कथा भर औकात – (पुरातन अन्दाज में एगो नया कहानी)

by | May 1, 2021 | 0 comments

  • प्रकाश उदय

एगो कवना दो देश में, एगो राजा रहन. रजवा के सात गो रानी रही. सातो रनियन से एकए गो लइका रहे. जवना रानी से पुछाय तवन बतावे कि हमरा एगो राजकुँवर, रजवा बिना पुछले बतावे कि हमरा सात गो.

आ एगो कवना दो दोसरा देश में, एगो रानी रही. रनिया के सात गो राजा रहन. सातो रजवन से एकए गो लइकी रहे. जवना राजा से पुछाय तवन बतावे कि हमरा एगो राजकुँवरी, रनिया बिना पुछले बतावे कि हमरा सात गो.

रजवा के सातो राजकुँवर जले छोटे-छोटे रहले तले रजवा के दिन उन्हनी के साथे खेलत-खेलावत मजे में बीतल, बाकिर बढ़त-बढ़त सातो राजकुँवर जब एकइस पार क गइले त आपुसे में खेले लगले, रजवा अकेल पर गइल. सातो राजकुँवर जब आपुसे में खेले लगले त सातो रनियन में दिदिया-बुचिया होखे लागल. रजवा दुसरकी के बोलावे त ना आवे कि तिसरकी के अँगुरी पड़कावे के बा, छठवीं के बोलावे त ना आवे कि पहिलकी के ढील हेरे के बा. सतवीं कहे कि चउथकी साथे दू दान अवरू गोटी खेल लेब, त पँचवीं से कहब कि राजा जी बोलावत बाड़े जइबू त जा, ना त दू दान तूहूँ खेल ल. रजवा अवरू अकेल पर गइल.

जवना रानी से पुछाय तवन बतावे कि हमरा सात गो राजकुँवर, रजवा से पुछाइत त बताइत कि हमरा केहू ना. त राजा कहले कि हमरा एगो अठवीं रानी चाहीं. चहला के देर रहे. जतना
हथिवाह, ओकरा से दोगिना घोड़वाह, आ जतना घोड़वाह, ओह से दोगिना पाँवपैदल सिपाही लिहले, आ चल दिहले अठवीं रानी के जोह में.

रनिया के सातो राजकुँवरी जले छोटे-छोटे रहली तले रनिया के दिन उन्हनी के साथे खेलत-खेलावत मजे में बीतल, बाकिर बढ़त-बढ़त सातो राजकुँवरी जब अठारह पार कइली त आपुसे में खेले लगली, रनिया अकेल पर गइल. सातो राजकुँवरी जब आपुसे में खेले लगली त सातो रजवन में भइया-बबुआ होखे लागल. रनिया दुसरकू के बोलावे त ना आवे कि तिसरकू खातिर चुनौटी में चूना भरवावे जाए के बा, छठऊँ के बोलावे त ना आवे कि पहिलकू के मिर्जई में खोंच लागल बा, रफू करावे जाय के बा. सतऊँ कहे कि चउथकू से दू गाल बतिया लेब त पँचऊँ से कहब कि रानी जी बोलावत बाड़ी जइबऽ त जा, ना त दू गाल तूहूँ बतिया ल. रनिया अवरू अकेल पर गइल.

जवना राजा से पुछाय तवन बतावे कि हमरा सात गो राजकुँवरी, रनिया से पुछाइत त बताइत कि हमरा केहू ना. त रानी कहली कि हमरा एगो अठवाँ राजा चाहीं. चहला के देर रहे. जतना हथिवाह, ओकरा से दोगिना घोड़वाह, आ जतना घोड़वाह, ओह से दोगिना पाँवपैदल सिपाही लिहली आ चल दिहली अठवाँ राजा के जोह में.

अब चाहे आज चाहे काल्ह चाहे परसों, चाहे एह जंगल में चाहे ओह में, चाहे एह नगर में चाहे ओह में, ‘अठवीं-रानी-चाहीं’ राजा के, ‘अठवाँ-राजा-चाहीं’ रानी से भेंट त होखहीं के रहे. त भेंट भइल. रजवा के हाथी रनिया के हाथी से कहले स कि भला भेंटइलऽ स भाई, ना त ई रजवा हरमजादा अभी अवरू के जाने कतना धउराइत ! रनिया के घोड़ा रजवा के घोड़ा से कहले स कि भला भेंटइलऽ स भाई, ना त ई रनिया हरमजादी अभी अवरू के जाने कतना धउराइत !

अइसने कुछ एने के पाँवपैदल के ओने के पाँवपैदल से आ ओने के पाँवपैदल के एने के पाँवपैदल से कहे के रहे, बाकिर कहल केहू से केहू ना कुछुओ, कि कवन ठेकान कि कवन जाके रजवा के काने लगा आई, रनिया के काने लगा आई, कि फलनवा कहत रहे कि रजवा हरमजादा, फलनवा कहत रहे कि रनिया हरमजादी ! जवन बात हथियन प भरोसा क के हाथीलोग कह के हलुकाऽ गइल आ घोड़वन प भरोसा क के घोड़ालोग कह के हलुकाऽ गइल, तवने बात के बोझा लेले-देले हथिवाह, घोड़वाह आ पाँवपैदल भाईजीलोग जब जमीन प ढहला लेखा बइठल त
हथियन के बड़ा मोह लागल, घोड़वन के बड़ा मोह लागल. मोह लागल, त उन्हनी के अपना-अपना पोंछ से, अपना-अपना देह के माछी-मच्छड़ के साथे-साथे थोर-बहुत उन्हनियो के देह के माछी-मच्छड़ उड़वलन स, आ एही माया-मोह के चक्कर में, जइसे सब दिन, तइसे ओहू दिन, खूँटा ना तुड़वलन स.

बाकिर पोंछ ना रजवा के रहे, ना रनिया के रहे. त के उड़ावे माछी, के उड़ावे मच्छड़. ना रजवा के आँखिन नीन, ना रनिया के आँखिन नीन. त बइठला के अनमाना, दुन्नो में दुक्खम-सुक्खम होखे लागल. कइसे-कइसे… पुछाइल आ अँइसे-अँइसे…बतावल गइल. त पता चलल कि इनिका एगो अठवाँ के आस, उनुका एगो अठवीं के तरास. त होत-होत भइल कि अठवाँ लायक हम होखीं त हमरे के अठवाँ होखे द, त होत-होत भइल कि अठवीं लायक हम होखीं त हमरे के अठवीं होखे द. त भइल कि सातो रानी का कहिहें, सातो राजा का कहिहें ! त भइल कि उँह, ना ढील हेरे से फुरसत पइहें ना कुछ कहे पइहें, भइल कि उँह, ना चुनौटी भरवावे से फुरसत पइहें, ना कुछ कहे पइहें. त भइल कि सातो राजकुँवर का कहिहें, सातो राजकुँवरी का कहिहें !

