राजस्थानी का बहाने भोजपुरी के चिन्तन

by | May 26, 2011 | 6 comments

भोजपुरी आ राजस्थानी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करे के चरचा ढेर दिन से चल रहल बा. भोजपुरी त वइसन टुअर हिय जेकर कवनो माई बाप नइखे. कवनो राज्य नइखे जे भोजपुरी के लड़ाई लड़ि सको. संजोग से राजस्थानी के लड़ाई लड़े खातिर राजस्थान सरकार मौजूद बिया. एह पर सोचल जा सकेला कि राजस्थानी के आठवीं अनुसुची में शामिल करावल आसान होखी. बाकिर राजस्थानो में अपने में विवाद चल रहल बा. राजस्थान के एगो बड़हन इलाका में राजस्थानी ना बोलल जाव आ ऊ लोग सरकार के एह फैसला के विरोध कर रहल बा जवना में राजस्थानी के राजस्थान राज्य में सरकारी भाषा के रुप में मान्यता दिहल गइल बा.

सरकार के एह फैसला से उदयपुर जयपुर आ पश्चिमी राजस्थान के लोग त सहमत बा बाकिर सांसद सीसराम ओला आ भरतपुर से सांसद रतन सिंह सरकार के एह फैसला का खिलाफ झंडा उठा के खड़ा हो गइल बाड़े. ओह लोग के कहना बा कि एह फैसला के भरपूर विरोध कइल जाई. काहे कि एह फैसला से शेखावती, बागड़ी, मेवाती, मेवारी, बृज आ दोसर भाषा के नुकसान होखी. कहल त इहाँ तक जा रहल बा कि जवना भाषा के राज्य के अधिकांश नागरिक ना जानस ना बोलस ओह भाषा के राजस्थानी कइसे कह दिहल जाई.

भाषा विवाद के एह हालात में एगो बढ़िया खबर बंगाल से आइल बा जहाँ हिन्दी के अल्पसंख्यक भाषा के मान्यता दे दिहल गइल बा. अपना अल्पसंख्यक राजनीति का चलते वाम मोर्चा सरकार उर्दू के त अल्पसंख्यक भाषा के मान्यता आ सुविधा दे दिहले रहल बाकिर गैर बंगाला भाषी अल्पसंख्यकन के अनदेखी कर दिहलसि. ममता बनर्जी के ई फैसला स्वागत योग्य बा जवना में हिन्दी, गोरखा, नेपाली, गुरुमुखी वगैरह के अल्पसंख्यक भाषा के मान्यता दे के भाषायी अल्पसंख्यकन के हित के ध्यान राखल गइल बा.

जहाँ तक बात रहल भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल करावे के त एह मामिला में लफ्फाजी आ राजनीति बेसी हो रहल बा काम के बात कम. रह रह के कुछ दिन पर भोजपुरी के मान्यता के सवाल अलग अलग मंच पर उठावल जरुर जा रहल बा बाकिर कवनो संस्था योजना बना के भोजपुरी के विकास खातिर कुछ करत होखे से नइखे लउकत. भोजपुरी में संस्था आ समाजन के कमी नइखे बाकिर अधिकतर के मकसद प्रचारोन्मुखी बा. भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के प्रचार प्रसार का दिशा में कवनो खास काम नइखे होत. कहल जात बा कि एक बार भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करा लिहल गइल त भोजपुरी में पढ़ाई लिखाई आ सरकारी काम काज होखे लागी. पढ़ाई लिखाई इ आजुवो भोजपुरी में हो रहल बा. रहल बात काम काज के त ऊ त समहर तरीका से हिन्दीओ में नइखे हो पावत.

अँजोरिया का माध्यम से हर बार सवाल उठाइले कि जवना भाषा के आपन एगो अखबार तक ना होखे आजु का जमाना में ओह भाषा के राजनीतिक शक्ति अतना ना बन सके कि नेता लोग ओह पर ध्यान दे सकस. भोजपुरी के कवनो पत्र पत्रिको एह हालत में नइखे कि ऊ विदेश त छोड़ीं, देश के हर हिस्सा में पसरल भोजपुरियन तक चहुँपत होखे. अब कहल इहो जा सकेला कि आजु का जमाना में हिन्दी पत्रकारिता आ प्रकाशनो के कमोबेस अइसने हालत बा. लोग किताब पढ़े के आदत छोड़ले जात बा. बाकिर हिन्दी में नेट प्रकाशन के कवनो कमी नइखे. हजारो लाखो का संख्या में लोग ओह साइटन पर जाला. पूरा दुनिया में करोड़ो भोजपुरिया रोजे नेट पर आवत जात होखीहें बाकिर भोजपुरी से पाँचो सेकण्ड के लगाव रहीत त हालत दोसर रहीत. दोसरा साइटन का बारे में त हम ना बता सकीं बाकिर अँजोरिया दुनिया भर में पसरला का बावजूद एहिजा मूश्किल से रोजाना एक हजार पाठक का लगभग चहुँपेले.

