बतकुच्चन – ४२

by | Jan 8, 2012 | 0 comments


बतकुच्चन करत हमेशा याद रहेला कि बाते से आदमी पान खाला आ बाते से लात. अब बाति आ लात के अतना घन संबंध देखला का बावजूद बतकुच्चन के लति धरा गइल बा आ लति धरा जाव त फेर आदमी परिणाम के फिकिर छोड़ देला. हालांकि जरूरी नइखे कि लति हमेशा खराबे होला. बढ़ियो काम के लति धरा सकेला आ धराये के चाहीं. बाकिर खराब काम के ना. आ एहि से आजु लति से मिलत जुल शब्दन पर आजु के बतकुच्चन करे जात बानी. लति त जानते बानी कि आदत के कहल जाला, जवन काम बार बार कइल जाव उहे लति कहाला. खास करि के खराब आदत के लति कहल जाला. ई लति लतरि लेखा पसरत जाला. लतरि माने कवनो बिरवा के डाढ़ पात आ लतरल माने लतरि बढ़ल. एह लतरि आ लतरी में बड़हन फरक हो जाई काहे कि लतरी बांया के कहल जाला. आ बाँया हाथ से काम करे वाला के लतरीहत्था. लतरि आ लतरी से कम घुमावदार ना होखे लतखोर आ लतखोरा के फरक. लतखोर ऊ जेकरा लात खाये के आदत पड़ गइल होखे, आ लतखोरा ऊ जेकरा पर लोग आपन गोड़ पोंछत जाव. माने कि डोरमैट भा पाँव पोछना. लतखोर खातिर दोसर शब्द होला लतियल. घोड़ा आ गदहा के लतार मारे के आदत होला, माने कि गोड़ उठा के मारल आ कुछ आदमीओ लताह हो जाले जब उनुका लात मारे के, लतार चलावे के लति लाग जाव. रउरा सोचत होखब कि आजु अचके हम अतना लाते लतियाँव पर काहे उतर गइनी. कारण त बा बाकिर बोलब ना. काहे कि नेतवन में से बहुते लतखोरो होले आ लताहो. खाइबो करेले आ मारबो करेले. दू दिन पहिले जे भठियरपन के अथाह सागर रहुवे अचके में ऊ मात्र पियादा रहि गइल आ ओकरा के विभीषण बना के एगो पार्टी अपना घर में घुसा लिहलसि. चाल चरित्तर आ चेहरा अतना कमाल के कि ना कहल बनत बा ना सुनत. जे सत्ताधारी पार्टी के रहरी रहरी चहेटत रहल ऊ भुला गइल कि रहरी रहरी चहेटावाला के अपनहु रहरी रहरी दउड़े के पड़ेला. लोग रउरे तरजुई पर रउरे के तउल दी त राउर वजन का निकली ? एही से कहल गइल बा कि नेता तीन तरह के होले. पहिलका ऊ जेकरा पाछा जनता के भीड़ चले. दुसरका ऊ जे भीड़ देखि के आगा आगा चले लागे आ तिसरका ऊ जेकरा के देख के पता ना चल पावे कि भीड़ ओकरा पाछा चलत बिया कि ओकर पीछा करत बिया ! हमरा जइसन बतबनवो एह बाति के मानत बा कि आजु हम बहक गइल बानी. भाषा से उतरि के समाज पर आ गइल बानी. बाकिर इहो बाति ओतने साँच ह कि समाज से भाषा बनेला भाषा से समाज ना. अलग बाति बा कि भाषा से समाज चिन्हाला. समाज में जवन चलत होखी उहे भाषा में लउकी. एह कहाउत का बावजूद कि भईंस का आगा बीन बजावे भईंस खड़ी पगुराय !

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(1)


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(3)


24 जून 2023
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सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


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एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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