राजा कहहीं जात रहन कि ‘उँह’, रानी कहहीं जात रही कि ‘उँह’, कि राजा के मन के रजाई अन्हरिया में चल गइल, एकइस-गुना-सात-साल के बपाई अँजोरिया में चल आइल, रानी के मन के रनियाई अन्हरिया में चल गइल, अठारह-गुना-सात-साल के मतरियाई अँजोरिया में चल आइल. बाप के अपना तिसरकू के चउथका साल के बेरामी इयाद परल कि कइसे केहू के गोदी जाय त काँय-काँय करते रह जाय, हमरा गोदी आवते चुपा जाय ! इयाद परल त लगले सुसुके. मतारी के अपना सतवीं के छठवाँ साल के बदमासी इयाद परल कि कइसे अपने रानी बन गइल,
अपना बाकी बहिनियन के राजा बनवलस आ गिनला प एगो कम पवलस त छेरियाऽ गइल कि माई के सात गो राजा, हमरा एगो कम कइसे ! इयाद परल त लगली बिहँसे. भइल कि काहे तू बिहँसलू, काहे तू सुसुकलऽ. बतवली कि काहे हम बिहँसलीं त ऊहो बिहँसले, बतवले कि काहे हम सुसुकलीं त ईहो सुसुकली.

सुसुकत-बिहँसत बिहान भइल. बिहान भइल त रानी कहली कि अ हो, जब सात से मनभरन ना भइल त अठवाँ से होइए जाई, एकर कवन गरण्टी ! त राजा कहले कि हँ हो, जब सात से ना भइल मनभरन त अठवीं से होइए जाई एकर कवन गरण्टी !

त एने से रानी कहली कि ए हो, काहे ना हमके बना ल तू आपन सम… आ ओने से राजा कहले कि हे हो, काहे ना हमके बना ल तू आपन सम… आ ओने से रानी कहली कि ‘धिन’, आ एने से राजा कहले कि ‘धी’. राजा जब रानी के मीठेमुँहे ‘समधिन’ कह के गोहरवले, त राजा के लागल कि रानी प सोभल ई समधिन कहाइल, आ रानी जब राजा के मीठेमुँहे ‘समधी’ कह के गोहरवली, त रानी के लागल कि राजा प सोभल ई समधी कहाइल.

पता ना कि साँच कि झूठ, बाकिर सुने में आवेला कि चिन्हाय मत तवना खातिर बस अतने कि समधी के ‘धी’ के ‘धा’ में बदल दियाइल आ ओही समधी-समधिन वाला दिन के इयाद में तबला के बोल में ‘धा धिन धिन धा’ आइल.

त भइल कि ए हो, हमरा त तूहीं एगो समधी भेंटइबऽ, तहरा त सात गो समधी भेंटइहें ! त भइल कि हे हो, हमरा त तूहीं एगो समधिन भेंटइबू, तहरा त सात गो समधिन भेंटइहें ! त भइल कि समधी त सातो समधिन के सात गो भेंटइहें आ भेंटइहे त सातो समधी के सात गो समधिन. बाकिर तवन त तब, जब सातो समधी के, सातो समधिन, कहिहें कि ओक्के, सातो समधिन सातो समधी के कहिहें कि ओक्के. त भइल कि कइसे ना कहिहें कि ओक्के. अब्भी ना कहिहें त तब त कहिहें जब राजकुँवरी कहिहें स कि राजकुँवर सब ओक्के, राजकुँवर कहिहें स कि राजकुँवरी सब ओक्के.

त भइल कि ना कहिहें स राजकुँवरी तब ? ना कहिहें स राजकुँवर तब ? तब, रानी होके सोचली जब रानी, त सोचली कि केकरा बेंवत कि रानी से बाँव-दहिन जाई ! तब, राजा होके सोचले जब राजा, त सोचले कि केकरा बेंवत कि राजा से बाँव-दहिन जाई ! बाकिर माई होके सोचली जब रानी त चिन्ता से चलली, फिक्किर में पर गइली. बाप होके सोचले जब राजा त चिन्ता से चलले फिक्किर में पर गइले.

अब जब रजवे चिन्ता से चल के फिक्किर में, जब रनिए चिन्ता से चल के फिक्किर में, त के पूछेला हाथी के, के पूछेला घोड़ा के. के पूछेला हथिवाह के, के पूछेला घोड़वाह के. के पूछेला पाँवपैदल के. जले सहले सहाइल तले त सहाइल, जब ना सहाइल, त हार-दाँव देके, पाँवपैदललोग घोड़वाहन के कान में, घोड़वाहलोग हथिवाहन के कान में फुस्फुस्फुसाइल कि, की त कहऽ स भाई, ना त केहू से कुच्छो कहवावऽ स भाई… कि आन के चिन्ता में, आन के फिक्किर में आपन दिन कतना नसाई ! हमनो के घर बा, दुआर बा, खेत बा, बधार बा, कि हमनो के बाल-बाचा बा, कि हमनो के बाबू, कि हमनो के माई !

त हथिवाह लोग हाथी से कहवावल, घोड़वाह लोग घोड़ा से कहवावल. कहवावल त हाथीलोग कहले हँकड़ के, आ घोड़ालोग हिनहिना के कहले कि तेहीं एगो नइखस रे रजवा, तेहीं एगो नइखिस रे रनिया, हमनियो के बानीं. हथियन के हँकड़ल जब सुनाइल, सुनाइल जब घोड़वन के हिनहिनाइल त रजवा के चिन्ता चटक गइल, फिक्किर फेंकाऽ गइल, रनिया के चिन्ता चटक गइल, फिक्किर फेंकाऽ गइल. त कहले राजा कि एगो हमहीं त नइखीं, सात गो राजकुँवर बाड़े, सातो के सात गो माई. त हमहीं काहे सोचीं, ऊहो लोग सोची. त कहली रानी कि एगो हमहीं त नइखीं, सात गो राजकुँवरी बाड़ी, सातो के सात गो बपसी. त हमहीं काहे सोचीं, ऊहो लोग सोची. त भइल कि केहू के केहू प थोपल मत जाय, जइसे हम पा गइलीं तोह के, तू हम के, सब्भे के सब्भे के पावे दिआय.

हथियन के गुरभेली खिया के आ घोड़वन के रहिला, तनाइल तम्बू उखड़ाइल आ बिदाई के गाना गवाइल. रानी आपन सात हाथी देके राजा के बिदाई कइली, सोना-चानी के हउदा से साज के, राजा आपन सात घोड़ा देके रानी के बिदाई कइले, सोना-चानी के जीन से साज के. रानी राजा के गुन गावत अपना राज, अपना रनिवास में गइली, राजा रानी के गुन गावत अपना राज, अपना रजवास में गइले.

एने रानी के गुन गवला से राजा जब फुरसत पवले त अपना सातो रानी से जा-जा के कहले कि हमरा त पतोह के सवख, तहार तू जानऽ. त सातो रानी बटोराऽ के कहली कि हमनी के सवख त तहरा से जादे. त राजा कहले कि जोहीं ? त सातो जनी कहली कि जोहब जा हमनी के, तहार कवन, पतोह जोहे जइबऽ, मेहरारू लेके आ जइबऽ ! त राजा कहले कि हथिसार में सोना-चानी के हउदा-साजल सात गो हाथी बा, लेके जा, जोहऽ जा. कहला के देर रहे, सातो जनी चल देली.

ओने राजा के गुन गवला से रानी जब फुरसत पवली त अपना सातो राजा से जा-जा के कहली कि हमरा त दमाद के सवख, तहार तू जानऽ. त सातो राजा बटोराऽ के कहले कि हमनी के सवख त तहरा से जादे. त रानी कहली कि जोहीं ? त सातो जना कहले कि जोहब जा हमनी के, तहार कवन, दमाद जोहे जइबू भतार लेके आ जइबू. त रानी कहली कि घोड़साल में सोना-चानी के जीन-साजल सात गो घोड़ा बा, लेके जा, जोहऽ जा. कहला के देर रहे, सातो जना चल देले.