भोजपुरी के हालत में बहुत सुधार होखे के उम्मीद तबले ना कइल जा सके जबले एहिजा नौ गो कन्नौजिया तेरह गो चूल्हा वाला हालत में बदलाव ना आई. भोजपुरियन में सबले बड़का कमी एका के बा. हमनी के ताकत दोसरा के टाँग खिंचाई में बेसी जाया होले दोसरा के बढ़ावा देबे में कम. अधिकतर सक्रिय लोग के रुचि एह बात में बेसी होला कि ओहलोग के खबर छप जाव, फोटो छप जाव. कुछ प्रचार मिल जाव. उहे लोग अगर मिल बइठ के एगो समावेशी संगठन बना लिहते जवना में हर भोजपुरिया ना त बेसी से बेसी भोजपुरियन के हित सधे त ऊ सबले बड़हन बात होखीत. आ तब मिले वाला प्रचार खातिर प्रयास करे के जरुरत ना पड़ीत.

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6 Comments

  1. DEEPAK CHANDRA S/O D C GUPTA

    O P BHAIA
    NAMSKAR
    HAME BAHUT GARV BA KI HAM SABHI BHOJPURIA MATI BHAGI BALLIA KE HAI JA
    ” JAI BHIRGU BABA BAGI BALLIA KI JAI ”

    AAP KA

    DEEPAK CHANDRA
    S/O SHRI D C GUPTA
    A/P- VIDYA VHAWAN NARAIANPUR
    DIST- BALLIA (UP)277213

  2. Hanvant

    कुछ लोग अपने नीजी स्वार्थ के लिये राजस्थानी का विरोध कर रहे है और इसको हवा दे रहे है। भासाविग्यान के अनुसार शेखावती, बागड़ी, मेवाती, मेवाड़ी, मारवाड़ी, माळवी (और भी बहुत सारी) एक ही भाषा की बोलियां है। भाषा और बोली का फर्क जानते हुये ये लोग सिर्फ स्वार्थ कि राजनिती कर रहे है।

  3. चंदन कुमार मिश्र

    हमरा एगो बात समझ में नइखे आवत कि भोजपुरी बोले आला लोग के संख्या 20 करोड़ कइसे हो गइल? एमें सच्चाई बा, ई सन्देहे बा। अभी हम अंग्रेजी के खिलाफ किताब लिखे में ब्यस्त बानी आ ओमे भाषा आ बोले आला लोग के संख्या पर मेहनत कइनी त ई झूठे लागता कि बीस करोड़ लोग भोजपुरी बोले आला बा। हम अपना किताब एक जगह ई बात लिख देले रहनी बाकिर बाद में हटावे के पड़ल काहे कि ई बात साँच नइखे लागत। हँ, भोजपुरिया लोग अधिक से अधिक आठ-दस करोड़ बा (हमरा बिचार आ अध्ययन से)। भोजपुरी के मोह से ग्रस्त होके झूठ आ अतिशयोक्ति कहल-बोलल ठीक नइखे।

    संतोष पटेल जी के बात ‘हिंदी के अंग्रेजी के डराए के चाहीं नाकि भोजपुरी से ….’ पर कुछ कहल जरूरी बा। हम भोजपुरी भाषी बानी, हमार मातृभाषा भोजपुरी बा लेकिन हमरा खातिर हिन्दी आ राष्ट्रभाषा पहिले बा लेकिन हम भोजपुरी के दबावल बरदाश्त कइसे कर सकतानी? ई बात समझ में आवे के चाहीं कि हिन्दी आ भोजपुरिए ना सभ भारतीय भाषा के अंग्रेजी से खतरा बा। हँ, ई बात सही बा कि हिन्दी के भोजपुरी से कवनो खतरा नइखे। ऊ त हिन्दी के फायदा पहुँचाई।

