भोजपुरी उपन्यास "जुगेसर" – 2

by | May 14, 2012 | 0 comments

– हरेन्द्र कुमार पाण्डेय

अबले जवन पढ़नी ओकरा आगे …)


-‘अरे योगेश्वर, कहां घुम तार?’ ऊ कहलन.
-‘सर प्रणाम. हम समस्तीपुर जैन स्कूल में ज्वाइन कइले बानी. महीना भर भइल. रउरा कब से हईं इहां?’
-‘हम त रिजल्ट का बादे लाग गइनी इहां. बिहार के त पालटिक्स समझते बाड़. हम देखनी चांस काहे मिस करे के. लाग गइनी.’ – ‘कइसन भइल बा तोहार परीक्षा?’
-‘हमरा तरफ से ठीक ही बा. बाकिर रउरा सबके आशीर्वाद. ‘
-‘पटना यूनिवर्सिटी में हमरा आशीर्वाद से कुछ नइखे होखे वाला. हम त सम्पर्को ना राखीं. चल तू आ गइल त खबर लगाइले.’ बात पर बात निकलत गइल. कब सांझ हो गइल पता ना चलल. बात-बात पर जुगेसर के जे बुझाइल ओकर सार इहे रहे कि पांडेय जी के मुजफ्फरपुर के कवनो महान ब्यक्ति के लडक़ी से शादी कइला के दहेज में उनका ई लेक्चरारशिप मिलल बा. इहो खबर लागल कि बड़ी जल्दी दरभंगा विश्वविद्यालय बने वाला बा, आ बिनय पांडेय के कुछ विशेष दायित्व मिले वाला बा. जुगेसर का रामसुन्दर प्रसाद के बात याद आ गइल. उनका चेहरा पर एक बार मुस्कान फैल गइल.
जिन्दगी रुटीन भइल जात रहे कि एगो चिट्ठी एक बार फिर जुगेसर के ध्यान पटना खींच ले गइल. अंतर्देशीय पत्र पर पूजा के चिट्ठी रहे –

‘आदरणीय सर,
प्रणाम.

आप त हमनी के भुला गइनी लेकिन हम आप के हमेशा याद कर तानी. हमार रिजल्ट निकलल बा. मेडिकल हमरा बस के बात नइखे. पार्ट वन के परीक्षो कुछ ठीक नइखे भइल. न जाने भगवान के का मर्जी बा. अइसहूं भगवान हमरा के त ना बुद्धि दिहले बाडऩ ना सूरत. अच्छा नइखे लागत. दीदी आइल रल, बिल्कुल बदल गइल बड़ुवे, ड्रेस त ड्रेस, भाषो बहुते बदल गइल बा.

एक दिन हम आपके बात चलवनी त अइसे मुंह बिचकवली कि हमरा खराब लागल. मम्मीओ के अच्छा ना लागल ह दीदी के ब्यवहार. हम आपके चिट्ठी लिखे के त कह ना सकीं. हमार भूल त्रुटि माफ करब आ आपन खयाल राखब.

आपके,
पूजा’

चिट्ठी एक बेर फेर पढ़लन जुगेसर. पटना के जिन्दगी में पढ़ाई का अलावे बैकुण्ठ जी के परिवारे उनका खातिर महत्वपूर्ण रहे. पूजा के चिट्ठी पाके एक बार उनका ऊ सारा समय याद आवे लागल. बिछावन पर सूतल-सूतल पूजा के हर छोट-मोट बात उनका सामने घूमे लागल. कतना अंतर बा अर्चना आ पूजा में.

छुट्टी के दिन रहे. विनय जी से मिले खातिर उनका घर पहुंच गइलन जुगेसर.
-‘आव-आव योगेश्वर.’ बड़ा गर्मजोशी से स्वागत कइलन विनय पाण्डेय. अन्दर ड्राइंग रूम में बइठवलन. सोफा रखल रहे. सामने छोटहन टीवी. साइड में फ्रिज. उनका के बैठा के विनय जी अन्दर गइलन. अन्दर जनानी आवाज सुनाइल. एगो गिलास में पानी ले आ के जुगेसर का सामने रखाइल.

बहुत देर तक बातचीत चलत रहल. एही बीच एगो औरत ड्राइंग रूम में आइल. उहां जे कोई बइठल बा एपर जइसे ध्यान ना दिहलस. सलवार सूट में. इ समझ में ना आइल कि ऊपर के हिस्सा कहां खतम भइल आ नीचे कहां शुरू भइल. लागत रहे ताड़ के गाछ पर कपड़ा बा. छोट-छोट केस.