हथियन के रस्ता चीन्हल रहे, घोड़वन के रस्ता जानल रहे. रानीलोग हथियन के हेने हुदुकावे, बाकिर ऊ ओनहीं जायँ जेने जाय के रहे. राजालोग घोड़वन के होने हाँके, बाकिर ऊ ओनहीं जायँ जेने जाय के रहे. त एने रानीलोग कहल, ओने राजालोग कहल कि बुझाता कि भगवान के कुछ आपन मर्जी बा. ऊ दिन आ आज के दिन, जवना बात प आपन कवनो बस ना, तवना के ‘भगवान के मर्जी’ कहे के चलन, तहिया जवन चालू भइल, तवन आज ले चलत बा, चलते जात बा.

घोड़ालोग कतनो रेहों-रेहों चलल, दुलकी प, आ हाथीलोग कतनो तेज चलल, दोमत, बाकिर जहाँ पहुँचे के रहल तहाँ घोड़ालोग, राजालोग के लेले-देले, जइसे हर दाईं हर ठाईं पहुँचेला, ओसहीं एह कथवो में, एहू ठइँया एहू दइँया, हाथीलोग से पहिले पहुँच गइल. राजालोग घोड़ा के पेट प कतनो एँड़ियावल, घोड़ा लोग अड़ गइल, त अड़ गइल. त राजालोग बूझ गइल
कि ईहे बुला ऊ, भगवान के मर्जी वाला जगहा ह. सोचले त रहे लोग कि भगवान के मर्जी वाला जगहा प सात गो दमाद-जोग नवहा-नवतरिया एँड़ी-दोंड़ी-तिल्ली-चहुँरी-चाँप-सेख-सुतिर्जा करत भेंटाऽ जइहें, बाकी इहँवा त जेने देखऽ तेने, घोड़ा आ हाथी के लीद, तम्बू-कनात के खूँटा आ बाँस. दसो दिशा ताक के आ झाँक के, जब बइठल लोग थाक के, त हरियर मन ठूँठ
भइल, भगवान प भइल भरोसा बुझाइल कि टूट गइल. ई टुटलका जले सहले सहाइल, तले त सहाइल, जब ना सहाइल, त हार-दाँव देके, अपना के साफ-सफाई में जोतल लोग, अहरा बोझल लोग, आटा मँड़ाय लागल, आलू-बैगन भुनाय लागल. अदिमी पीछे सात के हिसाब से सात-साते उनचास आ एगो अपना रनिया के जोड़ के पचास गो फुटेहरी के आटा सनाइल आ मँड़ाइल, बाकिर गढ़ाइल त गिनाइल त पचास के दुन्ना, एक प दू सुन्ना हो गइल. जे सनले रहल सेकर कहनाम कि हमरे दोष, अधिका सनाऽ गइल, जे मँड़ले रहल सेकर कहनाम कि हमरे दोष, अधिका मँड़ाऽ गइल. बाकिर, दोष देबे खातिर नया-नया भेंटाइल रहन भगवान, त सबके दोष सबसे उठा के उनुके माथे मढ़ाऽ गइल.

अभी फुटेहरी झराते रहे, चोखा मिंसाते रहे कि सातो हाथीलोग सातो रानीलोग के लेले-देले आ गइल. रानीलोग जब देखल कि सब कुछ अतना साफ आ सगरो अतना सफाई, आ हाथी से उतरत कहीं कि सेवकाई में सत-सत गो सुग्घर जवान पहिलहिंए से बाटी-चोखा बना के हाजिर, त जाहिर बात कि भगवान प ओह लोग के भरोसा अवरू अटूट भइल. ओने राजालोग जब देखल कि अचके में सोझा, अइसन अटूट आ अइसन अचूक सुघराई, त भगवान से टूट गइल भरोसा फेरू से जूट गइल. ऊ दिन, आ आज के दिन, तहिए से भगवान प मरदन के भरोसा बात पीछे टूटत आ बात पीछे जूटत, आ तहिए से भगवान प मउगिन के भरोसा एक बे जूटल त भगवनवो के तुरले ना टूटल.

त टूट के भइल स्वागत-सत्कार. जे सनले रहन से कहले कि भला कि बढ़ाऽ के सनलीं, जे मँड़ले रहन से कहले कि भला कि बढ़ाऽ के मँड़लीं. कहाँ उठाँव कहाँ बइठाँव का खियाँव का पियाँव के लागल जब झरी, आ रानीलोग सुनली जब सातो सेवकान के लस-फस बतकही, बाते-बाते जी-जी, त जान गइली कि इन्हनी के ना खेत के ना बधार के, हमने-अस अद-बद के कवनो-ना-कवनो दरबार के. बाते-बाते जनली लोग कि जइसे हमनी के एगो के सात गो, ओसहीं इन्हनियो के एगो के सात गो. त दुन्नो तरफ से, बाते-बाते भइल कि जिनिगी भ त एक-साथे-साते के जनलीं जा, धन्न भगवान, कि एही जिनगानी में आज, सात-साथे-सात के जनलीं जा. त राजालोग कहले कि आवत बेर रनिया से ना कहले रहितीं जा कि ‘तें जइबे जोहे दमाद त भतार लेके आ जइबे’, त आज लवटि के देखइतीं जा कि देख, हमन सातो के सात गो, तोरा एको ना. रानीलोग कहली कि आवत बेर रजवा से ना कहले रहितीं जा कि ‘तें जइबे जोहे पतोह त मेहरारू लेके आ जइबे’, त आज लवटि के देखइतीं जा कि देख, हमन सातो के सात गो, तोरा एको ना. जब राजालोग जानल कि रानीलोग के सात गो पतोह के दरकार त कहल लोग कि धन्न भगवान कि कुँइया पठवलऽ पियासा के पास. जब रानीलोग जानल कि राजालोग के सात गो दमाद के दरकार त कहल लोग कि धन्न भगवान कि कुँइया पठवलऽ पियासा के
पास. जब पारापारी राजालोग पारापारी रानीलोग के पारापारी श्समधिनश् कह के गोहरावल, त राजालोग के पारापारी लागल कि रानीलोग प सोभल ई समधिन कहाइल पारापारी. जब पारापारी रानीलोग पारापारी राजालोग के पारापारी ‘समधी’ कह के गोहरावल, त रानीलोग के पारापारी लागल कि राजालोग प सोभल ई समधी कहाइल पारापारी.

पता ना कि साँच कि झूठ, बाकिर सुने में आवेला कि चिन्हाय मत तवना खातिर बस अतने कि तनी-मनी हेर के फेराइल, फेर के हेराइल आ ओही समधी-समधिन वाला दिन के इयाद में तबला के सोरह मतरा वाला समूचा तीन ताल आइल,‘धा धिन धिन धा, धा धिन धिन धा, धा तिन तिन ता, ता धिन धिन ता’.