    बाकी बाद में………

    चंदन

  4. santosh kumar

    “नौ गो कन्नौजिया तेरह गो चूल्हा”
    आदरणीय ओ.पी. सिंह भैया
    प्रणाम
    बहुत सुन्दर आलेख इहाँ दिहल गईल बा हमहूँ कुछु लिखे के चाहेब काहे से की हमहूँ ई आन्दोलन के हिस्सा बानी. एहसे ई हमार कर्तव्य बनत बा की हम राउर उठावल सवालन के जबाब दिही :-

    १. ई राउर लिखल उचित नइखे लागत की भोजपुरी के केहू माई बाप नइखे, जहाँ तक राज्य सरकार के सवाल बा बिहार सरकार आपन विधान सभा से ई बाबत विधेयक पास करा के केंद्र सरकार के पाला में २००५ में ही डाल देले बिया. रह गईल सवाल भारत सरकार के त उ बिहार आ उत्तर प्रदेश में आपन राजनितिक जमीं देखत बिया.बिहार सरकार पहिला राज्य बा जहवां भोजपुरी अकादेमी बा जवन डॉ. रविकांत दुबे के देख रेख में खूब बढ़िया काम करत बिया.साहित्य से लेके सांस्कृतिक तक.सीताकांत महापात्रा समिति केंद्र सरकार के अपन रिपोर्ट में साफ साफ भोजपुरी के 8 वी अनुसूची में सामिल करावे के अनुसंशा कईले बा. बिहार सरकार के दबाब बा की पटना रेडिओ स्टेसन से भोजपुरी के कार्यक्रम नियमित रूप से प्रकाशित हो रहल बा.
    बिहार के राज्य शिक्षण एव अनुसन्धान केंद्र से पाच क्लास से लेके बारह तक के कोर्स बन गइल बा आ स्कूल में लग गईल बा.इंटर , बी.ऐ.एम. ऐ तक के पढ़ाई बिहार के अलग अलग विश्वविद्यालय से हो रहल बिया.बी.ऐ आ पी.एच.-डी, भोजपुरी बिहार विश्वविद्यला, मुज्ज़फरपुर में हो रहल बा. कुंवर सिंह विश्वविद्यलय, आरा से बी. ऐ., एम.ऐ. आ पी.एच.-डी, भोजपुरी में हो रहल बा उहें छपरा के जय प्रकाश विश्वविद्यालय से भोजपुरी के तमाम पाठक्रम चल रहल बा. दूरस्थ पाठक्रम के माध्यम से नालंदा ओपन विश्वविद्यालय से भोजपुरी के बी. ऐ., एम.ऐ, डिप्लोमा, सरटीफिकेट कोर्स चल रहल बा. चुकिं भोजपुरी आ कोंव्नो भाषा में आठवी अनुशुची में भारत सरकार के गृह मंत्रालय के मामला बा त कोव्नो राज्य सरकार का दोष दिहल जाये.राजस्थान में बिहार आ यूपी जैसन स्तिथि बा जहवा हर क्षेत्र में आपन आपन भाषा आ संस्कृति बा. भोजपुरी के विरोध बिहार में मैथली वाला लोग ना करत बा का? उहे लोगन के कारगुजारी बा की २० करोड़ के भाषा भाषा के ऊपर लगभग २ से कमे करोड़ लोग मैथली भाषी राज करत बाड़े.भोजपुरी के विरोध मगही, अंगिका भा वज्जिका भी करत बा ओसे हमनी के तगड बढ़त बा कम नइखे हॉट.

    हर तरह के संस्था बा जैसन हर तरह के भोजपुरी क वेबसाईट बा व्यक्तिवादी, प्रचारवादी आ कुछु पुरस्करवादी.लेकिन हर संस्था आ वेबसाइट भा मगज़ीन, पत्र -पत्रिका आदि लोग आपना खर्चा से भोजपुरी के सेवा करत बा. देखि भोजपुरी साहित्यकार के जज्बा की उ आपन पेट काट के, बल बच्चन के सुविधा काट के, जमीं बेच के, मेहरारू के गहना बेच के, आपन वेतन से किताब छपवा के भोजपुरी के सेवा करत बनी सभे आ मुफ्त में सबके बाँट के भोजपुरी भाषा के ई वैश्वीकरण के दौर में धावक बना के रखले बाड़े.