जुगेसर के जिज्ञासा समझ गइलन विनय जी कहलन – ‘तोहार भाभी.’

भाभी सुन के उहो मूड़ी घुमवली. जुगेसर के जोड़ल हाथ ओइसहीं रुक गइल – ‘प्रणाम भाभी जी’ के सम्बोधन जइसे गला में अटक गइल. निकले के चाहीं सोच के जुगेसर जी उठे लगलन – ‘फिर अइह योगेश्वर. आज त तहरा के चायो ना पिला सकनी. असल में काम करे वाली गांवे चल गइल बिया.’

जुगेसर का समझे के कुछ बाकी ना बाचल. बड़ा महंगा सौदा कइले बाडऩ विनय पाण्डेय. ना ऊ अइसन ना करिहन. रात के बाबूजी के चिट्ठी लिखे बइठलन. तीन-चार दिन के छुट्टी रहे. जुगेसर ठीक कइलन एक बार गांवे घूम आइल जाव. जाये में दू दिन बाकी रहे. बाबूजी के चिट्ठी सारा प्लान बिगाड़ दीहलसि.

चिट्ठी में त बहुत कुछ लिखल रहे. जवन मुख्य बात रहे ओकर माने रहे उनकर पिछला चिट्ठी बाबूजी के इज्जत जरा के खाक कर देले बा. रामसुन्दर प्रसाद जी के रिश्ता ना करके ऊ आपन त जिन्दगी खराब कइलहीं बाडऩ खानदानो के आशा गंगाजी में बहा दिहलन.

एगो लाइन दू तीन बार रहे-

– ‘तहरा से हम आपन सम्पर्क तुड़त बानी. तू हमरा मरलो पर मत अइह, ई प्रार्थना कम से कम रखिह.’

जुगेसर त एक बार किंकर्तव्यविमूढ़ हो गइलन. जब सामान्य भइलन त उनकर दृढ़ निश्चय चेहरा पर झलके लागल. छुट्टी में चपरासीओ कहीं जाए के प्लान कइले रहे. जुगेसरो सोचले पटने घूम आवल जाव. स्टीमर से उतर के रिक्सा में बइठलन. बैकुण्ठ जी का दरवाजा पर घंटी बजावे का पहिले एक बार मन हिचकल. लेकिन दोसरा जगह कहां जइहन सोच के घंटी बजवलन. अन्दर से बैकुण्ठे जी के आवाज आइल. बतवले – ‘योगेश्वर.’

सुनाई पड़ल – ‘अरे पूजा, देख के आइल बा?’

दरवाजा खुलल. सामने पूजा. पीछे बैकुण्ठ जी. सबसे पीछे उनकर स्त्री. पूजा के पैर जइसे एकबारगी ठिठक गइल. चारो आंख एक दूसरा पर ठहर गइल. दूनो जाना के पैर छुअलन जुगेसर. बैकुण्ठजी उनके लेके ऊपर गइलन. उनकर कमरा ओइसने रहे जइसन छोड़ गइल रहस. ऊ बिछावन फइलवलन. तब तक बैकुण्ठजी खिडक़ी खोल दिहलन. एक जना कुर्सी पर आ एक जन बिछावन पर बइठलन. दूनो जाना का मुंह से एके साथ निकलन – ‘का हाल चाल बा?’

बैकुण्ठ जी मुंह खोललन – ‘हमरा घर के त हाल आपके मालुम होई. पूजा के मेडिकल ना निकलल. पार्ट वनो जइसे तइसे कइलसि ह. अब कहतारी मेडिकल में ना बइठेब.’