अब, जले कथा के सुननिहार ई हिसाब लगइहें कि एक-एक रानी कै-कै बेरा समधिन कह के गोहरावल गइली, कि एक-एक राजा कै-कै बेर समधी कह के गोहरावल गइले आ कुल कै बेरा समधिन आ कै बेरा समधी के भइल गोहार, आ जले सही हिसाब के सबका से पहिले लगवनिहार अपना ईनाम में एक पीछे सात के हिसाब से खवाइल बाटी के बाद बाँचल बाटी के चोखा संगे पइहें आ कले-कले खइहें, तले सातो रजवा, सातो रनिया सोच-साच के फारिग हो जाय भर पा जइहें टाइम कि घर-बइठी रनिया जो ना मानी, तब ! कि घर-बइठा रजवा जो ना मानी, तब ! कि ना मनिहें खेलत-पिछुआरी सब राजकुँवारी जो, तब ? कि ना मनिहें खेलत-दलानी सब राजकुँवारा जो, तब ? सातो रानी सातो राजा, अभी ‘ना-मनिहें-तब’ के चिन्ता से चलबो ना कइले, ‘का-होई-तब’ के फिक्किर के पँजरा अभी पहुँचलो ना रहले कि हाथीलोग हँकड़ देल, घोड़ालोग हिनहिनाइ देल. त भइल कि हमहन के तरफ से तोनहन के ओक्के, तोनहन के तरफ से हमहन के ओक्के, बाकी के तरफ से बाकी के ओक्के बाकी सब जाने. केहू के केहू प थोपे वाला हम के, तू के ! हमन जइसे पा गइली तोनहन के, तोनहन हमन के, सब्भे के सब्भे के पावे दिआय.

त हथियन के गुरभेली खिया के आ घोड़वन के रहिला, बिदाई में एने से गवाइल कि मोका परी त तोनहन खाती सातो जन थुम्ही-अस गड़ा जाइब, ओने से गवाइल कि मोका परी त तोनहन खाती सातो जनी तम्मू-अस तना जाइब. रानी लोग आपन सातो हाथी राजालोग के देल, राजालोग आपन सातो घोड़ा रानीलोग के देल आ रानीलोग अपना राजकुँवरलोग के भाग सराहत अपना राजा के रजवास पहुँचल, राजालोग अपना राजकुँवरी लोग के भाग सराहत अपना रानी के रनिवास पहुँचल.

ओने राजा देखले कि रानीलोग हाथी प गइल, घोड़ा प आइल त बूझ गइले कि रानी होके गइलिन लोग, समधिन होके अइलिन लोग. ऊ लोग कुछ कहिती, ओकरा पहिलहिंए कहले कि जवन तहन लोग के मंजूर तवनो हमरो मंजूर, अपना लइकन से बाकिर, पुछिहऽ लोग जरूर. त कहल लोग कि ओह लोग से जब पूछब जा तब पूछब जा, अबहीं त नइखे बुझात, कि
बिना कुछ बतवले जे बूझ गइल बात, अइसन मनबुझना अपना पियवा के, कइसे में छोड़ीं जा अकेल !

राजा अकेल से सतकेल भइले आ सतकेल भइले त अइसन झेल गइले, कि मने-मने कहले कि भला भगवान, कि सात साते रहल, आठ ना भइल ! बाकिर, ओही भला भगवान के मार कि जब सात के आइल बात, त सब कुछ भुला के, अचके में पूछ बइठले कि अ हो, सातो समधिन के, सातो समधी, बरोबरे परले पसन्न कि कुछ बेसी कम ? त सातो जनी पुछली कि क हो, तू कइसे जनलऽ कि अद-बद के साते गो ? ना बेसी ना कम ? रजवा क हक-बक बन्द. कुल्हि किस्सा गा-गा के परल सुनावे कि कइसे-कइसे, सात समधी जहँवा से तोनहन कमइलू, तहँवे से हमहूँ, अगसर एगो समधिन कमइलीं. रानीलोग कहली कि बाड़ऽ त रजऊ तू भारी खिलाड़ी, बाकिर का, कि हमहन प आपन सम्बन्धिन तू थोपलऽ ना, अपना से आपन सम्बन्धी कमाय से हमहन के रोकलऽ ना, त समधिन तहारी, हमनो के ए राजा, जतना तोहरा, ओतने पियारी….

एने रानी देखली कि राजालोग घोड़ा प गइल, हाथी प आइल त बूझ गइली कि राजा होके गइलन लोग, समधी होके अइलन लोग. ऊ लोग कुछ कहिते, ओकरा पहिलहिंए कहली कि जवन तहन लोग के मंजूर तवनो हमरो मंजूर, अपना लइकिन से बाकिर, पुछिहऽ लोग जरूर. त कहल लोग कि ओह लोग से जब पूछब जा तब पूछब जा, अबहीं त नइखे बुझात, कि बिना कुछ
बतवले जे बूझ गइल बात, अइसन मनबुझनी अपना बनिया के, कइसे में छोड़ीं जा अकेल !

रानी अकेल से सतकेल भइली आ सतकेल भइली त अइसन झेल गइली, कि मने-मने कहली कि भला भगवान, कि सात साते रहल, आठ ना भइल ! बाकिर, ओही भला भगवान के मार कि जब सात के आइल बात, त सब कुछ भुला के, अचके में पूछ बइठली कि अ हो, सातो समधी के, सातो समधिन, बरोबरे परली पसन्न कि कुछ बेसी कम ? त सातो जने पुछले कि क हो, तू कइसे जनलू कि अद-बद के साते गो ? ना बेसी ना कम ? रनिया के हक-बक बन्द. कुल्हि किस्सा गा-गा के परल सुनावे कि सात समधिन जहँवा से तोनहन कमइलऽ, तहँवे से हमहूँ, अगसर एगो समधी कमइलीं. राजालोग कहल कि बाड़ू त रनियऊ तू भारी खिलाड़िन, बाकिर का, कि हमहन प आपन सम्बन्धी तू थोपलू ना, अपना से आपन सम्बन्धिन कमाय से हमहन के रोकलू ना, त समधी तहार, हमनो के ए रानी, जतना तोहरा, ओतने पियार….

ओने राजा अपना सातो रानी साथे बइठले, सातो राजकुँवर के बोलवले, सब-सब बात बतवले, बतवले कि हमहन के आपन सम्बन्धिन से, अपना सम्बन्धी से राजी, अब तोनहन के बारी. जइसे मन तइसे जाँचऽ जा, सँवाचऽ जा आ आके बतावऽ जा. तोनहन के राजी त हमहन के राजी आ तोनहन के ना जी त हमहन के ना जी.

एने रानी अपना सातो राजा साथे बइठली, सातो राजकुँवरी के बोलवली, सब-सब बात बतवली, बतवली कि हमहन के आपन सम्बन्धी से, अपना सम्बन्धिन से राजी, अब तोनहन के बारी. जइसे मन तइसे जाँचऽ जा, सँवाचऽ जा आ आके बतावऽ जा. तोनहन के राजी त हमहन के राजी आ तोनहन के ना जी त हमहन के ना जी.

