लोक कवि अब गाते नहीं (२)

by | Jan 31, 2011 | 0 comments

(दयानंद पाण्डेय के लिखल आ प्रकाशित हिन्दी उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद)


पहिलका कड़ी से आगे…..

बाकिर लोक कवि के दायरा अब बढ़े लागल रहे. सरकारी, गैर-सरकारी कार्यक्रमन में त उनुकर दुकान चलिये निकलल रहे, चुनावी बयारो में उनुकर झोंका तेज बहे लागल रहे. एक से दू, दू से चार, चार से छह, नेता लोग के संख्या लगातारे बढ़त जात रहे. बाति विधायक लोग से मंत्री लोग तक जाये लागल. एगो केंद्रीय मंत्री, जे लोक कवि के जवारे के रहले, त लोक कवि के बिना चुनावी त का कवनो सभा ना करत रहसु. एकरा बदले में ऊ लोक कवि के पइसा, सम्मान, शाल वगैरह गाहे बगाहे देत रहसु. लोक कवि अब चारो ओरि रहले. अगर ना रहले त कैसेट कंपनियन का कैसेटन में. एच॰एम॰वी॰ लोक कवि के दुअर्थी गाना वाला छवि हो गइला का चलते उनुकर कवनो नया रिकार्ड निकाले से पहिलही कतरात रहुवे, कैसेटो का जमाना में ऊ आपन गाँठ बान्हले रखलसि. लोक कवि जब संपर्क करसु त उनुका के आश्वासन दे के टरका दिहल जात रहे. ई तब रहे जब लोक कवि का लगे गाना के अंबार लाग गइल रहे. उनुकर समकालीनन के का कहल जाव, नवसिखीया लौंडन तक के कैसेट आवे लागल रहे बाकिर लोक कवि एह बाजार से गायब रहले. जबकि ओहू घरी उनुकर गाना के किताब बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन पर बिकात रहे. उनुकर टिकट शो होखत रहे. बाकिर लोक कवि परेशान रहले. उनुका बुझाव जइसे बाजार उनुका हाथ से सरकल जात बा. ऊ जइसे अफना गइले. संघर्ष के एगो नया दौर उनुका सामने रहुवे जवना के ऊ हर केहू से बतावलो ना चाहत रहले. खाये के नइखे, पेन्हे के नइखे, रोजी रोजगार नइखे, का बारे में ऊ पहिले केहू से मौका मिलते कह-सुन लेत रहन. बाकिर सफलता के एह पायदान पर खड़ा ऊ केकरा से कहसु कि हमरा लगे कैसेट नइखे, हमार कैसेट निकलवा दीं. कबो कबो यारे-दोस्त लोग भा समकालीनो बड़ा मुलायमित से लोक कवि पर टोंट मारत पूछ देव, राउर कैसेट कब आवऽता? लोक कवि एह टोंट के मर्म समुझतो हँस के टाल देसु. कहत, कैसेटवो आ जाई. कवन जल्दी बा ? फेर जइसे मुँह छुपावत जोड़ देसु, अबही किताब बिकाये दीं.

बाकिर कैसेट ना अइला से उनुका मनोबल पर त जवन असर पड़त रहुवे से त पड़ते रहुवे, मेलो-ठेला, शादी-बियाह में ऊ अब ना बाजत रहले. काहे कि अब हर जगहा कैसेट बाजत रहे, एल॰पी॰रिकार्ड चलन से बहरी जात रहुवे. आ लोक कवि का लगे हिट गाना रहे, दू दू गो एल॰पी॰रिकार्ड रहे, बाकिर कैसेट ना रहे. एच॰एम॰वी॰ के अनुबंध उनुका के बन्हले रहुवे आ ओकर टरकावल उनुका के खइले जात रहे. आ अभ त उनुकर संगियो-साथी आ शुभचिंतको, धीरही सही, टोक देसु, “गुरुजी, कुछ करीं. ना त अइसे में त मार्केटे से बाहर हो जायब.”