उनकर रोवल देख के जुगेसर पुछलन – ‘आ अर्चना के का हाल बा?’
-‘ठीके-ठाक बा. आइल रली छुट्टी में. सेकेंड ईयर हो गइल एह साल. अब आपन बतावल जाव.’
-‘हमार त नया जिन्दगी बा. स्कूल के मास्टरी. कइसहूं चलता.’
-‘अरे मास्टरी त आप शौक से ज्वाइन कइली हँ. अब त महीना भर में रिजल्ट आई. पटना विश्वविद्यालय के फर्स्ट क्लास फर्स्ट लडिक़ा मास्टरी थोड़े करी.’
‘का जे कहतानी.’ जइसे शरमा गइलन जुगेसर. – ‘फर्स्ट क्लास फर्स्ट हमरा जइसन आदमी ना मिलेला का?’
-‘देखीं हमहूं विश्वविद्यालय में बानी. कुछ त खबर पाइला. एह बार कवनो बंगाली लडिक़ा बा ना क्लास में. एहू से प्रो.चटर्जी एकदम टाइट बाडऩ. बाकिर झा जी आ राय जी के झगड़ा आप के मालुमे बा. दूनो जाना एक दोसरा क कैंडिडेट के टांग खींचे में लागले बा लोग.’ बाकी जुगेसर चुपचाप सुनत रहलन.- ‘ई शिक्षा व्यवस्था ह. इहां पढ़ाई नां, जात-भाई के बिचार होता ग्रेड देबे में.’
-‘देखी हम ओकर आसो नइखी रखले. जल्दी रिजल्ट निकल जाव इहे बहुत बा.’
-‘एक महीना के अन्दर निकल जाई. एक्सटर्नल सुननी ह नम्बर भेजिओ दिहले बा.’
तबही पूजा एगो ट्रे में दूगो चाय आ एक प्लेट में समोसा लेके ढुकली. एक बेर जुगेसर ओकरा ओर देखलन. आंख मिलल. पूजा आंख झुका लिहलस. धीरे से प्लेट टेबुल पर रख के खड़ा हो गइली.
-‘लीहल जाव. ‘ कहके बैकुण्ठ जी चाय के कप मुंह से लगवनल. जुगेसर के शुरू कइल देख के पूजा कहलस – ‘आज हम खाना बनावतानी. बाहर मत खाइब.’
जुगेसर जिज्ञासा सूचक नजर से बैकुण्ठ जी का तरफ देखलन.

दोसरा दिन जुगेसर यूनिवर्सिटी के तरफ गइलन. चटर्जी सर के कमरा पर खटखटा के अन्दर गइलन.
-‘यस मिस्टर प्रसाद, हाऊ डू यू डू.’
-‘सर, ठीक हूं. ‘
-‘देन, आगे क्या प्रोग्राम है प्रसाद?’
-‘अब सारा कुछ त रिजल्ट पर निर्भर बा, सर.’
-‘दैट विल कम वैरी सून. लुक, अभी जो टाइम आ रहा है टीचिंग में रहने का वास्ते पीएच.डी. बहुत जरूरी है. तुम अभी उस तरफ सोचो.’
-‘मन तो मेरा भी होता है सर. लेकिन…’
-‘आई नो, आई नो. जेनेरल प्रोब्लम ऑफ बिहारीज. नो जाब, नो मनी. आर यू मैरेड?’
-‘नो सर.’
-‘देखो माई ब्वाय. पहले ठीक करो.. फिर रास्ता ऊपर वाला देगा. हैव फेथ इन योरसेल्फ. ओ.के..’
जुगेसर देखलन चटर्जी सर टेबुल पर कुछ लिखे लगलन. ऊ प्रणाम कर के निकल गइलन. बहुते प्रोत्साहन महसूस होत रहे. त का बैकुण्ठ जी ठीके कहत रलहन?
कब दिन निकल गइल. एगो क्लासमेट मिल गइल. पटने के रहे. ऊ आईएएस के तैयारी करत रहे. पिछला बार एलायड मिलल रहे ना गइल. ओकरे साथे गांधी मैदान से टहलत-टहलत फ्रेजर रोड का ओर निकल गइलन जुगेसर. उहां से स्टेशन के तरफ. ऊ हनुमान जी के बड़ा भक्त रहे. ओकरा साथ-साथ जुगेसरो भगवान का सामने माथा झुकवलन तब हनुमान मंदिर के चेहरा आज जइसन ना रहे. लौटे में करीब 9 बज गइल. गेट पूजा खोलली.
-‘कहां-कहां घूमत रनीह सारा दिन. हाथ मुंह धोईं हम खाना ले आवतानी. ‘
जुगेसर कमरा में जाके कपड़ा बदललन. हाथ मुंह धोके अभी पायजामे पहिनले रहस कि पूजा खाना लेके पहुंच गइल. अपना खाली बदन पर बड़ा लाज लागत रहे. शर्ट बैग में रहे. जवना के निकाले जाए का जगह पूजा खड़ा रहे. उनकर शरमाइल देख के पूजा खिलखिला के निकल गइल. तब जा के उनका सांस में सांस आइल.

तिसरका दिन साँझिए के बैकुण्ठ जी के बता दिहलन जुगेसर जे काल्हु सबेरे ऊ निकल जइहन. रात में नींद ना आवत रहे. ऊ उठ के छत पर टहले लगलन. चांदनी रात रहे. चारों ओर सन्नाटा. ऊ सीढ़ी के पीछे की ओर रहस. तबही कुछ आहट महसूस भइल. देखलन पूजा हई. धीरे-धीरे फुसफुसाइल – ‘नींद नइखे आवत. ‘
जुगेसर निरुत्तर. ऊ अउर पास अइली. धीमा आवाज आइल – ‘आप त चल जाइब. हमरा के भुला ना नु जाइब?’

