का होई हमरा बाद ?

by | Feb 7, 2012 | 0 comments

बहुत दिन पहिले एगो कहानी सुनले रहीं. एगो नेताजी मंच से भाषण देत रहलें. कहत रहलें कि ऊ देश के हालात से बहुते चिन्तित रहेलें काहें कि गाँधी जी मर गइले, नेहरू जी मर गइलें आ हमरो तबियत खराबे चलत बा……………..

पता ना ऊ कहिया मर बिला गइल होखीहे आ देश जे बा कि आजुओ चलते जात बा. चलते जात रही.

बाकिर बाति एहिजा देश के नइखे. बात बा एहिजा एगो सपना के, एगो नशा के, एगो भरम के …. बात करत बानी अँजोरिया के.

आठ साल से अधिका हो गइल अँजोरिया के चलावत. एह बीच बहुते लोग आइल, भेंटाइल, कुछ दिन ले नियमित संपर्क में रहल फेर अपना अपना राहे चल गइल. बाकिर अबहीं ले केहु अइसन ना मिलल जेकरा से हमरा तोस मिले कि चलऽ केहु त बा जे एह अलख के जगवले रही. हमरा खुशी एह बाति के बा कि आजु भोजपुरी में वेबसाइटन के कमी नइखे. बहुते बाड़ी स. बाकिर केहु अइसन नइखे लउकत जे ….

कहल जाला कि अपना दही के कवनो अहिरिन खट्टा ना कहे. आपन जामल सबका प्यारा लागेला. हो सकेला कि कुछ अइसने होखे बाकिर तबहियो हमार चिता वाजिब बा. बाहर के बात त छोड़ीं अपने बेटा बेटी से उमेद ना राख सकीं कि एह अँजोर के ऊ आगा ले जा पइहें. एक त ओह लोगन के भोजपुरी से कवनो लगाव नइखे, दोसर ओह लोग का लगे ऊ नशा नइखे जवना में हम बानी.

शायद हमहु अतना दिन ले एकरा के चला ना पइतीं अगर हम अकेला ना होखतीं. हित मित दोस्त साथी केहु कतहीं नइखे. जे बड़का बा ऊ हमरा के ना चिन्हे, छोटका के हम ना चिन्हीं आ बरोबरी में केहु लउकत नइखे ! बस आपन अकेलापन अँजोरिया परिवार में काट लीहिलें. अकेले केहु करियो का सकेला ? खास कर के ऊ आदमी जे मानसिक तौर पर अकेला पड़ गइल होखे, कुछ अपना गलती से, कुछ हालात के मजबूरी से.

दोसर कारण ई कि भगवान का दया से घर परिवार चलावे लायक, जिये खाये लायक उपार्जन हो जाला आ अँजोरिया पर होखे वाला खरचा अखरे ना.

तिसर ई कि एकरा खातिर हम केहु पर आश्रित नइखीं. बीरबल लाओ ऐसा नर पीर बावर्ची भिश्ती खर. से अँजोरिया के सबकुछ हमहीं हईं आ अपना के तनखाह देबे के जरूरत ना पड़े.

बाकिर अब एक त धीरे धीरे उमिर बढ़ल जात बा. देर सबेर हाथ गोड़ जबाब देबे करी आ तहिया का होई ? का ई सपना एही तरे मर जाई ? का केहु अइसन बा जे एह अँजोर के अलख जगवले राख सकी. शायद ना !

काहे कि कवनो प्रकाशन के आपन एगो नीति होखेला, आपन रूल बुक होला. आ भोजपुरी में नौ कनौजिया तेरह चूल्हा वाला बाति जमाना से चलत आवत बा. अबर बानी दूबर बानी बाकिर भाई में बरोबर बानी. केहु दोसरा से कम नइखे आ जेही बा से हमरा से डेढ़ा अढ़ईया. ऊ हमार बैटन काहे ढोई, आपने चरखा काहे ना चलाई. हमार दुर्भाग्य कहीं कि अबहीं ले केहु वइसन ना मिल सकल जेकरा के अँजोरिया के भार दिहल जा सके.

आजु एह चिंता के जाहिर करे के कारण ई बा कि समय रहते अगर ना चेतल जाव त बाद में कुछ ना हो पावे. का बरखा जब कृषि सुखानी ? अबहीं समय बा. कुछेक साल हम ओह संभावित आदमी का साथ काम कर सकीले आ धीरे धीरे ओह आदमी पर जिम्मेदारी बढ़ावत जा सकीलें. हो सकेला कि एक आदमी ना बलुक कुछ लोग के समूह के प्रेसिडियम, मण्डल बना दिहल जाव जे एकर फैसला लेत रहे. बाकिर असल सवाल ई आवत बा कि एकर आर्थिक पक्ष कइसे देखल जाव. जहाँ ले निकट भविष्य के बाति बा हमरा कवनो अइसन राह नइखे लउकत जे एह पक्ष के समाधान देखा सके. आ कहल जाला कि जवना समस्या के समाधान ना होखे से समस्या ना रहि जाव जिनिगी के सच्चाई बनि जाला. ओकरा साथ जिये के पड़ेला.

शायद अइसहीं अँजोरियो चलत रही. बाद में ना त आखिरी साँस तकले. भा शायद ओकरो बाद कुछ दिन ले. के जानत बा ?

का होई हमरा बाद ?

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(3)


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(4)

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(7)
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