एने सातो राजकुँवरी मूँड़ी में मूँड़ी जोड़ के बइठली, ओने सातो राजकुँवर मूँड़ी में मूँड़ी जोड़ के बइठले. कइसे जाँचल जाय, कइसे सँवाचल जाय ! उपाय-उकित लगावल गइल, जोग-जुगत जगावल गइल. राजकुँवरवन के एकमत में देर भइल, राजकुँवरियन के मति तनी जल्दी एकमेक भइल. त सातोजानी, भेस बना लिहली कड़ियल मर्दानी. मोछ डंकमारू, दाढ़ी जानमारू. सँउसे घोड़साल से बीछ के, एक रंग-रूप के, छुअत में उड़न्त, सात गो घोड़ा लहावल लोग, अपना हाथे खरहरावल लोग, हीरा-मोती से सजावल लोग, आ लगावल लोग एँड़, त एक्के उड़ान में नदी-पहाड़ के पार, अपना आपन-बननिहार सुन्नर-से-सुन्नर-से-सुग्घर-से-सुग्घर ससुरार. हरियर खेत आ सकस खरिहान, आ रहबट सब, राही-बटोही के छहाँय भर छावल, चिरइन के खोंता लगावे भर बढ़ के बनावल.

जेकरा से पूछऽ से रजवा के गुन गावत, रनियन के गुन गावत, राजकुँवरवन के गुन गुनगुनात. राजकुँवरी सुनली जा त अइसन उछहली जा कि लगली जा खुला मैदान में घोड़ा धउरावे, करतब-प-करतब जगावे. लोग-बाग जुट अइले, घर-घर से उठ अइले. मजमा के आगे, ठाढ़ भइले आके, राजकुँवर सातो-के सातो, जनता के जै-जै-जैकार-बिच फरके से बरत-जगमगात,
एक-एक करतब प चिहात, सिहात, एँड़ी से मूँड़ी ले दोम के, देखनिहार-देखौनिहार के जोश में जोश मिलावत, थपरी बजावत, गमछा लहरावत. देखली जा उन्हनी के अँइसे उपट के जब देखत, त आप-से-आप, करतब में अवरू कुछ आइल कमाल, अवरू कुछ कइली धमाल.

साँझ भइल, साँझ से रात भइल. लोग-बाग त अपना-अपना गिरिही लवटि गइल, बाकिर, राजकुँवर, सातो-के-सातो, ठगइला-अस ठाढ़-के-ठाढ़. कहले जा कि भइया कमाल के करतबी तू सातो जवान, तोनहन से दुनो हाथ दसो नोह जोड़ के अरदास, कि जतना मन ततना लगा ल जा दाम, नगद में माँगऽ भा सोना भा चानी, जमीन भा जजात, बाकिर, कहे के बा अतने, आ ऊहो लजात-लजात, कि घोड़ा ई सातो हमनी के दे द जा, बदला में जवन मन, जतना मन ले ल जा. पुछाइल कि से त ठीक बा, बाकिर ई त बतावऽ कि घोड़ा ई चाहीं त काहे खाती ? बतावल गइल कि कुछुए दिन बाद, बन-ठन के दुलहा-दमाद, जाय के बाटे बराती, तवने खाती, घोड़ा ई सातो के सातो हमनी के चाहीं. पुछाइल कि तय बा बियाह कि कुछ बाकी बा ? तय बा त ले जा, शादी-बियाह में भइल मददगार त पुन्न के काम … बाकिर कुछुओ जो बाकी बा त घोड़ा त हमहन के अतना ना दामी बा … अतना ना दामी बा … कि देले ना तोनहन से कब्बो दियाई. त बतावल गइल कि झूठ कहाई त मूँह दुखाई, दू तिहाई तय बा, एक तिहाई बाकी बा. समधी के तरफ से समधिन के हामी बा, समधिन के तरफ से समधी के हामी बा. समधी से समधीसब, समधिन से समधिनसब राजी बा. राजी सब समधी सब समधिन से, राजी सब समधिन सब समधी से. बाकिर का, कि दुलहिनसब तरफ से ई हामी, बाटे कि नाहीं, हमनी के जानीं ना, आ हमनी के हामी अभी बाकी बा….

त भइल कि बाकी ना रहित, त आजे आ अबहिन, सातो घुड़सवारन के सहित, घोड़ा ई सातो-के-सातो, तोनहन के होइत, बाकिर … बाकिर, तोनहन के हामी अभी बाकी बा त घोड़ा ई बहुतो से अधिका से जादहीं कुछ दामी बा. ओतना भर ना सोना-चानी तोनहन के पास बा, ना रुपया-पइसा, ना जमीन-जैजात. त राजा के बेटा भइले, छिनबऽ त छीन त लइबऽ जा, किनबऽ त कीन ना पइबऽ जा.

— त तोहनियो के मानऽ कि छीन न पाइब जा, आ हमनियो के मनलीं कि कीन न पाइब जा. त तीसर कवनो उपाय बतइबऽ त बतावऽ जा, ना त खाली हाथे लवटावऽ जा.
— उपाय त बा, बाकिर बतावत में हमहन के लाज बा, मानत में तोनहन के ईजत प आँच बा. हमनी से बतावल ना जाई, तोहनी से मानल ना जाई. देर ले भइल कि बतावऽ-बतावऽ, देर ले भइल कि जाय द, छोड़ऽ, हटावऽ. तीन बे कहाइल कि सुन के खिसियइबऽ जा, तीन बे कहाइल कि सुन के खिसियाइब ना. तब जाके कई-कई किस्त में कहाइल कि घोड़ा ई सातो-के-सातो, लेके त केहू चल जाई, बाकिर का, कि इन्हनिन के आपन बना के त ऊहे रखि पाई, जे पिछला घोड़वाहन से, घोड़ा पीछे सात लात खाई. त तोनहन त रानी-बेटउआ, हमहन के करतब कमउआ, कइसे में खइबऽ जा हमहन से लात, त रात भइल, जइतऽ जा, दाल-भात खइतऽ जा माई-बाप साथ…

त कहले जा राजकुँवर कि से त सही बात, कि बहुत भइल रात, देखत त बाटे ना आस-पास केनियो से केहू, तलुओ देखात बा इन्हनी के नान्हे, लाल, कमल-कोमल सुकवार…. त बड़कू से छोटकू ले कहले कि अप्पन जब गर्रज त भला कवन हर्रज !

त चुपचाप, पीठ उघार के भइल लोग ठाढ़, मूँद के आँख, मने-मने मिनती कि जतना जल्दी बीते, बीत जाय सात के गिनती. बाकिर का, कि पहिला परल जब लात, दुसरका के जइसे कि जाग गइल आस, आ अजब अन्हरगर्दी कि जब हो गइल कि हो गइल सात, त छोटकू से बड़कू ले जतना चिहा के, ओतने दुखाऽ के, कहले कि हाय हो ! हतना जल्दी !

सातो करतबी, सातो घोड़ा के लगाम जब सातो लतियावल के धरावल त केहू ना जानल कि लगाम धरावे वाला लोग लगाम धरावे के पहिले गलती से हाथ धराऽ देल कि लगाम धारे वाला लोग लगाम धारे के पहिले गलती से हाथ ध लेल. गलती सुधरल किदो सुधारल गइल, आ जात-जात बड़ा सँपर के कहल गइल आ बिना कुछ कहले सुनल गइल कि हे हो तू सातो करतबी, धन्न भाग अइलऽ जा, करतब देखइलऽ जा, आ अइसन ई अजगुत घोड़ा लहवइलऽ जा. त हमनी के घोड़ा पुरनका अब खोलऽ जा, आ हाथ जोड़ तोनहन से अतने निहोरा बा कि जवन भइल केहुओ से कुछुओ मत बोलऽ जा, रतेराती देसवा से बहरी तू हो ल जा कि जाने मत केहू कि कुछ सउदा होखेला एहूँ !

