बतकुच्चन – ४६

by | Feb 8, 2012 | 0 comments


पिछला बेर आखिर में पूरा पर पूरा कतार बन गइल रहे बाकिर चरचा ना चलल रहे. आजु ओहि पुर से पूर के सफर पर चलल जाव. पुर कहल जाला नगर भा शहर के बाकिर एकर इस्तेमाल कवनो शब्द का अन्त में प्रत्यय के रूप में बेसी होला, जइसे कि भागलपुर, नागपुर, जयपुर वगैरह. बाकिर जब पुर के चरचा कइल जाई त ई जगहा पूरा ना पड़ी. पुरइन कमल के पत्ता के आ प्लासेंटो के कहल जाला जवना से बच्चा अपना महतारी का कोख में जुड़ल रहेला. ओह प्लासेंटा के पुरइन शायद एहसे नाम पड़ल कि ऊ कमल के फूल लेखा छितराइल रहेला आ नाभि नाल के सीधा नार भा नाल कहल जाला. पुरनिया बुढ़ पुरान लोग के भा पहिले जनमल लोग के कहल जाला जे अब नइखे. अक्सर सुने के मिलेला कि हमनी का पुरनियन का जमाना में अतना सस्ती रहे कि पूछी मत. हालांकि ओह घरी के सस्ती एह चलते रहल कि तब लोग के खरीदे के बेंवत ना रहत रहे जतना आजु अतना महँगियो में बावे. पुर आ पूरब में कवनो नाता ना होखला का बावजूद पूरब के रहे वाला लोग पुरबिया कहा गइल आ पूरब से आवे वाली हवा पुरवइया. पूरबे से पुरबी बनल जवन गीत के एगो शैली ह आ जवना के जनक रहले पं॰ महेन्दर मिसिर. आजु ले उनुकर रचल पुरबी लोग का जबान पर चढ़ल बा जइसे कि “अंगुरी में डँसले बिया नगिनिया ए ननदी”. बाकिर अब नया पुरबी कमे लिखात बा. आ पुरवट त रउरा सभे में बहुते कम लोग देखले होखी बाकिर ई एगो चमड़ा के थैली होत रहे जवना से इनार से पानी निकालल जात रहे. आ जवन आदमी पुरवट से पानी निकालत रहे ओकरा के पुरहा कहल जाव. पुर के छोट रुप हो गइल पुरवा जवन कवनो छोटहन गाँव के कहल जाला. अब तनी पूरो का ओरि देखल जाव बाकिर कुछ पुर अबहियो बाकी बा. पुरवा माटी के बरतन भा चुकिया के कहल जाला. अलग बाति बा कि प्लास्टिक के कप गिलास का चलते कोहार के बनावल पुरवा कमे लउकत बा. गाँवो देहात मे अब प्लास्टिके के कप गिलास छाप लिहले बा. अब एह बात के पुरवावल भा पुरवासाखी के जरूरत ना पड़े के चाहीं. काहे कि ई त सभका नजर का सोझा बा. अब चलीं पूर पर त पूर भरूआ सामानो के कहल जाला जवन कवनो चीज में भा पकवान में भरल जाला. आ पूरन कवनो काम के भा घटना के पूरा होखला के कहल जाला जइसे कि पूरनमासी महीना पूरा भइला के दिन के कहल जाला जहिया चनरमा अपना पूरा आकार में होखेले. अब त रउरो कहत होखब कि वाह रे बतकुच्चन, कतना पूरबऽ एह पूर के ? पूरल के मतलब रसरी बनावलो होला आ कवनो काम के पूरो कइल. अब आजु एह पुर से पूर तक आवे में हमार जगहा पूरा हो गइल. अलग बाति बा कि हम ई ना कह सकीं कि हमार बाति पूरा हो गइल. बात ना भइल हनुमान जी के पोंछ हो गइल कि ओराते नइखे ! खैर चले दीं आजु, फेर त भेंट होखही के बा.

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