुँहवा लोगन के हवस के शिकारो हो जात रहे। कुल्हि मिलाके, नारी के जीवन के पर्याय बनि के रहि गइल रहे। ओहू पर तुर्रा ई कि बेटा भइला पर खुशहाली में नाच-सोहर के इन्द्रधनुषी आलम, बाकिर बेटी के जनमते विपदा के मातमी लहर। मरदन के खाए-कमाए के अनगिनत राह, बाकिर परदा में खूँटा में बन्हाइल गाय-अस स्त्री खातिर सभ केवाड़ बन्न। ओही समाज के चित्रित करत भिखारी ठाकुर ’बिदेसिया’ नाटक के सिरिजना कइलन आ महापंडित राहुल सांकृल्यापन ’मेहरारून के दुरदसा’ के नाटक में राहुल बाबा के गीत झकझोरि के राखि देले रहे – ओह घरी के गँवई भोजपुरिया समाज में अशिक्षा के बोलबाला रहे। शराब के, नशाखोरी के लत परिवारवालन के तबाह कके ध देले रहे। पहिले जमीदारन के, आगा चलि के सांमती दमन-चक्र आ दलित वर्ग के उत्पीड़न। तीरथ-बरत, मेला, गंगा में अबला के आबरू का सँगे खेलवाड़। कुल्हि मिलके, सामाजिक कुरीति आ अंधविश्वास के शिकार भोजपुरिया समाज।

आजु के समकालीन भोजपुरिया समाज का ढाँचा आ बात-व्यवहार में किसिम-किसिम के बदलाव नजर आवत बा। अशिक्षा आ सेहत पर किछु हद ले कामयाबी हासिल भइल बा। लड़किनियों के पढ़ाई लिखाई पर लोग फिकिरमंद भइल बा, बाकिर तिलक-दहेज के मोट रकम उगाहे खातिर बेटा के बिक्री बदस्तूर जारी बा। नारी सशक्तीकरण के दिर्साइं लरिकी परदा के बहरी आके आपन मुकामो हासिल करि रहल बाड़ी स, पुरूष प्रधान समाज के नजरिया में कवनों बदलाव नजर नइखे आवत। इहे कारन बा कि भोजपुरिया समाज के अनगिनत हुनरमंद ’दामिनी’ समाज के दरिंदन के सामूहिक दुष्कर्म के शिकार हो रहल बाड़ी स। ना त नारी के प्रति सम्मान के भाव लउकते बा, ना बड़-बुजुर्गे खातिर। नाप जोख के तरजूई धन दउलत हो गइल बा आ एही ’अर्थ खातिर मए अनर्थ हो रहल बा। सामूहिकता आ सामाजिकता के भाव के खतम हो जा रहल बा आउर संयुक्त परिवार एकल परिवार में विघटित हो चुकल बा। सामाजिक – सांस्कृतिक-नैतिक-राजनैतिक मूल्य छरित हो रहल बाड़न स आ ईमानदारी-सच्चाई नियर अच्छाइयन पर तरह-तरह के बुराई हावी हो रहल बाड़ी स। सादा जीवन, उच्च विचार कि कवनो मोल नइखे रहि गइल। समरथ लोग दबंगई पर उतरि आइल बा आ उदारता का जगहा सवारथ, आडम्बर, देखावा जिनिगी के मकसद बनि गइल बा। तबे नू, अपना माई आ महतारी भाषा खातिर ऊ नेह-छोह आ सगरपन नइखे झलकत। नतीजनत, लमहर समय से ’’भोजपुरी’’ के आठवी अनुसूची में शामिल होखे खातिर बाट जोहे के परि रहल बा।

समकालीन भोजपुरिया समाज के बदलत तेवर कई गो सवाल खड़ा करत बा। विकास आ समृद्धि का सँगें आखिर ओकर मानवीय चेहरा कब शामिल होई? अपना हक-समरथ का साथे सामाजिक हक-हुकूम खातिर हमनी के कब आगा आइब जा? अपना महतारी भाषा खातिर कब सही मानें में नेह-छोह के भाव जागी? का भोजपुरिया बेटी दामिनी जइसन लड़किन के बलिदान अकारथ जाई? आखिर नारी-शिक्षा, सशक्तीकरण कासँगहीं समाज नारी का प्रति सम्मान के भाव, समानता के भाव कब अंगीकार करी? का लोक आ सामूहिकता से कटि के भोजपुरिया मनई कबो सच्चा सुख आ अमन चैन हासिल क पाई? आखिर कब भोजपुरिया समाज सामाजिक समरसता मानवीयता आ प्रगतिशील सोच के जियतार दरपन बनि पाई? फिलिम आ गायकी के जरिए भोजपुरी के नाँव पर भासाई घालमेल, फूहड़ता आ अश्लीलता परोसे वालन के खिलाफ भोजपुरिया समाज कब अपना सजगता के परिचय दी?

आजु भोजपुरिया समाज के एह सवालन पर, बदलाव पर बदलाव खातिर सोचे-विचारे, चिंतन, आत्ममंथन करे के समय आ गइल बा। नींन तूरीं आ एक-दोसरा के जगावे के दिसाई रचनात्मक पहल करीं। अपना व्यवहार आ आचरन से एह समाज के ऊँचा स्थान दियावे में जोगदान दीं।


शकुंतला भवन, सीताशरण लेन, मीनापुर,
पोस्ट बॉक्स 115, पटना


भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के सितम्बर 2017 अंक से साभार

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(3)


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(4)

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(7)
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