रामचन्दर शुक्ल जी इतिहास में कबीर, गोरखनाथ आ संत रैदास के महत्व ना देहलन

बीएचयू के निदेशक प्रा॰ सदानन्द शाही से भोजपुरिया अमन के सम्पादक डॉ॰ जनार्दन सिंह से लमहर बातचीत के एगो छोटहन अंश –

राउर जनम कहां, कब भइल रहे आ प्राथमिक शिक्षा से लेके अन्तिम शिक्षा कब पूरा भइल, बतावल जा?

हमार जनम कुशीनगर जिला के रामकेला के लगे सिंगहा गॉव में 7 अगस्त 1958 के भइल रहल. प्राइमरी से लेके हाईस्कूल तक गाँव में पढ़ाई कइनीं। इण्टर के पढ़ाई रामकोला इण्टर कालेज से पूरा भइल। स्नातक के पढ़ाई उदित नारायन कालेज पड़रौना से कइनीं.1981 में उहवॉ छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहनीं. एम.ए.आ पीएचडी गोरखपुर विश्वविद्यालय से कइनी. 19९० से गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन कइनी. आ सन् 20०1 में बीएचयू में हिन्दी विभाग में आ गइनी.

रउआ समाज सेवा आ साहित्य के प्रेरणा कहां से मिलल?

हमार जनम किसान परिवार में भइल. हमरे मामाजी गोरखपुर विश्वविद्यालय में कमेस्ट्री के वैज्ञानिक शिक्षक प्रो॰ रविन्द्र प्रताप राव जी रहलन. उ आस्ट्रेलिया, अमेरिका कई गो देश में भी गइलन. 42 बरिस के अवस्था में बेल्जियम में उनके मौत हो गइल. उनहीं के जिनगी से विशेष रूप से हमरा प्रेरणा मिलल. हमरा बाबा के पिताजी के भी हमरी पढ़ाई पर जोर रहल.

हमरा परिवार के माहौल धर्मिक रहल बाकिर धरम के कर्म काण्ड के प्रति कबो हमरा श्रद्धा न हो पावल. युवावस्था में ही ओकरा प्रति विद्रोह के भावना रहल. जब हम पढ़त रहनीं त दु गो घटना एक साथे घटल.

एक त मुक्तिबोध कविता पढ़ला के बाद एगो बड़हन विक्षोभ मन में पैदा हो गइल. तब ओह कविता के असर से वामपंथी विचारधारा के आकर्षण हमरे मन में पैदा हो गइल. दिशा छात्र संगठन से हम अध्यक्ष के चुनाव लड़ल रहनीं. गोरखपुर विश्वविद्यालय में 5-6 साल संगठन के काम कइनीं. ओह में जवन सपना समाज बदले के रहल, उ बहुते प्रभवित कइले रहल.

प्रेमचन्द्र साहित्य संस्थान 1996 में गोरखपुर से ही बनल रहल. ओकरा माध्यम से एगो साखीनामा के पत्रिका भी छपे. हमरा विचार से समझ में आइल कि एगो अइसन परम्परा हमरा समाज में रहल बा. उ परम्परा के प्रतिरोध करे वाला परम्परा रहल.

अच्छा इ बताईं कि साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में रउआ कवन-2 काम कइले बानीं?

साहित्य-संस्कृति के मोर्चा पर जवन काम कइनीं ओह दरम्यान इ समझ में आइल कि बाहर से दबाव बनवला से बदलाव ना आई. जवन परम्परा के भीतर आलोचना प्रतिरोध के स्वर बा ओकरा के मान के विरोध कइल जाला. जवन वर्ण व्यवस्था बनल बा ओही में भेदभाव बा. दहेज के खिलाफ हाई स्कूल में संकल्प लेहनी कि हम बिना दहेज के शादी कइनीं. अन्तर्जातीय विवाह के मौका आइल ओकरा प्रश्रय देहनी.

वर्ण व्यवस्था भीतर घुस के मुक्ति आन्दोलन, बुद्ध धर्म, मार्क्सवादी आन्दोलन के भी चाट गइलस. वैचारिक रूप से कबीर का प्रेमचन्द्र जी के परम्परा पर हम काम कइनीं. 2003 में कबीर काम करे खतिर जर्मनी गइल रहनीं.

भोजपुरी अध्ययन केन्द्र बी॰एच॰यू॰ में स्थापना कबसे भइल? एकरा बारे में बताईं.

विश्व भोजपुरी सम्मेलन 2007 में बीएचयू के तत्कालीन कुलपति पंजाब सिंह जी भोजपुरी अध्ययन केन्द्र के घोषणा कइलन. डी॰पी॰सिंह कुलाधिपति के हाथ से 26 जून 2०09 के स्थापना भइल आ बनल.

भोजपुरी के विकास के बारे में बताई? भोजपुरी के विकास काहे ना भइल?