“कइसे बाहर हो जायब !” ऊ डपटसि, “हई कार्यक्रम सब जवन कर रहल बानी, त का ई मार्किट ना ह ?” डपट के उहे रोआइन हो जासु. साथही एह उधेड़बुन में लाग जासु कि का ऊ सचहू बाजार से बहरी जाये का राह पर बाड़न ? लोक कवि के समस्ये असल में ईहे रहे कि कैसेट बाजारी से निकलि के घरो में बाजल लागल रहे आ ऊ नदारद रहले. लोग एल॰ पी॰ रिकार्ड बजावल करीब करीब बन्द कर दिहले रहे. ऊ इहो महसूस करसु कि उनकर संगी-साथी आ शुभचिंतक, जे उनुका से बाजार से बाहर होखे के सवाल पूछत रहसु, गलत ना रहे लोग. बाकिर ई सवाल उनुका के पुलकावत ना रहे पिनकावत रहे. दिन-राति ऊ इहे सब सोचसु. सोचत-सोचत ऊ विषाद आ अवसाद से भर जासय. बाकिर उनका जवाब ना मिले. जवाब ना मिले त ऊ पी के मिसिराइन का साथे सूत जासु. बाकिर सूतियो कहाँ पावत रहले ? कैसेट मार्केट के डंक उनुका के सूतही ना देव. ऊ मिसिराइन के बाँहि में दबोचले छटपटात रहसु. पानी से बाहर फेंकाइल मछरी का तरह ऊ भाग के फेर अपना मेहरारू का लगे जासु. ओहिजो चैन ना मिले. भाग आवसु विधायक निवास के ओह गैराज में जवन उनका आवंटित रहे. गैराज में रह के कवनो नया गाना का तइयारी में लाग जासु. आ सोचसु कि कबहियो त कैसेट में ईहो गाना समइहे सँ. फेरु गइहन गली-मुहल्ला, घर का अँगना-दालानन में, मेला, हाट-बाजारन में.

बरास्ता कैसेट.

फिलहाल कैसेत के एह गम के गलत करे खातिर लोक कवि एगो म्यूजिकल पार्टी बना लिहले. अब ले उनुका लगे बिरहा पार्टी रहे. एह बिरहा पार्टी में साथ में तीन गो कोरस गावे वालन आ संगत करे वालन में हारमोनियम, ढोलक, तबला, आ करताल बजावे वाला रहले. बाकिर एह म्यूजिकल पार्टी में ओह तीन गो कोरस गावे वालन का अलावा एगो लड़की साथ में युगल गीत गावे खातिर, दू गो लड़की मिल-जुल के भा अकेले गावे खातिर, आ तीन गो लड़की डांस करे खातिर बढ़ गइली. एही तरह इन्स्ट्रूमेंटो बढ़ गइल. बैंजो, गिटार, बाँसुरी, ड्रम ताल, कांगो, वगैरहो ढोलक, हारमोनियम, तबला, आ करताल का साथे जुड़ गइले. लोक कवि के म्यूजिकल पार्टी चल निकलल. से ओहमें निमन हिंदी बोले वाला एगो उद्घोषको, जवना के ऊ अनाउंसर कहसु, के शामिल कर लिहले. ऊ अनाउंसर हेलो, लेडीज एंड जेंटिलमैन जइसन गिनल-चुनल अंगरेजी शब्द त बोलबे करे, जब-तब संस्कृतो के श्लोक उचारे का, ठोक देत रहे. लोक कवि के स्टेज के ग्रेस बढ़ि जाव. एह तरह धीरे-धीरे लोक कवि के म्यूजिकल पार्टी लगभग आर्केस्ट्रा में तबदील हो गइल रहे. त लोक कवि के एकर फायदो भरपूर मिलल. प्रसिद्धि आ पइसा दुनु ऊ कमात रहले आ भरपूर. अब बाजार उनुका दुनु हाथ में रहे. जे केहू कबो टोकबो करे कि, “ई का कर रहे हैं कवि जी ?” त लगभग ओकरा के गुरेरत ऊ कहसु, “का चाहते हैं जिनिगी भर कान में अगुरी डाल के बिरहे गावत रहें ?” लोग चुप लगा जाव. बाकिर लोक कवि त गावसु, “अपने त भइलऽ पुजारी ए राजा, हमार कजरा के निहारी ए राजा !” हँ, साँच इहे रहे कि लोक कवि के मशहूरी के ग्राफ अइसन गाना का चलते उफान मारत रहे जवन उनुका टीम के लड़की सभ नाचत गावें. ऊ गाना जवन लोक कवि के लिखल आ संगीत में बुनल रहत रहे. आ केहू अब जवन कहे, एह गानन का बदौलत लोक कवि बाजार पर चढ़ल रहसु.

