कहे ला त देश में लोकतंत्र बा माने कि अइसन तंत्र जवन लोक के बनावल, लोग के चुनल, सरकार चलावेले बाकि हकीकत में देखी त आए दिन लोक बनाम तंत्र के कहानी दोहरावत जात रहेला. लोकतंत्र में जनता के आपन विरोध जतावे के पूरा आजादी होखे के चाहीं बाकि तंत्र, माने कि सरकार आ प्रशासन, के ई बरदाश्त ना होले. कवनो ना कवनो बहाने हर ओह विरोध के दबावे कचारे के काम कइल जाला जवन तंत्र पर सवाल उठावत होखे. हालांकि एह मामिला में हर विरोध का साथे एके तरीका से ना निपटल जाव. कुछ दुलरुआ वर्ग होलें, जवना के बोट सरकार अपना झोरी में बिटोरे का फेर में रहेले, आ एह दुलरुआ वर्ग के हर अतहत सरकार आ तंत्र हँस के झेल जाले.
दू तरह के एह बेवहार से जनता में एगो ना एगो गलत सनेसा जात रहेला जवन गँवे गँवे प्रेशर कूकर क तरह भितरे भितरे उसीनात रहेला आ एक दिन जब फफक के बाहर निकलेला त ओकरा सोझा हर तंत्र नाकाफी साबित हो जाला. अपनो देश के लोग में एह तरह के असंतोष बढ़ल जात बा आ सरकार आ तंत्र एह असंतोष से आँख मूदले अपना रफ्तार में बढ़ल जात बिया. देश में एकाध गो जवन बड़का दंगा फसाद भइल बा ओकरा पाछा अइसनके असंतोष रहल जवन कवनो खास मौका पर आखिरी तिनका जस डाँड़ तूड़ दिहलसि.
अगर एह तंत्र के लोक के परवाह रहल रहीत त आजु दिल्ली में नवहियन के विरोध प्रदर्शन पर कई दफा लाठी भाँजे के जरुरत ना पड़ल रहीत. सरकार के कवनो असरदार आदमी भा औरत एह असंतोष के आवाज सुन लिहले रहीत, कवनो ढंग के प्रतिनिधि मौका पर जा के नवहियन से बतिया लिहले रहितन त शायद लोकतंत्र के एगो स्वस्थ रूप नजर आइल रहीत. अगर वइसनका भइल रहीत त प्रदर्शकारियन के नारा गढ़े के मौका ना मिलित कि “हू हा हू हा, फलाना नेता चूहा”. जवना आदमी के एह देश के भावी प्रधानमंत्री बनावल बतावत जात बा पता ना काहे ऊ हर मौका पर गायब मिलेला. शायदे केहू के पता रहेला कि ऊ कहाँ बाड़े, का करत बाड़े, एह मसला पर उनकर राय का बा वगैरह वगैरह. गुजरात में नरेन्द्र मोदी के उदाहरण सभका सोझा बा. जे जनता के नब्ज पर हाथ रखले रहेला. जेकरा मालूम बा कि कब कहाँ का कहे के का करे के बा. अपना “गलती” ला माफी माँग लेबे के विनम्रता बा उनुका में आ एही चलते आजु देश के कोना कोना से नरेन्द्र मोदी के अगिला प्रधानमंत्री का रूप में देखे के भावना सुने के मिलत बा. राहुलो के चाहीं कि देश के लोक से एकरस होखे के कोशिश करसु, जनता के मानस समुझे के कोशिश करसु आ जनतो के लागो कि ई आदमी अनुभवहीन होखला का बावजूद कुछ सोच राखे वाला ह आ एह आदमी पर भरोसा कइल जा सकेला. तिकड़म से चुनाव ना जीतल जाव, तिकड़म से जनता के ना जीतल जा सके. तिकड़म से सरकार बनावल चलावल जा सकेला आ शायद राहुल एही गफलत में बाड़े कि अगिला चुनाव का बाद बाकी दल के नरेन्द्र मोदी के डर देखा के अपना साथे मिलावल जा सकेला.
नेहरू परिवार के चउथा पीढ़ी के राहुल से उनुका समर्थकन के बहुत उमेद बा. ओह लोगन के ना उमेद मत करसु राहुल. आ लोक बनाम तंत्र का जगहा अपना सरकार से कहसु कि सही मायने में लोकतंत्र जइसन हालात बनावल जाव.
– ओमप्रकाश सिंह