सामयिकी : अपना भाषा-साहित्य के चिन्ता में उपजल क्षोभ

by | Dec 26, 2018 | 0 comments

– शिवजी पाण्डेय ‘रसराज’

भोजपुरी भाषा में लिखल-पढ़ल कइ बरिस से चल रहल बा, बाकिर एकरा भविष्य के लेके हमरा मन से दुश्चिंता आजु ले ना गइल। सोचनीं, त कारन उहे लउकल, जवन पन्द्रह बरिस पहिले लउकत रहे। यानी एकरा संस्थन आ साहित्यकारन में एकजुटता के अभाव, छुद्र राजनीति आ आपसी अनदेखउवल। ई कमी पहिले त कम रहे, बाकिर अब चरम पर लउकत बा। इहो एगो गौर करे वाली बात बा कि भोजपुरिहे लोग, भोजपुरी के हेठ बूझि के, ओके भाव ना दिहल, त दोसरा से का उमेद कइल जाव? घर में कुछ अउर आ बाहर कुछ अउर, यानी घर में त भोजपुरी बोलाइयो जात रहे, बाकिर घर से बहरा बोले में संकोच बनल रहल। हिन्दी में त पढ़ल-पढ़ावल जात रहे आ नोकरी, बेवसाय के भाषा हिन्दी भा अंग्रेजी रहे। हिन्दी के छोड़ीं, ऊ त एगो बोलचाल भा सम्पर्क भाषा के रूप में रहे, बाकिर अंग्रेजी आ उर्दू त कोट-कचहरी, नोकरी-चाकरी आ अभिजात लोगन के भाषा के रूप में काम करत रहे। हिन्दी, अंग्रेजी का आगा कमजोर, आ सहायक आ पिछलगुवे बनि के रहलि। एइजा के पढ़ल-लिखल सम्भ्रांत लोग, हिन्दी के राष्ट्रभाषा ना बना पावल, आ उहे लोग आगा जाके एके भाषाई पेंच के अझुरा दिहल। एही तरे भोजपुरिहा कहाये वाला, भोजपुरी के सम्मान दियावे भा संविधान के आठवीं अनुसूची में सामिल करावे के नाँव पर आपुसी हामाहूमी में पैंतराबाजी करे लागल।

केहू भोजपुरी के भविष्य के भाषा ना मानि के, राजभाषा हिन्दी के वकालत करे लागल। आ केहू ई कहि के भोजपुरी आन्दोलन के उपहास कइल कि हिन्दी पढ़े-लिखे आ नोकरी पावे के जरिया बिया, भोजपुरी में तऽ खाली खेती-गृहस्थी कइल जा सकेला। एह देस में सबसे अधिका बोले जाये वाली बोलियन में भोजपुरी बिया, बाकिर बिडम्बना देखीं, छोट-छोट जनसंख्या वाली मैथिली भा डोंगरी अइसन बोलियन के भाषा का रूप में संविधान के आठवीं अनुसूची में बिना रोक-टोक आ बिना कवनो बिरोध के सामिल क लिहल गइल, बाकिर अबहीं ले भोजपुरी भाषाई गुण आ साहित्य के संपन्न भइलो पर मान्यता से महरूम बिया।

भोजपुरिहा लोग बड़ा महात्वाकांक्षी होला, कवनो चीज के आपन कहें, बतावे आ अपनावे में तनिको संकोच ना करे आ ना कवनो कोस कसर छोड़ेला। एही तरे आपसु में एक दोसरा के नीचा गिरावे आ देखावे में तनिको पीछा ना रहे। भोजपुरी में सैकड़न लेखक, साहित्यकार बाड़न, सैकड़ों साहित्यिक किताब लिखले बाड़न बाकि ओकर प्रचार-प्रसार काहें ना भइल? जे जानत बा उहो, ओकर चरचा नइखे करत। ऊ ई समुझत बा कि कहीं हम एसे छोट ना हो जाईं? एही नाते ऊ नाँवें नइखे लेत। अपना भाषा साहित्य का प्रति ओकर ना त कवनो मोह लगाव बा ना कवनो जिम्मेदारी आ नाहिये कवनो स्वाभिमान। बटलो बा त ओकरा भीतर कतने निजी पूर्वग्रह आ भेद बा। एतहत बड़ देस में प्रोत्साहन सम्मान आ प्रतिष्ठा के हकदार कुछुवे लोग बा। ए कुछ लोगन में जादातर लोगन पर प्रभावशाली लोगन क किरिपा बा।