जुगेसर चुपचाप निहारत रहलन. टहटह अंजोरिया के परकास में खुलल बाल का बीच चेहरा साफ-साफ देखाई देत रहे.
ऊ आगे बढक़े एकदम सामने आ गइल. दूनो हाथ पकड़ के कहली – ‘का भइल, कुछ बोलत काहे नइखी? जुगेसर के होठ हिलल. दूनो हाथ से पूजा के सर पकड़लन. पूजा के चेहरा अपने आप ऊपर उठ गइल. दूनो के होठ सट गइल. दूनो के सांस रुक गइल रहे. आ साथ में हवो ठहर गइल जइसे. चांद के मुस्कुराइल देख के कहीं कवनो आवारा चिडिय़ा शान्ति भंग क दिहलस. पूजा चिहुंक के अपना के उनका बाहुपाश से अलग कइलस आ तेज पैर नीचे चल गइल.

जुगेसर का पैर पर जोर ना मिलत रहे. ऊ धीरे-धीरे कमरा में अइलन. बिछावन पर लेटत-लेटत कब नींद के गोद में समां गइलन, पता ना चलल.

अबकी बार समस्तीपुर एगो नया अनुभूति लेके अइले जुगेसर. दिन त स्कूल में निकल जाव लेकिन रात में उहे अनुभूति तरह-तरह से याद आवे. ई अइसन बात रहे जवना के केहु से कहलो ना जा सके. एक तरह के कसक, जवना के अनुभव उनका पहिला बार भइल रहे. बीच-बीच में विनोद पाण्डेय जी से कालेज में मिल आवस. एक दिन विनोद जी क्लास लेत रहस. जुगेसर का सब लेक्चरर लोग से परिचय हो गइल रहे. डॉ.ठाकुर अकेलहीं बइठल रहस. उहे समस्तीपुर कालेज में पीएच.डी. कइले रहस. स्वाभाविक रूप में थोड़ा अकड़ रहे. आज उहे बात उठवलन – ‘कब तक रिजल्ट आ रहा है आप लोगों का योगेश्वर बाबू?’
-‘सर, कहत रल लोग एही महीना में. ‘
-‘फिर क्या सोच रहे हैं? टीचिंग में आना है या कोई दूसरा विचार कर रहे हैं. ‘
-‘अभी तक त कुछ निर्णय ना कर पइले हईं. ‘
-‘यही तो प्राब्लम है बिहारियों का. सोचते हैं समय आने पर सोचेंगे. अरे भाई, समय आने पर सोचने का समय थोड़े मिलता है. ‘ अपना अलंकृत वाक्य पर खुद मुस्कुराये लगलन डॉ.ठाकुर.
-‘अब हम का कहीं सर. सबकर आपन लिमिटेशन होला.’
-‘लिमिटेशन का सहारा लेकर अपना दोस्त की तरह नहीं बन जाना भैया.’

जुगेसर इशारा समझे के कोशिश कइलन. उनकर भंगिमा देख के डॉ.ठाकुर समझ गइलन स्पष्ट कइल जरूरी बा. ऊ कहलन – ‘लिमिटेशन लाता है समझौता. और आदमी जब जिन्दगी से समझौता करता है एक के बाद दूसरा समझौता उसे नीचे ढकेलता जाता है.’

जुगेसर डॉ.ठाकुर के एक-ए-गो शब्द जइसे समझे के कोशिश करे लगलन. तब ले घंटी बज गइल. डॉ.ठाकुर उठके उनका पीठ पर हाथ रख के कहलन -‘हम क्लास में चलें भाई. बेस्ट ऑफ लक.’

थोड़ देर में विनोद जी आ गइलन. आज जुगेसर उनका ओर बड़ा ध्यान से देखे लगलन. ऊ धम्म से कुर्सी पर बइठलन. पानी के गिलास हाथ में लेत-लेत पुछलन – ‘कतना देर अइला भइल योगेश्वर जी?’
पानी पीके ऊ एगो लम्बा सांस लिहलन. एगो अल्कोहल जइसन गंध अनुभव कइलन जुगेसर. त का ड्रिंक करे लगलन विनोद जी?
बातचीत करे लागल लोग. पटना से जवन पता चलल रहे जुगेसर बतवलन. साथ ही उनको के पता लगावे के कहलन. आज बातचीत में कुछ मजा ना आवत रहे.