चलि देले सात-साथ पूरुब आ सात-साथ पच्छिम. पुरुब ओर भइल कि भइया हो बबुआ हो, पिठिया प कइसन दो होता सनसनी ! पच्छिम ओर भइल कि दिदिया रे बुचिया रे, तलुआ में कइसन दो होता गुदगुदी !

राजकुँवरी सातो के सातो बता दिहली हँस के कि हमहन के हे बापू, हमहन के हे अम्मा, तोनहन के बस में. तोनहने के राजी में राजी. त भइल कि आहा, अब होखे तइयारी. गहना गढ़ाय कपड़ा सिआय. त भइल कि राजकुँवर ना होइहें राजी त का होई सब-सब तइयारी ! तँवाई ? त भइल कि काहे तँवाई, आपन तइयारी अपना कामे आई. भगवान के माया कि शादी-बियाह के, जड़ाऊ से लेके झमकाऊ ले, सोना से चानी ले, हीरा से मोती ले, गहना से गुरिया ले साज के, आ साज-सिंगार के, ओढ़ान-पहिरान के सब-सब सरजाम सत-सत गो हाथी प लाद के, आ अपने, सोरहो सिंगार से एँड़ी से चोटी ले मात के, तर-ऊपर सुन्नर से सुग्घर, सात गो सहेली पधार अइली सीधे रनिवास में, लंक लचकावत, नैन मटकावत, पहिरला से जादे झमकावत कि हम
मनिहारिन आ हम सजवनिहारिन, कि हम चुड़िहारिन आ हम पेन्हवनिहारिन, कि हम सोनारिन आ हम गढ़निहारिन, आ एक जनी जे बँचली से कहली कि बाकी सब हम, हम मेहँदी-लगवनिहारिन, हम गोदना-गोदनिहारिन, हम जुलुफ-झरनिहारिन…. दसो दिशा से घेर के, शुरू भइल देखे-देखावे के सिलसिला, लार टपक जाय, चीझ-बतुस अइसन नगीना, दाम बाकिर बहुतो से अतना ना जादे से अधिका से अधिका, कि सुन-गुन के पूस में टघर टपके टप-टप पसीना. तउलावत-मोलावत, सभनी जब थकली त कहली कि जेकरा नौ मन घीव होखे सेही
ढरकावे आ राधा नचावे, हमनी त बबुनी हो, अपना घरे चलनी. रह गइली राजकुँवरी सातो-के-सातो.

सातो हाथी प साजल सब-सब सरजाम निकलवा लेली, मोल-तोल करत-करत तीन पहर रात बितवा देली. अंतकाल कहली कि चीज त तोहनी के सब-सब अनमोल, आ अपने तू सभनी गुन के गिरोह, बाकिर का, कि बाप-मतारी के सँउसे खजाना खलियावल, हमनी से कइसे के सँपरी ! त माफ करऽ बहिनी तू सात, समेटऽ जा सब-सब सरजाम, हमनो के हाथ बँटाइब जा, आ
अतना जे तोनहन से मेहनत करवलीं, तवना के कीमत, जतना भर सावंग, चुकाइब जा. त भइल कि रनिवास में पसारल सामान, लवटा के अब कइसे ले जाइब जा ! हमनी के घूम-घूम-घरे-घरे-घुस बेचनिहारिन. छूँछे लवटला प केहू ना, कबहीं ना, कतहूँ ना पूछी. केकरा के कवन मुँह देखाइब जा. हमन के त धरम कि की त बेंच के जाईं जा, ना त मुँहकरखी लगाईं जा. त की त कीनिए ल, आ ना त रानी के, राजा के बेटी तू लोग, निमना मने छिनिए ल.

त भइल कि बा कवनो तीसर उपाय ? त भइल कि उपाय त बा, बाकिर बतावत में हमहन के लाज बा, मानत में तोनहन के इज्जत प आँच बा. हमनी से बतावल ना जाई, तोहनी से मानल ना जाई ! देर ले भइल कि बतावऽ-बतावऽ, देर ले भइल कि जाय द, छोड़ऽ, हटावऽ. तीन बे कहाइल कि सुन के खिसियइबू जा, तीन बे कहाइल कि सुन के खिसियाइब ना. तब जा के कई-कई किस्त में कहाइल कि कुछुओ के कीमत, की त दाम ना त पियार. दाम से दीहल में, दाम से लीहल में, सेर भ बरक्कत, त सवा सेर, प्यार से दीहल में, प्यार से लीहल में. त एकएगो हाथी के सब-सब सामान, सत-सत बस चुम्मन चटा दे, आ जे चाहे ले जाके अपना सनूक में सजा ले.

बाकिर का, कि तोनहन त राजा-बेटुइया, हमनी के घरघुमनी गुँइया, कइसे तू हमहन के गाले लगइबू जा, त रात भइल, जइतू जा, पिहितू जा, खइतू जा, हमनी के छोड़-छाड़ सब कुछ, केनियो मुँहकरखी लगावे, चलि जाय दिहितू जा…! त कहली जा राजकुँवरी कि से त सही बात, बहुत भइल रात, देखत त बाटे ना आसपास केनियो से केहू. आ देखे त देखे. जइसन हम सातो बहिनिया तइसन तू हमहन के सातो सखिया, सब गुन गुनिया. त भला कहऽ दिदिया, भला कहऽ बुचिया, चुमावन में केकरा आ कइसन गुनावन ! बाकिर का, कि एने, सातो बहिनिया भितर-घर पहुँचते, गाल तरहत्थी प धइले-धरइले, कहली कि बुचिया रे, दिदिया रे, गलवा प कइसन दो होता सिहरावन…!

आ ओने, रनिवास से, आ जनानी लिबास से बहरी निकलते, राजकुँवर सातो भयकड़ा, कहले कि भइया रे, बबुआ रे, अइला-अस काहे ना अइलीं जा, भगला-अस काहे के भइलीं जा ? अइसन ई होला चुमावन ? इगुत्ती-पिछुत्ती ले लुत्ती-लगावन ! अब जब बा सब सब से राजी, त भला बतावऽ एह कथा में, कहानी में, अब का धइल बाटे बाकी ! एक बस एकरा अलावा कि बाजल बाजा, ढोल-नगाड़ा, धूम-धड़ाका. मटकोड़-मँड़वान, हर्दी-भतवान. संझा-पराती, मतिरपूजा-घिढारी. देवतन के, पितरन के, नेवतन. इमली घोंटावल, लावा मेरावल. सेनुरदान-कन्यादान. मन्तर-झूमर, अंगेया-बीजे, कच्ची-पक्की….

कोहबर में पहुँचले जब दुलहा लोग, त कहाइल कि अइसन कबित्त कुछ सुनावऽ कि दुलहिन लोग सुनते घूँघट-पट खोल दे. त कोरस में सातो के सातो सुनवले – बाह-बाह रे बाह मोर चूम-चटाम.