    हिंदी के लोग त खुदे भोजपुरी के विरोध करत बा की आठवी अनुशुची में शामिल भईला से हिंदी कमजोर हो जाई. ई लोगन के मानल बा की भोजपुरी हिंदी के अंग बा आ अगर उ निकल जाई त हिंदी के इतिश्री निश्चित बा …. त रउरा बता सके नि की भोजपुरी के एगो कविता भा कहानी भा कवनो आलेख में हिंदी के पाठ में ना रखल गईल. पटना विश्वविधालय के हिंदी विभाग के विरोध के कारन बी.ए. के हिंदी पाठ्य क्रम से रघुवीर नारायण के बटोहिया गीत निकल के फेक दिहल गइल.

    हां, ई हम जरुर मानब की साहित्य अकादमी में २२ भाषा के आलावे राजस्थानी के स्थान बा आ के.के बिडला फौंउडेसन से राजस्थानी भाषा खातिर पुरस्कार दिहल जाला. हलाकि भोजपुरी खातिर बिहार भोजपुरी अकादेमी आ मैथली आ भोजपुरी अकादमी दिल्ली से भी भोजपुरी सेवी के सम्मान दिहल जाये के वेवस्था भइल बा लेकिन केंद्र सरकार आ कवनो उद्योगिक घराना के ई भाषा के संरक्षण खातिर कोंवो प्रयास नइखे भइल.

    देखि भोजपुरी के सरकारी कामकाज त संभव नइखे बाकिर सिमित मात्र में हो सकेला.हमनी हिंदी के विरोध में न रहे की चाहीं काहे की हिंदी कवनो प्रदेश विशेष के भाषा न ह बल्कि ई भारत के राज-काज के भाषा आ हमनी के संपर्क भाषा बा .जवन बोडो, संथाली, मैथली, डोगरी, कश्मीरी आदि आदि भाषा आठवी अनुशुची में बा उहे अधिकार भोजपुरी के के मिले. संस्था कुली आपन सांसद, प्रतिनिधि आ आफिसर लोगन के, साहित्यकार लोगन के आन्दोलन से जुडल लोगन से, संस्कृति कर्मी लोगन से निवेदन ही कर रहल बा. प्रतिवेदन दे रहल बा. हाँ, संस्था कुली में समन्वय नइखे लेकिन का करब भोजपुरी के क्षेत्र बड़ा लमहर बा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से ले के बिहार के केशरिया तक, आ ओहिजा से निकल लोगन के हर राज्य में हुजूम.
    दुखद बात बा की भोजपुरी के गिनल चुनल कुछ लोग बा जे खाली आपन नाव चमकावे में लागल बा.लेकिन ई चीज समझल बड़ा जरुरी बा की भोजपुरी भाषा के प्रति जागरूकता जेतना ओकर व्यावहारिक क्षेत्र में होखे के चाहीं उ ओहिजा नइखे होत. उदहारण देखि… उत्तर प्रदेश में आजू लेक भोजपुरी आकादमी के गठन न भइल जबकि इहाँ अंतर राष्ट्रीय संस्था के दंभ भरे वाली संगठन “विश्व भोजपुरी संस्था” बा आ ओहमे प्रभावशाली लोग भी बानी सभे जे चाह लिहल त बनारस, मुग़ल सारे से रेल के पहिया रोक सके लन, भारत के रेल वेवस्था तहस नहस हो सकेला, पूर्वांचल देश के हिला सकेला त का भोजपुरी ला भोजपुरी के ई लमहर क्षेत्र खामोश काहे बिया.??? ओही तरह बिहार के लमहर भू भाग बा जहा खुद लोगन में जागरूकता के कमी बा. लोकल संस्था में भोजपुरी के बारे में लोगन के जागरूक कराल जरुरी बा.
    केहू नइखे जे नौ कनौजिया के तेरह चूल्हा के एक कर देवे. चूल्हा तुर के चूल्हा न बने ला लेकिन ईहो कहल न जा सके की भोजपुरी के सब संस्था एक मंच पर आई. भोजपुरी के माध्यम से आपन आपन उल्लू सीधा करे में जे लागल होई उ कहे केहू के साथै जाई. उ त भोजपुरी के पीछे रख के आपना के आगे रखत बा . कोइ भोजपुरी के बेच में कार किनत बा, कोइ भोज्पुइर के बेच में हीरो हेरोइन बनावट बा, केहू पुरस्कार लेता, केहू नाव चमकावत बा, केहू कहत बा की भोजपुरी के संस्था के लोग आठवी अनुसूची में करा सके ला ई साहित्यकार लोग न, केहू के संस्था के माध्यम से फर्जीवाडा करत बा, कोइ भोजपुरी के माध्यम बना के दोकानदारी करत बा, कोइ भोजपुरी के माध्यम से आपन रोजी रोटी चलावत बा, … केहू के ई फुर्सत नइखे की सभ संस्था के एक मंच पर ला सके ओही तरेह जे तरेह भोजपुरी के वेबसाइट में एकता के कमी बा …..
    हमनी भोजपुरी के खातिर कई जगहे गईल बनी भोजपुरी के संस्था चलाये वालन में ‘ईगो’ बहुत बा, जातीयता भी कम नइखे आ लोगन में एक साथै कम करे में पता न का बीमारी बा .
    भोजपुरी के आठवी अनुशुची में शामिल कइल जाये हमनी ला गौरव के बात होखी… सकारात्मक सोच के साथै बढल जाये ठीक रही … आन्दोलन में कमी नइखे आईल.सब कुछ एतना नकारात्मक बा फिर भी भोजपुरी आपन दिशा आ दशा में सुधर करत आगू जात बिया…. सुखद ई बा की सब नदी एगो समुन्दर में गिरत बा जेकर नाम बा : भोजपुरी , हिंदी के अंग्रेजी के डराए के चाहीं नाकि भोजपुरी से ….
    पुन्न ओ.पी. भैया के धन्यवाद देम जे हमनी के ई गम्हीर विषय पर सोचे के आ आपन विचार राखे के मौका देनी.
    डॉ. मस्तना के सब्द में ” ना केहू से भेद भाव, ना केहू से दुरी ह …. ईहे नु भोजपुरी ह ईहे नु भोजपुरी ह”
    संतोष पटेल , संपादक : भोजपुरी जिन्दगी

