भोजपुरी फिलिमन के फोर्मुलेबजी ओहनी के देशी-विदेशी फिल्म फेस्टिवल्स से बाहरे राखेले. पइसा कमाये के आन्हर दउड़ मे फिल्मकार जड़-जमीन से जुड़ ना पावसु. से ऊ लोग भला मुद्दा के बात करबो करे त का आ कइसे? एही चलते एह फिलिमन के फिल्म फेस्टिवल्स त दूर, थियेटरों में केहू गंभीरता से ना लेव. बाकिर सिनेमा भोजपुरी के एह रचनात्मक दिवालियापन से बाहर निकालत निर्देशक शैलेश श्रीवास्तव ओकरा के अंतर्राष्टरीय कैनवास पर पेश करे के बीड़ा उठवले बाड़न.
“ससुरा कब्बो दामाद रहल” अउर “तुलसी बिन सूना अगनवा” जइसन पारिवारिक फिलिमन में सुर्खियन में आइल शैलेश श्रीवास्तव अब भोजपुरी सिनेमा के एगो संवेदनशील मुद्दा से जोड़े के कोशिश कइले बाड़न. एगो साँच घटना पर बनल फिल्म “हमका ओढ़ावे चदरिया” में एड्स मरीजन खातिर समाज के असंवेदनशील रवैया देखावल गइल बा. मौत की घड़ी गिनत एड्स मरीजन खातिर ई सामाजिक उदासीनता उनका दरद के अउरी बेसहाउरि बना देले. एही मुद्दा के फिल्म में उठावे के कोशिश भइल बा
चौबीस मिनट क ई डॉक्युमेंट्री फिल्म इंडिया इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में आपन झंडा फहरवला का बाद अब न्युयोर्क फिल्म फेस्टिवल में भेजल गइल बा. उमेद बा कि एह फिल्म से भोजपुरी फिलिमन के दुनिया के स्तर पर सम्मान जनक विस्तार मिल पाई.
स्पेस क्रिएटिव मीडिया के रपट से
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