———

ऊ महीना निकल गइल. रिजल्ट के पता ना चलल. इन्तजार के समय बड़ा लम्बा होला. एक दिन ऊ क्लास में रहस. तबहीं चपरासी आइल. बतवलस-प्रो.पाण्डेय आइल बाडऩ. जुगेसर क्लास छोड़ के भागल-भागल अइलन. उनका के देखते विनोद जी खुद खड़ा होके आगे बढ़लन. जुगेसर कुछ कहस एहसे पहिलहीं ऊ उनकरा के अंकवारी में भर लिहलन. – ‘अरे यार, कमाल कर दिया तूने.’ दोसरा लोग की ओर देखके कहलन – ‘ग्रेट, जानतार सब लोग ? योगेश्वर हैज गौट फर्स्ट क्लास फर्स्ट.’

जुगेसर के त होश उड़ गइल.

विनोद जी जब मुक्त कइलन उनके ऊ कुछ बोल ना पवले. सुख आ दुख दुनु के चरम अनुभूति आदमी के मौन बना देला. विनोद जी चपरासी के पजरा बोलवलन. पाकेट से बीस रुपया देके कहलन – ‘भाई जा मिठाई ले आव. हमार भाई कमाल कर दिहले बा.’

जुगेसर का सच में लागल आज जिन्दगी सफल हो गइल. आज विनोद पांडे उनका सबसे बड़ा हितैषी लागत रहस. उनकर सर अपने आप विनोद जी का पैर पर झुक गइल.

विनोद जी उनका के उठा के अपना से सटा लिहलन. उनकर अवस्था देख के जुगेसरो अपना के रोक ना सकलन.

दोसरे दिन ऊ रवाना हो गइलन पटना. पहुंचत-पहुंचत शाम हो गइल. कालेज जाए के कवनो मतलब ना रहे. सीधा पहुंचलन ऊ बैकुण्ठ जी का घरे. दरवाजा खटखटवलन. बैकुण्ठ जी दरवाजा खोल के उनका के गले लगा लिहलन.
-‘भगवान आखिर सच के पक्ष में फैसला दे देहलन. तू फर्स्ट क्लास फर्स्ट आइल बाड़.’ आज पहिला बार बैकुण्ठ जी का मुंह से उनका प्रति तू सम्बोधन निकलल रहे.

जुगेसर के लडिक़ा जइसन हाथ पकड़ के ऊ अन्दर ले गइलन. आज ऊपर ना ले गइलन. सीधे अपना कमरा में ले गइलन. उनका बइठत बइठत उनकर मेहरारू हाथ में एगो प्लेट में लड्डू लेके अइली. ऊ उठ के उनकर पैर छुवलन. अपना हाथ से मिठाई उनका मुंह तक बढ़वली. मिठाई अपना हाथ से पकड़ के खाए लगलन जुगेसर.

बैकुण्ठ जी आज कुछ बेसिए बोले लगलन – ‘बड़ी लड़ाई रल. पटना विश्वविद्यालय में फर्स्ट भइल मुख्यमंत्री भइला से कम नइखे. हमरा संतोष बा कि एगो हीरा हमरा कुटिया में कुछ दिन रहल.’

जब सब कुछ सहज हो भइल त जुगेसर पुछलन – ‘पूजा नइखी का?’
– ‘नइखी माने ? ऊ त जब से खबर पवले बिया खुशी से नाचतिया. उहे त मिठाई लेके आइल रल. सबसे कहत फिरता हमार सर फर्स्ट भइल बाडऩ केमिस्ट्री में.’
थोड़ देर रुक के कहलन – ‘लागता तहरे जाए क पड़ी पूजा का पास.’
-‘चलीं.’ कहके जुगेसर उठ पड़लन. बैकुण्ठ जी आगे-आगे पूजा वाला कमरा में जा के लाइट जलवलन. पूजा एकेबेर में उठ खड़ा भइली.
-‘देख के आइल बा?’
पूजा टुकुर-टुकुर ताके लगली. आंखिन का ओर देख के जुगेसर महसूस कइलन आंख सूजल बा. आंख झुका के खाली अतने कह पवली पूजा – ‘कांग्रेचुलेशन.’
-‘खाली कांग्रेचुलेशन कहला से होई?’ जुगेसर कहलन. पूजा सर झुकवले झुकवले कहली – ‘ हम आउर का कर सकिला?’
-‘काहें? अब तू फर्स्ट आके हमरा के कांग्रेचुलेशन देबे के बाध्य कर.’ माहौल सामान्य हो गइल. आ पूजो. ऊ कहली – ‘बइठीं सब. हम चाय ले आवतानी’

ऊ किचेन में चल गइल. जुगेसरे कहलन – ‘चलल जाव, ऊपरे बइठल जाव.’ दूनो आदमी ऊपर कमरा में गइल लोग. आज ऊपर बिछावन लागल रहे. बइठे का पहिले हाथ से छुवलन जुगेसर. एगो अलग सुख पूरा शरीर में फइल गइल. तरह-तरह के बात भइल. आगे के कैरियर जुगेसर खातिर ज्यादा महत्वपूर्ण रहे. उनका इ त समझ में आ गइल टीचिंगे उनकर लक्ष्य हो सकेला. ओह खातिर कवनो कालेज ज्वाइन कइल जरूरी बा.

