बबुनी ससुरा ना जाली मने मने गाजेली. भोजपुरी के ई कहाउत आजु कुछ राजनीतिक गोलो पर सही बइठत लागत बा. देश के बड़का पंचायत में दू गो गोल विदेशी किराना बाजार के विरोध कइला का बावजूद ओकरा के आवे से रोके के मौका पर भाग परइले. बहाना बना लिहल गइल सांप्रदायिकता के छूत से बाचे के. अलग बाति बा कि ई लोग कबो ना कबो भाजपा भा जनसंघ का संगे सरकार के मलाई काट चुकल बा. अब ससुरा जाए के नइखे त मने मन गजला के जरूरत का बा. हालांकि भाजपा एह लोग के समुझावे के कोशिशो कइलसि कि अरे बाबा सरकार नइखे गिरे वाला, बस विदेशी किराना के मामिला रूक जाई. लेकिन पता ना सरकार क लगे अइसन कवन चाभी बा जे एह लोग के झुनझुना जस बजावत रहेले. आ जब करेजा में दम ना रहल त बगइचा में डेरा डलला के जरूरते का रहल. चुपचाप रह जाइत लोग. दमड़ी के चमड़ी गइल कुकुर के जात चिन्हाइल वाला कहाउत ना होखीत. जनता त जानते बिया जइसे हमेशा जानत रहेले बाकिर ओकरो असल मौका पर बिछला जाए के आदत पड़ल बा. एन चुनाव का मौका पर जात पर, बात पर, नेतवन के नाम पर लोग के बहके के आदत बा.
बतकुच्चन के गैर राजनीतिक राखे के हर कोशिश का बावजूद कबो कबो हमहू बहकिए जानी. काहे कि राजनीति आजु जीवन के हर इलाका में घुस गइल बा. पहिले बाहुबली नेतवन के जितावत रहले अब खुद ही जीते लागल बाड़े. जे साफे कहेलें कि खोखीं बाकिर खोंखियाई मत. अपना मन के भँड़ास निकाले ला त इजाजत बा बाकिर सामने वाला पर दाँत नोह देखावे, खोंखियाए के इजाजत नइखे. राजनेता जनता के राह में काँट बिछावत जाले आ जनता जे बा कि ओकरे के बीछे में लागल रहेले. ना उनकर बिछावल रूके ना इनकर बीछल. बिछावल त बिछवनो जाले भा कहीं त बिछवला का चलतही ओकर नाम बिछावन पड़ल. बिछावन बिछइला आ बिछलाह पर बिछलाइल अलग अलग होला हालांकि दुनु में आदमी पटा जाला. एगो पर आराम मिलेला दोसरका पर चोट.
हँ त बात होत रहुवे काँट बिछवला के. अब शायदे केहू होखी जेकरा काँट के मतलब ना मालूम होखी. काँट आ काँटी दुनु गड़ेला भा गड़ावल जाले बाकिर कँटिया जे बा कि फँसावल जाले. कँटिया मारलो जाला. दोकान पर तौले में काँटी मारल जाले त बिजली के लाइन पर कँटिया फँसा के बिजली चोरावल जाले. फसल कटाई के काम कटिया कहाले. धान चाउर दाल के कुटाई होला. कबो कबो मारोपीट में कुटाई के इस्तेमाल क लिहल जाले. कुटलो से मन ना भरे त पिसाई कर लिहल जाले. कड़ा से कड़ा चीज के धूरा बना दिहल जाला कुटाई पिसाई से. धूरा पावडरो जइसन चीझु के कहाला आ धूरी पर लगावल एक्सलो के. धूरा जवना पर जब कुछ घूमत होखे आ ऊ खुद धुरी पर से हटत ना होखे. याद पड़ गइल कबीर के दोहा कि, चलती चक्की देखि के दिया कबीरा रोय, दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय. बाकिर कहल जाला कि कबीर के बेटा कमाल साचहू कमाल के रहल. एही बात के ऊ एह तरह कहलसि कि, चलती चक्की देखि के हँसा कमाल ठठाय, कील पकड़ कर जो रहे कबो ना पीसा जाय. जे लोग पुरनका जमाना के जाँता देखले होखी ओकरा ई बात मालूम बा कि कील भा धूरा के लगे वाला अनाज ना पिसाव. उहे पिसाला जे कील से बहकि के दू पाटन का बीच में चल गइल. अब देखीं एकही बात के दू जने दू तरह से देखले आ ओकरा के बढ़िया से समुझाइओ दिहले. गिलास आधा खाली बा कि आधा भरल बा एकर फैसला आजु ले ना हो सकल. अलग बात बा कि केहू ई जाने के कोशिश ना कइल कि गिलसवा आधा भराइल रहे कि कवनो आदमी ओकरा के अधिया दिहले रहे?
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