भोजपुरी पंचायत के जुलाई २०१३ के अंक सामने बा आ ओकरा के पढ़त घरी प्रभाकर पाण्डेय के लिखल व्यंग्य रचना के एगो लाइन पर आँख अटक के रहि गइल कि “बुरा जो देखन मैं चला, मुझसे बुरा ना कोय”. फेर याद आ गइल कहीं पढ़ल एगो चरचा. ओह में एगो आदमी अपना गुरू से पूछत बा कि पूजा करत सिगरेट पियल जा सकेला कि ना? गुरुजी कहलन कि एकदम ना. पूजा करत घरी सगरी धेयान भगवान पर होखे के चाहीं. ऊ आदमी फेर पूछलसि कि, अच्छा सिगरेट पियत घरी भगवान के याद कइल जा सकेला कि ना? गुरुजी कहलन कि, भगवान के याद करे के कवनो समय ना होला. सूतत, उठत, जागत, कवनो काम करत भगवान के याद कइल जा सकेला. आ ई याद आवते हमरा अपना चिंता के जवाब मिल गइल.
भोजपुरी में पत्रिका प्रकाशन होत रहेला बाकिर ठेठ भोजपुरिया पत्रिकन के कवनो भविष्य ना लउके. कबो भोजपुरी संसार पत्रिका प्रकाशित करे वाला मनोज श्रीवास्तव अब हिंदी में समेट लिहले बानी अपना के. हिंदी में प्रकाशित बाकिर भोजपुरी केन्द्रित पत्रिका “भोजपुरी पंचायत” के स्तरीय आ नियमित प्रकाशन हर बेर हमरा के चकित कर देला. कबो अँउजाइले कबो चकराइले. बाकिर फेर अपना मन के तोस दिहिलें कि चलऽ हिंदिए में सही भौजपुरी के नियमित चरचा त होखत बा.
भोजपुरी पंचायत के एह अंक में भोजपरी रचना में प्रभाकर पाण्डेय के व्यंग्य रचना, रमाशंकर श्रीवास्तव के छिउंकी के कुछ छौंक, बतकुच्चन के एगो कड़ी, रमाशंकरे श्रीवास्तव के लिखल भोजपुरी कहानी “पाहुन”, डा॰ गोरख प्रसाद मस्ताना के लिखल भोजपुरी खंड काव्य “एकलव्य” के समीक्षा करत डा॰ भगवती प्रसाद द्विवेदी के भोजपुरी लेख, तनी बोलऽ हो मैना, गुमसाईल हवा, आ भोजपुरी भागवत के पुस्तक परिचय देत बिहार भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष प्रो॰ रविकान्त दुबे के लिखल भोजपुरी आलेख पढ़ के मन खुश हो गइल. बाकिर भोजपुरी साहित्यकार आ आन्दोलनकारी डा॰ अरुणेश नीरन अउर दयानाथ लाल से हिंदी में कइल साक्षात्कार, संतोष कुमार के लिखल “कबीर भोजपुरी एवं चंपारण” नाम के शोध लेख, बिहार भोजपुरी अकादमी के बढ़ते कदम गिनावत लेख, आ अंतर्राष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव २१ जुलाई के पटना में होखे के जानकारी हिंदी में पढ़ के मन जरूर दुखी भइल. सोचनी कि का ई रचना सब भोजपुरी में ना दिहल जा सकत रहे? जब अइसन लोग आ संस्था आपन काम आपन चर्चा हिंदी में कइल चाही त भोजपुरी के का होखी. पर तब मान लिहनी कि “भोजपुरी अचार की भाषा है हिंदी विचार की”. जब भोजपुरी साहित्यकार ई बात कहीहें त अउर का बाँची कहे ला.
बाकिर लवटल जाव एह चरचा के मथैला पर कि बुरा जो देखन मैं चला तो मुझसे बुरा न कोय. आखिर का बात ह जे पिछला दस साल से लगातार भोजपुरी जियत अँजोरिया से कवनो भोजपुरी साहित्यकार भा आंदोलनकारी मन से ना जुड़ सकल. जरुर हमरे में कवनो कमी बा जे केहु हमरा से सट ना पावे. शुरुआत से अबले अनेके लोग जुटल बाकिर अलगा होत गइल काहे कि हमरा से जी हुजूरी ना हो पावे, झूठ मूठ के प्रशंसा ना कर पाईं, दरबार ना करीं ना चलाईं वगैरह वगैरह. भोजपुरी के बात अबहीं छोड़ दीं. बस ई बता दीं कि अँजोरिया के का होई? काहे अँजोरिया भोजपुरी साहित्यकारन का बीच लोकप्रिय ना हो पावल? शायद रउरा सलाह से कुछ फायदा हो सके.
