भाषा संस्कार से बनेला कि भाषा से संस्कार बनेला एह बाति पर ढेरहन बतकुच्चन कइल जा सकेला. बाकिर एह बाति पर ना कि साहित्य समाज के दर्पण होले. साहित्य के रूप हर समय बदलत रहेला आ आजु के साहित्य में एसएमएस, ट्विट भा फेसबुक अपडेट शामिल होखे कि ना एहु पर बहस हो सकेले. बाकिर आजु के बतकुच्चन लिखत घरी हमरा सामने कुछ अउरी घुरियाइल बा बदरी जस. रेल यात्रा में हमेशा ध्यान गइल बा ओह चेतावनी पर जवन खतरा के जंजीर खीँचे वालन खातिर लिखल रहेला. उचित और पर्याप्त कारण बिना… जरूर कवनो विधि विशेषज्ञ एकर ड्राफ्टिंग कइले होखी कि अगर केहु चेन खींचे त ओकरा के कवनो ना कवनो तरह लटकावल जा सके. काहे कि जरूरी नइखे कि हर उचित कारण पर्याप्तो होखे भा हर पर्याप्त कारण उचितो होखे. फेर पर्याप्त आ उचित के फैसला के करी? केकरा हिसाब से उचित भा पर्याप्त? पिछला दिने सोशल मीडिया में हड़कंप मचल रहे जब एगो कानून विशारद के कुछ निजी कारनामा सार्वजनिक कर दिहल गइल. ऊ कानून विशारद राजनीति में सम्मानित ओहदा पर रहलें पार्टी में उनुका बाति के मान आदर होत रहुवे. बाकिर उनुकर निजता के हरण करे वाला एगो वीडियो नेट पर अपलोड कर दिहल गइल. अब थोड़ देर खातिर एस एम एस, ट्विट, फेसबुक, सोशल मीडिया, ड्राफ्टिंग, अपलोड, वीडियो, नेट जइसन शब्दन के इस्तेमाल पर धेयान दीं, का एह शब्दन का बदले कुछ ठेंठ भोजपुरिया शब्द लगावल जा सकेले? ना. ना त एकर जरूरत बा ना ऊ व्यावहारिक होखी काहे कि सभे एह शब्दन से वाकिफ बा आ एकर इस्तेमाल करत बा. आ अंगरेजी जइसन महान शब्द उठाऊ भाषा से सिखल जाव त भोजपुरी के शब्द भंडार में एह शब्दन के भरपूर जगह मिले के चाहीं, स्टेशन के टिसन कह लीं ठीक बा. बाकिर केहु स्टेशन कहत लिखत बा त उहो ओतने सही बा. हम त एगो साधारण मापदण्ड राखीलें एह ला. अगर दू गो शब्द का बीच से चुने के होखे त ओकरा के चुनीं जवन सहज होखे आ जवना में संयुक्ताक्षर ना होखे. एहसे स्टेशन से बढ़िया टिसन रही. खैर आजु हम भोजपुरी में दोसरा भाषा के शब्दन के इस्तेमालो पर नइखीं बतियावे आइल. हम त एगो दोसर सवाल के जवाब खोजे में अझूराइल बानी कि नैतिक आ कानूनी में अतना फरक काहे होला? कवनो जरूरी नइखे कि कानूनी रूप से सही बात नैतिको होखो भा नैतिक बात कानूनीओ होखे. जवना घटना का बारे में हम सोचत बानी ओकरा बारे में महानुभाव जी के कहना रहल कि एहमें कवनो अपराध नइखे भइल. दू गो वयस्क मनई अपना निजी क्षणमें का करेलें भा का कइलन एह पर कवनो बतकुच्चन ना होखे के चाहीं. बाकिर हमरा लागत बा कि सार्वजनिक जीवन जिए वालन के अपना निजी क्षणो में सावधान रहे के चाहीं. नैतिकता के आसन से गिरला का बाद रउरा कानूनी रूप से कतनो सही रहीं राउर इमेज त खराब होइए जाई आ राजनीति में इमेज के बहुत महत्व होला. कुछ पाठक लोग के लाग सकेला कि बतकुच्चन कबो कबो बहक जात बा ओतना निशाना पर नइखे रहत जतना रहे के चाहीं. त एह पर हम बस अतने कहब कि राग रसोईया पागड़ी कबो कबो बन जाय! अगर पगड़ी बनावल अतना आसान रहीत भा रोजे एगो नया राग रचल जा सकीत त ओह बहुतायत से मन उबिया जाइत. सब दिन रहत न एक समाना आ रचना रचत घरी रचही वाला जानेला कि एह रचे में कतना रचाए के पड़ेला!

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