बतकुच्चन – ९५

by | Jan 25, 2013 | 0 comments


सियन आ सिवान. सोचनी कि आजु के बतकुच्चन एही पर कर लीं. रउरा सोचब कि सियन आ सिवान में का संबंध? एगो कपड़ा के सिलाई, दोसर सीमा के अंत. एह दुनु में कवन रिश्ता हो सकेला? बाकि देखीं त दुनु में बहुते करीबी मिल जाई. कपड़ा के सियन टूटल आ देश के सिवान टूटल एके जस होला. सियन टूटल कपड़ा पहिरे लायक ना रहि जाव आ सिवान टूटल देश रहे लायक. कपड़ा के सियन टूटल त फेर से सियल जा सकेला, देश के सिवान टूटल त फेर से ओही सिवान के जमावल बहुते मुश्किल हो जाला. कपड़ा के सियन त पुरान भइला पर टूटही के बा बाकि देश के सिवान संगे ई मजबूर ना होले. ऊ जब टूटी त अपना कमजोरी से. भितरघात से. दुश्मन का हमला से.

बाहर के दुश्मन आ पड़ोस के दुश्मन दू तरह के होलें. पड़ोस के दुश्मन का बारे में एगो कहाउत चलत आइल बा कि, सिरवां के मुद्दई नव पुरखा के हान. नजदीक के दुश्मन कई पुश्त ले नुकसान चहुँपावेला. आ अगर ओह पड़ोस के दुश्मन के घर के भेदी के सहारा मिल जाव त फेर का पूछे के बा. एक त काली अपने गोर ओपर से लिहली कमरी ओढ़. पुरखा पुरनिया एही से कहि गइल रहलें कि घर के भेदी लंका ढाहे. दूश्मन से निबटल आसान होला घर का भेदी से निबटल मुश्किल. काहे कि ऊ राउर हर गुण अवगुण से परिचित बा, राउर हर कमजोरी से वाकिफ. जानत बा कि कवन जगहा चोट कइला पर रउरा के आसानी से मारल जा सकेला. अइसनका घर के भेदी पड़ोस के दुश्मन ला वइसने सौगात होलें जइसन बिलाई खातिर सूखल मछरी. एगो कहाउत एहू पर बा कि, सिरौना तर सुँगठी बिलाई आँखे नीन? सिरहाना तर सूखल मछरी पड़ल होखे त भला बिलाई का आँखे नीन कइसे आ पाई. ऊ त झपटबे करी आ भकोसला का बादे सूत पाई.

हाल फिलहाल के हालात कुछ अइसने हो गइल बा. पड़ोस के दुश्मन कई बेर पिटा चुकल बा बाकि अपना आदत से मजबूर कुछ ना कुछ शैतानी करत रहला से बाज ना आवे. एह पर एगो कहाउत याद आवत बा कि, सिंह से सरबर करे सियारा, एक थपड़ में दाँत चियारा. सियार सिंह से बरोबरी करे चलल बाकिर एके झाँपड़ बढ़िया से पड़ल त सगरी हेंकड़ी निकल गइल आ दाँत चियार दिहलें. बाकिर कइल जाव त का? आपन धियवा नीमन रहीत त बिरान पारीत गारी? आपन बिटियवा, आपन कर्म ठीक रहीत त दोसरा के का बेंवत जे गरिया के चलि जाइत. हालांकि लड़ाई के मैदान दुश्मन के सुभीता से ना होखे के चाहीं. लड़ाई के समय आ जगहा दुनु अपना फायदा का हिसाब से तय करे के चाहीं. ई ना कि दुश्मन ललकारे आ रउरा ठाँव कुठाँव देखले बिना कूद पड़ीं ओकरा से लड़े. दुश्मन से निबटे से पहिले इहो सोचे के चाहीं कि ऊ चाहत का बा, ओकर मकसद का बा? अइसन त ना कि, एक त बाँड़ अपने जइहें, नौ हाथ के पगहो ले जइहें. दोसरे कहीं अइसन त ना कि चाल केहू तिसर चलत बा आ हमनी का दोसरा से निबटल चाहत बानी. कहल गइल बा कि, सिधरी चाल चलसु बरारी पर बीते. तालाब पोखरा में सिधरी, एक तरह के छोट मछरी, जब कूद फान करे ली सँ त आदमी के पता लाग जाला कि एहिजा मछरी बाड़ी सँ आ जब जाल फेंकाला त सिधरिया त निकल जाली सँ बरारी फँस जाली सँ. आ चलत चलत फेरू याद आ गइल सियन के, जाल डाले से पहिले इहो देख लिहल जरूरी होला कि ओकर सियन त नइखे टूटल?

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