आखिर उहो दिन आ गइल जब लोक कवि कैसेट का बाजार पर चढ़ गइले. एगो नया आइल कैसेट कंपनी उनुका से खुदे संपर्क कइलसि. लोक कवि पहिलका रिकार्ड कंपनी से अपना अनुबंध के लाचारी जतवले. बाकिर आखिर में तय भइल कि अनुबंध तूड़ला पर जवन मुकदमा होखी ओकर खर्चा ई नयका कंपनी उठाई. आ लोक कवि के धड़ाधर चार-पाँच गो कैसेट साले भर में बाजार में आइये ना गइल, छाइयो गइल. एने उनुकर चेलो-चाटी गावत झूमसु, “ससुरे से आइल बा सगुनवा हो, हे भउजी गुनवा बता दऽ.”

अब होखे ई कि लोक कवि सरकारी कार्यक्रम में त देवी गीत, निर्गुन आ पारंपरिक गीत गावसु आ एकाध गाना ऊ जवना के ऊ “शृंगार” कहसु, उहो लजात सकुचात गा-गवा देसु. बाकिर कैसेटन में ऊ खालि शृंगारे ना भयंकर शृंगार “भरसु” आ अपना म्यूजिकल टीम का मार्फत मंचन पर ऊ “सगरी कुछ” लड़कियन से ओकनी का नाच में परोसवा देस जवन कि जनता “चाहत” रहे. अब खालि उनुकर कैसेटे धड़ाधड़ बाजार में ना आवे लागल रहे, बलुक लोको कवि अब बंबई, आसाम, कलकत्ता से आगा थाईलैंड, सूरीनाम, हालैण्ड, मारीशस जइसन विदेशनो में साल दू साल में जाये लगले. अतने ना, अब उनुका के कुछ ठीक-ठाक “सम्मान” दे के कुछ संस्था-समिति सम्मानितो कइलसि. ई सगरी सम्मान आ कुछ लोक कवि के जोड़-गाँठ रंग देखवलसि आ ऊ राष्ट्रपति का साथे भारत महोत्सव का जलसन में अमेरिका, इंगलैण्ड जइसन कई गो देश में आपन कार्यक्रम पेश कर अइले. ई सब खालि उनुके खातिर अकल्पनीय ना रहे उनुका प्रतिद्वंद्वियनो खातिर रहे. प्रतिद्वंद्वियन के विश्वासे ना होखे कि लोक कवि एहिजा ओहिजा हो अइलन आ उहो राष्ट्रपति का संगे. बाकिर लोक कवि बड़ा शालीनता से कहसु, “ई हमार ना, भोजपुरी के सम्मान हऽ.” सुन के उनुका प्रतिद्वंद्वियन का छाती पर साँप लोट जाव. बाकिर लोक कवि पी-पा के सुंदरियन का बीचे सूत जासु. बलुक अब त ई हो गइल रहे कि बिना सुंदरियन का बीचे पी-पा के लेटले उनुका नींदे ना आवे. कम से कम दू गो सुंदरी त जरुरे रहे एगो आजू, एगो बाजू. आ उहो नया-नवेली टाइप. लोक कवि सुंदरियन का नदी में नहात बाड़न ई बाति अतना फइलल कि लोग कहहू लागल कि लोक कवि त ऐय्याश हो गइल बाड़न. बाकिर लोक कवि एह “आलतू-फालतू” टाइप बातन पर धेयाने ना देसु. ऊ त नया गाना “बनावे” आ पुरान गाना “सुपर हिट” बनावे का धुन में छटकत रहसु. एह ओह अफसर के, जवन तवन नेता के साधत रहसु. कबो दावत दे के, कबो ओकरा घरे जा के त कबो कार्यक्रम वगैरह “पेश” करि के. एहिजा उनुकर विधायक निवास में टेलीफोन ड्यूटी वाला संपर्क साधे के तजुर्बा बहुते कामे आवे. से लोग सधत रहसु, आ लोक कवि छटकत-बहकत रहसु.

एगो ऊ दिन रहे जब लोक कवि बहुते आगा रहले आ उनुका पीछे दूर दूर ले केहू ना रहे.

