Ram Raksha Mishra Vimal

– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

हम छुट्टी ना रहला का कारन गायन के गिनल-चुनल कार्यक्रम दिहींले. एहसे जहाँ गावल असहज लागी, ओहिजा पहिलहीं मना कऽ दिहींले. पहिलहीं जानकारी ले लिहींले कि कवना तरह के प्रोग्राम बा आ के-के आवऽता. ठीक लागल त सँकार लिहलीं, नाहीं त कवनो बहाना कऽ के हाथ जोरि लिहलीं. कुछ दिन पहिले अपना एगो मित्र आ सीनियर भोजपुरी गायक से दुख-सुख बतियावत रहीं. पुछलीं – भइया रउरा अइसन कठिनाई होला कि ना ? उहाँके जवाब से संतोष त मिलल बाकिर मन बहुत दुखियो भइल. कहलीं कि, देखऽ विमल ! हम त साफ-साफ कहि देलीं कि हम जवन गाईंले तवने गाइबि. ऊहे सुनेके होखे त एडवांस रहे दऽ, ना त ले जा. अब भोजपुरी गावल बहुत कठिन हो गइल बा. लोकगीत गाइबि त छठे-छमासे कबो प्रोग्राम मिल जाई आ आज-काल्ह के लइका जवन गावतारे सन ऊ गाइबि त रोजे चानी बा. भाई, अब दोसरका त हमनी से संभव नइखे. एहसे हम अपना श्रोता वर्ग के निर्धारण कऽ लेले बानी. हम अब कवनो चिंता ना करीं. खाए-पीए के पइसा नोकरी से मिल जाला, गायन के खाली सवख खातिर रखले बानी. कुछ सरकारी प्रोग्राम मिल जाला. अब ओहमें केहू ऊ वाला गाना गावे के प्रेसर त नाहिंए दी. बस ठाट से गाईंले. ऊ वाला गाना माने फूहर गाना, जवन तथाकथित सभ्य लोगन खातिर सुनल संभव नइखे भा जवना गीतन के केहू खासकर भोजपुरी जाति अपना बेटी बहिन का साथे नइखे सुनि सकत.

हमार ई समस्या हमरा अकेले के नइखे. अब ई सभके भोगेके पड़ रहल बा. जे प्रोफेसनल गायक बा आ स्थापित हो गइल बा, ऊ कसहूँ आपन ईजति बँचा रहल बा काहेंकि इलेक्ट्रॉनिक चैनल उनका के जिंदा रखले बाड़े सन बाकिर जे समय भा जोगाड़ का अभाव में उहनी से नइखे जुड़ल ऊहन लोग के त खटिया खाड़े समुझीं. हिंदी आ पंजाबी के प्रभाव (प्रकारांतर से पाश्चात्य संगीत के देखा-देखी) अइसन रहल कि बइठिके गावल जइसे अब बंदे हो गइल. खड़ा होके गवला का सङही कुछ नचनियो लोगन के प्रोग्राम में राखल जरूरी हो गइल, एगो गजबे चलन चल गइल. म्यूजिको इंस्ट्रुमेंट्स के संख्या बढ़े लागल, सङहीं मंच आ माइको के इंतजाम महङा होखे लागल. अब कइसे कराई केहू चौपाल पर कार्यक्रम ? भोजपुरी संगीत के आयोजन दिनोदिन महङा होत जा रहल बा. हद त तब हो जाला जब गायन में सुर के महत्व ताख प धरा जाला आ गायक लो’ नाचे में लाग जाला. एहिजो तक ठीक बा चलि जाई बाकिर गायक जी महाराज, रउँआ अब का करबि ? अब गायक जी साड़ी पहिनि के गावे लगले. उतरबि कंपटीशन में ?