जेकर केहू ना होला, ओकर खातिर भगवान होले. भगवान जब मदद करे चाहेलन केहू ना केहू व्यक्ति उनके रूप में आ जाला. जुगेसर खातिर विनोद पाण्डेय भगवान के दूत बन के मिलल रहस.

समस्तीपुर में आवत-आवत ऊ विनोद जी से मिले गइले. सुबह के समय रहे. हल्का-हल्का सर्दी रहे. बाहर लॉने में विनोद जी टहलत मिल गइलन.
-‘आव आव योगेश्वर. हम तहरे प्रतीक्षा करत रहलीं ह.’
जुगेसर उनकर पैर छुए के चहलन. पैर खींच के विनोद जी कहलन – ‘अरे भाई हमरा के एतना महान मत बनाव. हम तोहार बड़ भाई बानी.’
-‘बड़ भइयो बाप के समान होला.’ जुगेसर उनका के निरुत्तर कर दिहलन.
-‘अरे भाई अब पटना यूनिवर्सिटी के फर्स्ट ब्वाय से हम जीत सकिला का. चल बइठल जाव.’
आज नौकर रहे. दू कप चाय लेके आइल. बात होखे लागल.
तय भइल विनोद जी कालेज मैनेजमेंट से बात कइले बाडऩ. जुगेसर आपन बायोडाटा दे अइहन. विनोद जी से सम्पर्क के बारे में सबका मालूम रहे. दरभंगा विश्वविद्यालय बनला पर ऊ जे एगो महत्वपूर्ण जगह पइहन सबका पता रहे. विश्वविद्यालय से अच्छा सम्पर्क कालेज खातिर हमेशा लाभप्रद होला.
एक महीना के अन्दर जुगेसर जी समस्तीपुर कालेज में केमिस्ट्री के लेक्चरार हो गइलन. ऊ पहिला काम कइलन पटना बैकुण्ठ जी के पत्र लिखके सूचित कइलन. ओमे अपना कालेज के फोन नम्बरो दिहलन. सकुचाइल सकुचाइल बाबूओजी के चिट्टी भेजलन.

करीब एक महीना बाद कहीं से फोन आइल. जुगेसर का हलो कइला पर जवन आवाज आइल ओकर आशा ऊ ना कइले रहस. पूजा रहल. शुरू में त आवाज में थोड़ा घबराहट रहे. धीरे-धीरे ठीक हो गइल.
-‘हमनी के फोन लाग गइल.’ बतवली पूजा – ‘अब रउरा फोन करब.’
-‘लेकिन नम्बर त बताव.’ जुगेसर मुस्कुराइल ना रोक पवलन.
फोन से बतियावे के सबसे बड़ा फायदा बा – जवन बात आदमी सामने ना कह सके, ऊहो आराम से कह लेला. पूजो आज बहुत कुछ कह गइली. हालांकि कवनो क्रम ना रहे लेकिन जुगेसर के सोचे के एगो अलग आयाम जरूर मिल गइल. जुगेसर स्वभाव से अंतर्मुखी रहस लेकिन पूजा उनका जिन्दगी में एगो अलग तरह के रंग ला देले रही. अइसहूं बचपन से अब तक के लड़ाई थम गइल रहे. जिन्दगी के ठहराव वाला स्थितिओ बड़ा महत्वपूर्ण होला. ए समय के तुलना दूसरा ग्रह के यात्रा पर निकलल रॉकेट से कइल जा सकेला. जैसे चन्द्रमा पर जाए वाला रॉकेट बा. पृथ्वी के कक्ष में चक्कर लगावत-लगावत उ अइसन जगह पहुंचेला जहां पृथ्वी आ चन्द्रमा दूनो के गुरुत्वाकर्षण एक दूसरा के बैलेन्स कर देला. इहां से चन्द्रमा के कक्ष में घुसे खातिर रॉकेट का एगो अलग फोर्स के जरूरत होला. यदि ऊ फोर्स सटीक समय पर ना मिले त रॉकेट पृथ्वी के चारों ओर घुमते रह जाई. आ चांद के यात्रा कभी पूरा ना कर पावेला. जिन्दगीओ के लड़ाई कुछ अइसने होला. पढ़ाई के अवधि ले आदमी जवना ताकत के इस्तेमाल करेला ऊ ओकरा बाद अइसहूं कमजोर हो जाला. जबकि जीवन कक्ष में सफल प्रवेश खातिर ज्यादा अलग तरह के ताकत के जरूरत होला. ज्यादातर आदमी अपना पुरनका जीवन के चारों ओर चक्कर लगावे में रह जाला. मजा त ई कि ऊ पुरनका जीवन में लवटिओ ना पावेला.