– ओमप्रकाश सिंह
अंजोरिया नया रुप खुबे निक लागत बीया
प्रभाकर भाई,
टिप्पणी ला धन्यवाद. बाकिर ई बात हँसे लायक ना होके मन के दरद रहे जवन रहि रहि के सोझा आ जाले. मानत बानी कि भोजपुरी के बहुते साहित्यकारन के आशीर्वाद आ नेह छोह अँजोरिया के मिलल बा आ हमेशा मिलत रहेला. बाकिर भोजपुरी साहित्यकारन के एगो बहुते बड़हन हिस्सा ले आजुओ अँजोरिया नइखे चहुँपल. एह बात के हम हमेशा रेघरियवले बानी कि भोजपुरी के अधिकतर साहित्यकार कंप्यूटर से भवे भसुर के नाता राखेलें. ना नियरा जाए के बा ना छुए छुआए क बा. अगर अइसन ना रहीत त आजु भोजपुरी वेबसाइटन के ई गति ना भइल रहीत. कवनो पत्र पत्रिका वेबसाइट के संपादक से पूछ लीं पता चल जाई कि नया रचना मिले में कतबा दिक्कत बा.
हम अपना के वेबसाइटे ले सीमित राखीं तबहियों आजु भोजपुरी में चले वाला वेबसाइटन के कमी अखरे लागल बा. जे बा से अंगरेजी में भोजपुरी फिलिम आ गीत गवनई परोसे में लागल बा. गंभीर साहित्य देबे वाला आ भोजपुरी आन्दोलन से जुड़ल रहे वाला कवनो साइट नइखे लउकत.
अँजोरिया के सुभाव से “आहत” भोजपुरी के संगठन अब आपन खबरो अँजोरिया के ना भेजसु. जबकि भोजपुरी में होखे वाला विश्व सम्मेलनन के कबो कमी ना रहेला. कई बेर हमरा दोसरा जगहा से पता लागेला कि फलाँ दिने फलाँ जगह फलाँ संगठन के सम्मेलन भइल. मानत बानी कि हमार कमजोरी बा कि हम सभा सम्मेलनन में ना जा पाईं काहे कि रोजी रोटी के सवाल हमरा के कहीं आए जाए ना देव. बाकिर केहु के खबर हम ना लगाईं, ना प्रकाशित करीं अइसन ना होखे. तब काहे एह तरह के बेवहार?
राउर,
ओम
बुरा मति मानबि पर नीचे के लाइन के पढ़ि के हमार हँसी रुकत नइखें…रउआँ लिखतानी की ( काहे अँजोरिया भोजपुरी साहित्यकारन का बीच लोकप्रिय ना हो पावल? शायद रउरा सलाह से कुछ फायदा हो सके.) हा हा हा हा…अरे महराज..रउआँ कवने साहित्यकार लोगन के बात करतानी…खाली अच्छा लिखले से केहू साहित्यार ना हो जाला…जवले ओकरी आचरन में भोजपुरी ना झलके….अउर त हम देखतानी की अँजोरियां से केतने भोजपुरी, सशक्त, कर्मठ साहि्यार जुड़ल बाने….हमरी समझ में नइखे आवत की रउआँ कवने साहित्यकार लोगन से ए अनूठी पतरिका के जोड़ल चाहतानी….अरे महराज अँजोरियां की अँजोर में इ कथित साहित्यकारन (जवन रउरी हिसाब से साहित्याकार बा लोग) के ले आ के ए के धूमिल मत करीं…..का इहाँ जुड़ल साहित्यकार असाहित्यकार बाने…हा हा हा हा…अँजोरिया ही सही पहिचान बा भोजपुरी के, भोजपुरिया के….खाटी…जय हो ..जय हो…जय हो…
मनोज जी, हिम्मत बढ़ावे ला धन्यवाद. बाकिर जब पाठक पाठिका आपन राय एहिजा ना देसु त मन थोर त होखबे करेला. हम त चाहिले कि हर रचना पर प्रशंसा आ आलोचना हर पाठक पाठिका देबे लागे जेहसे कि सभकर उत्साह बढ़ो.
जब तक रउवा आ रउरा नियन लाल भोजपुरी माई के सेवा मे लागल बा तब तक भोजपुरी के कुछुवो ना बिगड़ी । मन थोर जन करीं, भोजपुरी के भविष्य उज्वल बा ।