बहुत नीक लागेला जब केहू भोजपुरी लोकगीत सुनावेला. बाकिर आज के पीढ़ी सुनहीं के तइयार नइखे. एकरा चटक मसाला चाहीं. डाँड़ ना हिलल आ मुह से सीटी ना निकलल त गाना के कवनो मतलबे ना भइल. बुझात नइखे कि एह परिवर्तन के राज का बा काहेंकि ई बदलाव हर घर में आइल बा ? हमरा खयाल से एकर दोष वैश्वीकरण आ वॉलीवुड के कुछ-कुछ दिहल जा सकऽता. इंटरनेट आ इलेक्ट्रॉनिक चैनलन के कमाल ई बा कि एह पीढ़ी के अपेक्षा के दायरा बढ़ि गइल बा. ऊ जवन देखी-सुनी आ नीक लागि जाई, ऊहे नु खोजी ? एमें ओकर दोष कहाँ बा ? हिंदी गीतन में तथाकथित फुहरकम जवना बिंदु तक स्वीकार्य बा, घर-घर में गावे-बजावे में केहू के आहस नइखे लागत, ओकरा से बहुत कम में जब ऊ भोजपुरी में आ जाता त आदमी घिनाए लागऽता. अतना भेदभाव काहें ? हिंदी फिल्मी गीतन पर अतना मेहरबान काहें बानी सभे ? ईहो त हो सकऽता कि एकरा पीछे एकरे प्रभाव होखे. आखिर फुहरकम एह स्तर तक पइसल कइसे हमनी के संस्कृति में ? जिम्मेदारी त फिक्स करहीं के परी, बाकिर सगरी मंथन का बाद. जल्दीबाजी में कुछो कहल ठीक ना होई.

जो एकरा के गिरावट का नजर से देखल जाई त हर क्षेत्र में ई गिरावट आइल बा. साहित्य, शिक्षा आ नैतिक मूल्य का साथे बेवहारो में ई गिरावट आसानी से लउक जाई. कुछ अइसने परिस्थिति लता जी का साथे शुरुआत में रहे. शास्त्रीय संगीत के महारथी लोगन के ब्यंग बाण उहाँके खूब झेलेके परल रहे. आलोचक लोगन के कहनाम रहे कि फिल्मी संगीत लोगन के कान बिगार देले बा, एहसे शास्त्रीय संगीत के सत्यानाश हो रहल बा, भारतीय संगीत में गिरावट आ रहल बा. तब कुमार गंधर्व जी लता जी के पक्ष में तर्क देले रहीं कि फिल्मी संगीत श्रोता लोगन के कान बिगरले नइखे बलुक सुधारि देले बा. आजु लोगन के स्वर ज्ञान बढ़ रहल बा, सुरीलापन के समझ में बढ़ोत्तरी हो रहल बा, तरह-तरह के लय के प्रकार भी सुनाई पड़ रहल बा. एह तरह से कहल जा सकऽता कि लता नया पीढ़ी के संगीत के संस्कारित कइले बाड़ी. का लता तीन घंटा के महफिल जमा सकऽतारी ? एह प्रश्न पर कुमार गंधर्व जी उलटे प्रश्न कइलीं कि का कवनो एक नंबर के गायक तीन मिनट के फिल्मी गीत लता नियन कुशलता आ रसोत्कटता से गा सकेला ? ई लता के खासियत बा, दोष ना. रउँओ सभ कुछ अइसने कर देखाईं, केहू मना करऽता ? एमें लता के माथे दोष मढ़ला के माने का बा ? आ समय एकर गवाह बा कि लताजी के देश का, दुनिया स्वीकार लिहल आ एह तरह के आरोप लगावे के फेरू केहू के हिम्मत ना परल. एह उदाहरण का माध्यम से हम एगो दृष्टिकोण राखल चाहतानी. एहू कोण से विचार कइल जा सकऽता काहेंकि संस्कृति आ संगीत के जवना अवमूल्यन से हम, रउँआ, इहाँका, उहाँका- सभे चिंतित बानी, ओकरा फइलाव का केंद्र में केहू एक, दू भा तीन आदमी नइखे. ई बदलाव व्यापक पैमाना पर बा. एह से एकरा कारन का मूल में गइल बहुत जरूरी बा, छी मानुख में एकर समाधान नइखे.

