सिविल सोसायटी के हर्गिज तरजीह मत देव सरकार

by | Jun 17, 2011 | 0 comments

– पाण्डेय हरिराम

केजरीवाल-भूषण एंड कम्पनी एने एगो नया शिगूफा छोड़ले बा लोग. ओह लोग के कोशिश बा कि संसद-विधानसभावन के आम लोग का नजर में बेकार साबित कर दिहल जाव आ अपना आप के सबले बड़ बना लिहल जाव जेहसे कि सरकार के हस्तिये खतम हो जाव. अबही हालही में प्रशांत भूषण आ उनुकर पाँचो साथी एगो पत्र लिखके कहले बा लोग कि हमनी के व्यवस्था अतना नाकारा बिया के के प्रधानमंत्री बन जाई पता ना चले. अगर मधु कोड़ा बा ए. राजा जइसन केहू प्रधानमंत्री बन जाव त कइले का जा सकी ?
ई एगो फालतू बहस ह. अब एह महानुभावन के के बतावे कि संसद देश में कानून बनावे वाली सबले बड़की संस्था हिय, एकर गठन देश भर के वयस्क मतदाता लोग के वोट से चुनाइल सदस्यन से कइल जाला. माने कि अइसन लोग के समूह जेकरा पर देश भरोसा जतवले बा. अब एह संस्था के कवनो एक आदमी भा गुट के इच्छा से बान्हल ना जा सके. जबकि सिविल सोसाइटी का गुट में मामूली पढ़ल-लिखल लोग, शिक्षक से लेके गँवई समाज सुधारक ले, जे अपना के भविष्य के गांधी का रूप में देखत बा, शामिल बाड़े. एह लोग का साथे बाड़न कुछ वकील आ कुछ पढ़ल लिखल लोगन के एइसन टोली जेकरा हालात के पूरा जानकारिये नइखे. नारन अउर अनशनन का बीचे जवन बतावल सबले जरुरी बा ऊ ई कि एहमें से कवनो आदमी अइसन नइखे जे आम जनता खातिर जबाबदेह होखे. ई सिविल कहाये वाली सोसायटी जवन सबले बड़ बात कहत बिया ऊ बा भ्रष्टाचार के, खास कर के बड़का पद पर बइठल लोगन के भ्रष्टाचार के. एहिजा ई जिक्र कइल ठीक रही कि भ्रष्टाचार का मामिला में कम से कम एगो कैबिनेट मंत्री, एगो बहुते ताकतवर राजनेता के बेटी, आ कई गो नामी गिरामी कंपनियन के टॉप मैनेजर लोग आजुकाल्हु जेल में पड़ल बा. माने कि मौजूदा एजेंसियन के ठीक से काम करे दिहल जाव त कवनो संदिग्ध पर कार्रवाई कर सकेले.

बाकिर केजरीवाल- भूषण एंड कम्पनी ई देखला का बजाय कि मौजूदा इंतजामन के कइसे अउरी ताकतवर बनावल जाव, ओह मिडिल क्लास सेंटिमेटलिटी के हवा देबे में लागल बाड़े जवना में ई मानल जाले कि नेता के उद्भव जनता के बीच से ओही तरह होला जइसे कि हमनी का आइल बानी जा. ई बहुते खतरनाक हालात त इरादा ह काहे कि ई समाजसेवा का नाम पर लोकतंत्रे के खतम करे के गहिरा साजिश लागत बा. एह साजिश के समुझे खातिर जरूरी बा कि रामदेव-हजारे-केजरीवाल-भूषण फिनोमिना के समुझल जाव. दरअसल जवना के सिविल सोसायटी के नाम दिहल गइल बा ऊ एगो एनजीओ संस्कृति के हिस्सा ह. एनजीओ संस्कृति नियोजित काँरपोरेट पूंजी के संस्कृति ह. अपने से उपजल संस्कृति ना ह. देश में सैकड़ो एनजीओ बा जवनन के विदेशन से हजारों करोड़ रुपिया मिलेला. एनजीओ समुदाय में काम करे वालन के आपन राजनीति बा, विचारधारा बा, वर्गीय भूमिका अउर एगो कास मकसदो बा. ऊ परंपरागत दलीय राजनीति का बदलैन का रुप में काम करेले. ई एगो बहुते बड़ साजिश के शुरुआत बा, भारत में लोकतंत्र के मेटा के भा लांगड़ बना के कवनो निहित स्वार्थी देश भा संस्था के हवाले कर देबे के, एहसे बेहद जरूरी बा कि मीडिया उन्माद, अन्ना के छोटहन वैचारिक प्रकृति, अउर भ्रष्टाचार, एह तीनों के पाछा सक्रिय सामाजिक शक्तियन के विचारधारात्मक स्वरूप के विश्लेषण कइल जाव. दरअसल ऊ छद्म संदेश देत बाड़न कि सरकार, संसद आ विधिक संस्थान में से केहू सही नइखे.

दरअसल ई जवन कथित सिविल सोसायटी बा ओकर मकसद लोकतांत्रिक संस्थानन, नियमन आ परंपरावन के अनदेखी कर के ओकरा के बेकार बनावल बा. ई सोसायटी सत्ता सर्किल में जनमल संकीर्णतावाद के सामाजिक चेहरा ह. एकर लक्ष्य बा राजनीतिक दलन के बेमतलब बना दिहल, साजिश के ई पहिला भाग ह. दुसरका भाग बेहद गोपनीय बा आ एह पर आवे वाला समय में रोशनी पड़ सकेला. अतना त तय बा कि सिविल सोसायटी संकीर्णतावादी विचारन के हवा देत बा आ मध्यवर्ग में एकर तेजी से प्रचार- प्रसार हो रहल बा. ई सत्ता के बदलैन होखे के दावा पेश करत बाड़े. झटपट समाधान माँगत बाड़े. एहसे जरूरी बा कि सरकार सिविल सोसायटी के चक्कर में ना पड़े आ अपने तईं भ्रष्टाचार का खिलाफ लड़ाई छेड़ दे. एहमें सरकार के कुछ ना बिगड़ी लेकिन यदि ऊ सिविल सोसायटी भा अन्ना भा भूषण भा केजरीवाल जइसन लोगन के तरजीह दे दिहलसि त देश के बहुते कुछ बिगड़ जाई.



पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखल करेनी.

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