गीत नया हम गाईं कइसे ?

by | Oct 17, 2010 | 3 comments

घात मीत के, बात प्रीत के,
खेल कहानी हार जीत के,
सबका के बतलाईं कइसे?
गीत नया हम गाईं कइसे?

दोसरा के का बाति चलाईं
अनकर के का दोष देखाईं
अपने हार सुनाईं कइसे ?
गीत नया हम गाईं कइसे ?

अपने चिन्ता, अपने फिकिरे
कोल्हू के सभ बैल बनल बा.
आपन बोझ उतारीं कइसे ?
गीत नया हम गाईं कइसे ?

एने देखनी, ओने देखनी,
घर बाहर के कोना देखनी.
सबके बावे ओरहन हमसे ?
गीत नया हम गाईं कइसे ?

कहीं मिलल ना केहू साथी
चलनी हर दम राह अकेले
मन के पीर देखाईं केहसे ?
गीत नया हम गाईं कइसे ?


– ओमप्रकाश

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3 Comments

  1. आशुतोष कुमार सिंह

    भैया नमस्कार,
    राउर व्यथा के हम नीमन से बूझ रहल बानी. हम अंजोरिया के पाठक लोगन से निहोरा करे के चाहत बानी कि रउआ लोग भोजपुरी बढ़ावे खातिर आपन हाथ आगे बढ़ाई. उहां के पीड़ा एह से बा कि भोजपुरी के आगे बढ़ावे खातिर कवनो युवा हाथ आगे नइखे आवत. जवन अंजोरिया के अंजोर के हमनी तक पहुंचावे में उहां के सहयोग करे. रोज के आपन एक-दू घंटा अंजोरिया खातिर दान करे. अगर रउआ लोग में केहू इच्छुक होखे त ओपी भैया से बात करीं अउर उहां के पीड़ा के कम करीं.
    राउर

    आशुतोष कुमार सिंह

  2. omprakash amritanshu

    का लिखीं कुछ बुझात नइखे ,
    लिखे बीना रहात नइखे ,
    छुपल प्रीत बा गीत में राउर !
    बीन गुड के कईसे बनिहें जाउर !”

    ओमप्रकाश जी अच्छा लागल राउर रचना .
    धन्यवाद !
    राउर
    ओ.पी अमृतांशु

  3. रामरक्षा मिश्र विमल

    नमस्कार.
    एकदम सही बात.बहुत बढ़िया गीत.
    बाकिर एगो शिकायत बा. नायक कबो आपन चिंता ना करे, एही से ऊ नायक होला. रउँवा भोजपुरी के उचित सम्मान दियावे के, आदर्श रूप प्रदान करे के, बिगुल सबसे पहिले फुँकनी आ आपन स्तर खाली बरकरारे नइखीं रखले बलुक दिनोदिन ओकरा में बढ़ोत्तरी हो रहल बा. आजु ई संतोष के विषय बा कि कुछे दिन में जइसे बाढ़ि आ गइल बा बेबसाइटन के. एक हाथ से सइ हाथ.
    सृष्टि में खाली मनुष्ये त नइखन. सभकर आपन-आपन सुभाव बा आ केहू ओके छोड़ी ना. स्थितप्रज्ञ भाव से आगे बढ़त रहे के बा. अभी जिम्मेवारी कम नइखे भइल — मंजिल दूर अभी है साथी ! एह राह में चोट मिली, घाव मिली, अपेक्षा के ब्यंग मिली, द्वंद्व के असह परिताप भी मिली, बाकिर सबसे अलग जवन आत्मसंतोष मिली, ऊ सभ तकलीफ के मारि दीं. सुख के नाम पर हमनी के जवन मिलेला ऊ ई आत्मसंतोषे त हऽ.
    लीं, पता ना हम का-का कहि गइनी. हर संवेदनशील आदमी के ईहे कहानी बा.
    हम त बस अतने जानतानी कि भोजपुरी के विकास के जब इतिहास लिखाई त राउर नाम स्वर्णाक्षर में होई. अइसहीं विकास पथ पर बढ़त रहीं शुभकामना बा.
    राउर सहयात्री
    रामरक्षा मिश्र विमल

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(3)


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(4)

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(7)
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(5)

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