भोजपुरी संस्था भा अकादमी कुछ लोगन का जेब में बा। जहाँ जेब में नइखे उहाँ राजनीतिक प्रभाव में बा। भोजपुरी भाषा आ साहित्य पर एकेडमिक काम करे वाला कुछ संस्था, अकादमियन आ अध्ययन केन्द्रन में अकादमिक कार्यक्रम का नाँव पर आपन ग्रुप भा अपना पक्ष के पसंदीदा लोगन के अपना कार्यक्रम में बोला के खानापूर्ति क दिहल जाता। ना त कवनो गायक के बोला के ओकर कार्यक्रम करा के छुट्टी पा लिहल जाता। एह तरह से देखल जाउ त असइनका संस्था, अकादमी भा अध्ययन केन्द्रन से पच्छपात का कारन भोजपुरी के लाभ से जादा, नोकसाने ढेर लउकत बा। असहीं भला रउवें बताईं कि एह तरह के माहौल में भोजपुरी कइसे अपना भाषा-साहित्य के विकास करी।

एगो विसंगति अउरी बा, ऊ ई कि भोजपुरी के नाँव पर नया-नया पैदा होखे वाला झंडाबरदारन के बीच उहे प्रतिद्वंदिता अगड़ा-पिछड़ा, दलित आ क्षेत्र के नाँव पर बा जइसे राजनीतिक दलन में बा। भोजपुरी के भाषा आन्दोलन के एह नायकन में अपना-अपना माथे मउर बन्हला के होड़ मचल बा। कुछ लोग हिन्दी का नकल में पचासन बरिस पुरान प्रगतिवादी, जनवादी, साम्यवादी, हठवादी आदि-आदि बेमरिया लेले भोजपुरियो भाषा-साहित्य के खउरे-खरकोंचे आ एकरे आड़ में बड़का बुद्धिजीवी कहाये खातिर एड़ी-चोटी के जोर लगवले बा। समाज के जाति, वर्ग में बाँटि के द्वेष बढ़ावे वाला अइसन लोग भाषा आ साहित्य के भला करो भा ना करो, भोजपुरी लोक संस्कृति के धज्जी उड़ावे में कवनो कोर कसर नइखे उठा रखले। कुछ लोग किरिया खा के बइठल बा कि भोजपुरी में आजु ले जवन कुछ लिखाइल-पढ़ाइल बा, ऊ सब भिखारिये ठाकुर तक बा। भिखारी से आगा ऊ लोग भोजपुरी के बढ़न्ती-घटन्ती का बारे में सुने, सोचे के तेयार नइखे। ऊ लोग समूचा भोजपुरी साहित्य के ‘गबरघिचोर’, ‘दमाद बध’, ‘बेटी बेचवा’ से आगा जाये देहल नइखे चाहत। अइसन संकीर्ण दृष्टि, भाव आ विचार से एह नया युग में भोजपुरी भाषा के कवना भविष्य के निर्माण होई।

भोजपुरिहा लोगन के भाव-विचार आ गोल आ महत्वाकांक्षा के हिसाब से ‘आपन-आपन डफली, आपन आपन राग’ यानी अलग-अलग राग अलापे वाला लोग ‘भोजपुरी’ के दीन-दशा का सुधारी? अलगा-अलगा मंच, संस्था खोलि के भोजपुरी के भाषा साहित्य कला का नाँव पर खाये-कमाये भा पुजाये में लागल ई सभ भोजपुरी के शुभचिंतक आ मलिकारे बा। ई अच्छो रहित, एह माने में कि संविधानिक मान्यता आ ओकरा प्रतिष्ठा खातिर, एकजुट, एकसुर में आवाज लगाइत लोग ओसे सरकार पर दबाओ बनित आ एकजुटता के संदेशो जाइत।

जे भोजपुरी में, भोजपुरी खातिर, बिना लोभ-लालच आ मान-प्रतिष्ठा के परवाह कइले बरिसन से चुपचाप रचनात्मक काम कर रहल बा आ कइले जा रहल बा, ओके नजरअन्दाज कइ के, एक-दूसरा के टँगरी खींचे वाला ई कथित भोजपुरी-हित चिंतक मठाधीशे लोग बा। हमरा त चिंता होला कि भोजपुरी के कबो अगर मान्यता मिल गइल आ ओकरा नाँव पर पढ़े-पढ़ावे भा पुरस्कार-सम्मान के इन्तजाम होइयो गइल त ओकरा बाद के स्थिति केतना बिद्रूप आ भयंकर होई? तब त एक दोसरा क कपार फोरे में ना हाथ लउकी, ना ढेला। आवे वाला समय में बानर आ बिलाईं के बँटवारा ले निमने नू बा कि मुर्गा बाँड़े रहसु।