हमरा एह नया दृष्टिकोण का पीछे ठोस आधारो बा. जो बिरहा, लोरकी आदि कुछ खास शैली के छोड़िके चलल जाउ त बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक के कुछ पहिलहीं से भोजपुरी संगीत में एकल गायन का ओर खिंचाव बढ़े लागल रहे. ओहसे पहिले भोजपुरी में रामायण गायकी (सामूहिक गायन शैली) के बोलबाला रहे जवना में बच्चन मिश्र, बीरेन्द्र सिंह, धुरान, राम एकबाल-तिलेश्वर आदि के चलती रहे. एकल शैली के कार्यक्रम पहिलहूँ चलत रहे. एह में बवना बाबा, बच्चा मिश्र, शंकर चौबे आदि गायक अपना-अपना एरिया में लोकप्रिय रहे लोग बाकिर एह लोगन के कवनो टेप ना बाजत रहे. विंध्यवासिनी सिंह, खलील, भरत सिंह भारती आकाशवाणी पर प्रसिद्ध रहे लोग. एह मामला में बिरहा में बालेश्वर के, नाच में चाई ओझा के , नया चाल के लोकगीतन के महिला वर्ग में शारदा सिंह आ पुरुष वर्ग में मुन्ना सिंह के कैसेट बाजत रहे. एह घरी पुरुष वर्ग में विविध तरह के गायकी के अभाव रहे. तब भरत शर्मा के जुड़ाव कैसेट कंपनियन से भइल आ ऊ रामायण गायन से निकल के एकल संगीत में आ गइले. बाकिर कुछे दिन बाद भोजपुरी संगीत खातिर ढेर लोकल कैसेट कंपनी खुल गइली सन आ नया-नया प्रतिभा के ताँता लागि गइल. लोकगीत के हर क्षेत्र खङ्घराए लागल. बदलाव के नया दौर मनोज तिवारी से शुरू भइल. एकरा पहिले पुरुष वर्ग में हाई स्केल से गावेवाला लोगन के तूती बोलत रहे बाकिर मध्यम से गावेवाला मनोज तिवारी के श्रोता काफी तेजी से बढ़ि गइले. गायको लोगन में इनके ज्यादा अनुकरण भइल. मंच पर खड़ा होके गावल आ सुनल लोगन के नीक लागे लागल. सुर का हिसाब से पवन सिंह आ विषय का हिसाब से देवी भी एह दिसाईं लोकप्रिय भइली. ओइसे त आजु भोजपुरी के सर्वाधिक चर्चित महिला गवनिहारन में कल्पना के नाँव बा बाकिर भिखारी ठाकुर के गीतन के गंभीर प्रस्तुति का बाद उनुका कद में जबर्दश्त बढ़ोत्तरी भइल. दुर्भाग्य से एही काल में कुछ सस्ता लोकप्रियता बटोरेवाला पुरुष गायक लोगन के पदार्पण भइल, जे प्रतियोगिता के फुहरकम का दिशा में मोड़िके रातो-रात प्रसिद्ध हो गइले. बाकिर, पान-छव बरिस से ज्यादा ना चलल ई लोग. एह लोगन के कैसेट अपने आप बिकल बंद हो गइल| इहाँ सभ जवना फुहरकम पर उतर गइल रहीं, ओकरा बाद कुछ बाँचत ना रहे. ओहू घरी अश्लील गायकी पर खूब हल्ला भइल रहे, बाकि धीरे-धीरे दबि गइल आ ईहों सभ ठंढा गइलीं. बाकिर एह प्रवृत्ति आ तकनीक के विषाणु खतम ना भइल रहन सन. एकइसवीं सदी का आरंभ से पॉप संगीत के नाम पर, विशेष करके नृत्य खातिर बनल गीतन के दौर आइल आ तकनीक का सङही विषय सामग्री में भी बदलाव आइल. सामाजिक, पारिवारिक आ राष्ट्रीय समस्या लोकप्रिय भइली सन बाकिर कवनो नियंत्रण का अभाव में कामुक विषय फेरू से जोर पकड़े लागल, जवना के लोग दबल आवाज में फूहड़ कह रहल बा. अबकी एकरा इलेक्ट्रॉनिक चैनलन के भी सहयोग मिल गइल आ एह तरह से फफन गइल. इतिहास बतावता कि फूहड़ गीतन के उमिरि ढेर ना होखे, बाकिर एह पारी ई भोजपुरी पर सटीक नइखे बइठत. आखिर एकर कारन का बा ? खाली बिरोध से एह पर काबू पावल जा सकऽता का ?


डा॰ रामरक्षा मिश्र विमल जी भोजपुरी के प्रतिष्ठित कवि साहित्यकार होखला का साथही गायको हईं एहसे एह विषय पर इहाँ के लिखल ई लेख मथे जोग बा. आशा बा कि रउरो सभे एह बारे में आपन राय जरूर देब.
– संपादक

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One thought on “भोजपुरी गीतन में फूहड़ता”

कुछ त कहीं......

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