बतकुच्चन – १३

by | Jun 1, 2011 | 1 comment

पहुँचा कहल जाला हाथ का हथेली के जोड़ वाली जगह, कलाई के भा मणिबन्ध के. आ पहूँची कहल जाला एगो खास तरह के गहना के जवन कलाई पर पहिरल जाला. भोजपुरी में एगो कहाउत ह पँहुचा पकड़त गरदन पकड़ लिहल. कुछ लोग पहिले त राउर सहारा लेबे खातिर राउर कलाई भा पँहुचा पकड़ी बाकिर जब आपन मतलब निकल जाई त राउर गरदनो पकड़त ओह लोग के देर ना लागी. ई त बाति भइल पहुँचा आ पहूँची के. सुने में अइसने शब्द ह पहुँचल भा चहुँपल. पहुँचल हिन्दी के सुभाव से बेसी भावेले त चहुँपल भोजपुरी के. बाकिर पहुँचल बा चहुँपल दुनु के दुनु में इस्तेमाल कइल जा सकेला. अब अगर हिन्दी के विद्वान चहुँपल शब्द पर आपत्ति करसु त हम कुछ ना कर सकी. काहे कि हम आजु ले ना त चहुँपल बानी ना कवनो तरह से चहुँपल कहल जा सकीले.

जब केहू अपना लक्ष्य के पा लेबेला त कहल जाला कि ऊ चहुँप गइल. अब ई लक्ष्य कई तरह के हो सकेला. कवनो जगहा चहुँपे के भा कवनो क्षेत्र के शिखर पर चहुँपे के. आ एह चहुँपे के दुनु तरह से कहल जा सकेला, सम्मान में भा केहू पर तंज कसे में. चहुँपल साधुओ हो सकेले आ ठग बटमारो. अब ठगी भा घोटाला में चहुँपल लोग तिहाड़ जेल चहुँप जाव, इहो हो सकेला. बस समय के फेर के जरुरत होला. जे कबो तीन बेर खात रहुवे अब तीन गो बेर खा के काम चलावत बा. जेकरा पर कबो विजन, चँवर, डोलावल जात रहे ऊ आजु विजन डोलत बा, मतलब ओहिजा बा जहवाँ कवनो जन नइखे. जब एकही शब्द के कई गो मतलब होला भा ओकरा के कई तरह से इस्तेमाल कइल जा सकेला त ओकरा के विद्वान लोग कबो कबो बहुते चतुराई से इस्तेमाल कर जाले. जइसे जेकरा अर्जुन से शिकायत होखे से ऊ ओह अर्जुन के अर्जून कह देव. बदलल बस एगो मात्रा बाकिर अर्थ के अनर्थ हो गइल. कुछ लोग के शिकायत बा कि भोजपुरी में दुअर्थी शब्द बहुते होले, बाकिर ई बाति गलत बा. दुअर्थी भा बहु अर्थी शब्द हर भाषा में मिलेला आ इस्तेमालो होला.

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1 Comment

  1. प्रभाकर पाण्डेय

    सादर नमस्कार।
    अति सुंदर। अउर हाँ इ एकदम सही बात बा कि अनेकार्थी (बहुअर्थी) शब्द हर भाषा में होने अउर इ एक तरे भाषा के अलंकार होलें। अब रउरा देखीं की अंग्रेजी की शब्द RUN के 645 को मतलब बा। का विश्वास नइखे होत? ठीक बा त हे लिंक पर क्लिक करीं….http://expressbuzz.com/opinion/editorials/this-race-of-verbs-reflects-fast-changing-times/279040.html

    खैर हम इहाँ पहुँचा अउर पहुँची पर बात करतानी।
    गाँव में हम एगो रचना सुनले बानी जवने में मेहरारू अपनी मर्दे के एगो सनेसा भेजतिया…रउओं सुनी अउर आनंद लीं—
    जो पहुँची तूने भेजी है, वह पहुँची अब पहुँची है,
    लेकिन फिर भी क्या पहुँची है, पहुँची तक न पहुँची है।। (जवन पहुँची (गहना) तूँ भेजले बाड़S, उ मिल गइल बा, पर ए मिलले से कवन फायदा की हमरी पहुँची में होत नइखे…मतलब छोट पड़ि गइल।)
    सादर।।

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