बतकुच्चन ‍ – ८८

by | Dec 16, 2012 | 0 comments


जब कवनो नेता के अपना पार्टी में रहत असकस लागे लागेला त ऊ अइसन अइसन बयानबाजी शुरू कर देला जवना से पार्टी नेतृत्व के अनकस होखे लागे आ ऊ आपन अहजह आ असकत छोड़त ओह नेता के पार्टी से निकाले के फैसला कर लेव आ ओकरा के उभचुभ से बचा लेव.

हमेशा का तरह आजुओ हम हाल फिलहाल के घटना के बहाने शुरू हो गइल बानी. जबे अइसन कवनो बात हो जाला जवना से हमरा कुछ बतकुच्चन करे के मौका मिल जाव त कतनो हारल थाकल रहला का बादो मन हरियरा जाला. मन के भाव जतावे बतावे ला भोजपुरी में जवन अथाह भण्डार भरल बा ओकर कवनो जोड़ ना मिली दोसरा जगहा. अब एहिजे देखीं अनकस आ असकस में. असकस असहज होखला पर लागेला जइसे कि टाइट कुर्ता कुर्ती पहिरला पर भा जाड़ा का दिन में टाइट सुइटर पहिरला से लागेला. मन करेला कि कब उतार फेंकी. बाकिर अनकस चिढ़ से, अँउजइला से होला. जइसे कि हो सकेला कि रउरा बतकुच्चन पढ़त लागत होखे. अंगरेजी में एकरा ला शब्द होला इरिटेशन आ असकस ला अनइजीनेस. देखीं कि भोजपुरी में एह तरह के भाव कतना आसानी से आसान शब्द में कह दिहल जाला अनकस भा असकस. एही तरह देखीं कि असकत कतना आसान शब्द बा, ना कवनो मात्रा ना कवनो संधि समास. असकतिया आदमी के अतना कहाँ पार लागी कि ऊ मात्रा वात्रा जोड़े के जहमत उठावे. असकत आलस्य के कहल जाला आ असकतिया आलसी के.

असकत आ अशक्त में कवनो संबंध नइखे काहे कि अशक्त बिना शक्ति वाला के कहल जाला जबकि असकत में अशक्त के ना, अनिच्छा के खेल होला. जब मन ना करे कुछ करे के त ओकरे के असकत कहल जाला. असकतिया आदमी अशक्त ना होला बस ओकरा में शक्ति के इस्तेमाल करे के इच्छा ना होला. जइसे कि लवटल जाव ओही नेता पर त देखीं, बहुत दिन ले पार्टी असकतियवलसि, महटियवलसि, अनदेखी अनसुनी कइलस उनुका बात बयान के. बाकिर अंत में ओकरा आपन असकत छोड़ के आपन शक्ति देखावे पड़ल आ नेता जी के बाहर के रास्ता देखा दिहलसि. जवना थरिया में खाईं ओही में छेद करीं, ई कबो सही ना कहल जा सके. बाकिर कुछ लोग अइसने करेला. असल में ऊ लोग अहजह में पड़ल होला. देखेला कि सामने वाला पार्टी में लोग माल काटत बा, सत्ता के सुख भोगत बा त सोचे लागेला कि एहिजा रहीं कि ओहिजा जाईं. एही के अहजह में पड़ल, दुविधा में पड़ल कहल जाला. उभचुभ में पड़ल दोसरा तरह के भाव होला. एहमें कबो लागेला कि डूबत बानी कबो लागेला कि उपरा गइल बानी. इहो दुविधे के भाव ह बाकिर अहजह में एगो हालात से निकले के संभावना तलाशल जाला त उभचुभ में बस अपना हालात के मूल्यांकन भर होला. बियाहल जिनिगी एही तरह के उभचुभ से भरल होला बाकि अपना किहाँ अबहीं एह ला अहजह के बात ना होखे. लाख उभचुभ का बादो मरत दम ले संबंध निबाहल के समर्पण भा मजबूरी मौजूद रहेला. अलग बात बा कि विदेशी हवा आ संस्कृति का असर से अब एहिजो अहजह के बात होखे लागल बा. जबकि हिन्दुस्तानी संस्कृति त इहे कहेला कि एक दोसरा के बात से कतनो अनकस होखत होखे, जिनिगी से असकस लागत होखे कवनो अहजह में मत पड़ीं आ उभचुभ होखत रहीं. मानलीं कि सब दिन होत न एक समाना आ जाही विधि राखे राम ओही विधि रहिए.

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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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