Jai-Kanhiya-Lal-ki

– डा॰ रमाशंकर श्रीवास्तव

भोजपुरी साहित्य में डा॰ आशारानी लाल के नाम अनजान नइखे. हाले में उनकर बाल उपन्यास ‘जै कन्हइया लाल की’ प्रकशित भइल ह. पूरा उपन्यास अलग अलग शीर्षकन में भगवान कृष्ण के जीवन पर आधारित बा. चूंकि कृष्ण सामान्य व्यक्ति ना हउवें एह से उनकरा हर कर्म में अलौकिकता के समावेश बा. उ आध्यात्मिक रूप से अलौकिक पुरुष बाड़ें आ उनका जीवन में घटित सगरी कथा कहानी में ईश्वरी शक्ति के बखान बा. अइसन घटनन पर कवनो तर्क काम ना करी. हर घटना के चमत्कार बाल पाठकन के अंघी उचाटे आ सपना जगावे के काम करी. भक्ति आ आध्यात्मिक आस्था बाल हृदय में कथा के माध्यम से चहुँपी आ विश्वास के जड़ मजबूत करी.

गोकुल-वृंदावन के परिवेश में पूतना-वध, बकासुर-वध, गोबरधन धारण, कंस-वध वगैरह भागवत कथा के मुख्य स्तंभ बा. लेखिका एह पुस्तक के प्रेरणा-स्रोत तमिल दम्पति आशा केतकर आ भा॰बा॰ केतकर के लिखल ‘संक्षिप्त श्रीमद्भागवत कथा’ बतवले बाड़ी.

लमहर कथा के छोटहन बना के लिखे में लेखक के आपन प्रतिभा आ कौशल के उपयोग करे के पड़ेला. एमे कवनो शक नइखे कि आशारानी लाल श्रीकृष्ण के जीवन के विविध प्रसंगन के रोचक ढंग से सजा के पठनीय बना देले बाड़ी. लेखिका के भोजपुरी में कथा कहे के आपन शैली बा. छोट-छोट अड़तीस शीर्षकन में कन्हैया चरित के बखान कइल गइल बा. कवितांश पर बनल शीर्षक अपना आपे में अर्थपूर्ण बा.

जै कन्हइया लाल की, मदना गोपाल की
लइकन के हाथी घोड़ा, बुढ़वन के पालकी.

कथा में लइका लोग हाथी-घोड़ा पर चढ़ला के जिज्ञासा आ आनन्द के लाभ उठावत बा. ओने बूढ़-पुरनिया लोग के भगवान के नाम रूपी पालकी के सहारा बा . पालकी से पार उतरे के बा.

एह पुस्तक में कौतूहल कठही गाड़ी के धुरा में तेल के काम करत बा. उ कौतूहल सभ जगह मर्यादित ढंग से पैदा हो ता. बाँसुरी आ गोपी के चीरहरण प्रसंग में मर्यादा हनन नइखे होत. परलोक कथाभूमि पर लौकिक संदेश एह कृति के विशेषता बा.

कृष्ण के जनमे भइल रहे दुष्ट-प्रवृति के विनाश खातिर. ग्यारह प्रसंग में राक्षस वृति के वध हो ता. आध्यात्म अउर भक्ति-आस्था में पगल कन्हैया के लीला मथुरा-वृन्दावन के बहाने समस्त मानव समाज खातिर मंगलकारी बा. पुरान कथा के आधुनिक जामा-जोड़ा पहिरा के साहित्य के मेला में उतरले बाड़ी लेखिका. बाल उपन्यास के दर्जा दिलावे में भाषा के पूरा जोगदान बा. छिहलत भाषा लइका लोग के पसंद ह, अटके वाला शब्दन से बाल पाठक भागेलें. हजारो साल बीतलो पर जेंते कृष्ण-कथा पुरान ना भइल ओहींते ‘जै कन्हइया लाल की’ ओ हमेशा तरोताजा रही.

एह कृति खातिर डा॰ आशारानी लाल बधाई के पात्र बाड़ी. हमार बधाई एतना उर्वर बा कि लेखिका के भोजपुरी रचना हमेशा उगत रही.


प्रकाशक – अतुल्य पब्लिकेशन्स
७/२५, महावीर गली, अंसारी रोड, दरियागंज, नईदिल्ली – ११०००२
दूरभाष ०११ ४३५४०८८८


संपर्क –
डा॰ रमाशंकर श्रीवास्तव, पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विंभाग, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
ए १/६०१ बेवरली पार्क अपार्टमेंट, सेक्टर २२/२, द्वारका, नई दिल्ली ७५

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One thought on “'जै कन्हइया लाल की'”
  1. बहुत -बहुत बधाई डा॰ आशारानी लाल जी के। लागत बा बहुत नीमन आ रोचक किताब होई।

कुछ त कहीं......

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