पाती के अंक 62-63 (जनवरी 2012 अंक) से -1

by | Jan 19, 2012 | 0 comments

(हमार पन्ना)

[एक] ‘भ्रष्टाचार’ पर राजनीति आ लोकतंत्र के ‘लोकपाल’

सर्वव्यापी राजनीति के पहुँच आ पइसार हर जगह बा त हमनी के जीवन क जरूरी हिस्सा बनल भ्रष्टाचार भला काहें अछूता रही? राजनीति में भ्रष्टाचार आ भ्रष्टाचार पर राजनीति अब ओह निर्णयक मोड़ पर पहुँच गइल बा, जहाँ तय कइल कठिन बा कि भ्रष्टाचार रही कि जाई? भ्रष्टाचार मलाई काटी कि सजा पाई? ‘भ्रष्टाचार‘ अतना पुरान आ जबर्दस्त ‘वायरस‘ बा कि ई मुइयो के जी जाई. एसे एकरा पर बराबर निगरानी आ एन्टीबायटिक डोज से दबा के राखे के परी. अब एकरा इलाज भा दवाई पर राजनीति होखे लागी त ईहे मानल जाई कि अइसनका लोग ओकरा प पाबंदी भा ओकरा सटीक इलाज का पक्ष आ विपक्ष दुनो ओर खड़ा बा. संचार-तंत्र आ ‘मीडिया‘ ईहे समझें – समझावे आ देखे – देखावे में लागल बा. लोकमानस भा जन गण मन एके बूझत बा.

एगो नया कठिनाई ई बा कि लोकमन भा जन गण मन के थाह लगावल अउर कठिन होत जा रहल बा. जनता लाख भरमला-भटकला का बादो असलियत बूझे में देरी नइखे करत, बाकि सरकार भोलापन भा चतुराई से अपना के अनजान प्रगट करत रहल बिया. यह अनजान लउके वाला लोकमन आ मिजाज के रिझावे, भरमावे आ अपना ‘फेवर‘ में करे खातिर राजनीति के चतुर खिलाड़ी, गच्चा खइला से बेपरवाह आपन पूरा जोर लगा देने बाड़न. भ्रष्टाचार पर लगाम खतिर ‘लोकपाल‘ बनला पर राजनीति करे वालन क स्थिति तय बा कि समर्थन भा विरोध केतना देखावे के बा आ केतना करे के बा ? बनावटी समर्थन, विरोध भा नकली पक्षधरता का पाछे छिपल राजनीतिक चाल, देखावटी सक्रियता आ अड़ंगाबाजी दूनों के मीडिया लगातार जनता के सोझा, पर्दा उठा-गिरा के देखावत बा. ‘मूरख‘(?) जनता के बहुत कुछ समझ में आवऽता. थोरो-बहुत समझ राखे वाला लोग एह राजनीतिक उठा पटक आ पाखंड के रहस-भेद समझत बा. जनता के ‘मूड‘ कवन करवट ली, बस ईहे पता नइखे.

जनता के खूब नीक से पता बा कि एक बरिस में पेट्रोल क दाम दसन बेर बढ़ावल गइल बा, डीजल, गैस, खाद, किराया, आ टैक्स से बढ़ल महँगाई दवाई आ लइकन का पढ़ाई पर आँख गिड़ोर रहलि बिया. दुइये बरिस में भ्रष्टाचार के कूल्हि रेकाड टूटि गइल बा. संसार का भ्रष्ट देशन का सूची में हमरा देश के स्थान अउर घुसुकि गइल बा. जनता के ईहे डर बा कि बड़-बड़ कंपनी आ पूंजी वाला कारपोरेट ओकर जमीन बाग बगइचा, नदी, पहाड़ जंगल कूल्हि पर आपन पकड़ मजबूत करे का मंसूबा में दिन पर दिन सफल हो रहल बा. विपक्ष का हाय-तोबा के दबावे आ आपन धाक बनवले रहला खातिर सत्तपक्ष नया नया हथकंडा आ नीति से कबो विपक्ष, कबो जनता के चौंका रहल बा. कालाधन जवन विदेशन में जमा बा ऊ कइसे आ कहाँ दफन हो गइल, ईहो जनता के याददाश्त में बनल बा.

ई धरना बार-बार टूटल बा कि ‘लोकपाल ‘से जनता क मोहभंग हो गइल बा. 11 दिसंबर 2011 के दिल्ली जंतर-मंतर पर अन्ना के एक दिनी अनशन के व्यापक जन-समर्थन देख के ई भरम टूटि गइल. जनता के आवाज बनि के उभरल अन्ना के ओह लोकपाल बिल जवना के सरकार संसद में सकार चुकल रहे आ जवना के संसद क सर्वसम्मति मिलल रहे, ओके स्टैन्डिंग कमेटी ठेंगा देखा दिहलस. अन्ना आ उनका टीम के नीचा देखावे के हर कोशिश के जनता के सतर्क निगाह देखले बिया. लोकपाल अधिनियम के माँग करे वाला अन्ना के हउवन? ऊ गाँधीवादी ना हउवन, उनका टीम के आचरण ठीक नइखे, ओमे कई लोग खुदे भ्रष्ट बा, अन्ना संघ का इशारा पर आंदोलन करत बाड़न.आदि का-का ना कहल कहावल गइल? एकर मतलब त ईहे भइल, जे पाक-साफ नइखे, ओके लोकतंत्र में कवनो जायज माँग खतिर आवाज उठावे के अधिकारो नइखे.