कुछ लोग अश्लील गीत, कविता, लिखि-लिखि गायकन से गवावत बा आ ओही से आपन खर्चो चलावत बा। ओह लोगन के ई नइखे बुझात कि एह गीतन के सुनि के लोग एह भाषा के केतना कुआदर दिही। ई लोग ना तऽ लजाते बा ना भविष्य से डेराते बा। भारत के विशिष्ट लोकभषन में भोजपुरी के आपन एगो पहिचान बनल बा। बाकिर शासकीय स्तर पर 1990 में जवन जनगणना भइल, ओमे जे पढ़लो-लिखल लोग रहलन उहो लोग मातृभाषा का कालम में हिन्दी लिखववलन। अनपढ़-गँवार लोग से बिना पुछले जनगणक लोग अपनहीं हिन्दी भाषा भरि देसु। अतने ना अधिकांशतः मुस्लिम भाई लोग, जे मदरसा शिक्षा से जुड़ल रहे ऊ भोजपुरिहा होइयो के आपन मातृभाषा अरबी आ कहीं-कहीं उर्दू लिखवावल लोग। सरकारी गणना के आधार पर भोजपुरी बोले वाला लोगन के असली संख्या के सही अनुमाने ना भइल। भले ताल ठोंकीं, कि भोजपुरिहन् क संख्या देस में अन्य भाषा भाषियन से अधिका बा, बाकिर साँच ईहे बा कि कागज पर कुछ अउर बा। इहे हालि कि ‘केकरा प करीं हम सिंगार पुरुख मोर आन्हर’। मातृभाषा का दिसाईं सचेत आ जागरूक ना भइला के कारण, ई समृद्ध भाषा भोजपुरी, ना त रोजगार के भाषा भइलि, ना व्यवहार भा संस्कारे के। अपना संघर्ष, सहनशीलता से हर बिपरीत जगह, आपन जगह बना लेबे में दक्ष भोजपुरिहा अपना मातृभाषा के खुदे हीन मानेलन। जे अपना माई के भाषा भुला जाई, ओकरा दूसर का इयादि रही आ कवना विश्वास के साथे ऊ अपना भाषा-संस्कृति के परचम लहराई? झुठिया प्रदर्शन में आपन लात तर के जमीन छोड़ल एही के कहल जाला।

संख्या के हिसाब से हर नगर के हर क्षेत्र में, भोजपुरिहा लोगन के पइसार आ प्रभाव बा, बाकिर भोजपुरी भाषा-साहित्य के, लेके होख्ेा वाला आयोजनन में एह लोगन के अनुपस्थिति अखरे लागेले। अइसना में एह लोगन के कवनो रूचि ना लिहल अउरी क्षोभ पैदा करेला। भोजपुरी आन्दोलन आ भाषा के लेके होखे वाला प्रदर्शन में भोजपुरिहा लोग के ना अइला के कारन सरकार पर कवनो दबावे ना बने। ‘एक त बबुनी अपने गोर, दुसरे लिहली कमरी ओढ़ि’। गनीमत बा, कि एतना अंतरबिरोध, आपुसी अनदेखउवलि आ हामा-हूमी का बादो भोजपुरी के मूक रचनात्मक आन्दोलन चल रहल बा। भोजपुरी में लेखन आ प्रकाशन के स्तर बहुत ऊँच भइल बा। भोजपुरी का कवि, लेखकन का निरंतर सक्रियता से, भोजपुरी साहित्य समृद्ध आ सम्पन्न हो रहल बा, भलहीं एह सब के ईमानदार चरचा आ आकलन नइखे होत। तमाम अनिश्चितता आ निराश करे वाला माहौल का बीच, अजुओ हम एप्पर भरोसा कइले बानी कि आवे वाला समय कउवा आ हंस के पहिचान जरूर करी। जय भोजपुरी!


शिवजी पाण्डेय ‘रसराज’
ग्रा0 पो0 – मैरीटार, बलिया-277001

भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के दिसम्बर 2018 अंक से

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(3)


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(4)

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(7)
19 नवम्बर 2023
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(5)

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पूरा सूची


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