मानता हूं कि यह बात किसी दूसरे संदर्भ में कही गयी थी परन्तु भोजपुरी सिनेमा और संगीत, टीवी शो वगैरह के बारे में भी यही बात है. पिछले दिनो एक सामग्री मेरे पास ईमेल से आई थी. लगा किसी ने भोजपुरी सिनेमा की समीक्षा की है और खुद को अनजान बनाये रखते हुये उसने वह सामग्री लिख भेजी है. मैंने उस ईमेल का हेडर देखा था, आईपी देखा था और मेल भी चेक किया था. उस नाम से ईमेल आईडी बनी हुयी है और उसी ईमेल से सामग्री भेजी गयी थी. बाद में एक प्रवक्ता ने एक अभिनेत्री के बारे में अचछी बाते लिख भेजीं और वह भी प्रकाशित हुई.
दोनो सामग्रीओं के बीच का विरोधाभास देख कर एक पाठक ने टिप्पणी लिखी है कि एसा क्यों है ? आपमें से बहुत से लोगों को मालूम होगा और होना चाहिये कि भोजपुरी की इन वेबसाइटों का प्रकाशन बलिया से होता है जो मायानगरी से बहुत दूर है. जो प्रकाशित करता है वह इतना व्यस्त है कि उसे फिल्में देखने का अवकाश नहीं मिलता. कई बार मुझे यह भ्रम भी हो जाता है कि यह चित्र किसका है ? पर आपमें से तो बहुत से लोग फिल्में देखते हैं. वो फिल्में आपको अच्छी लगती होगी या उसका कोई पहलू आपको खराब भी लगता होगा. आपको किसने रोका है अपने मन की भँड़ास निकालने से ?
मैं तो चाहूंगा कि इस वेबसाइट का आम पाठक अपनी बेबाक राय लिख भेजे. उस लिखने में कोई निजी विद्वेष नहीं होना चाहिये. दही बेचने वाला अपनी दही को खट्टा तो कहेगा नहीं. मेरे पास जो सामग्री आती है उसका प्रकाशन इसलिये किया जाता है कि भोजपुरी में काम करने वाले हर आदमी को प्रोत्साहित करना इस वेबसाइट समूह का उद्देश्य है. भोजपुरी का कोई भी अभिनेता सुपर स्टार से कम नहीं होता, कोई भी फिल्म सुपर डुपर हिट से कम नहीं होती. पर निर्माता उस फिल्म को बनाने में कई बार इतना दिवालिया हो जाता है कि दुबारा कोई फिल्म बनाने का दुस्साहस नहीं करता. कुछ जमे जमाये निर्माताओं को छोड़ दीजिये तो अधिकतर फिल्में फाइनेन्सरों की कृपा से बनती हैं. जिस निर्माता को परिवार के बाहर का अभिनेता या अभिनेत्री लेना होता है वह उसकी कीमत चुकाने के बाद इस लायक नहीं रह जाता कि फिल्म की गुणवत्ता पर ध्यान दे. इस माहौल में जैसी फिल्में बन पाती हैं वही बन रही हैं.
सोचना चाहिये कि क्या बात है कि भोजपुरी में कोई पाथेर पांचाली नहीं बनती, कामर्शियल सिनेमा की बात करें तो कोई थ्री इडियट नहीं बनती, कोई तीसरी कसम नहीं बनती. कई बार देखता हूं कि निर्माता, निर्देशक, लेखक, पटकथा लेखक, संवाद लेखक, गीतकार और यहाँ तक की संगीतकार भी एक ही आदमी है. बहुत सारी फिल्में उसके नायक के अपने पैसों से बनती हैं. जितनी फिल्मों का मुहुर्त होता है उसकी आधी फिल्में भी रिलीज नहीं हो पातीं. वगैरह वगैरह.
सवाल है, इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है ? क्या सिर्फ वह निर्माता या वह पीआरओ ? या हम सब. जिनमें फिल्मों के दर्शक भी शामिल है. अरे भाई, आपने अपने पैसे से फिल्म देखी और फिल्म आपके अनुमान जैसी नहीं निकली तो फिर आप चुप क्यों हैं ? अपनी भँड़ास क्यों नहीं निकालते ? लिख भेजियें अपनी बेबाक राय, एक माहौल तो बनाइये जिसमें निर्माता निर्देशक को भी पता चले कि दर्शक को क्या बात अच्छी लगी, क्या बुरी ? अगर आप नहीं लिखते, नहीं बोलते तो हम क्या करें ? खुद अपनी राय आप पर थोपें ? अँजोरिया पर पहली बार ऐसा हुआ था कि प्रचारकों के नाम के साथ सामग्री प्रकाशित हुआ. वरना असल लेखक का तो पता ही नहीं चलता था. कुछ मेरी मजबूरी भी थी. मुझे नहीं मालूम था कि कौन सा चेहरा किस अभिनेता या अभिनेत्री का है, कौन सी फिल्म में क्या सही है क्या गलत. सो मैंने तय किया कि भेजने वाले का नाम भी प्रकाशित कर दिया जाय.
सबसे बड़ा दुख तो इस बात का है कि आप आते हैं. जो कुछ भी प्रकाशित हुआ रहता है, उसे पढ़ते हैं या सिर्फ तस्वीरे देख कर आगे बढ़ जाते हैं. अपनी बात कहने में आपको संकोच होता है. जबकि आप बिना हिचक अपनी बात कह सकते हैं और जब तक उसमें किसी अभद्र शब्द का प्रयोग नहीं होता, कोई व्यक्तिगत विद्वेष नहीं झलकता तो उसे निसंदेह प्रकाशित किया जायेगा. आप देखते भी होगें कि हर तरह कि टिप्पणी प्रकाशित होती रहती हैं, फिर आप क्यो चुप रहते हैं ?
अँजोरिया वेबसमूह “ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर” के सिद्धांत पर चलता है. आप अपनी राय बिना हिचक दिया करें. आज के बाद जब भी आप कोई भोजपुरी फिल्म देखें तो उसे आलोचक की नजर से देखियें और फिर उसपर अपनी राय लिख भेजियें. अगर देवनागरी लिपि में लिखने में कठिनाई होती है तो उसे रोमन में लिख भेजिये.
आपकी राय का हमें हमेशा इन्तजार रहता है पर आप हैं कि कुछ कहते नहीं !
आपका,
संपादक, अँजोरिया
sir, wakai nirbhikta se likha hai aapne, hum aapke aabhari hai shashikant singh