अवधी के विकास तुलसीदास में रामभक्ति के सहारा मिलल. भोजपुरी के सहारा रामदास, कबीरदास, गोरखनाथ आदि लोगन से मिलल. जवना के इ लोग हकदार रहल, एह लोगन के उ सम्मान ना मिलल. एसे कि ब्रह्मवाद के लोग मान पोषक ना रहल.

रामचन्द्र शुक्ल जी इतिहास में कबीर, गोरखनाथ आ संत रैदास के महत्व ना दिहलन.एसे महत्व ना मिलल. जबकि परम्परा के विरोध के आवाज भोजपुरी उठवलस.

राउर प्रिय भेजन का ह, बताई?

हमार प्रिय भोजन कढ़ी आ भात ह. दोसर आलू के चोख-रोटी आ बाटी-चोखा, रहर के दाल, रोटी-भात पसन्द करीले.

भोजपुरी भाषा के संविधान के अठवीं अनुसूची में शामिल कइला के बारे में बताई?

इ त राजनीतिक मसला ह. इ जवन समय बा भोजपुरी खातिर भाग-दौड़ के नजरिया से बहुत बढ़िया समय बा. एह भाषा के मान्यता भोजपुरी समाज के मिले वाला बा, आहट हो रहल बा.

अमेरिका के कवि माक्टवेन लिखले रहले कि ‘भगवान पहिले मॉरीशस बनवले आ ओकरे सकल पर स्वर्ग बनवले.’

मारीशस के भोजपुरिया लोग बनावल. जब लोग मारीशस गइल त कई जाति के रहे. सभे जा के उहां मिल गइल. अगर रउआ चाहतानी जे भोजपुरी भाषा के विकास होखे तऽ भोजपुरिया लोग मारीशस, हॉलैण्ड, सूरीनाम आ फीजी बना सकता त आपन घर ना बनाई?

इहवाँ ढपोरशंखी,करमकाण्ड, ढोंग, अंधविश्वास के लोग बढ़ावा देके लोग बांट रहल बा. एह भाषा के जवन संभावना बा तवन सामने नइखे आइल. कवनों भाषा समाज के विकास पीछे ना देखेला, आगे देखेला. भोजपुरी अध्ययन केन्द्र एह क्षेत्र में काम कर रहल बा.

भोजपुरी अध्ययन केन्द्र के बारे में बताई?

कृषि, कला, विज्ञान सगरों के अध्ययन करे के बा. अध्ययन क के इ देखे के परी की पुरखन के भाँति खुरहुरी दवाई केतना उपयोगी बाड़ी सन. इ सब विचार क के काम कइल जाना.

भोजपुरी केन्द्र में हमार जवन काम बा भोजपुरी में ट्रेंड लोग चाहीं. शब्द कोष, साहित्य के भण्डार चाहीं. भोजपुरी आज ना त बिहान अठवीं अनुसूची में अइबे करी. अइला के बाद भी जवन जरूरत होई, ओकर तइयारी करतानी जा.

एह समाज में गरीबी, बेरोजगारी जियादे बा हमन के अइसन विचार करतानी जा कि भोजपुरिहा लोगन के रोजगार कइसे मिली. कवन-2 अइसन चीज बा जवना से रोजगार के सृजन कइल जा सकता जइसे कोहार, लोहार, बढ़ई, मेहरारून के बनावल कलाकृति आदि के बढ़ावा दे के बाहर के भोजपुरिया देशन में व्यापार बढ़ावल जाई. एहसे एहजा के कलाकृति जिन्दा हो जाई. लोगन के रोजगार मिली. अध्ययन केन्द्र में हमन के इ प्रस्ताव करतानी जा.


भोजपुरी साप्ताहिक “भोजपुरिया अमन” लखनऊ के 08 जून, 2012 का अंक से साभार

Loading

One thought on “रामचन्दर शुक्ल जी इतिहास में कबीर, गोरखनाथ आ संत रैदास के महत्व ना देहलन”
  1. Shahi ji director kam,sadharan aadmi niyan dil ke bharans nikalevala dher lagni.karmkand adi ke birodh uha ke apan na,kabir adi ke bichar ha,javna ke aj bhi am jan ke samarthan naikhe mil paval.Hindu dharm se nikal ke je matee ke khilaf bat kaile ba okra ke samajik manyta kaha milal ba? Udahran khatir murti puja ke lihi, je ekar birodh kail okare murti ke unkar samarthak log ajuo puja karelan.sahi ji javna jagah par bani,okar laj rakhi aur bhojpuri sahitya,sangeet,sanskriti adi ke development ke bat kari,planning banaee,ihe raur dayitva hate.Samaj-sudhar khatir ta neta log barle baran.

Leave a Reply to SHRIRAM VERMACancel reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Scroll Up