जुगेसर के पटना आइल-गइल कुछ बेसिए बढ़ गइल. अब ऊ प्रोफेसर प्रसाद रहस. पटना महात्मा गांधी पुलो बन गइल. अब समस्तीपुर से बस सीधा पटना पहुंचा देव. ऊहां से ऊ बैकुण्ठ प्रसाद के घर जास. अब खाली हाथ ना जास. मिठाई के डब्बा रहे हाथ में. एक बार बैकुण्ठ जी के पत्नी खातिर एगो साड़ीओ ले गइल रहस. मुंह से त ना नुकुर कइली ऊ लेवे में लेकिन अन्दर के प्रसन्नता चेहरा पर साफे झलकत रहे.

थोड़ मुश्किल रात में भइल. खाना लेके पूजा आइल रहे. ओकरा के कुछ बोलत ना देख के ऊ पुछलन – ‘का बात बा आज हमार पूजा नाराज लउकतारी?’
पूजा मुंह बिचकवली – ‘हमरा नाराज होखे के कवन अधिकार बा?’
-‘तब त सचमुच में पूजा रानी गुस्सा में बाड़ी. लेकिन न बतवला से हम कइसे समझब?’
-‘वाह, मम्मी खातिर त स्पेशल गिफ्ट आइल ह. हम त यादो ना अइनी.’
जुगेसर का समझ में आ गइल. कहलन – ‘सॉरी बाबा. वैरी सॉरी. लेकिन इ कइसे समझलू ह कि हम तहरा के भूल गइल बानी.’
फेर अपना बैग से एगो पैकेट निकललन. उनका देबे के पहिलहीं पूजा झपट के ले लिहलस. खोलत-खोलत कहलस – ‘का ह?’
कहे के ना पड़ल. पैकेट में एगो पेन सेट रहे. पूजा का थैंक्यू कहला पर जुगेसर कहलन – ‘खाली थैंक्यू कहला से ना होई.’
‘छि:!’ कहके पूजा कमरा से बाहर हो गइल. रात में जुगेसर के नींद खुल गइल. अभी-अभी 2 बजल रहे. कतनो कोशिश कइलन नींद ना आइल. तबहीं लागल कोई आव ता. ऊ सांस बंद कर के इन्तजार करे लगुअन. कुछ देर तक कुछ ना बुझाइल त आंख खोललन.
गेट पर खड़ा रहे ऊ. ऊ आगे बढ़लन. दूनो के बांह उठ गइल. फिर दूनो शरीर एक दूसरा के जकड़ लीहलस. सुनसान रात में दूगो होठ मिले के आवाज आइल. फेरु सहारा देके बिछावन का ओर ले अइलन. हल्का सा विरोध बुझाइल ओने से.
बेहोशी भंग भइल.
-‘इ का कइनी?’
-‘हम ना तू.’
-‘दूनो जने लेकिन फल?’
-‘दूनो का मिली. ‘
-‘सच त?’
-‘अबहीं ले हम झूठ नइखी बोलत. ‘
-‘हमरा विश्वास बा तबहीं त… ‘
आगोश में भर लिहलन ऊ. कसमसाहट के आवाज.
समस्तीपुर के बस रहे चार बजे. जुगेसर सबसे बिदा लिहलन.

