बतकुच्चन – ६०

by | May 31, 2012 | 1 comment


रोए के रहनी तले अँखिए खोदा गइल. एह भोजपुरी कहाउत के सीधा मतलब त इहे निकलेला कि कुछ खराब सोचते रहीं कि ऊ होइओ गइल. पता ना अनिष्ट अनेसा में अइसन कवन खासियत होला कि सोचलीं त हो के रही. अगर कुछ गलत होखे के अनेसा मन में बनल बा त जान लीं कि ऊ हो के रही. जबकि बढ़िया सोचल ओतना जल्दी वास्तविकता ना बन पावे. कबो सोचले बानी एह विडम्बना पर? अगर दिमाग में अतना बेंवत बा कि राउर सोचल पूरा करा देव त बढ़ियका सोचल काहे पूरा ना करा पावे? सीधा जवाब बा बढ़िया सोचला का साथे हमनी का अगर मगर लगा दीहिलें. ओकरा पर हमनी के अपने विश्वास ना हो पावे कि हम एह मामिला में सफल हो जाएब. जबकि अनेसा के बात सोचत में मन अतना गंभीर आ डेराइल रहेला कि दिमाग के पूरा ताकत मिल जाला ओह अनेसा के असलियत बनावे के. आदमी के बढ़ियको सोच में ओतने भरोसा राखे के चाहीं कि दिमाग ओकरो के पूरा कर देव. खैर बात निकलल रहुवे आँखि खोदइला से त आजु सोचत बानी कि अँखिए पर केन्द्रित रहल जाव. आँख पर अतना मुहावरा बा कि लिखल जाव त लमहर सूची बन जाई एहसे कुछ खासे मुहावरा के चरचा करब. आँखि के पानी मरल तब कहल जाला जब कवनो आदमी लाज हया सगरी छोड़ देव. तब कहल जाला कि फलनवा के आँखि के पानी मर गइल बा. बाकिर दुख में रोवत आँख के पानी सूख जाला मरे ना. कह सकीलें कि जनता के आँखि के पानी अपना दुख में रोवत सूख जाला जबकि नेतवन के आँख के पानी अइसन मरेला कि ओकरा कवनो जायज नाजायज एजाँय बेजाँय करे में अहक ना लागे. अहक ना लगला क माने कि हिचक ना होखे ओकर मन ना रोके कि गलत काम करे से. जानत बूझत कि जवन ऊ करत बा तवन ओकर हक ना ह बाकिर एकरा से ओकरा अहक ना लागे. ऊ त हर समस्या से आँखि फेरले आपन आँखि एही पर गड़वले रहेला कि कवना तरह जायज नाजायज संपदा बिटोर सके. हाल ही में एगो आदमी क टिप्पणी कुछ लोग के बहुत खराब लागल. कहल लोग कि कुछ सदस्यन का खराब भा दागी होखला का चलते पूरा जमात के दागी भा खराब बतावल गलत बा. कबो सोच के देखले बा लोग कि जहर में कतनो दूध मिला लीं जहर जहरे रही बाकिर दूध में तनिको जहर मिला दीं त सगरी दूध जहर बन जाला. अगर कवनो जमात अपना दागी भा खराब सदस्यन के समस्या से आँखि चोरवले रही त एक दिन ऊ समाज से आँख मिलावे लायक ना रहि जाई. जहिया आँखि के पानी उतर गइल तहिया ऊ आदमी समाज लायक ना रहि जाला. एह असलियत से आँख मूंदे वाला आपन आँखि देखा के लोग के ना रोक पइहें. लोग त आँखे आँख में बतियावत जाई आ ओकर असलियत सभका आँखि का सोझा राख दी. कवनो जमात के अधिका भा परिवार के अधिका अधिक भा बेसी दिन ले लोग के आँखि में धूर ना झोंक पाई. अलग बाति बा कि कुछ दिन ले ई चल जाई बाकिर अंत हमेशा खराबे होखी. आदमी के आँखि जतना जल्दी एह दिसाईं खुल जाव ओतने बढ़िया. हालांकि दोसरा के आँखि के फूला देखे वाला लोग के अपना आँखि के माढ़ा ना लउके. याद राखी कि जेकर आँखि आइल होखे ओकरा से आँख मटका करे वाला के आपनो आँखि गड़े लागेला एहसे आँखि लड़ाईं बाकिर दोसरा के आँखि से बचा के.

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1 Comment

  1. NIMAN SINGH

    हमेसा सकारात्मक सोचे चाही
    नकारात्मक सोच राखेवाला के हमेसा कास्ट होला

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