आ सुनते के साथ, दुलहिन लोग दन्न-दे घूँघट हटवली, झम्म-से सातो दुलहवन के आँखिन में झँकली आ सातो में सातो घरघुमनी गुँइयन के देखली मुसुकात त पहिले त लजइली जा, तब मुसुकइली जा, आ ठठा के हँसली जा तवना के बाद. दुलहा लोग चिहाइल कि हमहन त हँसी के अतना बरवलीं जा, मुसुकिए से काम चलवलीं जा, आ इन्हनी के देखऽ कि अपने से आपन
मजाक ! त दुलहिन लोग कहली कि कहीं त कबित्त के पुराईं जा ? भइल कि पुराईं जा. त पुरवली जा, आ गा के सुनवली जा कि – एक-एक घोड़ा प सत-सत लात, आवऽ बतियावऽ जा चूम-चटाम.

सुनते के साथ, दन्न-दे उठले जा, झम्म-से दुलहियन के आँखिन में झँकले जा, आ सातो में करतब-कमउअन के पवले मुस्कात त पहिले त लजइले जा, तब मुसुकइले जा, आ ठठा के हँसले जा तवना के बाद. कोहबर के सातो दुलहवन के हँसी हहात, सातो दुलहियन के हँसी हहात, हुलसल चलल जब उधियात, सुख-सुधियन-सनात, त सातो समधी, सातो समधिन से भेंटत, समधी राजा आ समधिन रानी के समेटत, अरजा तक, परजा तक पहुँचल उजास, हाथी तक, घोड़ा तक पहुँचल, आ तय बा कि कथा के सुनवइयो तक पहुँची, कहवइयो तक पहुँची, आ जे
कँउची से कतनो कँउची, तय बा कि ओहू तक पहुँची.

ओंइसे, एह कथवा के असहूँ कहल जाला, सुनल जाला असहूँ, कि एगो, चाहे जै गो, कवनो देश के राजकुमारी रही, एगो, चाहे जै गो, कवनो देश के राजकुमार रहन, बियाह के बात चलल, त
रजकुमरिया बदललस भेस, दाढ़ी-मोंछ लगवलस आ सामकरन घोड़ा धउरा के पहुँच गइल रजकुमरवा के देश, लागल घोड़ा धउरावे, एक से एक करतब देखावे. जे देखे से करतब प लोभाय, देखलस रजकुमरवा, त घोड़ा प लोभा गइल, कहलस कि हमरा चाहीं त ईहे घोड़ा चाहीं. साथी-सँघाती सहित्ते घुड़सवरवा किहाँ पहुँचल कि बेंची त कीन लेब, ना बेंची त छीन लेब. कहलस कि हे हो, घोड़ा के दाम लगावऽ आ अब्भी के अब्भी, नगदे पावऽ भुगतान, आ घोड़ा के रास थमावऽ. त कहलस घुड़सवार रजकुमरिया कि दाम बताइब त तू त राजकुमार, तहार त कुछ बिगड़ी ना, बाकिर का, कि तहार ई साथी-संघाती बेहोश होके गिरिहें जा त उठवले ना उठिहें जा, झुट्ठे हतियारी हमरा माथा प लागी. त राजकुमार, सब साथी-संघाती से कहले कि तोहनी के
दूर तनी जइहऽ जा, बोलाइब त घोड़ा के लगाम धरे अइहऽ जा. एकन्ता पवली त राजकुमारी कहली कि ए हो, दाम त जवन बा तवन बड़ले बा, बाकिर निमना मने तू जद्दीजे दू लात हमरा से खा ल त घोड़ा ई मुफुते में पा ल. रजकुमरवा के कवनो कमी त रहे ना, बाकिर मुफुत के नाँवे अइसन ललचल कि अगल-बगल केहू ना लउकल त दन्न दे दू लात खा लेलस पीठ उघार
के, आ बिना केनियो तकले, बिना अपना साथी-संघाती के बोलवले, घोड़ा के लगाम धइले, निकल गइले.

राजकुमारी लवटली आ बाप के बतवली कि रजकुमरवा तहरा दमाद लायक नइखे. पुछले कि काहे, त कहली कि मारऽ, मुफ्तुल्ला ह. त कहले बाप कि जवन पंडितवा बियाह ई बतवले बा, तवन गनना मिला के छतीसो गुन गिनवले बा, कि गजब के मेल बा, बियाह बस भइला के देर बा, ई उनुका किस्मत के खोली, ऊ इनिका किस्मत के खोली, कि भगवान के बनावल ई जोड़ी, ऊहे टूट जाई जे एकरा के तोड़ी. त तूहीं बतावऽ कि कइसे एह बियाह के बात हम तूरीं, तुरला के त माने कि अपने टूटीं ! त कहली राजकुमारी कि बियाह जो होइयो जाई त हम त दुलहाराम से एक्के बात अइसन बोलब कि सुन के जो भगिहें त कयामत के पहिले लवटि के ना अइहें. त कहले बाप कि ईहो बढ़िएँ ! भगिहें त तें त अपनो रजवा पइबे उनुको रजवा पइबे. भल के भल-भलिए !

रजकुमरवा के बारी. बदललस भेस, दाढ़ी-मोंछ लगवलस आ जा पहुँचल ओही रजकुमरिया के देस, दोकान सजा के बइठल आ अतना दामी-दामी गहना-गुरिया धइलस कि ऐरू-गैरू लोग त दोकान में अइबो कइलन त अइलन आ गइलन. त भइल कि अब त राजकुमारी जब अइहन त ऊहे कुछ-ना-कुछ कीन-बेसाह के जइहन. त राजकुमारी अगराइल अइलिन, मन भ गहना तउलइलिन. कहली कि दाम बतावऽ, आ अब्भी के अब्भी, नगदे पावऽ. त कहलस रजकुमरवा कि दाम बताइब त तू त राजकुमारी, तहार त कुछ बिगड़ी ना, बाकिर तहार ई जतना जानी सखी-सलेहर, से सब बेहोश होके गिरिहें त उठवले ना उठिहें, हमार दुकनदारी बिगड़िहें. त राजकुमारी सखी-सलेहर लोग से कहली कि तू लोग बहरी जा, बोलाइब त सामान उठावे अइहऽ
जा. एकन्ता पवले त राजकुमार कहले कि ए हो, दाम त जवन बा तवन बड़ले बा, बाकिर निमना मने तू, अधिका ना, दू चुम्मा हमके चटा देबू त सँउसे दोकान के सब-सब सामान ई, मुफुते में पा लेबू. रजकुमरिया के कवनो कमी त रहे ना, बाकिर मुफुत के नाँवे अइसन मन ललचल कि अगल-बगल केहू ना लउकल त दन्न दे दू चुम्मा धरा देली, आ बिना केनियो तकले, सखी-सलेहर लोग के बिना बोलवले, सँउसे सामान अपने उठवली, निकल गइली.

राजकुमार लवटले आ अपना मतारी के बतवले कि रजकुमरिया तहरा पतोह लायक नइखे. पुछली कि काहे, त कहले कि मारऽ, मुफ्तुल्ली ह. त कहली मतारी कि जवन पंडितवा बियाह ई बतवले बा, तवन गनना मिला के छतीसो गुन गिनवले बा, कि गजब के मेल बा, बियाह बस भइला के देर बा, ई उनुका किस्मत के खोली, ऊ इनिका किस्मत के खोली, कि भगवान के
बनावल ई जोड़ी, ऊहे टूट जाई जे एकरा के तोड़ी. त तूहीं बतावऽ कि कइसे एह बियाह के बात हम तूरीं, तुरला के त माने कि अपने टूटीं ! त कहले राजकुमार कि बियाह जो होइयो जाई त हम त दुलहिनराम से एक्के बात अइसन बोलब कि सुन के जो भगिहें त कयामत के पहिले लवटि के ना अइहें. त कहली मतारी कि ईहो बढ़िएँ ! भगिहें त तें त अपनो रजवा पइबे, उनुको रजवा पइबे. भल के भल-भलिए !