अइसनो ना रहे कि लोक कवि का आगा उनुका ले बढ़िया भोजपुरी गावे वाला केहू ना रहे. बलुक लोक कवि से निमन भोजपुरी गावे वाला बहुत त ना बाकिर चार छह जने त शिखरो पर रहले. बाकिर ऊ लोग संपर्क साधे आ जुगाड़ बान्हे में पारंगत ना रहे. उलटे लोक कवि ना सिर्फ पारंगते रहले बलुक एहू से आगहू के कई गो कला में ऊ प्रवीणता हासिल कर चुकल रहले. ऊ गावतो रहले, “जोगाड़ होना चाहिये” भा “बेचे वाला चाहीं, इहाँ सब कुछ बिकाला”. लोक कवि के आवाज के खुलापन आ ओहूमें घोराइल मिसिरी जइसन मिठास में जब कबो कवनो नया-पुरान मुहावरा मुँह पावे त लोक कवि के लोहा मान लिहल जाव. आ जब ऊ “समधिनिया के पेट जइसे इंडिया के गेट” धीरे से उठावत पूरा सुर में छोड़सु त महफिल लूट ले जासु. ओहि दिनन में लोक कवि अपना कैसेटनो में थोड़ बहुत राजनीतिक आहट वाला गीत “भरल” शूरु कर दिहले. ऊ गावसु, “ए सखी ! मोर पिया एम॰पी॰ एम॰एल॰ए॰ से बड़का, दिल्ली लखनऊ में वो ही क डंका”, आ जब जोड़ देसु, “वोट में बदल देला वोटर क बक्सा, मोर पिया एम॰पी॰ एम॰एल॰ए॰ से बड़का” त लोग झूम जाव.

अबले लोक कवि के ढेरहन समकालीन गायक बाजार से ना जाने कब के विदाई ले चुकल रहन त कुछ जने दुनिये से विदा हो गइल रहन. बाकिर लोक कवि पूरा मजबूती से बाजार में जमल रहले आ एने त उनुकर राजनीतिक संपर्को कुछ बेसिये “प्रगाढ़” हो गइल रहे. अब ऊ एक दू ना, कई-कई गो पार्टियन के नेतवन खातिर गावे लागल रहले. चुनावो में आ बिना चुनावो में. ऊ एके सुर में लगभग सभही के गुणगान गा देसु. कई बेर त बस नाम बदले भर के रहत रहुवे. जइसे एक गाना में ऊ गावसु, “उस चाँद में दागी है दागी, पर मिसरा जी में दागी नहीं है” भलही मिसरा जी में दाग के भंडार भरल होखे. एही तरह वर्मा, यादव, तिवारी वगैरह कवनो नाम अपना सुविधा से लोक कवि फिलर का तरह भर लेसु आ गा देसु. बिना उ जनले कि ई सब कर के उहो फिलर बने का राह पर लाग रहल बाड़े. बाकिर अबही ई दूर के राह रहे. अबही त उनुकर दिन सोना के रहे आ राति चाँदी के.


फेरु अगिला कड़ी में


लेखक परिचय

अपना कहानी आ उपन्यासन का मार्फत लगातार चरचा में रहे वाला दयानंद पांडेय के जन्म ३० जनवरी १९५८ के गोरखपुर जिला के बेदौली गाँव में भइल रहे. हिन्दी में एम॰ए॰ कइला से पहिलही ऊ पत्रकारिता में आ गइले. ३३ साल हो गइल बा उनका पत्रकारिता करत, उनकर उपन्यास आ कहानियन के करीब पंद्रह गो किताब प्रकाशित हो चुकल बा. एह उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं” खातिर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उनका के प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित कइले बा आ “एक जीनियस की विवादास्पद मौत” खातिर यशपाल सम्मान से.

वे जो हारे हुये, हारमोनियम के हजार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाजे, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास), बर्फ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एक जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह), सूरज का शिकारी (बच्चों की कहानियां), प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित), आ सुनील गावस्कर के मशहूर किताब “माई आइडल्स” के हिन्दी अनुवाद “मेरे प्रिय खिलाड़ी” नाम से प्रकाशित. बांसगांव की मुनमुन (उपन्यास) आ हमन इश्क मस्ताना बहुतेरे (संस्मरण) जल्दिये प्रकाशित होखे वाला बा. बाकिर अबही ले भोजपुरी में कवनो किताब प्रकाशित नइखे. बाकिर उनका लेखन में भोजपुरी जनमानस हमेशा मौजूद रहल बा जवना के बानगी बा ई उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं”.

दयानंद पांडेय जी के संपर्क सूत्र
5/7, डाली बाग, आफिसर्स कॉलोनी, लखनऊ.
मोबाइल नं॰ 09335233424, 09415130127
e-mail : dayanand.pandey@yahoo.com

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