बतकुच्चन – १०

by | May 8, 2011 | 0 comments

आजु पता ना काहे मन अँउजाइल बा. लागत बा कि कंठ में कुछ अटकल बा अँउजार जइसन. आ कंठ का भीतर कुछ अटकल होखे त जान पर आफत बनि जाला कबो-कबो. अलगा बाति बा कि कंठ का बाहर लटकल कंठहार औरतन के सुंदरता बढ़ा देला. कंठ गवनई के सुरो के कहल जाला. जेकरा लगे कंठ नइखे ऊ लंठ बन जाला. ओकर गीतो-गवनई लाठी लेखा कपारे पड़त बुझाला. काहे कि जवना गवईया का लगे सुर नइखे ऊ असुरे जस नू होई. अब एह सुर के राखेवाला के ससुर ना कहल जा सके. याद आवत बा एगो बुड़बक के कहानी जे कुछ हिन्दी सीख के विद्वान बने के नौटंकी करत अपना ससुरारी गइल रहे आ जब ससुर जी कहलें कि आईं कुँअर जी ! त भड़क उठल रहे. कहलसि का खराबी बा हमरा में जे हमरा के कुँअर कहनी. निमना में सु भा स जोड़ल आ खरबका में कु, क भा अ. अब ससुर जी कइसे समुझावसु ओकरा के कि हउवऽ त तू सुअरे बाकिर कहीं कइसे !

कंठ पर कुछ लोग हार लटकावेला कुछ लोग माला. कंठी माला राखे वाला लोग कंठ पर कंठी आ हाथ में माला राखेला बाकिर मन में का राखेला ई के जाने. अब अपना अँउजाहट में आजु अँउजेपथार के बात मन में आ रहल बा. पथार कवनो चीज के ढेर के कहल जाला आ अँउजा बिना मतलब के चीज के. अँउजा पथार के तुलना गोबर के पथार से कइल बेमतलब रही काहे कि गोबर के पथार त पाथे का कामे आ सकेला. पाथल गोंईंठा आ चिपड़ी दुनु जाले. जब गोठ गोठ पाथ दीं त गोईंठा आ जब चिपटा दीं त चिपड़ी. अब ओह गोंईठा चिपड़ी पर रउरा लिट्टी पकाईं भा बाटी राउर मरजी. बलिया के बाटी आ छपरा के लिट्टी दुनु एके जइसन होईयो के एक ना हो सके ठीक वइसहीं जइसे गोईंठा आ चिपड़ी गोबरे से पथइला का बादो दू तरह के होला. जे दुनु खइले बा उहे जान पाई. चलीं आजु अतने.

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