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पढ़ावल सबसे सुन्दर पेशा ह. यदि मन से कइल जाव. खासकर के यदि विद्यार्थी समझदार होखे. आज बीएससी में क्लास लेत रहस जुगेसर. तब क्लास में अंग्रेजी बोले के रिवाज रहे. विषय रहे आणविक संरचना. शुरू में कएक मिनट बोले में थोड़ा हकलाहट रहे उनका में, आ छात्रन में अकुलाहट. एकरा पहिले इ क्लास डॉ.ठाकुर लेस. फिर त जुगेसर रम गइलन.
-‘आप सब का ब्रह्माण्ड संरचना के बारे में त थोड़ा बहुत ज्ञान होई. आणविक संरचनो बहुत हद तक ओइसहीं बा. बल्कि अइसे कहल जा सकेला हरेक परमाणु ब्रह्माण्डे के छोटहन स्वरूप ह. हरेक परमाणु मुख्यत: तीन चीज से बनल बा प्रोटान, न्यूट्रान अउर इलेक्ट्रान. प्रोटान (+) पाजिटिव आवेश से, इलेक्ट्रान (-) निगेटिव आवेश से आवेशित होला, जबकि न्यूट्रान के कवनो आवेश ना होला. प्रोटान आ न्यूट्रान के वजन होला जबकि इलेक्ट्रान में कवनो वजन ना होखे. प्रोटान आ न्यूट्रान मिलके न्यूक्लियस बनावेला. कौनो पदार्थ के आणविक वजन ओकरा में प्रोटान आ न्यूट्रान से निर्धारित होला.
अब जवन स्वाभाविक प्रश्न उठत बा ऊ ई कि प्रोटान (+) आ इलेक्ट्रान (-) होके अलग-अलग कइसे रहता. (+) प्लस आ (-) माइनस एक दूसरा के खींचत काहे नइखे.

थोड़ा रुकले जुगेसर. क्लास में चारो ओर नजर दौड़वले. क्लास में कुल चार गो लडक़ी रहलीं जवन सामने साइड का बेंच पर सब बइठल रहे. ओह समय लडक़ी के क्लास में अलग बइठही के चलन रहे. सब लडिक़ा चोर नजर से ओनिए देखत रह स. जुगेसर हल्का सा मुस्कुरा के फिर शुरू क दिहलन – ‘काहे कि इलेक्ट्रान न्यूक्लियस के चारों ओर चक्कर लगावत रहेला, एगो निर्धारित कक्ष में. जब तक ऊ घूमत रही परमाणु रही, आ घूमल बंद त परमाणु के अस्तित्व खतम.’

न जाने कब से विनोद जी पीछे खड़ा भइल रहस. साथ में प्रिंसिपल भी रहस. जुगेसर एतना मगन होके पढ़ावत रहस कि ध्यान ना दिहले. क्लास का बाद विनोद जी कहलन-‘अरे भाई तू त सबकर छुट्टी कर देब. चल आज शाम के हमरा घर पर पार्टी बा. हमार घरे नइखी त थोड़ा मस्ती कइल जाव.’

‘नया अनुभव’ इहे जुगेसर के भेंटाइल रहे. जिन्दगी के हरेक मोड़ पर नया नया परिचय. अइसन पार्टी से ऊ पहिला बार मुखातिब भइलन. उनका कालेज के लोग रहले रहे. एगो विशिष्ट व्यक्तिओ रहस. उनका नया से परिचय भइल. नाम रहे सत्यकाम जी.
कालेज के चपरासी बडक़ा बैग में सामान लेके पहुंचल. सोफा पर ऊ पांचों जाना बइठ गइल लोग. पांच गो गिलास आ पानी रख गइल चपरासी. जुगेसर जी पानी ढार के पीए लगलन. डॉ.ठाकुरे कहलन – ‘अरे योगेश्वर जी, पानिए से पेट भरिएगा का?’
तब तक एगो बोतल खुलल. ढारे का बेर जुगेसर एक बार हिचकलन लेकिन खुद के पिछड़ल ना समझल जाव सोच के कुछ बोललन ना. एगो प्लेट में चना के भूंजा रहे, तेल मिर्ची का साथ मिलावल. सभे शुरू क दिहलन – ‘चियर्स.’
पहिलका घूंट में जुगेसर का लागल उल्टी हो जाई. का गन्दा गंध आ स्वाद रहे. ऊ जल्दी से एक मुट्ठी चना मुंह में डललन. -‘ बाप रे.’
-‘धीरे-धीरे, जनाब.’ डॉ.ठाकुर अपना चिरपरिचित अदब से कहलन.


(बाकी फेर अगिला कड़ी में)


आपन बात


भोजपुरी में लिखे खातिर हमार आपन स्वार्थ निहित बा. हमरा दूसरा कवनो भाषा में लिखे में हमेशा डर लागल रहेला. आ भोजपुरी माई के गोद जइसन बा. हम जानतानी कि भले माई से दूर बानी, बहुत दूर, लेकिन उनके पास जाइब त ऊ हमरा के डटीहन ना, हमार गलती माफ कर दीहन.

– हरेन्द्र कुमार

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(3)


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(4)

18 जुलाई 2023
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(7)
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

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