  5. प्रभाकर पाण्डेय

    भोजपुरी के हालत में बहुत सुधार होखे के उम्मीद तबले ना कइल जा सके जबले एहिजा नौ गो कन्नौजिया तेरह गो चूल्हा वाला हालत में बदलाव ना आई. भोजपुरियन में सबले बड़का कमी एका के बा. हमनी के ताकत दोसरा के टाँग खिंचाई में बेसी जाया होले दोसरा के बढ़ावा देबे में कम. अधिकतर सक्रिय लोग के रुचि एह बात में बेसी होला कि ओहलोग के खबर छप जाव, फोटो छप जाव. कुछ प्रचार मिल जाव. उहे लोग अगर मिल बइठ के एगो समावेशी संगठन बना लिहते जवना में हर भोजपुरिया ना त बेसी से बेसी भोजपुरियन के हित सधे त ऊ सबले बड़हन बात होखीत. आ तब मिले वाला प्रचार खातिर प्रयास करे के जरुरत ना पड़ीत…………………………लाख बात के एक बात।। हम ए पैराग्राफ से पूरी तरे सहमत बानी।।

    एक बात अउर हम कहल चाहबि भोजपुरी के झंडा ढोवेवालन में मुश्किल से 5-7 प्रतिशत लोग भोजपुरी के कल्यान चाहत होई बाकिर 95 प्रतिशत लोग त अपनी स्वार्थबस झंडा ढोवता… हो-हा करता..अउर एइसन लोग भी कबो एक मंच पर ना आई काहें कि इ लोग दूसरे की अगुआई में काम ना क सकेला लोग…अउर इ लोग इहो अच्छी तरे जानता की अगर भोजपुरी के भाषा के दरजा मिल गइल त ए लोगन के का होई। इ लोग न घर के होई ना घाट के…ए से इ लोग कबो ना चाही की भोजपुरी के भाषा के दरजा मिलो।

    खैर इ हमार सोंच बा हो सकेला की इ गलत होखो।
    जय भोजपुरी।।
    नाम चाहीं, दाम चाहीं, कवनो कीमत पर भोजपुरी ना चाहीं………..
    अउर एक चीज कहल चाहबि हमरी खेयाल से भोजपुरी के भाषा की रूप में प्रतिष्ठित करावल से बहुत जरूरी बा एकर परचा-परसार कइल…एकरी साहित्य, व्याकरण के भंडार सजावल…हर भोजपुरियन तक ए के पहुँचावल…अरे भाई अगर भोजपुरी समृद्ध हो जाई त सरकार के चोकरी के ए के भाषा के दरजा देबे के पड़ीं।
    जय हिंद।।

