नारायण… नारायण..

by | Sep 11, 2012 | 3 comments

– ‍ नीमन सिंह

एक बेर के बात ह, नारद मुनि कहीं से गुजरत रहनी. ओही रास्ता में उनुका एगो आदमी मिलल, उ आदमी कुछ जियादही भोला–भाला, माने कि कुछ–कुछ मुरख जइसन, सोझबउक रहे, अउर ओहपर से करईला आउर नीम चढ़ल वाली बात रहे कि उ तनी कम सुनत रहे.

नारद जी ओह आदमी से मुखातिब होके कहे लगनी …नारायण …नारायण..

उ आदमी झट से पलटल आ बऊआ के नारद मुनि के देखे लागल (ऊ नारद मुनि के ना जानत रहे) बोललस, ”ना रहेम..ना रहेम. काहे महराज? काहे ना रहेम? चलीं चलीं हमरा घरे चलीं, आ हमार घर पबितर करीं.

नारद मुनि ओह आदमी के नासमझी पर आउर जोर–जोर से बोले लगनी, “ना रायण ….ना रायण….ना रायण”.

ऊ आदमी – अच्छा-आछा त समझनी, रऊआ पहिले ‘नाहायेम’, ठीक बा चलीं पहिले नहा लेम, एमे कउन बड़का बात बा ?

नारद मुनि ओकरा नासमझी पर बेचैन हो के जल्दी-जल्दी नारायण.. …नारायण ….कहे लगनी. ई सुन के ऊ आदमी बोललस, काहे महराज? काहे..काहे रऊआ ‘ना आएम’? कवनो हम अछूत हई जे रउआ हमरा घरे ना आयेम? ए जी हम हईं पकिया दूधवाला–ग्वाला. हमरा घरे अइला से कउनो दोस ना लागी,चलीं ..चलीं..

नारद मुनि ओह आदमी के अर्थ के अनर्थ लगवला से बेचैन हो के अऊर तेजी से नारायण ….नारायण ..करे लगनी

ऊ आदमी – ऐं, का कहतानी? ‘रामायण’, रामायण चाहीं? ठीक बा चलीं जबले रऊआ नहायेम हम रामायण खोज के लेआ देम. आ जल्दी चलीं भोर–भोर के बेरा बा, गायो भईंस दुहे के बा.

नारद मुनि ओकरा मूढ़ता पर अकुला के चक्कर लगा के गुटका बजा–बजा के बोले लगनी नारायण…नारायण…

ऊ आदमी अब त असमनजस में पड गइल. हे महराज रऊआ कहतानी ‘नाखायेम’..नाखायेम .काहें महराज हमरा हिंया खइला से राऊर कवन धरम भ्रस्ठ हो जाई? अच्छा–अच्छा चलीं ख़ाली दुधे पी लेम, अऊर इ कह के चले लागतारे …

मुनि जी अपनही दुनो हाथ ऊपर क के तेजी से घूम घूम के नारायण…नारायण..करे लगले. ऊ आदमी ठमक के पीछे देखलस आ कहलस अब का भइल? काहे ‘ना आएम ?‘

मुनि जी अब बेचैन होके पिंड छुड़ाने के गरज से अँउजा के तेजी से नारायण..नारायण.. कहे लगले. ऊ आदमी कहलस, “अच्छा–अच्छा. त ई बाति बा. रऊआ कहऽतानी ‘नापायेम’. अजी महराज काहे ना पाएम? चलीं चलीं हमरा से जवन दान-दक्षिणा हो सकी जरुर देम.रऊआ पावला के फेर में मत पड़ीं, चलीं. ई कहि के चले लागल ऊ. अब त नारद मुनि धरम संकट में फंस गइल रहनी. कुछ कहते ना बनत रहे की एह मूढ़ के कइसे समुझावल जाव? इहे सोचत–सोचत नारायण.. नारायण.. कह कह के नाचत रहले. ऊ आदमी – ठीक बा रऊआ ‘रामायण ना गाएम’ .त मत गाएम हम कवनो जिद ना करेम. चलीं. ई कहि के जइसही पीछे हाथ पकडे के चहलस मुनि जी अलोप हो गइनी आ ऊ आदमी उजबक नीयर मुह बवले एने ओने ताकते रह गइल. .


इंदोर मध्य प्रदेश में रहेवाला “नीमन सिंह” बिहार के सिवान जिला के निवासी हईं. भोजपुरी, हिंदी में कविता, कहानी आ बहुत कुछ जवन बिचार आ जाला लिख लेनी. प्रकाशित करे के कोसिस कबो ना कइनी बाकिर अंजोरिया में लोगन के लिखल पढ़ के मन में कुछ भेजे के बिचार आइल त ई प्रहसन लिख भेजनी.

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3 Comments

  1. omprakash amritanshu

    मजेदार रचना बा .मजा आ गइल नीमन जी .

  2. नीमन सिंह

    धन्यबाद

  3. santosh mishra

    bahute badhiya.e parhasan padh ke man gadgada gaeel.dhnyabad neeman ji

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