त भइल बियाह, ओसहीं, जइसे रजवन के होला. रुपल्ली मँगाय त तोड़ा, एगो मँगाय त जोड़ा. जब मन्तर पढ़ाय लागल त कहलस दुलहवा कि ए बाबा, एक मन्तर हमहूँ बोलब. त भइल कि बोलऽ. त बोलल दुलहवा कि – ओम-नोम ओम-नोम ओम भगवन्तम, चुम्मम चटन्तम्चट सउदा पटन्तम, तवने में सज्ज-धज्ज बियहे बइठन्तम, लज्ज ना लगन्तम.

मन्तर बोल के मुँदले आँख कि अब जब भाग जाई बिहुनी, तब्बे खोलब. केनियो ना कुछ सरसराइल त अब्बे खोलले. खोलले त देखले कि मन्तर के पहिले ले, चुका-मुका बइठल जे बिहुनी, से, मन्तर के बाद, कुछ अधिके थसकर के, अल्थी में पल्थी दे बइठल. अल्थी में पल्थी दे बइठल दुलहिया अब बोलल कि ए बाबा, एक मन्तर हमहूँ अब बोलब. त भइल कि बोलऽ. त बोलल कि – ओम-नोम ओम-नोम ओम भगवन्तम, लातम खातम पीठ उघरन्तम, आसकरन घोड़ के आस पुरवन्तम, तवने प चट्ट-पट्ट बियहे पहुँचन्तम, लज्ज ना लगन्तम.

मन्तर के पहिले ले चुका-मुका बइठल दुलहवा, मन्तर के बाद, कुछ अधिके थसकर के, अल्थी में पल्थी दे बइठल. अहा … भगवान के बनावल ई जोड़ी ! टूट जाई ऊहे जे एकरा के तोड़ी ! त कइसे एह कथवा के, कथा के कहवइया अब छोड़े ! त कइसे एह कथवा के, कथा के सुनवइया अब छोड़े ! भय बा भयावन कि छूट मत जाय, ऊहे जे छोड़े ! त मत छोड़े, मत छूटे, तवनो
के कइले उपाय, दोसर के, ऊहे भगवान. असहीं त ना जी, भगवाने कहाले भगवान ! उनुके कइले ई भइल चमत्कार कि कलऊ में, उहे रजकुमरिया, – फ्री – के नाम से लिहलस अवतार. आ उहे रजकुमरवा जब कलऊ में आइल, त नाम धराइल – डिस्काउंट.

अब उठल सवाल कि राज-रजवाड़ा के बात, राज-रजवाड़ा के जात, त कहाँ एह फ्री जी के रखाय, कहाँ एह डिस्काउंट जी के रहबट दिआय ? राजमहल अब कहाँ कहूँ रहल, सभनी प पीपर, सभनी प बरगद, सब-के-सब ढहल. त फेरू से अइले भगवाने जी कामे. बड़े-बड़े सेठवन के सपना में अइले, कहले कि ऊठ, आ अइसन-अइसन मॉल, अइसन-अइसन शॉपिंग मॉल उठ के उठाव, उठवाव, कि राजमहल झूठ ! त रउरो जाईं, हमहूँ जाइब, वन प वन के, टू के, थ्री के फ्री के फैदा उठाईं, हमहूँ उठाइब. त आईं, हम्हूँ करीं, रउरो, आ उहो करे काउंट, कि कवना माल प कतना डिस्काउंट !

ओंइसे एह कथवा के असहूँ कहल जाला, सुनल जाला असहूँ, कि रजकुमरिया जब कहलस कि दू लात खइबऽ त मुफुते में घोड़ा ई पइबऽ, त कहलस रजकुमरवा कि आँख प तहरा पट्टी बन्हवाइब, तबे लात खाइब. त पट्टी बन्हाइल आ लात खवाइल. रजकुमरवा जब कहलस कि दू चुम्मा देइबू त मुफुते ई गहना कुल्हि पइबू, त कहलस रजकुमरिया कि आँख प तहरा पट्टी बन्हवाइब, तब्बे गाल बढ़ाइब. त पट्टी बन्हाइल आ चुम्मा दियाइल.

बियाह के बेदी प राजकुमार जब चुम्मा के नाम प मरले गाभी, आ ओने से राजकुमारी, पटक दिहली तवना प लात के बात, त हँसले राजकुमार कि बन्हाइल त रहे तहरा आँख प पट्टी, जनलू ना कि लात जे खाइल ऊ हम ना, हमार गोड़-दबवना. त हँसली राजकुमारी कि बन्हाइल त रहे तहरा आँख प पट्टी, जनलऽ ना कि चुम्मा जे दिहली ऊ हम ना, हमार गोड़-दबवनी. त कहले राजकुमार कि कहाँ बाड़ी तहार गोड़-दबवनी, हम उनुके से बियहब. त कहली राजकुमारी कि बताइब, बाकिर पहिले बतावऽ कि कहाँ बा तहार ऊ गोड़-दबवना, हम ओकरे से बियहब. त जइसे दिन बहुरल गोड़-दबवना के, जइसे दिन बहुरल गोड़-दबवनी के ओंइसे सभकर बहुरे.

बाकिर, एह कथवा के असहूँ कहल जाला, सुनल जाला असहूँ, कि कहलस गोड़-दबवना कि लतखोरी कबूल बा, बाकिर अइसन लतमरनी से बियाह ?! ना ना रे बाबा ना ! कहलस गोड़-दबवनी कि चुम-चटावन कबूल बा, बाकिर अइसन चुम-चटना से बियाह ?! ना ना रे बाबा ना !त कथवा ई असहूँ कहल जाला, सुनल जाला असहूँ, कि बियाह भइल ओही गोड़-दबवनी के, ओही गोड़-दबवना से. आ तवना बियाह में, राजकुमारी, बस अतने, कि नचली, आ राजकुमार, बस अतने, कि गवले. बियाह से अधिका कुछ भइल, त अतने, कि ई उनुका नचला प गवले, ऊ इनिका गवला प नचली. आ नाचत आ गावत, भरल भवन में, नैनन से नैनन में के जाने का दो बतियावल लोग, कहल आ नटल, रीझल आ खीझल, आ आँख से आँख जब मिलावल लोग, त के जाने काहे, आ के जाने केकरा से अतना लजाइल लोग कि हाथ में हाथ, धइले-धरवले, के जाने कब दो, चलि भइले दुन्नो परानी, केने दो, कहँवा दो, चम्म से चमकि के आ झम्म से झमकि के, भरलका भवनवे से ना जी, एह कथवो कहलका से बहरा निकलि के !

त कथा-बाहर बात त, भइया हो, बबुआ हो, कथा-बाहर बात ! तवना के कहे भ, सुनावे भ, कहाँ कवनो कथा-कहवइया के औकात !

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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