  6. चंदन कुमार मिश्र

    राउर बात अधिकांश जगे सही लागता। बाकिर ए फेर में मत रहीं कि भोजपुरी के सरकार से मान्यता मिलला के बाद कवनो फायदा होखे वाला बा। जइसे ई सरकार के मानल भासा बनी वइसहीं चोर-चुहार हाजिर होके सब कुछ बरबाद कर दिहन सन। जवना आदमी के भोजपुरी बोले में शरम लागता काल्हे ऊहे भोजपुरी के महान बिदवान आ साहित्यकार हो जाई।

    अब बात रहल सरकार के भोजपुरी के त हिन्दी के हाल सभे जानता। भोजपुरी जब सरकार द्वारा मान लेवल जाई त एकरो दशा हिन्दी से बदतर हो सकेला लेकिन अच्छा ना। जब ले अंग्रेजी के कुत्ता ए देश में हर गली में घूमी आ काटी तब ले भारत के कवनो भाषा के सम्मान संभव नइखे। होखे के ई चाहीं कि भोजपुरी इलाका में सारा काम भोजपुरी में होखो, अदालत से दोकान तक बाकिर जब ई सब हिन्दी में होते नइखे त भोजपुरी के बारे में का कहल जाव?

    जवना भारतीय भाषा के स्वीकृति मिल चुकल बा ओकरे हाल का बा? कुछ साहित्यकार लोग आपन काम चला लेता एतने नू! चाहे ऊ कवनो भाषा होखे। अब लक्ष्य भोजपुरी के आगे ले जाएके नइखे, अंग्रेजी के भगावे के बा। जब अंग्रेजी भाग जाई तब भोजपुरी के ओकर हक बिना दिक्कत के मिल जाई।

    एगो बात त कहिए दीं कि रउरा से जब हम फोन पर बात कइनी त भोजपुरी में शुरु कइनी लेकिन रउरा हमरा से हिन्दिए में बतिइनी। बीच बीच में हम जब हिन्दी छोड़ के भोजपुरी बोले के चहनी रउआ हिन्दिए बोलनी। अब देखीं एह बात में कवनो जादे ओजन नइखे लेकिन एह बात से कुछ निकलत त बरले बा। लेकिन राउर ई रोज के मेहनत आ प्रयास भोजपुरी के ओही लोग के जोड़े में सक्षम बा जे भोजपुरी से मतलब रखे के चाहता। एसे का होई? एसे त ईहे होई कि हमनी के अपने में भोजपुरी-भोजपुरी के हल्ला करत रहेम सन। जे भोजपुरी से जुड़ल बा ऊहे भोजपुरी किताब, वेबसाइट से मतलब रखले बा। माने एक तरह से देखल जाव त लेखक आपन किताब लेखक के छाप-छाप के देता आ मने-मने खुश होता। अब रउआ बताईं कि एसे भोजपुरी के प्रचार-प्रसार होता कि ना? जे पहिले से भोजपुरी के मानता ऊहे एमें शामिल बा। शहर के बात छोड़ दिआव गाँव में अब नयका फैशनप्रिय लोग हिन्दी बोलल शुरु क देले बा, ऊहो एसे कि ऊ अंग्रेजी ना बोल सके(अइसन नइखे कि ओकरा हिन्दी से बड़ा प्रेम बा।)त जब लोग हिन्दी से दूर भागे के चाहता त भोजपुरी के का बात कइल जाव। सरकार पिछला 64 साल में अइसन एको काम करे के ना चाह्ल जवना से आपन देश आगे बढ़े। बस एतने कइल गइल जवना से लोग के भुलिआवल जा सके। पिछला साठ साल से भोजपुरी खातिर जेतना हल्ला भइल ऊ गलत ना कहल जा सके लेकिन ओकर कवनो असर कहाँ बा?

    एसे खाली कल्पना में रहला से ना होई। सोच-समझ के आगे बढ़े के पड़ी कि आखिर भाषा के समस्या के जड़ कहाँ बा? कवनो राज्य में तनी-मनी नौटंकी से भाषा के कवनो फायदा होता, ई सोचल ठीक नइखे लागत। नेता आ मन्त्री के दिमाग से ना देश के भलाई के दिमाग के सोचल बात सही होई। पन्द्रे अगस्त के दू गो लड्डू बाँट के गीत गवला से देश में आजादी नइखे आइल। आशा बा कि हमरा बात के बुरा ना मान के भाव पर ध्यान देब।

    चंदन

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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