अन्ना के आंदोलन, भ्रष्टाचार-मुक्ति खातिर बा कि ना, एपर बहस कइला से पहिले ई सोचे के बा कि ‘भ्रष्टाचार ‘ हटावे खतिर कानून बनावे के चाही कि ना? आ ऊ कानून साफ सुथरा आ मजबूत बनी कि बहत्तर छेद वाला? कबो स्टैंडिंग कमेटी, कबो अपना घटकन क मीटिंग, कबो देखावटी सर्वदलीय बैठकी, कबो आम सहमति के दुहाई आ लब्बो लुआब ई कि कूल्हि बेनतीजा. जनता ईहो देखलस कि मनमाना सरकारी लोकपाल संसद में रखाइल आ फिक्स ‘स्ट्रेटजी ‘ का मोताबिक ‘मुस्लिम आरक्षण‘ के चिनगारी फेंकि के लहकावल गइल. कूल्हि चिल्ल-पों का बाद बढ़ावल शीत सत्र के हवा निकाल दिहल गइल. एक त करइली दुसरे नीम चढ़ल. हड़बड़ी में जवन होला, काम बिगारहीं खतिर होला. त लोकपाल के जंजाल से सरकारो क जान छूटल आ विपक्षे के. रहल सवाल ‘लोक ‘ आ ओकरा तंत्र के त ऊ नीन से जागल, अपना के सरिहावत बा, चेतना लवटते आपन असर देखई. सरकार जें तरे अड़ियल रूख अपनवलस आ जेंतरे हंगामा खड़ा करा के लोकपाल मुद्दा पर आयन किरकिरी करवलस, ओसे सबक लेके, आगे ओके ‘प्रोग्रेसिव ‘ सोच अपनावे के चाहीं. सभकर सुनि के, सबके साथ लेके चले खतिर नीयत साफ आ ईमानदार होखे के चाहीं .हमहन के नया साल में उमीद जगावे वाला गतिविधियन के ना भुलाए के चाहीं. जनता के जागृति‘ लोकतंत्र ‘ खतिर बहुते शुभ बा.


[दू] नया साल पर

नया साल के अगवानी में सन् 2011 के आखिरी रात हर बेर लेखा, एहू बेर रोशनी जगमगाहट आ ‘ ग्लैमर‘ में चकचिहाइल नजर आइल. संसार के अउर देशन लेखा हमनो किहाँ एह अगवानी क उछाह, उमंग आ जुनून देखे के मिलल. बिन्दास तौर-तरीका आ मस्त अंदाज में देश के बड़-छोट कूल्हि शहर नया साल के जशन खतिर फिल्मी सितारन आ टी. वी. कलाकारन का साथ गवला नचला के भव्य आयोजन कइलस. शराब, शबाब आ नाच-गाना में करोड़न-करोड़ रूपया बहि-बिला गइल.

खेत-बारी नदी, पहाड़, बन आ गाँवन क देश कहाए वाला हमनी के देश के सत्तर फीसदी आबादी के आध यानी पैतीस फीसदी लोगन के एह कूल्हि से कबनो फरक ना पड़ल. बकिया लोग रात खा जागि के टी॰ वी॰ पर नाच-गाना देखलस आ थोर-बहुत लुत्फो उठवलस. कुछ देर खतिर लोग कूल्हि दुख-बीपत, चिन्ता-फिकिर, गरीबी, महँगाई, बेरोजगारी आ घरेलू संकटन के भुलाए के नाकाम कोशिश करत लउकल. हँ, मनोरंजन आ मस्ती खातिर फुँकाइल करोड़न-करोड़ रूपया मन में एगो सवाल जरूर खड़ा कइलस कि हमहन का एह महान कहाए वाला बड़हन देश का भीतर, छोटे सही, एगो अउर देश बा, जहाँ लोग नया साल का जुनून आ मउज-मस्ती का साथ ‘मुन्नी बदनाम’, ‘शीला के जवानी‘, ‘जलेबी बाई‘, ‘छमकछलो‘, ‘ईलाला ईलाला‘ आ ‘कोलावेरी कोलावेरी डी’ में जिनिगी के नया अरथ खोजऽता. भगवान ए लोगन क रच्छा करसु. आपन अपना गाँव अपना देश के तरक्की खातिर सोचे-बिचारे वाला लोग, नया साल के कवना उत्साह आ कवना शुभ-संकल्प का साथ लीही, ई ज्यादा मायने राखत बा. ‘पाती-परिवार‘ का तरफ से रउरा सभ के हमार हार्दिक शुभकामना !

अशोक द्विवेदी


पिछला कई बेर से भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका “पाती” के पूरा के पूरा अंक अँजोरिया पर् दिहल जात रहल बा. अबकी एह पत्रिका के जनवरी 2012 वाला अंक के सामग्री सीधे अँजोरिया पर दिहल जा रहल बा जेहसे कि अधिका से अधिका पाठक तक ई पहुँच पावे. पीडीएफ फाइल एक त बहुते बड़ हो जाला आ कई पाठक ओकरा के डाउनलोड ना करसु. आशा बा जे ई बदलाव रउरा सभे के नीक लागी.

पाती के संपर्क सूत्र
द्वारा डा॰ अशोक द्विवेदी
टैगोर नगर, सिविल लाइन्स बलिया – 277001
फोन – 08004375093
ashok.dvivedi@rediffmail.com

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