मऊ के साँच रामलीला

by | Oct 9, 2010 | 0 comments

– आर्य सम्पूर्णानन्द

शारदीय नवरात्र शुरु होखते जगहे-जगह रामलीला के मंचन शुरु हो जाले अउर दशमी के रावण के मार के दशहरा खूवे धूम धाम से मनावल जाला बाकिर आईं रउआ सभे के मऊ के साँच अउर अलौकिक रामलीला के दर्शन करायीं आ रामजी के बास्तविक लीला के जगहन का बारे में परिचय करायीं.

संस्कृत के सूत्र के मानीं त अन्त्येत्यादि संहिता. माने कि शुरु अउर अंत मिला के संहिता के निर्माण होला. यानि कि ई कहीं कि कवनो घटनाक्रम के शुरुआत आ अन्त मिला दिहीं त पूरा घटनाक्रम के पता चलि जाई. एही तरह से रामायणो के कुछ शुरुआत के घटना अउर कुछ बाद के घटना मऊए का धरती पर रचल गइल.

मऊ पहिले अवध राज का अन्दर आवत रहे. जिला के उत्तरी सीमा पर पुण्य सलिला सरजू जी के प्रवाह बा. ए जगह के दोहरीघाट कहल जाले. दोहरीघाट के अलग अलग कइले पर दो हरि शब्द मिलेला जेकरा बारे में कई राय बा कि भगवान राम अउर जानकी जी के बिआह भइला पर वापिस लवटत घरी क्रोध से भरल परशुराम जी आ शील-भक्ति-सौन्दर्य से युक्त रामजी, दुनो के मिलन एहीजे भइल रहे. एही से एकर नाम दोहरीघाट कहल गइल.

दोहरीघाट से आगा बढ़ला पर एगो जगह पड़ेला जेकरा नाम सूरजपुर बा. सूरजपुर गाँव के अयोध्या के अन्तिम सीमा मानल गइल बा. एही जगहा अयोध्या के दसवां फाटक रहल जेकरा के अलफटकी घाट कहल गइल ह. एहीजे से महाराजा दशरथ श्रवन कुमार के तीर मरले रहले. फटकिये घाट से मात्र दस कदम दूरौ पर आजुवो एगो पीपर के पेड़ बा जेकरा बारे में कहल जाले कि एही जगह पर श्रवण कुमार के आन्हर माता-पिता श्रवण का वियोग में कलपि-कलपि के राजा दशरथ के श्राप दिहले रहले आ आपन शरीर छोड़ दिहले रहले. दशरथ जी जहाँ से तीर चलवले रहले ऊ जगह के आजु सरफोरा के नाम से जानल जाला जवन कि सरछोड़ा के बदलल रूप बा. एहिजा जंगल के जीव जन्तु पानी पियत रहले अउरी श्रवण कुमार एहीजे आपन कमण्डल डुबवले रहले जेकर गुड़ुप-गुड़ुप के आवाज सुनि के राजा दशरथ उनका पर वाण चला दिहले अउर आन्हर माई-बाप के श्राप का चलते राजा दशरथो के पुत्र वियोग के कष्ट झेले के पड़ल. यानि कि एकरा के अइसे समुझीं कि भगवान राम के वन गमन के पेनी एहीजे छानल गइल रहे.

अयोध्या से राम लक्ष्मण अउरी सीता जी के ले के सुमन्त्र जी एही राह से गइल रहले. मऊ का घोसी से मुहम्मदाबाद गोहना जाये वाली सड़क पर नदवासराय एगो जगह पड़ेला जहाँ देवलास नाम के एगो जगहा बा. देवलास मे जगहे जगहे मंदिर देखे के मिली. आजु के तमसा ओ समय एहीजे से हो के बहत रहे जवन धीरे-धीरे आपन राह बदलि के मौजूदा जगहा आ गइल बा. देवलास में साँझ हो गइला का चलते ओहिजे अयोध्यावासिन का साथे रुक गइल रहे लोग अउरी भोर में सबका के सूतले छोड़ि के रामजी चुपचाप लक्ष्मण अउर सीता के साथ ले के आगे बढ़ि गइले.

एकरा बाद के सगरी लीला दोसरे जगहन पर भइल बा काहे कि रामजी मऊ का बाद आगे चलि गइल रहले. वन-वन भटकले, सूपनखा के नाक कटले, सीता-हरण भइल, राम-रावण युद्ध भइल आ बाद में जीत के भगवान राम अयोध्या लवटि अइले. एह तरह से रामराज बैठे त्रिलोका के चरितार्थ कइले. समय बीतल अउरी एगो धोबी के कुछ शब्द कहि दिहला पर सीता माता के लक्ष्मण का साथे जंगल में छोड़वा दिहले. कहल जाला कि लक्ष्मणजी जहाँ सीता के छोड़ले ओहिजे महर्षि वाल्मीकि के आश्रम रहे जवन एही मऊ में रहल. एही जा एगो जगहा बा जवनाके बनदेवी कहल जाले आ लोक मान्यता बा कि अपना पतिव्रत के पालन करत सीता जी एही जगहा लव कुश के जनम दिहली. खोजले पर प्रमाण मिल जाले. जइसे कि एहीजा कुश के नाम से कुशमौर पड़ल बा अउरी लव का नाम से लवहाटिकट. एहीजा से दक्खिनपश्चिम का कोन पर एगो जगहा बा रामबन जेकरा बारे में सुने के मिलेला कि एहीजा अश्वमेध के घोड़ा पकड़ लिहला पर लव आ कुश का साथे रामजी के युद्ध भइल रहल.

ओह युद्ध का बाद रामलीला के पटाक्षेप त हो गइल बाकिर ओह पवित्र जगहा के आजुवो बड़ा श्रद्धा से पूजल जाला. पूरा नवरात्र वनदेवी धाम में लोग देवी जी के पूजा अर्चना करे खातिर दूर-दूर से आवेले. अउर मनौती माँगे ले. आईं हमनियो के वनदेवी धाम चलल जाव अउर देवी जी से अपना सुख अउर शान्ति के कामना कइल जाव.

जय माँ वनदेवी !


सम्पूर्णानन्द दूबे जी एगो पत्रकार हईं. उहाँ के अपना बारे में जवन बतवनी ओकरा के हम एगो अलगे लेख के रुप दे दिहनी.

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